झूठ आज से नहीं
अनन्त काल से
रथ पर सवार है
और सच चल रहा है
पाँव-पाँव
नदी पहाड़ काँटे और फूल
और धूल
और ऊबड़-खाबड़ रास्ते
सब सच ने जाने हैं
झूठ तो
समान एक आसमान में उड़ता है
और उतर जाता है
जहाँ चाहता है
क्रमश: बदली है
झूठ ने सवारियाँ
आज तो वह सुपरसॉनिक पर है
और सच आज भी
पाँव-पाँव चल रहा है
इतना ही हो सकता है किसी-दिन
कि देखें हम
सच सुस्ता रहा है
थोड़ी देर छाँव में
और
सुपरसॉनिक किसी झँझट में पड़कर
जल रहा है
--- भवानीप्रसाद मिश्र
26 मई 2022
21 मई 2022
बेरोजगार
यह सवाल उसे शर्मिंदा कर देता है
कि क्या कर रहा है वह आजकल
वह डकैती नहींडालता
वह तस्करी नहीं करता
वह हत्याएँ नहीं करता
वह फ़रेबी वादे नहीं करता
वह देश नहीं चलाता
फिर भी यह सवाल उसे शर्मिंदा कर देता है
कि क्या कर रहा है वह आजकल
--- देवी प्रसाद मिश्र
कि क्या कर रहा है वह आजकल
वह डकैती नहींडालता
वह तस्करी नहीं करता
वह हत्याएँ नहीं करता
वह फ़रेबी वादे नहीं करता
वह देश नहीं चलाता
फिर भी यह सवाल उसे शर्मिंदा कर देता है
कि क्या कर रहा है वह आजकल
--- देवी प्रसाद मिश्र
14 मई 2022
“Yet to die. Unalone still.”
Yet to die. Unalone still.
For now your pauper-friend is with you.
Together you delight in the grandeur of the plains,
And the dark, the cold, the storms of snow.
Live quiet and consoled
In gaudy poverty, in powerful destitution.
Blessed are those days and nights.
The work of this sweet voice is without sin.
Misery is he whom, like a shadow,
A dog’s barking frightens, the wind cuts down.
Poor is he who, half-alive himself
Begs his shade for pittance.
--- Osip Mandelstam (Translated by John High and Matvei Yankelevich)
For now your pauper-friend is with you.
Together you delight in the grandeur of the plains,
And the dark, the cold, the storms of snow.
Live quiet and consoled
In gaudy poverty, in powerful destitution.
Blessed are those days and nights.
The work of this sweet voice is without sin.
Misery is he whom, like a shadow,
A dog’s barking frightens, the wind cuts down.
Poor is he who, half-alive himself
Begs his shade for pittance.
--- Osip Mandelstam (Translated by John High and Matvei Yankelevich)
7 मई 2022
Irani Restaurant Instructions
Please
Do not spit
Do not sit more
Pay promptly, time is valuable
Do not write letter
without order refreshment
Do not comb,
hair is spoiling floor
Do not make mischiefs in cabin
our waiter is reporting
Come again
All are welcome whatever caste
If not satisfied tell us
otherwise tell others
GOD IS GREAT
--- Nissim Ezekiel
Do not spit
Do not sit more
Pay promptly, time is valuable
Do not write letter
without order refreshment
Do not comb,
hair is spoiling floor
Do not make mischiefs in cabin
our waiter is reporting
Come again
All are welcome whatever caste
If not satisfied tell us
otherwise tell others
GOD IS GREAT
--- Nissim Ezekiel
1 मई 2022
मज़दूरों का गीत
मेहनत से ये माना चूर हैं हम
आराम से कोसों दूर हैं हम
पर लड़ने पर मजबूर हैं हम
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम
गो आफ़त ओ ग़म के मारे हैं
हम ख़ाक नहीं हैं तारे हैं
इस जग के राज-दुलारे हैं
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम
बनने की तमन्ना रखते हैं
मिटने का कलेजा रखते हैं
सरकश हैं सर ऊँचा रखते हैं
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम
हर चन्द कि हैं अदबार में हम
कहते हैं खुले बाज़ार में हम
हैं सब से बड़े संसार में हम
मज़दूर में हम मज़दूर हैं हम
जिस सम्त बढ़ा देते हैं क़दम
झुक जाते हैं शाहों के परचम
सावन्त हैं हम बलवन्त हैं हम
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम
गो जान पे लाखों बार बनी
कर गुज़रे मगर जो जी में ठनी
हम दिल के खरे बातों के धनी
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम
हम क्या हैं कभी दिखला देंगे
