18 अगस्त 2020

ज़िन्दगी है कश लगा

ज़िन्दगी है कश लगा
ज़िन्दगी है कश लगा
हसरतो की राख उड़ा
यह जहाँ पानी है
बुलबुला है पानी है
बुलबुलों पे रुकना क्या
पानियों में बहता जा बहता जा

कश लगा
कश लगा
कश लगा
कश लगा

जलती है तन्हाईयाँ
तापी है रात रात जाग जाग के
उड़ती है चिंगारियाँ
गुच्छे है लाल लाल गिली आग के
ओह खिलती है जैसे जलते
जुगनु हो बेरियों में
आँखें लगी हो जैसे
उपलों की ढेरियों में
दो दिन का आग है यह
सारा जहाँ धुआँ

दो दिन की ज़िन्दगी में
दोनों जहाँ का धुआँ

यह जहाँ पानी है
बुलबुला है पानी है
बुलबुलों पे रुकना क्या
पानियों में बहता जा बहता जा

कश लगा
कश लगा
कश लगा
कश लगा

छोड़ी हुई बस्तियां
जाता हूँ बार बार
घूम घूम के
मिलते नहीं वह निशाँ
छोड़े थे दहलीज़
चूम चूम के
चौपाए चर जायेंगे
जंगल की क्यारियाँ हैं
पगडंडियों पर मिलना
दो दिन की यारियां है
क्या जाने कौन जाये
आरी से बारी आये
हम भी कतार में है
जब भी सवारी आये
यह जहाँ पानी है
बुलबुला है पानी है
बुलबुलों पे रुकना क्या
पानियों में बहता जा बहता जा

कश लगा
कश लगा
कश लगा
कश लगा

---गुलज़ार

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