29 दिसंबर 2011

ये सोचा नहीं है किधर जाएँगे

ये सोचा नहीं है किधर जाएँगे
मगर हम यहाँ से गुज़र जाएँगे

इसी खौफ से नींद आती नहीं
कि हम ख्वाब देखेंगे डर जाएँगे

डराता बहुत है समन्दर हमें
समन्दर में इक दिन उतर जाएँगे

जो रोकेगी रस्ता कभी मंज़िलें
घड़ी दो घड़ी को ठहर जाएँगे

कहाँ देर तक रात ठहरी कोई
किसी तरह ये दिन गुज़र जाएँगे

इसी खुशगुमानी ने तनहा किया
जिधर जाऊँगा, हमसफ़र जाएँगे

बदलता है सब कुछ तो 'आलम' कभी
ज़मीं पर सितारे बिखर जाएँगे

--'आलम खुर्शीद'

6 दिसंबर 2011

6 दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे

राम बनवास से जब लौट के घर में आये,
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आये,
रक्स-ए-दीवानगी आँगन में जो देखा होगा,
6 दिसम्बर को श्री राम ने सोचा होगा,
इतने दीवाने कहाँ से मेरे घर में आये?

जगमगाते थे जहाँ राम के क़दमों के निशाँ,
प्यार की कहकशां लेती थी अंगड़ाई जहाँ,
मोड़ नफरत के उसी रह गुज़र में आये,
धरम क्या उनका है, क्या ज़ात है, ये जानता कौन?
घर न जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन,
घर जलने को मेरा, लोग जो घर में आये,
शाकाहारी है मेरे दोस्त तुम्हारा खंजर.

तुमने बाबर की तरफ फेके थे सारे पत्थर,
है मेरे सर की खता ज़ख्म जो सर में आये,
पावँ सरजू में अभी राम ने धोये भी न थे,
के नज़र आये वहां खून के गहरे धब्बे,
पावँ धोये बिना सरजू के किनारे से उठे,
राम ये कहते हुए अपने द्वारे से उठे,
राजधानी की फिजा आयी नहीं रास मुझे,
6 दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे.

 by Kaifi Azmi 

14 नवंबर 2011

Mind has no color

Mind has no color,
Is neither long nor short,
Doesn't appear or disappear;
It is free from both purity and impurity;
It was never born and can never die;
It is utterly serene.
This is the form of our
Original mind,
Which is also our original body.

- Hui-hai (8th cent)

12 नवंबर 2011

No man is an island

No man is an island,
Entire of itself.
Each is a piece of the continent,
A part of the main.
If a clod be washed away by the sea,
Europe is the less.
As well as if a promontory were.
As well as if a manor of thine own
Or of thine friend's were.
Each man's death diminishes me,
For I am involved in mankind.
Therefore, send not to know
For whom the bell tolls,
It tolls for thee.

---John Donne

11 नवंबर 2011

Advice to Women

Keep cats
if you want to learn to cope with
the otherness of lovers.
Otherness is not always neglect --
Cats return to their litter trays
when they need to.
Don't cuss out of the window
at their enemies.
That stare of perpetual surprise
in those great green eyes
will teach you
to die alone.

---Eunice deSouza

1 नवंबर 2011

ज़िन्दगी ना मिलेगी दोबारा.

जब जब दर्द का बादल छाया
जब गम का साया लैहराया
जब आँसू पलकों तक आया
जब ये तन्हा दिल घबराया
हमने दिल को ये समझाया
दिल आखिर तू क्यों रोता है
दुनिया मे यूँ ही होता है
ये जो गहरे सऩ्नाटे हैं
वक़्त ने सबको ही बाँटे हैं
थोड़ा गम है सबका किस्सा
थोड़ी धूप है सबका हिस्सा
आँख तेरी बेकार ही नम हैं
हर पल एक नय़ा मौसम है
क्यों तु ऐसे पल खोता है
दिल आखिर तू क्यों रोता है....

ऐक बात होटों तक है जो आइ नहीं
बस आँखों से है झाँकती
तुमसे कभी, मुझसे कभी
कुछ लव्ज़ हैं वो माँगती
जिनको पहन के होटों तक आ जाए वो
आवाज़ की बाहों मे बाहें डाले इठलाए वो
लेकिन जो ये एक बात है
ऐहसास ही ऐहसास है
खुशबू सी है जैसे हवा में तैरती
खुशबू जो बेआवाज़ है
जिसका पता तुमको भी है
जिसकी खबर मुझको भी है
दुनिया से भी छुपता नहीं
ये जाने कैसा राज़ है....

पिघले नीलम सा बेहता हुआ ये समा
नीली नीली सी खामोशियाँ
ना कहीं है ज़मीन
ना कहीं है आसमां
सरसराती हुई तनहाइयां,
पत्तियां कह रही हैं की बस ऐक तुम हो यहाँ
सिर्फ मैं हूँ मेरी साँसे हैं और मेरी धड़कनें
ऐसी गहराइयाँ
ऐसी तनहाइयां
और मैं सिर्फ मैं
अपने होने पे मुझको यकीन आ गया...

दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो
तो ज़िन्दा हो तुम
नज़र में ख्वाबों की बिजलियाँ लेके चल रहे हो
तो ज़िन्दा हो तुम

हवा के झोंकों के जैसे
आज़ाद रहना सीखो
तुम एक दरिया के जैसे
लहरों में बहना सीखो
हर एक लमहे से मिलो
खोले अपनी बाँहें
हर एक पल एक नया समा
देखे ये निगांहे

जो अपनी आँखों मे हैरानियाँ लेके चल रहे हो
तो ज़िन्दा हो तुम
दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो
तो ज़िन्दा हो तुम....

- जावेद अख़्तर

28 सितंबर 2011

जुस्तजू खोये हुओं की

जुस्तजू खोये हुओं की उम्र भर करते रहे
चाँद के हमराह हम हर शब सफ़र करते रहे

रास्तों का इल्म था हम को न सिम्तों की ख़बर
शहर-ए-नामालूम की चाहत मगर करते रहे

हम ने ख़ुद से भी छुपाया और सारे शहर से
तेरे जाने की ख़बर दर-ओ-दिवार करते रहे

वो न आयेगा हमें मालूम था उस शाम भी
इंतज़ार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे

आज आया है हमें भी उन उड़ानों का ख़याल
जिन को तेरे ज़ौम में बे-बाल-ओ-पर करते रहे|

- परवीन शाकिर