हम नज़्म-ए-कुहन को ढा देंगे
हम अर्ज़-ओ-समा को हिला देंगे
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम
हम जिस्म में ताक़त रखते हैं
सीनों में हरारत रखते हैं
हम अज़्म-ए-बग़ावत रखते हैं
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम
जिस रोज़ बग़ावत कर देंगे
दुनिया में क़यामत कर देंगे
ख़्वाबों को हक़ीक़त कर देंगे
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम
हम क़ब्ज़ा करेंगे दफ़्तर पर
हम वार करेंगे क़ैसर पर
हम टूट पड़ेंगे लश्कर पर
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम
---मजाज़ लखनवी
आराम से कोसों दूर हैं हम
पर लड़ने पर मजबूर हैं हम
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम
गो आफ़त ओ ग़म के मारे हैं
हम ख़ाक नहीं हैं तारे हैं
इस जग के राज-दुलारे हैं
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम
बनने की तमन्ना रखते हैं
मिटने का कलेजा रखते हैं
सरकश हैं सर ऊँचा रखते हैं
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम
हर चन्द कि हैं अदबार में हम
कहते हैं खुले बाज़ार में हम
हैं सब से बड़े संसार में हम
मज़दूर में हम मज़दूर हैं हम
जिस सम्त बढ़ा देते हैं क़दम
झुक जाते हैं शाहों के परचम
सावन्त हैं हम बलवन्त हैं हम
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम
गो जान पे लाखों बार बनी
कर गुज़रे मगर जो जी में ठनी
हम दिल के खरे बातों के धनी
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम
हम क्या हैं कभी दिखला देंगे
हम नज़्म-ए-कुहन को ढा देंगे
हम अर्ज़-ओ-समा को हिला देंगे
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम
हम जिस्म में ताक़त रखते हैं
सीनों में हरारत रखते हैं
हम अज़्म-ए-बग़ावत रखते हैं
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम
जिस रोज़ बग़ावत कर देंगे
दुनिया में क़यामत कर देंगे
ख़्वाबों को हक़ीक़त कर देंगे
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम
हम क़ब्ज़ा करेंगे दफ़्तर पर
हम वार करेंगे क़ैसर पर
हम टूट पड़ेंगे लश्कर पर
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम
---मजाज़ लखनवी
23 अप्रैल 2022
स्कूल चले हम (School chale hum)
ओहो हो ओहो हो हो हो…
सवेरे सवेरे, यारों से मिलने, बन ठन के निकले हम
सवेरे सवेरे, यारों से मिलने, घर से दूर चले हम
रोके से ना रुके हम , मर्ज़ी से चलें हम
बादल सा गरजें हम , सावन सा बरसे हम
सूरज सा चमके हम - स्कूल चलें हम
ओहो..हो ओहो..हो हो..हो हो
इसके दरवाज़े से दुनिया के राज़ खुलते है
कोई आगे चलता है हम पीछे चलते है
दीवारों पे किस्मत अपनी लिखी जाती है
इस से हमको जीने की वजह मिलती जाती है
सवेरे सवेरे, यारों से मिलने, बन ठन के निकले हम
सवेरे सवेरे, यारों से मिलने, घर से दूर चले हम
रोके से ना रुके हम , मर्ज़ी से चलें हम
बादल सा गरजें हम , सावन सा बरसे हम
सूरज सा चमके हम - स्कूल चलें हम
ओहो..हो ओहो..हो हो..हो हो
इसके दरवाज़े से दुनिया के राज़ खुलते है
कोई आगे चलता है हम पीछे चलते है
दीवारों पे किस्मत अपनी लिखी जाती है
इस से हमको जीने की वजह मिलती जाती है
रोके से ना रुके हम , मर्ज़ी से चलें हम
बादल सा गरजें हम , सावन सा बरसें हम
सूरज सा चमके हम - स्कूल चलें हम
स्कूल चलें हम, हो..हो.. हो
बादल सा गरजें हम , सावन सा बरसें हम
सूरज सा चमके हम - स्कूल चलें हम
स्कूल चलें हम, हो..हो.. हो
ओहो..हो ओहो..हो हो..हो हो
रोके से ना रुके हम , मर्ज़ी से चलें हम
बादल सा गरजें हम , सावन सा बरसें हम
स्कूल चलें हम
रोके से ना रुके हम , मर्ज़ी से चलें हम
बादल सा गरजें हम , सावन सा बरसें हम
स्कूल चलें हम
---महबूब
21 अप्रैल 2022
चुप्पियाँ
चुप्पियाँ बढ़ती जा रही हैं
उन सारी जगहों पर
जहाँ बोलना जरूरी था
बढ़ती जा रही हैं वे
जैसे बढ़ते बाल
जैसे बढ़ते हैं नाख़ून
और आश्चर्य कि किसी को वह गड़ती तक नहीं..
~ केदारनाथ सिंह
उन सारी जगहों पर
जहाँ बोलना जरूरी था
बढ़ती जा रही हैं वे
जैसे बढ़ते बाल
जैसे बढ़ते हैं नाख़ून
और आश्चर्य कि किसी को वह गड़ती तक नहीं..
~ केदारनाथ सिंह
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