5 मार्च 2020

25 बेहतरीन शेर !!!

1) मैं आज ज़द पे अगर हूँ तो ख़ुश गुमान न हो, चराग़ सब के बुझेंगे हवा किसी की नहीं| --- अहमद फ़राज़

2) दुनिया के जो मज़े हैं हरगिज़ वो कम न होंगे, चर्चे यूंही रहेंगे अफ़सोस हम न होंगे --- आग़ा मोहम्मद तक़ी खान तरक़्क़ी

3) फानूस बनकर जिसकी हिफाजत हवा करे, वो शमा क्या बुझे जिसे रौशन खुदा करे

4) नशेमन पर नशेमन इस क़दर तामीर करता जा, कि बिजली गिरते गिरते आप ख़ुद बे-ज़ार हो जाए

5) इश्क़ की हर दास्ताँ में एक ही नुक्ता मिला, इश्क़ का माज़ी हुआ करता है मुस्तक़बिल नहीं

6) उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए --- बशीर बद्र

7) शह-ज़ोर अपने ज़ोर में गिरता है मिस्ल-ए-बर्क़ वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले --- मिर्ज़ा अज़ीम बेग 'अज़ीम'

8) सुर्ख़-रू होता है इंसाँ ठोकरें खाने के बाद, रंग लाती है हिना पत्थर पे पिस जाने के बाद --- सय्यद मोहम्मद मस्त कलकत्तवी

9) सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ, ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ --- ख़्वाजा मीर दर्द

10) मकतब-ए-इश्क़ का दस्तूर निराला देखा, उस को छुट्टी न मिली जिस को सबक़ याद हुआ --- मीर ताहिर अली रिज़वी

11) क़ैस जंगल में अकेला है मुझे जाने दो, ख़ूब गुज़रेगी जो मिल बैठेंगे दीवाने दो --- मियाँ दाद ख़ां सय्याह

12) मैं तमाम तारे उठा उठा के ग़रीब लोगों में बाँट दूँ, वो जो एक रात को आसमां का निज़ाम दे मिरे हाथ में --- बशीर बद्र

13) भाँप ही लेंगे इशारा सर-ए-महफ़िल जो किया, ताड़ने वाले क़यामत की नज़र रखते हैं --- लाला माधव राम जौहर

14) चल साथ कि हसरत दिल-ए-मरहूम से निकले, आशिक़ का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले --- फ़िदवी लाहौरी

15) मैं समझता हूँ तक़द्दुस को तमद्दुन का फ़रेब, तुम रुसूमात को ईमान बनाती क्यूँ हो --- साहिर लुधियानवी

16) हक़ अच्छा, पर इस के लिए कोई और मरे तो और अच्छा है, तुम भी क्या 'मंसूर' हो जो सूली पे चढ़ो, ख़ामोश रहो ---इब्न ऐ इंशा

17) दिल के फफूले जल उठे सीने के दाग़ से, इस घर को आग लग गई घर के चराग़ से --- महताब राय ताबां

18) उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में 'मोमिन', आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमाँ होंगे ---मोमिन ख़ाँ मोमिन

19) ये जो मंदी का ज़माना है गुज़र जाने दे, फिर पता तुझको चलेगा मिरी क़ीमत क्या है --- राहत इन्दौरी

20) सब हसीं हैं जाहिदों को नापसंद, अब कोई हूर आएगी उनके लिए --- अमीर मीनाई

21) कुछ इस तरह से चल नज़ीर कारवाँ के साथ, जब तू न चल सके तो तेरी दास्तां चले ---नज़ीर अकबराबादी

22) शब को मय ख़ूब सी पी सुब्ह को तौबा कर ली, रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई --- जलील मानिकपूरी

23) बजा कहे जिसे आलम उसे बजा समझो, ज़बान-ए-ख़ल्क़ को नक़्क़ारा-ए-ख़ुदा समझो --- शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

24) शर्त सलीक़ा है हर इक उम्र में, ऐब भी करने को हुनर चाहिए ---मीर तक़ी मीर

25) ईद का दिन है गले आज तो मिल ले ज़ालिम, रस्म-ए-दुनिया भी है मौक़ा भी है दस्तूर भी है --- क़मर बदायुनी

