हम अपवित्र हैं,
हम तुम्हें अपवित्र कर देंगे,
छू लेंगे तुम्हारे कुओं को तुम्हारे नलों को तुम्हारी बाल्टियों को हम छू देंगे,
तुम्हारे महलों को तुम्हारी दौलत को तुम्हारी हर चीज को हम अपवित्र कर देंगे,
तुम तब अपवित्र नहीं होते हो जब पीते हो उस कुएं का पानी जिसे हम खोदते हैं,
तुम तब अपवित्र नहीं होते हो
जब रहते हो उन महलों में जिन्हें हम खड़ा करते हैं,
जब खाते हो उस अन्न को जिसे हम उगाते हैं,
तुम तब भी अपवित्र नहीं होते हो जब जीते हो आराम तलब जिंदगी हमारी मेहनत की कीमत पर,
तुम तब अपवित्र हो जाते हो जब हम मांगते हैं अपना हक,
जब हम छू लेते हैं अपनी ही मेहनत की उपज को,
तुम्हारा अपवित्र हो जाना जरूरी है,
क्योंकि अपवित्रता में नहीं होते ऊंचे-नीचे छोटे बड़े,
अपवित्रता में कोई ग़ैर बराबर नहीं होता,
हम अपवित्र कर देंगे तुम्हें,
हम अपवित्र कर देंगे तुम्हारी खून से भीगी पवित्रता को,
जिस का इतिहास अन्याय दमन शोषण और गैर बराबरी का है,
हम अपवित्र कर देंगे पूरी दुनिया को,
क्योंकि अपवित्रता लाएगी बराबरी,
तब कोई गैर बराबर नहीं होगा
-अंकित साहिर
दस्तक पत्रिका से साभार संपादक सीमा आजाद
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