आत्मा परमात्मा की व्यंजना है
क्या पता ये सत्य है या कल्पना है
देश को क्या देखते हो पोस्टर में
आदमी देखो मुकम्मल आइना है
क्या गिरेगा पेड़ वो इन आन्धियो से
जिसकी जड़ में गाँव भार की प्रार्थना है
उसके सपनों को शरण मत दीजिएगा
इनको आखिर बाढ़ में ही डूबना है
इन अन्धेरो को अभी रखना नज़र में
क्योंकि इनमें सूर्य की सम्भावना है
--- अश्वघोष
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