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5 मार्च 2020

25 बेहतरीन शेर !!!

1) मैं आज ज़द पे अगर हूँ तो ख़ुश गुमान न हो, चराग़ सब के बुझेंगे हवा किसी की नहीं| --- अहमद फ़राज़

2) दुनिया के जो मज़े हैं हरगिज़ वो कम न होंगे, चर्चे यूंही रहेंगे अफ़सोस हम न होंगे --- आग़ा मोहम्मद तक़ी खान तरक़्क़ी

3) फानूस बनकर जिसकी हिफाजत हवा करे, वो शमा क्या बुझे जिसे रौशन खुदा करे

4) नशेमन पर नशेमन इस क़दर तामीर करता जा, कि बिजली गिरते गिरते आप ख़ुद बे-ज़ार हो जाए

5) इश्क़ की हर दास्ताँ में एक ही नुक्ता मिला, इश्क़ का माज़ी हुआ करता है मुस्तक़बिल नहीं

6) उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए --- बशीर बद्र

7) शह-ज़ोर अपने ज़ोर में गिरता है मिस्ल-ए-बर्क़ वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले --- मिर्ज़ा अज़ीम बेग 'अज़ीम'

8) सुर्ख़-रू होता है इंसाँ ठोकरें खाने के बाद, रंग लाती है हिना पत्थर पे पिस जाने के बाद --- सय्यद मोहम्मद मस्त कलकत्तवी

9) सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ, ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ --- ख़्वाजा मीर दर्द

10) मकतब-ए-इश्क़ का दस्तूर निराला देखा, उस को छुट्टी न मिली जिस को सबक़ याद हुआ --- मीर ताहिर अली रिज़वी

11) क़ैस जंगल में अकेला है मुझे जाने दो, ख़ूब गुज़रेगी जो मिल बैठेंगे दीवाने दो --- मियाँ दाद ख़ां सय्याह

12) मैं तमाम तारे उठा उठा के ग़रीब लोगों में बाँट दूँ, वो जो एक रात को आसमां का निज़ाम दे मिरे हाथ में --- बशीर बद्र

13) भाँप ही लेंगे इशारा सर-ए-महफ़िल जो किया, ताड़ने वाले क़यामत की नज़र रखते हैं --- लाला माधव राम जौहर

14) चल साथ कि हसरत दिल-ए-मरहूम से निकले, आशिक़ का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले --- फ़िदवी लाहौरी

15) मैं समझता हूँ तक़द्दुस को तमद्दुन का फ़रेब, तुम रुसूमात को ईमान बनाती क्यूँ हो --- साहिर लुधियानवी

16) हक़ अच्छा, पर इस के लिए कोई और मरे तो और अच्छा है, तुम भी क्या 'मंसूर' हो जो सूली पे चढ़ो, ख़ामोश रहो ---इब्न ऐ इंशा

17) दिल के फफूले जल उठे सीने के दाग़ से, इस घर को आग लग गई घर के चराग़ से --- महताब राय ताबां

18) उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में 'मोमिन', आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमाँ होंगे ---मोमिन ख़ाँ मोमिन

19) ये जो मंदी का ज़माना है गुज़र जाने दे, फिर पता तुझको चलेगा मिरी क़ीमत क्या है --- राहत इन्दौरी

20) सब हसीं हैं जाहिदों को नापसंद, अब कोई हूर आएगी उनके लिए --- अमीर मीनाई

21) कुछ इस तरह से चल नज़ीर कारवाँ के साथ, जब तू न चल सके तो तेरी दास्तां चले ---नज़ीर अकबराबादी

22) शब को मय ख़ूब सी पी सुब्ह को तौबा कर ली, रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई --- जलील मानिकपूरी

23) बजा कहे जिसे आलम उसे बजा समझो, ज़बान-ए-ख़ल्क़ को नक़्क़ारा-ए-ख़ुदा समझो --- शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

