10 मई 2024

एक आदमी इस मुल्क में

एक आदमी इस मुल्क में
अपने हर सम्भव प्रतिपक्ष का
उपहास और
अपमान करता हुआ
घूम रहा है

उसे किसी सवाल का
जवाब नहीं देना
बल्कि उसकी हँसी में
यह हिक़ारत है
कि प्रश्न करने की
ज़रूरत और हिम्मत
अभी बाक़ी है

लोग ताली बजा रहे हैं
क्योंकि जो वे स्वयं
करते हैं ज़िन्दगी में
उसका वह
सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि है

समाज में बहस की
ताब नहीं रह गई

विद्वेष और हिंसा ने उसे
विस्थापित कर दिया है

― पंकज चतुर्वेदी ("काजू की रोटी" कविता संग्रह)

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