Pity the nation whose people are sheep,
and whose shepherds mislead them.
Pity the nation whose leaders are liars, whose sages are silenced,
and whose bigots haunt the airwaves.
Pity the nation that raises not its voice,
except to praise conquerors and acclaim the bully as hero
and aims to rule the world with force and by torture.
Pity the nation that knows no other language but its own
and no other culture but its own.
Pity the nation whose breath is money
and sleeps the sleep of the too well fed.
Pity the nation — oh, pity the people who allow their rights to erode
and their freedoms to be washed away.
My country, tears of thee, sweet land of liberty.
---Lawrence Ferlinghetti
March 24, 2020
March 20, 2020
जो गुज़ारी न जा सकी हमसे...
बे-क़रारी सी बे-क़रारी है
वस्ल है और फ़िराक़ तारी है
जो गुज़ारी न जा सकी हमसे
हमने वो ज़िंदगी गुज़ारी है
निघरे क्या हुए कि लोगों पर
अपना साया भी अब तो भारी है
बिन तुम्हारे कभी नहीं आई
क्या मेरी नींद भी तुम्हारी है
आप में कैसे आऊँ मैं तुझ बिन
साँस जो चल रही है आरी है
उस से कहियो कि दिल की गलियों में
रात दिन तेरी इंतिज़ारी है
हिज्र हो या विसाल हो कुछ हो
हम हैं और उस की यादगारी है
इक महक सम्त-ए-दिल से आई थी
मैं ये समझा तिरी सवारी है
हादसों का हिसाब है अपना
वर्ना हर आन सब की बारी है
ख़ुश रहे तू कि ज़िंदगी अपनी
उम्र भर की उमीद-वारी है
-: जौन एलिया
वस्ल है और फ़िराक़ तारी है
जो गुज़ारी न जा सकी हमसे
हमने वो ज़िंदगी गुज़ारी है
निघरे क्या हुए कि लोगों पर
अपना साया भी अब तो भारी है
बिन तुम्हारे कभी नहीं आई
क्या मेरी नींद भी तुम्हारी है
आप में कैसे आऊँ मैं तुझ बिन
साँस जो चल रही है आरी है
उस से कहियो कि दिल की गलियों में
रात दिन तेरी इंतिज़ारी है
हिज्र हो या विसाल हो कुछ हो
हम हैं और उस की यादगारी है
इक महक सम्त-ए-दिल से आई थी
मैं ये समझा तिरी सवारी है
हादसों का हिसाब है अपना
वर्ना हर आन सब की बारी है
ख़ुश रहे तू कि ज़िंदगी अपनी
उम्र भर की उमीद-वारी है
-: जौन एलिया
March 15, 2020
The black heralds
There are blows in life, so powerful…I don't know!
Blows as from the hatred of God; as if, facing them,
the undertow of everything suffered
welled up in the soul…I don't know!
They are few; but they are…. They open dark trenches
in the fiercest face and in the strongest back.
Perhaps they are the colts of barbaric Attilas;
or the black heralds sent to us by Death.
They are the deep falls of the Christs of the soul,
of some adored faith blasphemed by Destiny.
Those bloodstained blows are the crackling of
bread burning up at the oven door.
And man…. Poor…poor! He turns his eyes, as
when a slap on the shoulder summons us;
turns his crazed eyes, and everything lived
wells up, like a pool of guilt, in his look.
There are blows in life, so powerful…I don't know!
--- Cesar Vallejo and translated by Robert Bly
Blows as from the hatred of God; as if, facing them,
the undertow of everything suffered
welled up in the soul…I don't know!
They are few; but they are…. They open dark trenches
in the fiercest face and in the strongest back.
Perhaps they are the colts of barbaric Attilas;
or the black heralds sent to us by Death.
They are the deep falls of the Christs of the soul,
of some adored faith blasphemed by Destiny.
Those bloodstained blows are the crackling of
bread burning up at the oven door.
And man…. Poor…poor! He turns his eyes, as
when a slap on the shoulder summons us;
turns his crazed eyes, and everything lived
wells up, like a pool of guilt, in his look.
There are blows in life, so powerful…I don't know!