24) शर्त सलीक़ा है हर इक उम्र में, ऐब भी करने को हुनर चाहिए ---मीर तक़ी मीर

25) ईद का दिन है गले आज तो मिल ले ज़ालिम, रस्म-ए-दुनिया भी है मौक़ा भी है दस्तूर भी है --- क़मर बदायुनी

13 फ़रवरी 2020

होने लगी है जिस्म में जुंबिश तो देखिये

होने लगी है जिस्म में जुंबिश तो देखिये
इस पर कटे परिंदे की कोशिश तो देखिये

गूँगे निकल पड़े हैं, ज़ुबाँ की तलाश में
सरकार के ख़िलाफ़ ये साज़िश तो देखिये

बरसात आ गई तो दरकने लगी ज़मीन
सूखा मचा रही है ये बारिश तो देखिये

उनकी अपील है कि उन्हें हम मदद करें
चाकू की पसलियों से गुज़ारिश तो देखिये

जिसने नज़र उठाई वही शख़्स गुम हुआ
इस जिस्म के तिलिस्म की बंदिश तो देखिये

 ---दुष्यंत कुमार

30 जनवरी 2020

वही ताज है वही तख़्त है

वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है
ये वही ख़ुदा की ज़मीन है ये वही बुतों का निज़ाम है

बड़े शौक़ से मेरा घर जला कोई आँच न तुझपे आयेगी
ये ज़ुबाँ किसी ने ख़रीद ली ये क़लम किसी का ग़ुलाम है

मैं ये मानता हूँ मेरे दिये तेरी आँधियोँ ने बुझा दिये
मगर इक जुगनू हवाओं में अभी रौशनी का इमाम है

--- बशीर बद्र

25 जनवरी 2020

Khabeesh

Mein hoon khabees, mein ghaliz hoon,

Mein aawaargi ki wakeel hoon
Woh taraanon ki mujassim noor main nahin

Woh faassaanon ki paak hoor main nahin
Main gulaam-e-nafas hoon
Main hubaab-e-hawas hoon
Main zinda hoon, figaar hoon
Main khud-sari ka minaar hoon
Main aana ki intehaan bhi ho sakti hoon
Shayaad tum mujhe kabhi na chhoto sako
Chaahe tum mujhe murda-e-khaas-o-khaashaak hi samjho
Main kyu jhoote armaano ki qataar banu?
Main khud-garz utni hi hoon, jitne tum
Main kyun paikaar-e-begharaz banu

Meri jubaan utni hi shirin hain, jitni tumhari
Main kyu sanam-i-khushi-akhlaq banu?
Main maamooli hoon

Mujh pe kyu zimmah ho mumtaazi ka?
Tumko ghuroor hai khaash hone par
Par mujhko zyaadah hai ilm sarfaraazi ka

Agar tumhein shauq-e-tabassum hai
Toh sange-marmar ka sanam le aso
Meri jabeen ki silvatein tumhari khushi se to nahin mitengi

Mere aazaa-e-rukh ki harkat , tumhare taabay nahin hai
Tumhari khaatir bhi nahi hain

Main zeenat ka samaan nahin hun
Main haaya ka farmaan nahi hun
Main nazaakat nahi jaanti
Main ibadaat nahi maanti

Main tumhaari tawajjoh ki talabgaar nahi hoon
Tumhaare baghair muflis-o-khwaar nahi hoon
Main tumhari qaisari ka makhoom nahi rahi
Tumhari himayaton ki muhsin nahi rahi
Tumhaare mehlon ko hard rahoon barson
Kaho ye kaisa ahd-e-wafa tha?

