I wandered lonely as a cloud
That floats on high o'er vales and hills,
When all at once I saw a crowd,
A host, of golden daffodils;
Beside the lake, beneath the trees,
Fluttering and dancing in the breeze.
Continuous as the stars that shine
And twinkle on the milky way,
They stretched in never-ending line
Along the margin of a bay:
Ten thousand saw I at a glance,
Tossing their heads in sprightly dance.
The waves beside them danced, but they
Out-did the sparkling leaves in glee;
A poet could not be but gay,
In such a jocund company!
I gazed—and gazed—but little thought
What wealth the show to me had brought:
For oft, when on my couch I lie
In vacant or in pensive mood,
They flash upon that inward eye
Which is the bliss of solitude;
And then my heart with pleasure fills,
And dances with the daffodils.
---William Wordsworth
3 जून 2011
29 मई 2011
सिली हवा छू गयी, सिला बदन छिल गया
सिली हवा छू गयी, सिला बदन छिल गया
सिली हवा छू गयी, सिला बदन छिल गया
नीली नदी के परे, गीला सा चाँद खिल गया
सिली हवा छू गयी, सिला बदन छिल गया
तुमसे मिली जो ज़िन्दगी, हमने अभी बोई नहीं
तुमसे मिली जो ज़िन्दगी, हमने अभी बोई नहीं
तेरे सिवा कोई न था, तेरे सिवा कोई नहीं
सिली हवा छू गयी, सिला बदन छिल गया
जाने कहाँ कैसे शहर, ले के चला ये दिल मुझे
जाने कहाँ कैसे शहर, ले के चला ये दिल मुझे
तेरे बगैर दिन न जला, तेरे बगैर शब् न बुझे
सिली हवा छू गयी, सिला बदन छिल गया
जितने भी तै करते गए, बढे गए ये फासले
जितने भी तै करते गए, बढे गए ये फासले
मीलों से दिन छोड़ आये, सालों सी रात ले के चले
सिली हवा छू गयी, सिला बदन छिल गया
नीली नदी के परे, गीला सा चाँद खिल गया.
--- गुलज़ार
# You can hear this song in the voice of Lata Mangeshkar at Youtube
सिली हवा छू गयी, सिला बदन छिल गया
नीली नदी के परे, गीला सा चाँद खिल गया
सिली हवा छू गयी, सिला बदन छिल गया
तुमसे मिली जो ज़िन्दगी, हमने अभी बोई नहीं
तुमसे मिली जो ज़िन्दगी, हमने अभी बोई नहीं
तेरे सिवा कोई न था, तेरे सिवा कोई नहीं
सिली हवा छू गयी, सिला बदन छिल गया
जाने कहाँ कैसे शहर, ले के चला ये दिल मुझे
जाने कहाँ कैसे शहर, ले के चला ये दिल मुझे
तेरे बगैर दिन न जला, तेरे बगैर शब् न बुझे
सिली हवा छू गयी, सिला बदन छिल गया
जितने भी तै करते गए, बढे गए ये फासले
जितने भी तै करते गए, बढे गए ये फासले
मीलों से दिन छोड़ आये, सालों सी रात ले के चले
सिली हवा छू गयी, सिला बदन छिल गया
नीली नदी के परे, गीला सा चाँद खिल गया.
--- गुलज़ार
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28 मई 2011
3 Poems from संग्रह: उजाले अपनी यादों के
1.
अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जायेगा
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझे चाहेगा
तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा
मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लायेगा
ना जाने कब तेरे दिल पर नई सी दस्तक हो
मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आयेगा
मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ
अगर वो आया तो किस रास्ते से आयेगा
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है
तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सतायेगा
2.
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझे चाहेगा
तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा
मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लायेगा
ना जाने कब तेरे दिल पर नई सी दस्तक हो
मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आयेगा
मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ
अगर वो आया तो किस रास्ते से आयेगा
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है
तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सतायेगा
2.
जब सहर चुप हो, हँसा लो हमको
जब अन्धेरा हो, जला लो हमको
हम हक़ीक़त हैं, नज़र आते हैं
दास्तानों में छुपा लो हमको
ख़ून का काम रवाँ रहना है
जिस जगह चाहे बहा लो हमको
दिन न पा जाए कहीं शब का राज़
सुबह से पहले उठा लो हमको
दूर हो जाएंगे सूरज की तरह
हम न कहते थे, उछालो हमको
हम ज़माने के सताये हैं बहोत
अपने सीने से लगा लो हमको
वक़्त के होंट हमें छू लेंगे
अनकहे बोल हैं गा लो हमको
3.
हम हक़ीक़त हैं, नज़र आते हैं
दास्तानों में छुपा लो हमको
ख़ून का काम रवाँ रहना है
जिस जगह चाहे बहा लो हमको
दिन न पा जाए कहीं शब का राज़
सुबह से पहले उठा लो हमको
दूर हो जाएंगे सूरज की तरह
हम न कहते थे, उछालो हमको
हम ज़माने के सताये हैं बहोत
अपने सीने से लगा लो हमको
वक़्त के होंट हमें छू लेंगे
अनकहे बोल हैं गा लो हमको
3.
गज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखायेंगे
रोयेंगे बहुत, लेकिन आँसू नहीं आयेंगे
कह देना समन्दर से, हम ओस के मोती हैं
दरिया की तरह तुझ से मिलने नहीं आयेंगे
वो धूप के छप्पर हों या छाँव की दीवारें
अब जो भी उठायेंगे, मिलजुल के उठायेंगे
जब कोई साथ न दे, आवाज़ हमें देना
हम फूल सही लेकिन पत्थर भी उठायेंगे.