--- Cesar Vallejo and translated by Robert Bly
March 10, 2020
सरकार ग़रीब है
मंत्री ने हँसकर
लोकसभा में कहा :
सरकार ग़रीब है
लिहाज़ा जनता को
और टैक्स देना होगा
आजीवन देना होगा
अमीर सांसदों ने हँसकर
समर्थन में
मेज़ें थपथपाईं
लोकसभा गदगद थी :
जनता को
और टैक्स देना होगा
आजीवन देना होगा
वे सब जन-धन की
लूट के हिस्सेदार थे
भरसक उसे
सरमायेदारों की
जेब में पहुँचाते
और कहते हुए :
सरकार ग़रीब है
ग़रीब अपना हक़ माँगने आये
तो सोचे :
वह माँग किससे रहा है
---पंकज चतुर्वेदी
लोकसभा में कहा :
सरकार ग़रीब है
लिहाज़ा जनता को
और टैक्स देना होगा
आजीवन देना होगा
अमीर सांसदों ने हँसकर
समर्थन में
मेज़ें थपथपाईं
लोकसभा गदगद थी :
जनता को
और टैक्स देना होगा
आजीवन देना होगा
वे सब जन-धन की
लूट के हिस्सेदार थे
भरसक उसे
सरमायेदारों की
जेब में पहुँचाते
और कहते हुए :
सरकार ग़रीब है
ग़रीब अपना हक़ माँगने आये
तो सोचे :
वह माँग किससे रहा है
---पंकज चतुर्वेदी
March 8, 2020
औरतें
वह औरत पर्स से खुदरा नोट निकाल कर कंडक्टर से अपने घर
जाने का टिकट ले रही है
उसके साथ अभी ज़रा देर पहले बलात्कार हुआ है
उसी बस में एक दूसरी औरत अपनी जैसी ही लाचार उम्र की दो-तीन औरतों के साथ
प्रोमोशन और महंगाई भत्ते के बारे में
बातें कर रही है
उसके दफ़्तर में आज उसके अधिकारी ने फिर मीमो भेजा है
वह औरत जो सुहागन बने रहने के लिए रखे हुए है करवा चौथ का निर्जल व्रत
वह पति या सास के हाथों मार दिये जाने से डरी हुई
सोती सोती अचानक चिल्लाती है
एक और औरत बालकनी में आधी रात खड़ी हुई इंतज़ार करती है
अपनी जैसी ही असुरक्षित और बेबस किसी दूसरी औरत के घर से लौटने वाले
अपने शराबी पति का
संदेह, असुरक्षा और डर से घिरी एक औरत अपने पिटने से पहले
बहुत महीन आवाज़ में पूछती है पति से
कहां खर्च हो गये आपके पर्स में से तनख्वाह के आधे से
ज़्यादा रुपये ?
एक औरत अपने बच्चे को नहलाते हुए यों ही रोने लगती है फूट-फूट कर
और चूमती है उसे पागल जैसी बार-बार
उसके भविष्य में अपने लिए कोई गुफ़ा या शरण खोजती हुई
एक औरत के हाथ जल गये हैं तवे में
एक के ऊपर तेल गिर गया है कड़ाही में खौलता हुआ
अस्पताल में हज़ार प्रतिशत जली हुई औरत का कोयला दर्ज कराता है
अपना मृत्यु-पूर्व बयान कि उसे नहीं जलाया किसी ने
उसके अलावा बाक़ी हर कोई है निर्दोष
ग़लती से उसके ही हाथों फूट गयी थी किस्मत
और फट गया था स्टोव
एक औरत नाक से बहता ख़ून पोंछती हुई बोलती है
कसम खाती हूं, मेरे अतीत में कहीं नहीं था कोई प्यार
वहां था एक पवित्र, शताब्दियों लंबा, आग जैसा धधकता सन्नाटा
जिसमें सिंक-पक रही थी सिर्फ़ आपकी खातिर मेरी देह
एक औरत का चेहरा संगमरमर जैसा सफ़े़द है
उसने किसी से कह डाला है अपना दुख या उससे खो गया है कोई ज़ेवर
