21 अगस्त 2020

अरे यायावर! रहेगा याद?

पार्श्व गिरि का नम्र, 
चीड़ों में डगर चढ़ती उमंगों-सी। 
बिछी पैरों में नदी ज्यों दर्द की रेखा। 
विहग-शिशु मौन नीड़ों में। 

 मैं ने आँख भर देखा। 
दिया मन को दिलासा-पुन: आऊँगा। 
(भले ही बरस-दिन-अनगिन युगों के बाद!) 
क्षितिज ने पलक-सी खोली, 
 तमक कर दामिनी बोली-
 'अरे यायावर! रहेगा याद?' 

 माफ्लङ् (शिलङ्), 22 सितम्बर, 1947

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