Jab main woh tilism-e-purfan hoon,
Jisne tumko jahangir kya tha
Main mahroom-e-sahil nahin hoon
Mera tajassus mujhe mairaj par le chalega
Safha-e-tareekh mujhe bhool bhi jaayein
Par ahl-e-wafa meri faatiha denge

Jism-o-zahan kaafan-posh aaj kai zamaano se hain
Par is ayyaam-e-zulmat mein darakhshaan hai majlis meri

Ye charcha aasmaano mein hai
Salaasil kab tak rok sakenge
Meri quwwatein aayan ho chuki hain
Madaaris kab tak tok sakenge
Meri jumbishein rawaan ho chilo hain
Nizaam-e-pidari se bhagawaat hai tehreek meri
Kamzor-o-kamzarf nahi ye tajweej meri
Main tumhaare wazaarat-khaano ka rukh bhi kar chuki hoon
Ab yeh khayaal chhod do ki aaraaish hai takhleeq meri

--- by Iqra Khilji

23 जनवरी 2020

बहुत घुटन है

बहुत घुटन है कोई सूरत-ए-बयाँ निकले
अगर सदा न उठे कम से कम फ़ुग़ाँ निकले

फ़क़ीर-ए-शहर के तन पर लिबास बाक़ी है
अमीर-ए-शहर के अरमाँ अभी कहाँ निकले

हक़ीक़तें हैं सलामत तो ख़्वाब बहुतेरे
उदास क्यूँ हो जो कुछ ख़्वाब राएगाँ निकले

वो फ़लसफ़े जो हर इक आस्ताँ के दुश्मन थे
अमल में आए तो ख़ुद वक़्फ़-ए-आस्ताँ निकले

इधर भी ख़ाक उड़ी है उधर भी ज़ख़्म पड़े
जिधर से हो के बहारों के कारवाँ निकले

सितम के दौर में हम अहल-ए-दिल ही काम आए
ज़बाँ पे नाज़ था जिन को वो बे-ज़बाँ निकले

--- साहिर लुधियानवी

17 जनवरी 2020

ये तसल्ली है कि हैं नाशाद सब

ये तसल्ली है कि हैं नाशाद सब
मैं अकेला ही नहीं बरबाद सब

सब की ख़तिर है यहाँ सब अजनबी
और कहने को हैं घर आबाद सब

भूल के सब रंजिशें सब एक हैं
मैं बताऊँ सब को होगा याद सब

सब को दावा-ए-वफ़ा सब को यक़ीं
इस अदकारी में हैं उस्ताद सब

शहर के हाकिम का ये फ़रमान है
क़ैद में कहलायेंगे आज़ाद सब

चार लफ़्ज़ों में कहो जो भी कहो
उसको कब फ़ुरसत सुने फ़रियाद सब

तल्ख़ियाँ कैसे न हो अशार में
हम पे जो गुज़री है हम को याद सब

---जावेद अख़्तर

8 जनवरी 2020

ख़ून फिर ख़ून है

ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है बढ़ता है तो मिट जाता है
ख़ून फिर ख़ून है टपकेगा तो जम जाएगा

ख़ाक-ए-सहरा पे जमे या कफ़-ए-क़ातिल पे जमे
फ़र्क़-ए-इंसाफ़ पे या पा-ए-सलासिल पे जमे
तेग़-ए-बे-दाद पे या लाशा-ए-बिस्मिल पे जमे
ख़ून फिर ख़ून है टपकेगा तो जम जाएगा

लाख बैठे कोई छुप-छुप के कमीं-गाहों में
ख़ून ख़ुद देता है जल्लादों के मस्कन का सुराग़
साज़िशें लाख उड़ाती रहीं ज़ुल्मत की नक़ाब
ले के हर बूँद निकलती है हथेली पे चराग़

ज़ुल्म की क़िस्मत-ए-नाकारा-ओ-रुस्वा से कहो
जब्र की हिकमत-ए-परकार के ईमा से कहो
महमिल-ए-मज्लिस-ए-अक़्वाम की लैला से कहो
ख़ून दीवाना है दामन पे लपक सकता है

शोला-ए-तुंद है ख़िर्मन पे लपक सकता है
तुम ने जिस ख़ून को मक़्तल में दबाना चाहा
आज वो कूचा ओ बाज़ार में आ निकला है
कहीं शोला कहीं नारा कहीं पत्थर बन कर

ख़ून चलता है तो रुकता नहीं संगीनों से
सर उठाता है तो दबता नहीं आईनों से
ज़ुल्म की बात ही क्या ज़ुल्म की औक़ात ही क्या
ज़ुल्म बस ज़ुल्म है आग़ाज़ से अंजाम तलक

