भेडिये-1
भेडिये की आँखें सुर्ख हैं ।
उसे तब तक घूरो
जब तक तुम्हारी आँखें
सुर्ख न हो जाएं ।
और तुम कर ही क्या सकते हो
जब वह तुम्हारे सामने हों ?
यदि तुम मुहँ छुपा भागोगे
तो तुम उसे
अपने भीतर इसी तरह खडा पाओगे
यदि बच रहे ।
भेडिये की आँखें सुर्ख हैं ।
और तुम्हारी आँखें ?
भेड़िया २
भेड़िया गुर्राता है
तुम मशाल जलाओ ।
उसमें और तुममें
यही बुनियादी फ़र्क है
भेड़िया मशाल नहीं जला सकता।
अब तुम मशाल उठा
भेड़िए के करीब जाओ
भेड़िया भागेगा।
करोड़ो हाथों में मशाल लेकर
एक - एक झाड़ी की ओर बढ़ो
सब भेडिए भागेंगे।
फिर उन्हें जंगल के बाहर निकाल
बर्फ़ में छोड़ दो
भूखे भेड़िए आपस में गुर्रायेंगे
एक - दूसरे को चीथ खायेंगे।
भेड़िए मर चुके होंगे
और तुम ?
भेड़िया ३
भेड़िए फिर आयेंगे।
अचानक
तुममें से ही कोई एक दिन
भेड़िया बन जायेगा
उसका वंश बढ़ने लगेगा।
भेड़िए का आना जरूरी है
तुम्हें खुद को पहचानने के लिए
निर्भय होने का सुख जानने के लिए।
इतिहास के जंगल में
हर बार भेड़िया माँद से निकाला जायेगा।
आदमी साहस से, एक होकर,
मशाल लिये खड़ा होगा।
इतिहास जिंदा रहेगा
और तुम भी
और भेड़िया ?
---सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
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