Officially the heart
is oblong, muscular,
and filled with longing.
But anyone who has painted the heart knows
that it is also
spiked like a star
and sometimes bedraggled
like a stray dog at night
and sometimes powerful
like an archangel’s drum.
And sometimes cube-shaped
like a draughtsman’s dream
and sometimes gaily round
like a ball in a net.
And sometimes like a thin line
and sometimes like an explosion.
And in it is
only a river,
a weir
and at most one little fish
by no means golden.
More like a grey
jealous
loach.
It certainly isn’t noticeable
at first sight.
Anyone who has painted the heart knows
that first he had to
discard his spectacles,
his mirror,
throw away his fine-point pencil
and carbon paper
and for a long while
walk
outside.
– Miroslav Holub, trans. from Czech by Ewald Osers
31 दिसंबर 2011
29 दिसंबर 2011
क्यों करें हम
नया एक रिश्ता पैदा क्यों करें हम
बिछड़ना है तो झगडा क्यों करें हम
ख़ामोशी से अदा हो रस्मे-दूरी
कोई हंगामा बरपा क्यों करें हम
ये काफी है कि हम दुश्मन नहीं हैं
वफादारी का दावा क्यों करें हम
वफ़ा इखलास* कुर्बानी मोहब्बत
अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यों करें हम
सुना दें इस्मते-मरियम का किस्सा
पर अब इस बाब को वा क्यों करें हम
ज़ुलेखा-ए-अजीजाँ बात ये है
भला घाटे का सौदा क्यों करें हम
हमारी ही तमन्ना क्यों करो तुम
तुम्हारी ही तमन्ना क्यों करें हम
किया था अहद जब लम्हों में हमने
तो सारी उम्र इफा क्यों करें हम
उठा कर क्यों न फेंकें सारी चीज़ें
फकत कमरों में टहला क्यों करें हम
नहीं दुनिया को जब परवाह हमारी
तो दुनिया की परवाह क्यों करें हम
बरहना हैं सरे बाज़ार तो क्या
भला अंधों से परा क्यों करें हम
हैं बाशिंदे इसी बस्ती के हम भी
सो खुद पर भी भरोसा क्यों करें हम
पड़ी रहने दो इंसानों की लाशें
ज़मीं का बोझ हल्का क्यों करें हम
ये बस्ती है मुसलामानों की बस्ती
यहाँ कारे-मसीहा क्यों करें हम
-: जौन एलिया
बिछड़ना है तो झगडा क्यों करें हम
ख़ामोशी से अदा हो रस्मे-दूरी
कोई हंगामा बरपा क्यों करें हम
ये काफी है कि हम दुश्मन नहीं हैं
वफादारी का दावा क्यों करें हम
वफ़ा इखलास* कुर्बानी मोहब्बत
अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यों करें हम
सुना दें इस्मते-मरियम का किस्सा
पर अब इस बाब को वा क्यों करें हम
ज़ुलेखा-ए-अजीजाँ बात ये है
भला घाटे का सौदा क्यों करें हम
हमारी ही तमन्ना क्यों करो तुम
तुम्हारी ही तमन्ना क्यों करें हम
किया था अहद जब लम्हों में हमने
तो सारी उम्र इफा क्यों करें हम
उठा कर क्यों न फेंकें सारी चीज़ें
फकत कमरों में टहला क्यों करें हम
नहीं दुनिया को जब परवाह हमारी
तो दुनिया की परवाह क्यों करें हम
बरहना हैं सरे बाज़ार तो क्या
भला अंधों से परा क्यों करें हम
हैं बाशिंदे इसी बस्ती के हम भी
सो खुद पर भी भरोसा क्यों करें हम
पड़ी रहने दो इंसानों की लाशें
ज़मीं का बोझ हल्का क्यों करें हम
ये बस्ती है मुसलामानों की बस्ती
यहाँ कारे-मसीहा क्यों करें हम
-: जौन एलिया
ये सोचा नहीं है किधर जाएँगे
ये सोचा नहीं है किधर जाएँगे
मगर हम यहाँ से गुज़र जाएँगे
इसी खौफ से नींद आती नहीं
कि हम ख्वाब देखेंगे डर जाएँगे
डराता बहुत है समन्दर हमें
समन्दर में इक दिन उतर जाएँगे
जो रोकेगी रस्ता कभी मंज़िलें
घड़ी दो घड़ी को ठहर जाएँगे
कहाँ देर तक रात ठहरी कोई
किसी तरह ये दिन गुज़र जाएँगे
इसी खुशगुमानी ने तनहा किया
जिधर जाऊँगा, हमसफ़र जाएँगे
बदलता है सब कुछ तो 'आलम' कभी
ज़मीं पर सितारे बिखर जाएँगे
--'आलम खुर्शीद'
मगर हम यहाँ से गुज़र जाएँगे
इसी खौफ से नींद आती नहीं
कि हम ख्वाब देखेंगे डर जाएँगे
डराता बहुत है समन्दर हमें
समन्दर में इक दिन उतर जाएँगे
जो रोकेगी रस्ता कभी मंज़िलें
घड़ी दो घड़ी को ठहर जाएँगे
कहाँ देर तक रात ठहरी कोई
किसी तरह ये दिन गुज़र जाएँगे
इसी खुशगुमानी ने तनहा किया
जिधर जाऊँगा, हमसफ़र जाएँगे
बदलता है सब कुछ तो 'आलम' कभी
ज़मीं पर सितारे बिखर जाएँगे
--'आलम खुर्शीद'
6 दिसंबर 2011
6 दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे
राम बनवास से जब लौट के घर में आये,
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आये,
रक्स-ए-दीवानगी आँगन में जो देखा होगा,
6 दिसम्बर को श्री राम ने सोचा होगा,
इतने दीवाने कहाँ से मेरे घर में आये?
