यह हौसला कैसे झुके,
यह आरज़ू कैसे रुके..
मंजिल मुश्किल तो क्या,
धुधंला साहिल तो क्या,
तन्हा ये दिल तो क्या
राह पे कांटे बिखरे अगर,
उसपे तो फिर भी चलना ही है,
शाम छुपाले सूरज मगर,
रात को एक दिन ढलना ही है,
रुत ये टल जाएगी,
हिम्मत रंग लाएगी,
सुबह फिर आएगी
यह हौसला कैसे झुके,
यह आरज़ू कैसे रुके..
होगी हमे तो रहमत अदा,
धूप कटेगी साए तले,
अपनी खुदा से है ये दुआ,
मंजिल लगाले हमको गले
जुर्रत सो बार रहे,
ऊंचा इकरार रहे,
जिंदा हर प्यार रहे
यह हौसला कैसे झुके,
यह आरज़ू कैसे रुके..
--- मीर अली हुसेन
Jan 7, 2025
Jan 1, 2025
15 बेहतरीन शेर - 13 !!!
1. तीर खाने की हवस है तो जिगर पैदा कर, सरफ़रोशी की तमन्ना है तो सर पैदा कर - अमीर मीनाई
2. जलाने वाले जलाते ही हैं चराग़ आख़िर, ये क्या कहा कि हवा तेज़ है ज़माने की - जमील मज़हरी
3. 'हफ़ीज़' अपनी बोली मोहब्बत की बोली, न उर्दू न हिन्दी न हिन्दोस्तानी - हफ़ीज़ जालंधरी
2. जलाने वाले जलाते ही हैं चराग़ आख़िर, ये क्या कहा कि हवा तेज़ है ज़माने की - जमील मज़हरी
3. 'हफ़ीज़' अपनी बोली मोहब्बत की बोली, न उर्दू न हिन्दी न हिन्दोस्तानी - हफ़ीज़ जालंधरी
4. आबाद अगर न दिल हो तो बरबाद कीजिए, गुलशन न बन सके तो बयाबाँ बनाइए - जिगर मुरादाबादी
5. फूल कर ले निबाह काँटों से, आदमी ही न आदमी से मिले - ख़ुमार बाराबंकवी
6. एक ही मसला ताउम्र मेरा हल न हुआ, नींद पूरी न हुई, ख़्वाब मुकम्मल न हुआ ...!!! - मुनव्वर हाशमी
7. बड़े घरों में रही है बहुत ज़माने तक, ख़ुशी का जी नहीं लगता ग़रीबख़ाने में...!!! - (नोमान शौक़)
8. इस सफ़र में नींद ऐसी खो गयी, हम न सोये रात थक कर सो गयी...!!! - राही मासूम रज़ा
9. जब तलक दूर है तू तेरी परस्तिश कर लें, हम जिसे छू न सकें उसको खुदा कहते हैं - अहमद फ़राज़
10. 'दुनिया से निराली है नज़ीर अपनी कहानी, अंगारों से बच निकला हूँ, फूलों से जला हूँ' ~ नज़ीर बनारसी
11. 'हमने तमाम उम्र अकेले सफ़र किया, हम पर किसी ख़ुदा की इनायत नहीं रही' ~ दुष्यन्त कुमार
12.आदमी खुद को कभी यूं ही सजा देता है, रौशनी के लिए शोलों को हवा देता है। - गोपालदास 'नीरज'
13. मिरी निगाह में कुछ और ढूँडने वाले, तिरी निगाह में कुछ और ढूँडता हूँ मैं - -महमूद ख़िज़ाँ
14. तेरे बिछड़ने पर लिख रहा हूँ मैं ताज़ा ग़ज़लें, ये तेरा ग़म है जो मुझको मशहूर कर रहा है! - तहज़ीब हाफ़ी
15. और फिर एक दिन बैठे बैठे मुझे अपनी दुनिया बुरी लग गई, जिसको आबाद करते हुए मेरे मां-बाप की ज़िंदगी लग गई - तहज़ीब हाफी
Dec 25, 2024
देह सिवा बरु मोहि इहै गुरु
देह शिवा बरु मोहि इहै सुभ करमन ते कबहूं न टरों।
न डरों अरि सो जब जाइ लरों निसचै करि अपुनी जीत करों ॥
अरु सिख हों आपने ही मन कौ इह लालच हउ गुन तउ उचरों।
जब आव की अउध निदान बनै अति ही रन मै तब जूझ मरों ॥
अर्थ
हे शिवा (शिव की शक्ति) मुझे यह वर दें कि मैं शुभ कर्मों को करने से कभी भी पीछे न हटूँ।
जब मैं युद्ध करने जाऊँ तो शत्रु से न डरूँ और युद्ध में अपनी जीत पक्की करूँ।
और मैं अपने मन को यह सिखा सकूं कि वह इस बात का लालच करे कि आपके गुणों का बखान करता रहूँ।
जब अन्तिम समय आये तब मैं रणक्षेत्र में युद्ध करते हुए मरूँ।
--- देह सिवा बरु मोहि इहै गुरु गोविन्द सिंह द्वारा रचित दसम ग्रंथ के चण्डी चरितर में स्थित एक शबद है।
Dec 20, 2024
किराए का घर
किराए का घर बदलने पर
सिर्फ़ एक किराए का घर नहीं छूटता
उसके साथ एक किराने की दुकान भी छूट जाती है
कुछ भले पड़ोसी छूट जाते हैं
कुछ पेड़
कुछ पखेरू
एक सब्ज़ी की दुकान भी छूट जाती है
उन्हीं के पास
सिर्फ़ एक किराए का घर नहीं छूटता
उसके साथ एक किराने की दुकान भी छूट जाती है
कुछ भले पड़ोसी छूट जाते हैं
कुछ पेड़
कुछ पखेरू
एक सब्ज़ी की दुकान भी छूट जाती है
उन्हीं के पास
छूट जाते हैं
चाय के अड्डे
वहाँ की धूप-हवा-पानी