ख़ून फिर ख़ून है सौ शक्ल बदल सकता है
ऐसी शक्लें कि मिटाओ तो मिटाए न बने
ऐसे शोले कि बुझाओ तो बुझाए न बने
ऐसे नारे कि दबाओ तो दबाए न बने

---साहिर लुधियानवी

28 दिसंबर 2019

काफ़िर हूँ सर-फिरा हूँ मुझे मार दीजिए

काफ़िर हूँ सर-फिरा हूँ मुझे मार दीजिए
मैं सोचने लगा हूँ मुझे मार दीजिए
है एहतिराम-ए-हज़रत-ए-इंसान मेरा दीन
बे-दीन हो गया हूँ मुझे मार दीजिए

मैं पूछने लगा हूँ सबब अपने क़त्ल का
मैं हद से बढ़ गया हूँ मुझे मार दीजिए
करता हूँ अहल-ए-जुब्बा-ओ-दस्तार से सवाल
गुस्ताख़ हो गया हूँ मुझे मार दीजिए

ख़ुशबू से मेरा रब्त है जुगनू से मेरा काम
कितना भटक गया हूँ मुझे मार दीजिए
मा'लूम है मुझे कि बड़ा जुर्म है ये काम
मैं ख़्वाब देखता हूँ मुझे मार दीजिए

ज़ाहिद ये ज़ोहद-ओ-तक़्वा-ओ-परहेज़ की रविश
मैं ख़ूब जानता हूँ मुझे मार दीजिए
बे-दीन हूँ मगर हैं ज़माने में जितने दीन
मैं सब को मानता हूँ मुझे मार दीजिए

फिर उस के बा'द शहर में नाचेगा हू का शोर
मैं आख़िरी सदा हूँ मुझे मार दीजिए
मैं ठीक सोचता हूँ कोई हद मेरे लिए
मैं साफ़ देखता हूँ मुझे मार दीजिए

ये ज़ुल्म है कि ज़ुल्म को कहता हूँ साफ़ ज़ुल्म
क्या ज़ुल्म कर रहा हूँ मुझे मार दीजिए
ज़िंदा रहा तो करता रहूँगा हमेशा प्यार
मैं साफ़ कह रहा हूँ मुझे मार दीजिए

जो ज़ख़्म बाँटते हैं उन्हें ज़ीस्त पे है हक़
मैं फूल बाँटता हूँ मुझे मार दीजिए
बारूद का नहीं मिरा मस्लक दरूद है
मैं ख़ैर माँगता हूँ मुझे मिरा दीजिए

---अहमद फ़रहाद

4 दिसंबर 2019

नयी-नयी आँखें हों

नयी-नयी आँखें हों तो हर मंज़र अच्छा लगता है
कुछ दिन शहर में घूमे लेकिन, अब घर अच्छा लगता है ।

मिलने-जुलनेवालों में तो सारे अपने जैसे हैं
जिससे अब तक मिले नहीं वो अक्सर अच्छा लगता है ।

मेरे आँगन में आये या तेरे सर पर चोट लगे
सन्नाटों में बोलनेवाला पत्थर अच्छा लगता है ।

चाहत हो या पूजा सबके अपने-अपने साँचे हैं
जो मूरत में ढल जाये वो पैकर अच्छा लगता है ।

हमने भी सोकर देखा है नये-पुराने शहरों में
जैसा भी है अपने घर का बिस्तर अच्छा लगता है ।

--- निदा फ़ाज़ली

22 नवंबर 2019

'शायरी मैंने ईजाद की'

काग़ज़ मराकेशों ने ईजाद किया
हुरूफ़ फ़ोनेशनों ने
शायरी मैंने ईजाद की

क़ब्र खोदने वाले ने तंदूर ईजाद किया
तंदूर पर क़ब्ज़ा करने वालों ने रोटी की पर्ची बनाई
रोटी लेने वाले ने क़तार ईजाद की
और मिलकर गाना सीखा