जगमगाते थे जहाँ राम के क़दमों के निशाँ,
प्यार की कहकशां लेती थी अंगड़ाई जहाँ,
मोड़ नफरत के उसी रह गुज़र में आये,
धरम क्या उनका है, क्या ज़ात है, ये जानता कौन?
घर न जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन,
घर जलने को मेरा, लोग जो घर में आये,
शाकाहारी है मेरे दोस्त तुम्हारा खंजर.
तुमने बाबर की तरफ फेके थे सारे पत्थर,
है मेरे सर की खता ज़ख्म जो सर में आये,
पावँ सरजू में अभी राम ने धोये भी न थे,
के नज़र आये वहां खून के गहरे धब्बे,
पावँ धोये बिना सरजू के किनारे से उठे,
राम ये कहते हुए अपने द्वारे से उठे,
राजधानी की फिजा आयी नहीं रास मुझे,
6 दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे.
by Kaifi Azmi
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आये,
रक्स-ए-दीवानगी आँगन में जो देखा होगा,
6 दिसम्बर को श्री राम ने सोचा होगा,
इतने दीवाने कहाँ से मेरे घर में आये?
जगमगाते थे जहाँ राम के क़दमों के निशाँ,
प्यार की कहकशां लेती थी अंगड़ाई जहाँ,
मोड़ नफरत के उसी रह गुज़र में आये,
धरम क्या उनका है, क्या ज़ात है, ये जानता कौन?
घर न जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन,
घर जलने को मेरा, लोग जो घर में आये,
शाकाहारी है मेरे दोस्त तुम्हारा खंजर.
तुमने बाबर की तरफ फेके थे सारे पत्थर,
है मेरे सर की खता ज़ख्म जो सर में आये,
पावँ सरजू में अभी राम ने धोये भी न थे,
के नज़र आये वहां खून के गहरे धब्बे,
पावँ धोये बिना सरजू के किनारे से उठे,
राम ये कहते हुए अपने द्वारे से उठे,
राजधानी की फिजा आयी नहीं रास मुझे,
6 दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे.
by Kaifi Azmi
14 नवंबर 2011
Mind has no color
Mind has no color,
Is neither long nor short,
Doesn't appear or disappear;
It is free from both purity and impurity;
It was never born and can never die;
It is utterly serene.
This is the form of our
Original mind,
Which is also our original body.
- Hui-hai (8th cent)
Is neither long nor short,
Doesn't appear or disappear;
It is free from both purity and impurity;
It was never born and can never die;
It is utterly serene.
This is the form of our
Original mind,
Which is also our original body.
- Hui-hai (8th cent)
12 नवंबर 2011
No man is an island
No man is an island,
Entire of itself.
Each is a piece of the continent,
A part of the main.
If a clod be washed away by the sea,
Europe is the less.
As well as if a promontory were.
As well as if a manor of thine own
Or of thine friend's were.
Each man's death diminishes me,
For I am involved in mankind.
Therefore, send not to know
For whom the bell tolls,
It tolls for thee.
---John Donne
Entire of itself.
Each is a piece of the continent,
A part of the main.
If a clod be washed away by the sea,
Europe is the less.
As well as if a promontory were.
As well as if a manor of thine own
Or of thine friend's were.
Each man's death diminishes me,
For I am involved in mankind.
Therefore, send not to know
For whom the bell tolls,
It tolls for thee.
---John Donne
11 नवंबर 2011
Advice to Women
Keep cats
if you want to learn to cope with
the otherness of lovers.