4 मार्च 2020

जंगल गाथा

1.
एक नन्हा मेमना
और उसकी माँ बकरी,
जा रहे थे जंगल में
राह थी संकरी।
अचानक सामने से आ गया एक शेर,
लेकिन अब तो
हो चुकी थी बहुत देर।
भागने का नहीं था कोई भी रास्ता,
बकरी और मेमने की हालत खस्ता।
उधर शेर के कदम धरती नापें,
इधर ये दोनों थर-थर कापें।
अब तो शेर आ गया एकदम सामने,
बकरी लगी जैसे-जैसे
बच्चे को थामने।
छिटककर बोला बकरी का बच्चा-
शेर अंकल!
क्या तुम हमें खा जाओगे
एकदम कच्चा?
शेर मुस्कुराया,
उसने अपना भारी पंजा
मेमने के सिर पर फिराया।
बोला-
हे बकरी - कुल गौरव,
आयुष्मान भव!
दीर्घायु भव!
चिरायु भव!
कर कलरव!
हो उत्सव!
साबुत रहें तेरे सब अवयव।
आशीष देता ये पशु-पुंगव-शेर,
कि अब नहीं होगा कोई अंधेरा
उछलो, कूदो, नाचो
और जियो हँसते-हँसते
अच्छा बकरी मैया नमस्ते!

इतना कहकर शेर कर गया प्रस्थान,
बकरी हैरान-
बेटा ताज्जुब है,
भला ये शेर किसी पर
रहम खानेवाला है,
लगता है जंगल में
चुनाव आनेवाला है।

2.
पानी से निकलकर
मगरमच्छ किनारे पर आया,
इशारे से
बंदर को बुलाया.
बंदर गुर्राया-
खों खों, क्यों,
तुम्हारी नजर में तो
मेरा कलेजा है?

मगरमच्छ बोला-
नहीं नहीं, तुम्हारी भाभी ने
खास तुम्हारे लिये
सिंघाड़े का अचार भेजा है.

बंदर ने सोचा
ये क्या घोटाला है,
लगता है जंगल में
चुनाव आने वाला है.
लेकिन प्रकट में बोला-
वाह!
अचार, वो भी सिंघाड़े का,
यानि तालाब के कबाड़े का!
बड़ी ही दयावान
तुम्हारी मादा है,
लगता है शेर के खिलाफ़
चुनाव लड़ने का इरादा है.

कैसे जाना, कैसे जाना?
ऐसे जाना, ऐसे जाना
कि आजकल
भ्रष्टाचार की नदी में
नहाने के बाद
जिसकी भी छवि स्वच्छ है,
वही तो मगरमच्छ है.

--- अशोक चक्रधर

1 मार्च 2020

Stalin Epigram

We live, not sensing our own country beneath us,
Ten steps away they dissolve, our speeches,
But where enough meet for half-conversation,
The Kremlin hillbilly is our preoccupation.
They’re like slimy worms, his fat fingers,
His words, as solid as weights of measure.

In his cockroach moustaches there’s a hint
Of laughter, while below his top boots gleam.
Round him a mob of thin-necked henchmen,
He pursues the enslavement of the half-men.

One whimpers, another warbles,
A third miaows, but he alone prods and probes.
He forges decree after decree, like horseshoes –
In groins, foreheads, in eyes, and eyebrows.

Wherever an execution’s happening though –
there’s raspberry, and the Ossetian’s giant torso.

--- Osip Mandelstam

23 फ़रवरी 2020

“To Our Land”

To our land,
and it is the one near the word of god,
a ceiling of clouds

To our land,
and it is the one far from the adjectives of nouns,
the map of absence

To our land,
and it is the one tiny as a sesame seed,
a heavenly horizon ... and a hidden chasm

To our land,
and it is the one poor as a grouse’s wings,
holy books ... and an identity wound

To our land,
and it is the one surrounded with torn hills,
the ambush of a new past

To our land, and it is a prize of war,
the freedom to die from longing and burning
and our land, in its bloodied night,
is a jewel that glimmers for the far upon the far
and illuminates what’s outside it ...