एक सीलिंग की कड़ी में बांध रही है अपना दुपट्टा
उसके प्रेमी ने सार्वजनिक कर दिये हैं उसके फोटो और प्रेमपत्र
एक औरत फोन पकड़ कर रोती है
एक अपने आप से बोलती है और किसी हिस्टीरिया में बाहर सड़क पर निकल जाती है
कुछ औरतें बिना बाल काढ़े, बिना किन्हीं कपड़ों के
बस अड्डे या रेल्वे प्लेटफ़ार्म पर खड़ी हैं यह पूछती हुई कि
उन्हें किस गाड़ी में बैठना है और जाना कहां है इस संसार में
एक औरत हार कर कहती है -तुम जो जी आये, कर लो मेरे साथ
बस मुझे किसी तरह जी लेने दो
एक पायी गयी है मरी हुई बिल्कुल तड़के शहर के किसी पार्क में
और उसके शव के पास रो रहा है उसका डेढ़ साल का बेटा
उसके झोले में मिलती है दूध की एक खाली बोतल, प्लास्टिक का छोटा-सा गिलास
और एक लाल-हरी गेंद, जिसे हिलाने से आज भी आती है
घुनघुने जैसी आवाज़
एक औरत तेज़ाब से जल गयी है
खुश है कि बच गयी है उसकी दायीं आंख
एक औरत तंदूर में जलती हुई अपनी उंगलियां धीरे से हिलाती है
जानने के लिए कि बाहर कितना अंधेरा है
एक पोंछा लगा रही है
एक बर्तन मांज रही है
एक कपड़े पछींट रही है
एक बच्चे को बोरे में सुला कर सड़क पर रोड़े बिछा रही है
एक फ़र्श धो रही है और देख रही है राष्ट्रीय चैनल पर फ़ैशन परेड
एक पढ़ रही है न्यूज़ कि संसद में बढ़ाई जायेगी उनकी भी तादाद
एक औरत का कलेजा जो छिटक कर बोरे से बाहर गिर गया है
कहता है - 'मुझे फेंक कर किसी नाले में जल्दी घर लौट आना,
बच्चों को स्कूल जाने के लिए जगाना है
नाश्ता उन्हें ज़रूर दे देना,
आटा तो मैं गूंथ आई थी
राजधानी के पुलिस थाने के गेट पर एक-दूसरे को छूती हुईं
ज़मीन पर बैठी हैं दो औरतें बिल्कुल चुपचाप
लेकिन समूचे ब्रह्मांड में गूंजता है उनका हाहाकार
हज़ारों-लाखों छुपती हैं गर्भ के अंधेरे में
इस दुनिया में जन्म लेने से इनकार करती हुईं
लेकिन वहां भी खोज़ लेती हैं उन्हें भेदिया ध्वनि-तरंगें
वहां भी,
भ्रूण में उतरती है
हत्यारी तलवार ।
--- उदय प्रकाश
जाने का टिकट ले रही है
उसके साथ अभी ज़रा देर पहले बलात्कार हुआ है
उसी बस में एक दूसरी औरत अपनी जैसी ही लाचार उम्र की दो-तीन औरतों के साथ
प्रोमोशन और महंगाई भत्ते के बारे में
बातें कर रही है
उसके दफ़्तर में आज उसके अधिकारी ने फिर मीमो भेजा है
वह औरत जो सुहागन बने रहने के लिए रखे हुए है करवा चौथ का निर्जल व्रत
वह पति या सास के हाथों मार दिये जाने से डरी हुई
सोती सोती अचानक चिल्लाती है
एक और औरत बालकनी में आधी रात खड़ी हुई इंतज़ार करती है
अपनी जैसी ही असुरक्षित और बेबस किसी दूसरी औरत के घर से लौटने वाले
अपने शराबी पति का
संदेह, असुरक्षा और डर से घिरी एक औरत अपने पिटने से पहले
बहुत महीन आवाज़ में पूछती है पति से
कहां खर्च हो गये आपके पर्स में से तनख्वाह के आधे से
ज़्यादा रुपये ?