कुछ ठेले और खोमचे
वहीं छूट जाते हैं
जिन सड़कों पर सुबह-शाम चलते थे
अचानक उनका साथ छूट जाता है
हमारे लिए एक साथ कितना कुछ छूट जाता है
और उन सबके लिए
बस एक अकेला मैं छूटता होऊँगा
चाय के अड्डे
वहाँ की धूप-हवा-पानी
कुछ ठेले और खोमचे
वहीं छूट जाते हैं
जिन सड़कों पर सुबह-शाम चलते थे
अचानक उनका साथ छूट जाता है
हमारे लिए एक साथ कितना कुछ छूट जाता है
और उन सबके लिए
बस एक अकेला मैं छूटता होऊँगा
--- संदीप तिवारी
Dec 13, 2024
हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें
हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें
ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें
तुम ने मेरे घर न आने की क़सम खाई तो है
आँसुओं से भी कहो आँखों में आना छोड़ दें
प्यार के दुश्मन कभी तो प्यार से कह के तो देख
एक तेरा दर ही क्या हम तो ज़माना छोड़ दें
घोंसले वीरान हैं अब वो परिंदे ही कहाँ
इक बसेरे के लिए जो आब-ओ-दाना छोड़ दें
--- वसीम बरेलवी
तुम ने मेरे घर न आने की क़सम खाई तो है
आँसुओं से भी कहो आँखों में आना छोड़ दें
प्यार के दुश्मन कभी तो प्यार से कह के तो देख
एक तेरा दर ही क्या हम तो ज़माना छोड़ दें
घोंसले वीरान हैं अब वो परिंदे ही कहाँ
इक बसेरे के लिए जो आब-ओ-दाना छोड़ दें
--- वसीम बरेलवी
Dec 6, 2024
अयोध्या, 1992
हे राम,
जीवन एक कटु यथार्थ है
और तुम एक महाकाव्य!
तुम्हारे बस की नहीं
उस अविवेक पर विजय
जिसके दस बीस नहीं
अब लाखों सर - लाखों हाथ हैं,
और विभीषण भी अब
न जाने किसके साथ है।
इससे बड़ा क्या हो सकता है
हमारा दुर्भाग्य
एक विवादित स्थल में सिमट कर
रह गया तुम्हारा साम्राज्य
अयोध्या इस समय तुम्हारी अयोध्या नहीं
योद्धाओं की लंका है,
'मानस' तुम्हारा 'चरित' नहीं
चुनाव का डंका है!
हे राम, कहाँ यह समय
कहाँ तुम्हारा त्रेता युग,
कहाँ तुम मर्यादा पुरुषोत्तम
और कहाँ यह नेता-युग!
सविनय निवेदन है प्रभु कि लौट जाओ
किसी पुराण - किसी धर्मग्रंथ में
सकुशल सपत्नीक...
अबके जंगल वो जंगल नहीं
जिनमें घूमा करते थे वाल्मीक!
--- कुँवर नारायण
जीवन एक कटु यथार्थ है
और तुम एक महाकाव्य!
तुम्हारे बस की नहीं
उस अविवेक पर विजय
जिसके दस बीस नहीं
अब लाखों सर - लाखों हाथ हैं,
और विभीषण भी अब
न जाने किसके साथ है।
इससे बड़ा क्या हो सकता है
हमारा दुर्भाग्य
एक विवादित स्थल में सिमट कर
रह गया तुम्हारा साम्राज्य
अयोध्या इस समय तुम्हारी अयोध्या नहीं
योद्धाओं की लंका है,
'मानस' तुम्हारा 'चरित' नहीं
चुनाव का डंका है!
हे राम, कहाँ यह समय
कहाँ तुम्हारा त्रेता युग,
कहाँ तुम मर्यादा पुरुषोत्तम
और कहाँ यह नेता-युग!
सविनय निवेदन है प्रभु कि लौट जाओ
किसी पुराण - किसी धर्मग्रंथ में
सकुशल सपत्नीक...
अबके जंगल वो जंगल नहीं
जिनमें घूमा करते थे वाल्मीक!
--- कुँवर नारायण
Nov 29, 2024
मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था
मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था
वो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था
मैं उस को देखने को तरसती ही रह गई
जिस शख़्स की हथेली पे मेरा नसीब था
बस्ती के सारे लोग ही आतिश-परस्त थे
घर जल रहा था और समुंदर क़रीब था
मरियम कहाँ तलाश करे अपने ख़ून को
हर शख़्स के गले में निशान-ए-सलीब था
दफ़ना दिया गया मुझे चाँदी की क़ब्र में
मैं जिस को चाहती थी वो लड़का ग़रीब था
वो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था
मैं उस को देखने को तरसती ही रह गई
जिस शख़्स की हथेली पे मेरा नसीब था
बस्ती के सारे लोग ही आतिश-परस्त थे
घर जल रहा था और समुंदर क़रीब था
मरियम कहाँ तलाश करे अपने ख़ून को
हर शख़्स के गले में निशान-ए-सलीब था
दफ़ना दिया गया मुझे चाँदी की क़ब्र में
मैं जिस को चाहती थी वो लड़का ग़रीब था
--- अंजुम रहबर
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