अपने हर सम्भव प्रतिपक्ष का
उपहास और
अपमान करता हुआ
घूम रहा है
उसे किसी सवाल का
जवाब नहीं देना
बल्कि उसकी हँसी में
यह हिक़ारत है
कि प्रश्न करने की
ज़रूरत और हिम्मत
अभी बाक़ी है
लोग ताली बजा रहे हैं
क्योंकि जो वे स्वयं
करते हैं ज़िन्दगी में
उसका वह
सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि है
समाज में बहस की
ताब नहीं रह गई
विद्वेष और हिंसा ने उसे
विस्थापित कर दिया है
― पंकज चतुर्वेदी ("काजू की रोटी" कविता संग्रह)
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