रोटी की क़तार में जब चींटियाँ आ कर खड़ी हो गईं
तो फ़ाक़ा ईजाद हो गया
शहतूत बेचने वाले ने रेशम का कीड़ा ईजाद किया
शायरी ने रेशम से लड़कियों के लिए लिबास बनाया
रेशम में मलबूस लड़कियों के लिए कुटनियों ने महलसरा ईजाद की
जहाँ जाकर उन्होंने रेशम के कीड़े का पता बता दिया

फ़ासले ने घोड़े के चार पाँव ईजाद किए
तेज़ रफ़तारी ने रथ बनाया
और जब शिकस्त ईजाद हुई
तो मुझे तेज़ रफ़्तार रथ के आगे लिटा दिया गया

मगर उस वक़्त तक शायरी मुहब्बत को ईजाद कर चुकी थी
मुहब्बत ने दिल ईजाद किया
दिल ने ख़ेमा और कश्तियाँ बनाईं
और दूर-दराज़ के मक़ामात तय किए

ख़्वाजासरा ने मछली पकड़ने का कांटा ईजाद किया
और सोये हुए दिल में चुभोकर भाग गया
दिल में चुभे हुए कांटे की डोर थामने के लिए
नीलामी ईजाद हुई

और
जब्र ने आख़री बोली ईजाद की
मैंने सारी शायरी बेच कर आग ख़रीदी
और जब्र का हाथ ज़ला दिया
--- अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

12 अक्तूबर 2019

जो हुआ सो हुआ

उठ के कपड़े बदल
उठ के कपड़े बदल
घर से बाहर निकल
जो हुआ सो हुआ॥

जब तलक साँस है
भूख है प्यास है
ये ही इतिहास है
रख के कांधे पे हल
खेत की ओर चल
जो हुआ सो हुआ॥

खून से तर-ब-तर
कर के हर राहगुज़र
थक चुके जानवर
लड़कियों की तरह
फिर से चूल्हे में जल
जो हुआ सो हुआ॥

जो मरा क्यों मरा
जो जला क्यों जला
जो लुटा क्यों लुटा
मुद्दतों से हैं गुम
इन सवालों के हल
जो हुआ सो हुआ॥

मंदिरों में भजन
मस्ज़िदों में अज़ाँ
आदमी है कहाँ
आदमी के लिए
एक ताज़ा ग़ज़ल
जो हुआ सो हुआ।।

--- निदा फ़ाज़ली

2 अक्तूबर 2019

ऐ शरीफ़ इंसानो

खून अपना हो या पराया हो
नस्ले आदम का खून है आखिर
जंग मशरिक में हो कि मगरिब में
अमने आलम का खून है आखिर

बम घरों पर गिरें के सरहद पर
रूहे तामीर जख्म खाती है
खेत अपने जलें कि औरों के
जीस्त फाकोंसे तिलमिलाती है

टैंक आगे बढ़ें के पीछे हटें
कोख धरती की बांझ होती है
फतह का जश्नहो कि हार का सोग
जिंदगी मीयतों पे रोती है

जंग तो खुद एक मसअला है
जंग क्या मसअलों का हल देगी
आग और खून आज बख्शेगी
भूख और ऐतजाज़ कल देगी

इस लिऐ ऐ शरीफ इन्सानो
जंग टलती रहे तो बेहतर है
आप और हम सभी के आंगन में
शमा जलती रहे तो बेहतर है

---साहिर लुधियानवी

5 सितंबर 2019

दस्तूर

दीप जिस का महल्लात ही में जले
चंद लोगों की ख़ुशियों को ले कर चले
वो जो साए में हर मस्लहत के पले
ऐसे दस्तूर को सुब्ह-ए-बे-नूर को

मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
मैं भी ख़ाइफ़ नहीं तख़्ता-ए-दार से
मैं भी मंसूर हूँ कह दो अग़्यार से
क्यूँ डराते हो ज़िंदाँ की दीवार से