As for us, inside,
we suffocate more

---Mahmoud Darwish

21 फ़रवरी 2020

दो अर्थ का भय

मैं अभी आया हूँ सारा देश घूमकर
पर उसका वर्णन दरबार में करूँगा नहीं
राजा ने जनता को बरसों से देखा नहीं
यह राजा जनता की कमज़ोरियाँ न जान सके इसलिए मैं
जनता के क्लेश का वर्णन करूँगा नहीं इस दरबार में

सभा में विराजे हैं बुद्धिमान
वे अभी राजा से तर्क करने को हैं
आज कार्यसूची के अनुसार
इसके लिए वेतन पाते हैं वे
उनके पास उग्रस्वर ओजमयी भाषा है

मेरा सब क्रोध सब कारुण्य सब क्रन्दन
भाषा में शब्द नहीं दे सकता
क्योंकि जो सचमुच मनुष्य मरा
उसके भाषा न थी

मुझे मालूम था मगर इस तरह नहीं कि जो
ख़तरे मैंने देखे थे वे जब सच होंगे
तो किस तरह उनकी चेतावनी देने की भाषा
बेकार हो चुकी होगी
एक नयी भाषा दरकार होगी
जिन्होंने मुझसे ज़्यादा झेला है
वे कह सकते हैं कि भाषा की ज़रूरत नहीं होती
साहस की होती है
फिर भी बिना बतलाये कि एक मामूली व्यक्ति
एकाएक कितना विशाल हो जाता है
कि बड़े-बड़े लोग उसे मारने पर तुल जायें
रहा नहीं जा सकता

मैं सब जानता हूँ पर बोलता नहीं
मेरा डर मेरा सच एक आश्चर्य है
पुलिस के दिमाग़ में वह रहस्य रहने दो
वे मेरे शब्दों की ताक में बैठे हैं
जहाँ सुना नहीं उनका ग़लत अर्थ लिया और मुझे मारा

इसलिए कहूँगा मैं
मगर मुझे पाने दो
पहले ऐसी बोली
जिसके दो अर्थ न हों
---रघुवीर सहाय

13 फ़रवरी 2020

होने लगी है जिस्म में जुंबिश तो देखिये

होने लगी है जिस्म में जुंबिश तो देखिये
इस पर कटे परिंदे की कोशिश तो देखिये

गूँगे निकल पड़े हैं, ज़ुबाँ की तलाश में
सरकार के ख़िलाफ़ ये साज़िश तो देखिये

बरसात आ गई तो दरकने लगी ज़मीन
सूखा मचा रही है ये बारिश तो देखिये

उनकी अपील है कि उन्हें हम मदद करें
चाकू की पसलियों से गुज़ारिश तो देखिये

जिसने नज़र उठाई वही शख़्स गुम हुआ
इस जिस्म के तिलिस्म की बंदिश तो देखिये

 ---दुष्यंत कुमार

10 फ़रवरी 2020

समकालीन प्रेम कविता का प्रारूप

निश्चय ही सफ़ेद का
सबसे अच्छा वर्णन धूसर के ज़रिये होता है
चिड़िया का पत्थर के ज़रिये
सूरजमुखी के फूलों का दिसम्बर में

पुराने दिनों में प्रेम कविताएँ
शरीर का वर्णन किया करती थीं
अलां और फलां का वर्णन
उदाहरणार्थ पलकों का वर्णन

निश्चय ही लाल का वर्णन
धूसर के ज़रिये किया जाना चाहिए
सूरज का बारिश के ज़रिये
पोस्त के फूलों का नवम्बर में
होठों का रात में

रोटी का सबसे मार्मिक वर्णन
भूख का वर्णन है

उसमें एक नम छलनी जैसा केंद्र रहता है
एक गर्म अन्तःस्थल
रात में सूरजमुखी
मातृदेवी साइबल का वक्ष पेट और जांघें

पानी के झरने जैसा
एक पारदर्शी वर्णन
प्यास का वर्णन है
राख का वर्णन
रेगिस्तान है
उसमें एक मरीचिका की कल्पना होती है
बादल और पेड़ आईने में
प्रवेश करते हैं

भूख अभाव
और शरीर की अनुपस्थिति
प्रेम का वर्णन है
समकालीन प्रेम कविता का.

---Tadeusz Borowski
--अनुवाद: मंगलेश डबराल