आहिस्ता-आहिस्ता वर्दी खाने लगती है
आदमी के भीतर का मुलायम हिस्सा
सोखने लगती है आत्मा पर से बहता झरना
वर्दी वाले की बीवियाँ ढूँढ़ने लगती हैं अपने पति
बच्चे खोजते हैं अपने पिता
और वे वर्दी को टटोलते रहते हैं
ख़ुद वर्दी वाला पूछता है अपने से आईने में एक दिन
कहाँ गया वह लड़का जो बीस साल पहले गुनगुनाता था
तलत महमूद के गाने कहाँ गया कोई जवाब नहीं मिलता
सिर्फ़ एक मुस्तैद छाया
मंत्रोच्चार की तरह बड़बड़ाती है गालियाँ
जो किसी की समझ में नहीं आतीं।
--- चंद्रकांत देवताले
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