Lyrics of Life
Poetry is untranslatable, like the whole art.
December 10, 2021
काली मिट्टी काले घर
काली मिट्टी काले घर
दिनभर बैठे-ठाले घर
काली नदिया काला धन
सूख रहे हैं सारे बन
काला सूरज काले हाथ
झुके हुए हैं सारे माथ
काली बहसें काला न्याय
खाली मेज पी रही चाय
काले अक्षर काली रात
कौन करे अब किससे बात
काली जनता काला क्रोध
काला-काला है युगबोध
---
केदारनाथ सिंह
1 comment:
अनीता सैनी
December 10, 2021 at 6:29 PM
वाह!सच सब काला ही काला है।
सादर
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वाह!सच सब काला ही काला है।
ReplyDeleteसादर