एक औरत अपने बच्चे को नहलाते हुए यों ही रोने लगती है फूट-फूट कर
और चूमती है उसे पागल जैसी बार-बार
उसके भविष्य में अपने लिए कोई गुफ़ा या शरण खोजती हुई
एक औरत के हाथ जल गये हैं तवे में
एक के ऊपर तेल गिर गया है कड़ाही में खौलता हुआ
अस्पताल में हज़ार प्रतिशत जली हुई औरत का कोयला दर्ज कराता है
अपना मृत्यु-पूर्व बयान कि उसे नहीं जलाया किसी ने
उसके अलावा बाक़ी हर कोई है निर्दोष
ग़लती से उसके ही हाथों फूट गयी थी किस्मत
और फट गया था स्टोव
एक औरत नाक से बहता ख़ून पोंछती हुई बोलती है
कसम खाती हूं, मेरे अतीत में कहीं नहीं था कोई प्यार
वहां था एक पवित्र, शताब्दियों लंबा, आग जैसा धधकता सन्नाटा
जिसमें सिंक-पक रही थी सिर्फ़ आपकी खातिर मेरी देह
एक औरत का चेहरा संगमरमर जैसा सफ़े़द है
उसने किसी से कह डाला है अपना दुख या उससे खो गया है कोई ज़ेवर
एक सीलिंग की कड़ी में बांध रही है अपना दुपट्टा
उसके प्रेमी ने सार्वजनिक कर दिये हैं उसके फोटो और प्रेमपत्र
एक औरत फोन पकड़ कर रोती है
एक अपने आप से बोलती है और किसी हिस्टीरिया में बाहर सड़क पर निकल जाती है
कुछ औरतें बिना बाल काढ़े, बिना किन्हीं कपड़ों के
बस अड्डे या रेल्वे प्लेटफ़ार्म पर खड़ी हैं यह पूछती हुई कि
उन्हें किस गाड़ी में बैठना है और जाना कहां है इस संसार में
एक औरत हार कर कहती है -तुम जो जी आये, कर लो मेरे साथ
बस मुझे किसी तरह जी लेने दो
एक पायी गयी है मरी हुई बिल्कुल तड़के शहर के किसी पार्क में
और उसके शव के पास रो रहा है उसका डेढ़ साल का बेटा
उसके झोले में मिलती है दूध की एक खाली बोतल, प्लास्टिक का छोटा-सा गिलास
और एक लाल-हरी गेंद, जिसे हिलाने से आज भी आती है
घुनघुने जैसी आवाज़
एक औरत तेज़ाब से जल गयी है
खुश है कि बच गयी है उसकी दायीं आंख
एक औरत तंदूर में जलती हुई अपनी उंगलियां धीरे से हिलाती है
जानने के लिए कि बाहर कितना अंधेरा है
एक पोंछा लगा रही है
एक बर्तन मांज रही है
एक कपड़े पछींट रही है
एक बच्चे को बोरे में सुला कर सड़क पर रोड़े बिछा रही है
एक फ़र्श धो रही है और देख रही है राष्ट्रीय चैनल पर फ़ैशन परेड
एक पढ़ रही है न्यूज़ कि संसद में बढ़ाई जायेगी उनकी भी तादाद
एक औरत का कलेजा जो छिटक कर बोरे से बाहर गिर गया है
कहता है - 'मुझे फेंक कर किसी नाले में जल्दी घर लौट आना,
बच्चों को स्कूल जाने के लिए जगाना है
नाश्ता उन्हें ज़रूर दे देना,
आटा तो मैं गूंथ आई थी
राजधानी के पुलिस थाने के गेट पर एक-दूसरे को छूती हुईं
ज़मीन पर बैठी हैं दो औरतें बिल्कुल चुपचाप
लेकिन समूचे ब्रह्मांड में गूंजता है उनका हाहाकार
हज़ारों-लाखों छुपती हैं गर्भ के अंधेरे में
इस दुनिया में जन्म लेने से इनकार करती हुईं
लेकिन वहां भी खोज़ लेती हैं उन्हें भेदिया ध्वनि-तरंगें
वहां भी,
भ्रूण में उतरती है
हत्यारी तलवार ।
--- उदय प्रकाश
March 5, 2020
25 बेहतरीन शेर !!!
