मैं यह कविता तुम्हें सौंपता हूं
चूंकि मेरे पास देने को और कुछ नहीं
इसे एक गर्म कोट की तरह रखना
जब ठंड तुम्हें जकड़ने आए
या एक जोड़ी मोटे जुराबों की तरह
जिनके पार नहीं जा सकती है ठंड,
मैं तुम्हें प्यार करता हूं,
मेरे पास तुम्हें देने को और कुछ नहीं
इसलिए यह मक्के से भरा हुआ बर्तन लो
ठंड में तुम्हारे पेट को उष्ण रखने के लिए
तुम्हारे सिर के लिए स्कार्फ है यह,
जिसे तुम बांध सकती हो अपने केशों पर
अपने चेहरे के चारों तरफ लपेट सकती हो,
मैं तुमसे प्यार करता हूं,
रखो इसे, संभालो इसे जब तुम खो जाओगी
हो जाओगी दिशाहीन जीवन के वन में,
जब जीवन होगा गंभीर
अपने दराज के कोने में रखो इसे
जैसे हो यह कोई शरणस्थली या
घने जंगल के बीच एक झोंपड़ी
आना द्वार पर तुम और मैं दूंगा तुम्हें उत्तर, दूंगा दिशाज्ञान,
और तुम्हें सेंकने दूंगा जलती हुई आग,
आराम करो और स्वयं को समझो सुरक्षित,
मैं तुमसे प्यार करता हूं,
मेरे पास देने को इतना ही है
और इतना ही जीने के लिए चाहता है कोई
और अंतर तुम्हारा जीवित रहे
भले ही बाहर की दुनिया
न करे परवाह कि तुम जिंदा हो कि मर गई
रखना याद,
मैं तुम्हें प्यार करता हूं.
--- Jimmy Santiago Baca, अनुवादक: उपासना झा
9 नवंबर 2019
12 अक्टूबर 2019
जो हुआ सो हुआ
उठ के कपड़े बदल
उठ के कपड़े बदल
घर से बाहर निकल
जो हुआ सो हुआ॥
जब तलक साँस है
भूख है प्यास है
ये ही इतिहास है
रख के कांधे पे हल
खेत की ओर चल
जो हुआ सो हुआ॥
खून से तर-ब-तर
कर के हर राहगुज़र
थक चुके जानवर
लड़कियों की तरह
फिर से चूल्हे में जल
जो हुआ सो हुआ॥
जो मरा क्यों मरा
जो जला क्यों जला
जो लुटा क्यों लुटा
मुद्दतों से हैं गुम
इन सवालों के हल
जो हुआ सो हुआ॥
मंदिरों में भजन
मस्ज़िदों में अज़ाँ
आदमी है कहाँ
आदमी के लिए
एक ताज़ा ग़ज़ल
जो हुआ सो हुआ।।
--- निदा फ़ाज़ली
उठ के कपड़े बदल
घर से बाहर निकल
जो हुआ सो हुआ॥
जब तलक साँस है
भूख है प्यास है
ये ही इतिहास है
रख के कांधे पे हल
खेत की ओर चल
जो हुआ सो हुआ॥
खून से तर-ब-तर
कर के हर राहगुज़र
थक चुके जानवर
लड़कियों की तरह
फिर से चूल्हे में जल
जो हुआ सो हुआ॥
जो मरा क्यों मरा
जो जला क्यों जला
जो लुटा क्यों लुटा
मुद्दतों से हैं गुम
इन सवालों के हल
जो हुआ सो हुआ॥
मंदिरों में भजन
मस्ज़िदों में अज़ाँ
आदमी है कहाँ
आदमी के लिए
एक ताज़ा ग़ज़ल
जो हुआ सो हुआ।।
--- निदा फ़ाज़ली
8 अक्टूबर 2019
सावधानी
जो बहुत बोलता हो,
उसके साथ कम बोलो l
जो हमेशा चुप रहे,
उसके सामने हृदय मत खोलो l
--- रामधारी सिंह दिनकर
उसके साथ कम बोलो l
जो हमेशा चुप रहे,
उसके सामने हृदय मत खोलो l
--- रामधारी सिंह दिनकर
2 अक्टूबर 2019
ऐ शरीफ़ इंसानो
खून अपना हो या पराया हो
नस्ले आदम का खून है आखिर
जंग मशरिक में हो कि मगरिब में
अमने आलम का खून है आखिर
बम घरों पर गिरें के सरहद पर
रूहे तामीर जख्म खाती है
खेत अपने जलें कि औरों के
जीस्त फाकोंसे तिलमिलाती है
टैंक आगे बढ़ें के पीछे हटें
कोख धरती की बांझ होती है
फतह का जश्नहो कि हार का सोग
जिंदगी मीयतों पे रोती है
जंग तो खुद एक मसअला है
जंग क्या मसअलों का हल देगी
आग और खून आज बख्शेगी
भूख और ऐतजाज़ कल देगी
इस लिऐ ऐ शरीफ इन्सानो
जंग टलती रहे तो बेहतर है
आप और हम सभी के आंगन में
शमा जलती रहे तो बेहतर है
---साहिर लुधियानवी
नस्ले आदम का खून है आखिर
जंग मशरिक में हो कि मगरिब में
अमने आलम का खून है आखिर
बम घरों पर गिरें के सरहद पर
रूहे तामीर जख्म खाती है
खेत अपने जलें कि औरों के
जीस्त फाकोंसे तिलमिलाती है
टैंक आगे बढ़ें के पीछे हटें
कोख धरती की बांझ होती है
फतह का जश्नहो कि हार का सोग
