April 21, 2022

चुप्पियाँ

चुप्पियाँ बढ़ती जा रही हैं
उन सारी जगहों पर
जहाँ बोलना जरूरी था
बढ़ती जा रही हैं वे
जैसे बढ़ते बाल
जैसे बढ़ते हैं नाख़ून
और आश्चर्य कि किसी को वह गड़ती तक नहीं..

~ केदारनाथ सिंह

4 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२२-०४ -२०२२ ) को
    'चुप्पियाँ बढ़ती जा रही हैं'(चर्चा अंक-४४०८)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. गद्यात्मक अंदाज में जीवन दर्शन!--ब्रजेंद्रनाथ

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