1) मैं आज ज़द पे अगर हूँ तो ख़ुश गुमान न हो, चराग़ सब के बुझेंगे हवा किसी की नहीं| --- अहमद फ़राज़
2) दुनिया के जो मज़े हैं हरगिज़ वो कम न होंगे, चर्चे यूंही रहेंगे अफ़सोस हम न होंगे --- आग़ा मोहम्मद तक़ी खान तरक़्क़ी
3) फानूस बनकर जिसकी हिफाजत हवा करे, वो शमा क्या बुझे जिसे रौशन खुदा करे
4) नशेमन पर नशेमन इस क़दर तामीर करता जा, कि बिजली गिरते गिरते आप ख़ुद बे-ज़ार हो जाए
5) इश्क़ की हर दास्ताँ में एक ही नुक्ता मिला, इश्क़ का माज़ी हुआ करता है मुस्तक़बिल नहीं
6) उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए --- बशीर बद्र
7) शह-ज़ोर अपने ज़ोर में गिरता है मिस्ल-ए-बर्क़ वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले --- मिर्ज़ा अज़ीम बेग 'अज़ीम'
8) सुर्ख़-रू होता है इंसाँ ठोकरें खाने के बाद, रंग लाती है हिना पत्थर पे पिस जाने के बाद --- सय्यद मोहम्मद मस्त कलकत्तवी
9) सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ, ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ --- ख़्वाजा मीर दर्द
10) मकतब-ए-इश्क़ का दस्तूर निराला देखा, उस को छुट्टी न मिली जिस को सबक़ याद हुआ --- मीर ताहिर अली रिज़वी
11) क़ैस जंगल में अकेला है मुझे जाने दो, ख़ूब गुज़रेगी जो मिल बैठेंगे दीवाने दो --- मियाँ दाद ख़ां सय्याह
12) मैं तमाम तारे उठा उठा के ग़रीब लोगों में बाँट दूँ, वो जो एक रात को आसमां का निज़ाम दे मिरे हाथ में --- बशीर बद्र
13) भाँप ही लेंगे इशारा सर-ए-महफ़िल जो किया, ताड़ने वाले क़यामत की नज़र रखते हैं --- लाला माधव राम जौहर
14) चल साथ कि हसरत दिल-ए-मरहूम से निकले, आशिक़ का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले --- फ़िदवी लाहौरी
15) मैं समझता हूँ तक़द्दुस को तमद्दुन का फ़रेब, तुम रुसूमात को ईमान बनाती क्यूँ हो --- साहिर लुधियानवी
16) हक़ अच्छा, पर इस के लिए कोई और मरे तो और अच्छा है, तुम भी क्या 'मंसूर' हो जो सूली पे चढ़ो, ख़ामोश रहो ---इब्न ऐ इंशा
17) दिल के फफूले जल उठे सीने के दाग़ से, इस घर को आग लग गई घर के चराग़ से --- महताब राय ताबां
18) उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में 'मोमिन', आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमाँ होंगे ---मोमिन ख़ाँ मोमिन
19) ये जो मंदी का ज़माना है गुज़र जाने दे, फिर पता तुझको चलेगा मिरी क़ीमत क्या है --- राहत इन्दौरी
20) सब हसीं हैं जाहिदों को नापसंद, अब कोई हूर आएगी उनके लिए --- अमीर मीनाई
21) कुछ इस तरह से चल नज़ीर कारवाँ के साथ, जब तू न चल सके तो तेरी दास्तां चले ---नज़ीर अकबराबादी
22) शब को मय ख़ूब सी पी सुब्ह को तौबा कर ली, रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई --- जलील मानिकपूरी
23) बजा कहे जिसे आलम उसे बजा समझो, ज़बान-ए-ख़ल्क़ को नक़्क़ारा-ए-ख़ुदा समझो --- शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
24) शर्त सलीक़ा है हर इक उम्र में, ऐब भी करने को हुनर चाहिए ---मीर तक़ी मीर
25) ईद का दिन है गले आज तो मिल ले ज़ालिम, रस्म-ए-दुनिया भी है मौक़ा भी है दस्तूर भी है --- क़मर बदायुनी
2) दुनिया के जो मज़े हैं हरगिज़ वो कम न होंगे, चर्चे यूंही रहेंगे अफ़सोस हम न होंगे --- आग़ा मोहम्मद तक़ी खान तरक़्क़ी
3) फानूस बनकर जिसकी हिफाजत हवा करे, वो शमा क्या बुझे जिसे रौशन खुदा करे