---बशीर बद्र
कह देना समन्दर से, हम ओस के मोती हैं
दरिया की तरह तुझ से मिलने नहीं आयेंगे
वो धूप के छप्पर हों या छाँव की दीवारें
अब जो भी उठायेंगे, मिलजुल के उठायेंगे
जब कोई साथ न दे, आवाज़ हमें देना
हम फूल सही लेकिन पत्थर भी उठायेंगे.
---बशीर बद्र
जिन्दगी आयी बनारस का जहाँ नाम आया
मेरे होते भी अगर उनको न आराम आया
जिन्दगी फिर मेरा जीना मेरे किस काम आया
सिर्फ सहबा ही नहीं रात हुई है बदनाम
आप की मस्त निगाहों पे भी इल्जाम आया
तेरे बचने की घड़ी गर्दिशे अय्याम आया
मुझसे हुशियार मेरे हाथ में अब जाम आया
फिर वो सूरज की कड़ी धूप कभी सह न सका
जिसको जुल्फों की घनी छाँव में आराम आया
आज हर फूल को मैं देख रहा था ऐसे
मेरे महबूब का खत जैसे मेरे नाम आया
मौजे गंगा की तरह झूम उठी बज्म नजीर
जिन्दगी आयी बनारस का जहाँ नाम आया
- नजीर बनारसी
जिन्दगी फिर मेरा जीना मेरे किस काम आया
सिर्फ सहबा ही नहीं रात हुई है बदनाम
आप की मस्त निगाहों पे भी इल्जाम आया
तेरे बचने की घड़ी गर्दिशे अय्याम आया
मुझसे हुशियार मेरे हाथ में अब जाम आया
फिर वो सूरज की कड़ी धूप कभी सह न सका
जिसको जुल्फों की घनी छाँव में आराम आया
आज हर फूल को मैं देख रहा था ऐसे
मेरे महबूब का खत जैसे मेरे नाम आया
मौजे गंगा की तरह झूम उठी बज्म नजीर
जिन्दगी आयी बनारस का जहाँ नाम आया
- नजीर बनारसी
21 मई 2011
बदला न अपने आप को जो थे वही रहे
बदला न अपने आप को जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे.
दुनिया न जीत पाओ तो हारो न ख़ुद को तुम
थोड़ी बहुत तो ज़हन में नाराज़गी रहे.
अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी
हम जिसके भी क़रीब रहे दूर ही रहे.
गुज़रो जो बाग़ से तो दुआ माँगते चलो
जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे |
---निदा फ़ाज़ली
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे.
दुनिया न जीत पाओ तो हारो न ख़ुद को तुम
थोड़ी बहुत तो ज़हन में नाराज़गी रहे.
अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी
हम जिसके भी क़रीब रहे दूर ही रहे.
गुज़रो जो बाग़ से तो दुआ माँगते चलो
जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे |
---निदा फ़ाज़ली
ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे
ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे
हमसफ़र चाहिये हुजूम नहीं
इक मुसाफ़िर भी काफ़िला है मुझे
तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौसला है मुझे
लब कुशां हूं तो इस यकीन के साथ
कत्ल होने का हौसला है मुझे
दिल धडकता नहीं सुलगता है
वो जो ख्वाहिश थी, आबला है मुझे
कौन जाने कि चाहतो में फ़राज़
क्या गंवाया है क्या मिला है मुझे.
--- Ahmed Faraz
तू बहुत देर से मिला है मुझे
हमसफ़र चाहिये हुजूम नहीं
इक मुसाफ़िर भी काफ़िला है मुझे
तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौसला है मुझे
लब कुशां हूं तो इस यकीन के साथ
कत्ल होने का हौसला है मुझे
दिल धडकता नहीं सुलगता है
वो जो ख्वाहिश थी, आबला है मुझे
कौन जाने कि चाहतो में फ़राज़
क्या गंवाया है क्या मिला है मुझे.
--- Ahmed Faraz
13 मई 2011
कोई उम्मीद बर नहीं आती
कोई उम्मीद बर नहीं आती
कोई सूरत नज़र नहीं आती
मौत का एक दिन मु'अय्यन है
नींद क्यों रात भर नहीं आती
आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी
अब किसी बात पर नहीं आती
जानता हूँ सवाब-ए-ता'अत-ओ-ज़हद
पर तबीयत इधर नहीं आती
है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ
वर्ना क्या बात कर नहीं आती
क्यों न चीख़ूँ कि याद करते हैं
मेरी आवाज़ गर नहीं आती
दाग़-ए-दिल नज़र नहीं आता
बू-ए-चारागर नहीं आती
हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती
मरते हैं आरज़ू में मरने की
मौत आती है पर नहीं आती
काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब'
शर्म तुमको मगर नहीं आती.
---ग़ालिब
कोई सूरत नज़र नहीं आती
मौत का एक दिन मु'अय्यन है
नींद क्यों रात भर नहीं आती
आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी
अब किसी बात पर नहीं आती
जानता हूँ सवाब-ए-ता'अत-ओ-ज़हद
पर तबीयत इधर नहीं आती
है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ
वर्ना क्या बात कर नहीं आती
क्यों न चीख़ूँ कि याद करते हैं
मेरी आवाज़ गर नहीं आती
दाग़-ए-दिल नज़र नहीं आता
बू-ए-चारागर नहीं आती
हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती
मरते हैं आरज़ू में मरने की
मौत आती है पर नहीं आती
काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब'
शर्म तुमको मगर नहीं आती.
---ग़ालिब
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