मैं घास हूँ
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा
बम फेंक दो चाहे विश्वविद्यालय पर
बना दो होस्टल को मलबे का ढेर
सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर
मुझे क्या करोगे
मैं तो घास हूँ हर चीज़ पर उग आऊंगा
बंगे को ढेर कर दो
संगरूर मिटा डालो
धूल में मिला दो लुधियाना ज़िला
मेरी हरियाली अपना काम करेगी...
दो साल... दस साल बाद
सवारियाँ फिर किसी कंडक्टर से पूछेंगी
यह कौन-सी जगह है
मुझे बरनाला उतार देना
जहाँ हरे घास का जंगल है
मैं घास हूँ, मैं अपना काम करूंगा
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा।
---पाश
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा
बम फेंक दो चाहे विश्वविद्यालय पर
बना दो होस्टल को मलबे का ढेर
सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर
मुझे क्या करोगे
मैं तो घास हूँ हर चीज़ पर उग आऊंगा
बंगे को ढेर कर दो
संगरूर मिटा डालो
धूल में मिला दो लुधियाना ज़िला
मेरी हरियाली अपना काम करेगी...
दो साल... दस साल बाद
सवारियाँ फिर किसी कंडक्टर से पूछेंगी
यह कौन-सी जगह है
मुझे बरनाला उतार देना
जहाँ हरे घास का जंगल है
मैं घास हूँ, मैं अपना काम करूंगा
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा।
---पाश
बहुत ही बढ़िया कविता.... सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना – पाश
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