4) नशेमन पर नशेमन इस क़दर तामीर करता जा, कि बिजली गिरते गिरते आप ख़ुद बे-ज़ार हो जाए
5) इश्क़ की हर दास्ताँ में एक ही नुक्ता मिला, इश्क़ का माज़ी हुआ करता है मुस्तक़बिल नहीं
6) उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए --- बशीर बद्र
7) शह-ज़ोर अपने ज़ोर में गिरता है मिस्ल-ए-बर्क़ वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले --- मिर्ज़ा अज़ीम बेग 'अज़ीम'
8) सुर्ख़-रू होता है इंसाँ ठोकरें खाने के बाद, रंग लाती है हिना पत्थर पे पिस जाने के बाद --- सय्यद मोहम्मद मस्त कलकत्तवी
9) सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ, ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ --- ख़्वाजा मीर दर्द
10) मकतब-ए-इश्क़ का दस्तूर निराला देखा, उस को छुट्टी न मिली जिस को सबक़ याद हुआ --- मीर ताहिर अली रिज़वी
11) क़ैस जंगल में अकेला है मुझे जाने दो, ख़ूब गुज़रेगी जो मिल बैठेंगे दीवाने दो --- मियाँ दाद ख़ां सय्याह
12) मैं तमाम तारे उठा उठा के ग़रीब लोगों में बाँट दूँ, वो जो एक रात को आसमां का निज़ाम दे मिरे हाथ में --- बशीर बद्र
13) भाँप ही लेंगे इशारा सर-ए-महफ़िल जो किया, ताड़ने वाले क़यामत की नज़र रखते हैं --- लाला माधव राम जौहर
14) चल साथ कि हसरत दिल-ए-मरहूम से निकले, आशिक़ का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले --- फ़िदवी लाहौरी
15) मैं समझता हूँ तक़द्दुस को तमद्दुन का फ़रेब, तुम रुसूमात को ईमान बनाती क्यूँ हो --- साहिर लुधियानवी
16) हक़ अच्छा, पर इस के लिए कोई और मरे तो और अच्छा है, तुम भी क्या 'मंसूर' हो जो सूली पे चढ़ो, ख़ामोश रहो ---इब्न ऐ इंशा
17) दिल के फफूले जल उठे सीने के दाग़ से, इस घर को आग लग गई घर के चराग़ से --- महताब राय ताबां
18) उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में 'मोमिन', आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमाँ होंगे ---मोमिन ख़ाँ मोमिन
19) ये जो मंदी का ज़माना है गुज़र जाने दे, फिर पता तुझको चलेगा मिरी क़ीमत क्या है --- राहत इन्दौरी
20) सब हसीं हैं जाहिदों को नापसंद, अब कोई हूर आएगी उनके लिए --- अमीर मीनाई
21) कुछ इस तरह से चल नज़ीर कारवाँ के साथ, जब तू न चल सके तो तेरी दास्तां चले ---नज़ीर अकबराबादी
22) शब को मय ख़ूब सी पी सुब्ह को तौबा कर ली, रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई --- जलील मानिकपूरी
23) बजा कहे जिसे आलम उसे बजा समझो, ज़बान-ए-ख़ल्क़ को नक़्क़ारा-ए-ख़ुदा समझो --- शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
24) शर्त सलीक़ा है हर इक उम्र में, ऐब भी करने को हुनर चाहिए ---मीर तक़ी मीर
25) ईद का दिन है गले आज तो मिल ले ज़ालिम, रस्म-ए-दुनिया भी है मौक़ा भी है दस्तूर भी है --- क़मर बदायुनी
March 4, 2020
जंगल गाथा
1.
एक नन्हा मेमना
और उसकी माँ बकरी,
जा रहे थे जंगल में
राह थी संकरी।
अचानक सामने से आ गया एक शेर,
लेकिन अब तो
हो चुकी थी बहुत देर।
भागने का नहीं था कोई भी रास्ता,
बकरी और मेमने की हालत खस्ता।
उधर शेर के कदम धरती नापें,
इधर ये दोनों थर-थर कापें।
अब तो शेर आ गया एकदम सामने,
बकरी लगी जैसे-जैसे
बच्चे को थामने।
छिटककर बोला बकरी का बच्चा-
शेर अंकल!
क्या तुम हमें खा जाओगे
एकदम कच्चा?
शेर मुस्कुराया,
उसने अपना भारी पंजा
मेमने के सिर पर फिराया।
बोला-
हे बकरी - कुल गौरव,
आयुष्मान भव!
दीर्घायु भव!
चिरायु भव!
कर कलरव!