ज़ुल्म की बात को जहल की रात को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
फूल शाख़ों पे खिलने लगे तुम कहो
जाम रिंदों को मिलने लगे तुम कहो

चाक सीनों के सिलने लगे तुम कहो
इस खुले झूट को ज़ेहन की लूट को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
तुम ने लूटा है सदियों हमारा सुकूँ

अब न हम पर चलेगा तुम्हारा फ़ुसूँ
चारागर दर्दमंदों के बनते हो क्यूँ
तुम नहीं चारागर कोई माने मगर
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
---हबीब जालिब

10 अगस्त 2019

जिहाल-ए-मिस्कीं

जिहाल-ए-मिस्कीं मुकों बा-रंजिश, बहार-ए-हिजरा बेचारा दिल है,
सुनाई देती हैं जिसकी धड़कन, तुम्हारा दिल या हमारा दिल है।

वो आके पेहलू में ऐसे बैठे, के शाम रंगीन हो गयी हैं,
ज़रा ज़रा सी खिली तबियत, ज़रा सी ग़मगीन हो गयी हैं।

कभी कभी शाम ऐसे ढलती है जैसे घूंघट उतर रहा है,
तुम्हारे सीने से उठता धुवा हमारे दिल से गुज़र रहा है।

ये शर्म है या हया है, क्या है, नज़र उठाते ही झुक गयी है,
तुम्हारी पलकों से गिरती शबनम हमारी आंखों में रुक् गयी है।

--- गुलज़ार

4 अगस्त 2019

धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो

धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो

वो सितारा है चमकने दो यूँ ही आँखों में
क्या ज़रूरी है उसे जिस्म बनाकर देखो

पत्थरों में भी ज़ुबाँ होती है दिल होते हैं
अपने घर की दर-ओ-दीवार सजा कर देखो

फ़ासला नज़रों का धोखा भी तो हो सकता है
वो मिले या न मिले हाथ बढा़ कर देखो

--- निदा फ़ाज़ली

17 अप्रैल 2019

मुँह की बात

मुँह की बात सुने हर कोई
दिल के दर्द को जाने कौन
आवाज़ों के बाज़ारों में
ख़ामोशी पहचाने कौन ।

सदियों-सदियों वही तमाशा
रस्ता-रस्ता लम्बी खोज
लेकिन जब हम मिल जाते हैं
खो जाता है जाने कौन ।

जाने क्या-क्या बोल रहा था
सरहद, प्यार, किताबें, ख़ून
कल मेरी नींदों में छुपकर
जाग रहा था जाने कौन ।

मैं उसकी परछाई हूँ या
वो मेरा आईना है
मेरे ही घर में रहता है
मेरे जैसा जाने कौन ।

किरन-किरन अलसाता सूरज
पलक-पलक खुलती नींदें
धीमे-धीमे बिखर रहा है
ज़र्रा-ज़र्रा जाने कौन ।

--- निदा फ़ाज़ली

7 अप्रैल 2019

अमीर खुसरो की रचनाएं

जब यार देखा नैन भर
जब यार देखा नैन भर दिल की गई चिंता उतर
ऐसा नहीं कोई अजब राखे उसे समझाए कर ।

जब आँख से ओझल भया, तड़पन लगा मेरा जिया
हक्का इलाही क्या किया, आँसू चले भर लाय कर ।

तू तो हमारा यार है, तुझ पर हमारा प्यार है
तुझ दोस्ती बिसियार है एक शब मिली तुम आय कर ।

जाना तलब तेरी करूँ दीगर तलब किसकी करूँ
तेरी जो चिंता दिल धरूँ, एक दिन मिलो तुम आय कर ।

मेरी जो मन तुम ने लिया, तुम उठा गम को दिया
तुमने मुझे ऐसा किया, जैसा पतंगा आग पर ।

खुसरो कहै बातों ग़ज़ब, दिल में न लावे कुछ अजब
कुदरत खुदा की है अजब, जब जिव दिया गुल लाय कर ।

