2. हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता - अकबर इलाहाबादी
3- लोग टूट जाते हैं एक घर के बनाने में, तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में. - बशीर बद्र
4. तू इधर उधर की न बात कर ये बता कि क़ाफ़िला क्यूँ लुटा, मुझे रहज़नों से गिला नहीं तिरी रहबरी का सवाल है ~ शहाब जाफ़री
5. कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों ~ दुष्यंत कुमार
6. कोई क्यूँ किसी का लुभाए दिल कोई क्या किसी से लगाए दिल, वो जो बेचते थे दवा-ए-दिल वो दुकान अपनी बढ़ा गए ~ बहादुर शाह ज़फ़र
7. ऐ ‘ज़ौक़’ तकल्लुफ़ में है तकलीफ़ सरासर, आराम से वो हैं, जो तकल्लुफ़ नहीं करते..!- इब्राहिम ज़ौक़
6. आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं, सामान सौ बरस का है पल की खबर नहीं - -हैरत इलाहाबादी
7. ज़िन्दगी ज़िंदादिली का नाम है, मुर्दा दिल क्या ख़ाक जिया करते हैं - नासिख लखनवी
8. करीब है यारो रोज़े-महशर, छुपेगा कुश्तों का खून क्योंकर, जो चुप रहेगी ज़ुबाने–खंजर, लहू पुकारेगा आस्तीं का -अमीर मीनाई (रोज़े-महशर = प्रलय का दिन)
9. बड़े गौर से सुन रहा था जमाना, तुम्ही सो गये दास्तां कहते कहते - साक़िब लखनवी
10. हम तालिबे-शोहरत हैं, हमें नंग से क्या काम, बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा - नवाब मुहम्मद मुस्तफा खान शेफ़्ता
11. ये इश्क नहीं आसां, बस इतना समझ लीजै, इक आग का दरिया है और डूब के जाना है -जिगर मुरादाबादी
12. यहां लिबास की कीमत है आदमी की नहीं, मुझे गिलास बड़ा दे, शराब कम कर दे - बशीर बद्र
13. बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी था, हर शाख पे उल्लू बैठें हैं अंजाम ऐ गुलिस्तां क्या होगा - रियासत हुसैन रिजवी उर्फ ‘शौक बहराइची’
14. ज़िन्दगी तो अपने कदमो पे चलती है ‘फ़राज़’, औरों के सहारे तो जनाज़े उठा करते हैं - अहमद फ़राज़
15. ख़िर्द-मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है, कि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा क्या है
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले, ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है - अल्लामा इक़बाल
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 11 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंशानदार संकलन।
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