हो उत्सव!
साबुत रहें तेरे सब अवयव।
आशीष देता ये पशु-पुंगव-शेर,
कि अब नहीं होगा कोई अंधेरा
उछलो, कूदो, नाचो
और जियो हँसते-हँसते
अच्छा बकरी मैया नमस्ते!
इतना कहकर शेर कर गया प्रस्थान,
बकरी हैरान-
बेटा ताज्जुब है,
भला ये शेर किसी पर
रहम खानेवाला है,
लगता है जंगल में
चुनाव आनेवाला है।
2.
पानी से निकलकर
मगरमच्छ किनारे पर आया,
इशारे से
बंदर को बुलाया.
बंदर गुर्राया-
खों खों, क्यों,
तुम्हारी नजर में तो
मेरा कलेजा है?
मगरमच्छ बोला-
नहीं नहीं, तुम्हारी भाभी ने
खास तुम्हारे लिये
सिंघाड़े का अचार भेजा है.
बंदर ने सोचा
ये क्या घोटाला है,
लगता है जंगल में
चुनाव आने वाला है.
लेकिन प्रकट में बोला-
वाह!
अचार, वो भी सिंघाड़े का,
यानि तालाब के कबाड़े का!
बड़ी ही दयावान
तुम्हारी मादा है,
लगता है शेर के खिलाफ़
चुनाव लड़ने का इरादा है.
कैसे जाना, कैसे जाना?
ऐसे जाना, ऐसे जाना
कि आजकल
भ्रष्टाचार की नदी में
नहाने के बाद
जिसकी भी छवि स्वच्छ है,
वही तो मगरमच्छ है.
--- अशोक चक्रधर
एक नन्हा मेमना
और उसकी माँ बकरी,
जा रहे थे जंगल में
राह थी संकरी।
अचानक सामने से आ गया एक शेर,
लेकिन अब तो
हो चुकी थी बहुत देर।
भागने का नहीं था कोई भी रास्ता,
बकरी और मेमने की हालत खस्ता।
उधर शेर के कदम धरती नापें,
इधर ये दोनों थर-थर कापें।
अब तो शेर आ गया एकदम सामने,
बकरी लगी जैसे-जैसे
बच्चे को थामने।
छिटककर बोला बकरी का बच्चा-
शेर अंकल!
क्या तुम हमें खा जाओगे
एकदम कच्चा?
शेर मुस्कुराया,
उसने अपना भारी पंजा
मेमने के सिर पर फिराया।
बोला-
हे बकरी - कुल गौरव,
आयुष्मान भव!
दीर्घायु भव!
चिरायु भव!
कर कलरव!
हो उत्सव!
साबुत रहें तेरे सब अवयव।
आशीष देता ये पशु-पुंगव-शेर,
कि अब नहीं होगा कोई अंधेरा
उछलो, कूदो, नाचो
और जियो हँसते-हँसते
अच्छा बकरी मैया नमस्ते!
इतना कहकर शेर कर गया प्रस्थान,
बकरी हैरान-
बेटा ताज्जुब है,
भला ये शेर किसी पर
रहम खानेवाला है,
लगता है जंगल में
चुनाव आनेवाला है।
2.
पानी से निकलकर
मगरमच्छ किनारे पर आया,
इशारे से
बंदर को बुलाया.
बंदर गुर्राया-
खों खों, क्यों,
तुम्हारी नजर में तो
मेरा कलेजा है?
मगरमच्छ बोला-
नहीं नहीं, तुम्हारी भाभी ने
खास तुम्हारे लिये
सिंघाड़े का अचार भेजा है.
बंदर ने सोचा
ये क्या घोटाला है,
लगता है जंगल में
चुनाव आने वाला है.
लेकिन प्रकट में बोला-
वाह!
अचार, वो भी सिंघाड़े का,
यानि तालाब के कबाड़े का!
बड़ी ही दयावान
तुम्हारी मादा है,
लगता है शेर के खिलाफ़
चुनाव लड़ने का इरादा है.
कैसे जाना, कैसे जाना?
ऐसे जाना, ऐसे जाना
कि आजकल
भ्रष्टाचार की नदी में
नहाने के बाद
जिसकी भी छवि स्वच्छ है,
वही तो मगरमच्छ है.
--- अशोक चक्रधर
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