. *********

छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाएके
प्रेम भटी का मधवा पिलाके मतवारी करलीनी रे
गोरी गोरी बय्यां हरी हरी चूरीयां
बय्यां पकड़ धरलीनी रे मोसे नैना मिलाएके
बल बल जाऊं मैं तोरे रंग रेजवा
अपनी सी करलीनी रे मो से नैना मिलाएके
खुसरो निजाम के बल बल जाईय्ये
मोहे सुहागन कीनी रे मो से नैना मिलाएके

. **********************

बहुत कठिन है डगर पनघट की ।
कैसे मैं भर लाउं मधवा से मटकी ?
पनिया भरन को मैं जो गइ थी ।
दोड़ झपट मोरा मटकी पटकी ।
खुसरो निजाम के बल बल जाईय्ये ।
लाज रखो मोरे घुंघट पट की ।

. *************

तोरी सूरत के बलिहारी, निजाम,
तोरी सूरत के बलिहारी ।
सब सखियन में चुनर मेरी मैली,
देख हसें नर नारी, निजाम...
अबके बहार चुनर मोरी रंग दे,
पिया रखले लाज हमारी, निजाम....
सदका बाबा गंज शकर का,
रख ले लाज हमारी, निजाम...
कुतब, फरीद मिल आए बराती,
खुसरो राजदुलारी, निजाम...
कौउ सास कोउ ननद से झगड़े,
हमको आस तिहारी, निजाम,
तोरी सूरत के बलिहारी, निजाम...

. *************

--- अमीर ख़ुसरो

14 फ़रवरी 2019

ना हो ज़ुर्रत तो मोहब्बत नहीं मिलती

दिल में ना हो ज़ुर्रत तो मोहब्बत नहीं मिलती
ख़ैरात में इतनी बङी दौलत नहीं मिलती

कुछ लोग यूँही शहर में हमसे भी ख़फा हैं
हर एक से अपनी भी तबीयत नहीं मिलती

देखा था जिसे मैंने कोई और था शायद
वो कौन है जिससे तेरी सूरत नहीं मिलती

हंसते हुए चेहरों से है बाज़ार की ज़ीनत
रोने को यहाँ वैसे भी फुरसत नहीं मिलती

--- निदा फ़ाज़ली

25 जनवरी 2019

परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता

परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता

बडे लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहां दरिया समन्दर में मिले, दरिया नहीं रहता

हजारों शेर मेरे सो गये कागज की कब्रों में
अजब मां हूं कोई बच्चा मेरा ज़िन्दा नहीं रहता

तुम्हारा शहर तो बिल्कुल नये अन्दाज वाला है
हमारे शहर में भी अब कोई हमसा नहीं रहता

मोहब्बत एक खुशबू है, हमेशा साथ रहती है
कोई इन्सान तन्हाई में भी कभी तन्हा नहीं रहता

कोई बादल हरे मौसम का फ़िर ऐलान करता है
ख़िज़ा के बाग में जब एक भी पत्ता नहीं रहता |

--- बशीर बद्र

24 जनवरी 2019

हुआ सवेरा

हुआ सवेरा
ज़मीन पर फिर अदब
से आकाश
अपने सर को झुका रहा है
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं
नदी में स्नान करने सूरज
सुनारी मलमल की
पगड़ी बाँधे
सड़क किनारे
खड़ा हुआ मुस्कुरा रहा है
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं
हवाएँ सर-सब्ज़ डालियों में
दुआओं के गीत गा रही हैं
महकते फूलों की लोरियाँ
सोते रास्तों को जगा रही
घनेरा पीपल,
गली के कोने से हाथ अपने
हिला रहा है
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं
फ़रिश्ते निकले रोशनी के
हर एक रस्ता चमक रहा है
ये वक़्त वो है
ज़मीं का हर ज़र्रा
माँ के दिल सा धड़क रहा है
पुरानी इक छत पे वक़्त बैठा
कबूतरों को उड़ा रहा है
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं
बच्चे स्कूल जा रहे हैं....

--- निदा फ़ाज़ली