जिंदगी मीयतों पे रोती है
जंग तो खुद एक मसअला है
जंग क्या मसअलों का हल देगी
आग और खून आज बख्शेगी
भूख और ऐतजाज़ कल देगी
इस लिऐ ऐ शरीफ इन्सानो
जंग टलती रहे तो बेहतर है
आप और हम सभी के आंगन में
शमा जलती रहे तो बेहतर है
---साहिर लुधियानवी
30 सितंबर 2019
एक पूरी उम्र
यक़ीन मानिए
इस आदमख़ोर गाँव में
मुझे डर लगता है
बहुत डर लगता है
लगता है कि अभी बस अभी
ठकुराइसी मेड़ चीख़ेगी
मैं अधशौच ही
खेत से उठ आऊँगा
कि अभी बस अभी
हवेली घुड़केगी,
मैं बेगार में पकड़ा जाऊँगा
कि अभी बस अभी
महाजन आएगा
मेरी गाड़ी से भैंस
उधारी में खोल ले जाएगा
कि अभी बस अभी
बुलावा आएगा
खुलकर खाँसने के
अपराध में प्रधान
मुश्क बाँध मारेगा
लदवाएगा डकैती में
सीखचों के भीतर
उम्र भर सड़ाएगा
---मलखान सिंह
इस आदमख़ोर गाँव में
मुझे डर लगता है
बहुत डर लगता है
लगता है कि अभी बस अभी
ठकुराइसी मेड़ चीख़ेगी
मैं अधशौच ही
खेत से उठ आऊँगा
कि अभी बस अभी
हवेली घुड़केगी,
मैं बेगार में पकड़ा जाऊँगा
कि अभी बस अभी
महाजन आएगा
मेरी गाड़ी से भैंस
उधारी में खोल ले जाएगा
कि अभी बस अभी
बुलावा आएगा
खुलकर खाँसने के
अपराध में प्रधान
मुश्क बाँध मारेगा
लदवाएगा डकैती में
सीखचों के भीतर
उम्र भर सड़ाएगा
---मलखान सिंह
18 सितंबर 2019
कोसल में विचारों की कमी है!
महाराज बधाई हो!
महाराज की जय हो।
युद्ध नहीं हुआ
लौट गए शत्रु।
वैसे हमारी तैयारी पूरी थी!
चार अक्षौहिणी थीं सेनाएँ,
दस सहस्र अश्व,
लगभग इतने ही हाथी।
कोई कसर न थी!
युद्ध होता भी तो
नतीजा यही होता।
न उनके पास अस्त्र थे,
न अश्व,
न हाथी,
युद्ध हो भी कैसे सकता था?
निहत्थे थे वे।
उनमें से हरेक अकेला था
और हरेक यह कहता था
प्रत्येक अकेला होता है!
जो भी हो,
जय यह आपकी है!
बधाई हो!
राजसूय पूरा हुआ,
आप चक्रवर्ती हुए
वे सिर्फ़ कुछ प्रश्न छोड़ गए हैं
जैसे कि यह :
कोसल अधिक दिन नहीं टिक सकता,
कोसल में विचारों की कमी है!
--- श्रीकांत वर्मा
महाराज की जय हो।
युद्ध नहीं हुआ
लौट गए शत्रु।
वैसे हमारी तैयारी पूरी थी!
चार अक्षौहिणी थीं सेनाएँ,
दस सहस्र अश्व,
लगभग इतने ही हाथी।
कोई कसर न थी!
युद्ध होता भी तो
नतीजा यही होता।
न उनके पास अस्त्र थे,
न अश्व,
न हाथी,
युद्ध हो भी कैसे सकता था?
निहत्थे थे वे।
उनमें से हरेक अकेला था
और हरेक यह कहता था
प्रत्येक अकेला होता है!
जो भी हो,
जय यह आपकी है!
बधाई हो!
राजसूय पूरा हुआ,
आप चक्रवर्ती हुए
वे सिर्फ़ कुछ प्रश्न छोड़ गए हैं
जैसे कि यह :
कोसल अधिक दिन नहीं टिक सकता,
कोसल में विचारों की कमी है!
--- श्रीकांत वर्मा
15 सितंबर 2019
कितना चौड़ा पाट नदी का
कितना चौड़ा पाट नदी का,
कितनी भारी शाम,
कितने खोए–खोए से हम,
कितना तट निष्काम,
कितनी बहकी–बहकी सी
दूरागत–वंशी–टेर,
कितनी टूटी–टूटी सी
नभ पर विहगों की फेर,
कितनी सहमी–सहमी–सी
जल पर तट–तरु–अभिलाषा,
कितनी चुप–चुप गयी रोशनी,
छिप छिप आई रात,
कितनी सिहर–सिहर कर
अधरों से फूटी दो बात,
चार नयन मुस्काए, खोए,
भीगे, फिर पथराए,
कितनी बड़ी विवशता,
जीवन की, कितनी कह पाए!
~ सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
कितनी भारी शाम,
कितने खोए–खोए से हम,
कितना तट निष्काम,
कितनी बहकी–बहकी सी
दूरागत–वंशी–टेर,
कितनी टूटी–टूटी सी
नभ पर विहगों की फेर,
कितनी सहमी–सहमी–सी
जल पर तट–तरु–अभिलाषा,
कितनी चुप–चुप गयी रोशनी,
छिप छिप आई रात,
कितनी सिहर–सिहर कर
अधरों से फूटी दो बात,
चार नयन मुस्काए, खोए,
भीगे, फिर पथराए,
कितनी बड़ी विवशता,
जीवन की, कितनी कह पाए!
~ सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
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