Otherness is not always neglect --
Cats return to their litter trays
when they need to.
Don't cuss out of the window
at their enemies.
That stare of perpetual surprise
in those great green eyes
will teach you
to die alone.
---Eunice deSouza
if you want to learn to cope with
the otherness of lovers.
Otherness is not always neglect --
Cats return to their litter trays
when they need to.
Don't cuss out of the window
at their enemies.
That stare of perpetual surprise
in those great green eyes
will teach you
to die alone.
---Eunice deSouza
1 नवंबर 2011
ज़िन्दगी ना मिलेगी दोबारा.
जब जब दर्द का बादल छाया
जब गम का साया लैहराया
जब आँसू पलकों तक आया
जब ये तन्हा दिल घबराया
हमने दिल को ये समझाया
दिल आखिर तू क्यों रोता है
दुनिया मे यूँ ही होता है
ये जो गहरे सऩ्नाटे हैं
वक़्त ने सबको ही बाँटे हैं
थोड़ा गम है सबका किस्सा
थोड़ी धूप है सबका हिस्सा
आँख तेरी बेकार ही नम हैं
हर पल एक नय़ा मौसम है
क्यों तु ऐसे पल खोता है
दिल आखिर तू क्यों रोता है....
ऐक बात होटों तक है जो आइ नहीं
बस आँखों से है झाँकती
तुमसे कभी, मुझसे कभी
कुछ लव्ज़ हैं वो माँगती
जिनको पहन के होटों तक आ जाए वो
आवाज़ की बाहों मे बाहें डाले इठलाए वो
लेकिन जो ये एक बात है
ऐहसास ही ऐहसास है
खुशबू सी है जैसे हवा में तैरती
खुशबू जो बेआवाज़ है
जिसका पता तुमको भी है
जिसकी खबर मुझको भी है
दुनिया से भी छुपता नहीं
ये जाने कैसा राज़ है....
पिघले नीलम सा बेहता हुआ ये समा
नीली नीली सी खामोशियाँ
ना कहीं है ज़मीन
ना कहीं है आसमां
सरसराती हुई तनहाइयां,
पत्तियां कह रही हैं की बस ऐक तुम हो यहाँ
सिर्फ मैं हूँ मेरी साँसे हैं और मेरी धड़कनें
ऐसी गहराइयाँ
ऐसी तनहाइयां
और मैं सिर्फ मैं
अपने होने पे मुझको यकीन आ गया...
दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो
तो ज़िन्दा हो तुम
नज़र में ख्वाबों की बिजलियाँ लेके चल रहे हो
तो ज़िन्दा हो तुम
हवा के झोंकों के जैसे
आज़ाद रहना सीखो
तुम एक दरिया के जैसे
लहरों में बहना सीखो
हर एक लमहे से मिलो
खोले अपनी बाँहें
हर एक पल एक नया समा
देखे ये निगांहे
जो अपनी आँखों मे हैरानियाँ लेके चल रहे हो
तो ज़िन्दा हो तुम
दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो
तो ज़िन्दा हो तुम....
- जावेद अख़्तर
जब गम का साया लैहराया
जब आँसू पलकों तक आया
जब ये तन्हा दिल घबराया
हमने दिल को ये समझाया
दिल आखिर तू क्यों रोता है
दुनिया मे यूँ ही होता है
ये जो गहरे सऩ्नाटे हैं
वक़्त ने सबको ही बाँटे हैं
थोड़ा गम है सबका किस्सा
थोड़ी धूप है सबका हिस्सा
आँख तेरी बेकार ही नम हैं
हर पल एक नय़ा मौसम है
क्यों तु ऐसे पल खोता है
दिल आखिर तू क्यों रोता है....
ऐक बात होटों तक है जो आइ नहीं
बस आँखों से है झाँकती
तुमसे कभी, मुझसे कभी
कुछ लव्ज़ हैं वो माँगती
जिनको पहन के होटों तक आ जाए वो
आवाज़ की बाहों मे बाहें डाले इठलाए वो
लेकिन जो ये एक बात है
ऐहसास ही ऐहसास है
खुशबू सी है जैसे हवा में तैरती
खुशबू जो बेआवाज़ है
जिसका पता तुमको भी है
जिसकी खबर मुझको भी है
दुनिया से भी छुपता नहीं
ये जाने कैसा राज़ है....
पिघले नीलम सा बेहता हुआ ये समा
नीली नीली सी खामोशियाँ
ना कहीं है ज़मीन
ना कहीं है आसमां
सरसराती हुई तनहाइयां,
पत्तियां कह रही हैं की बस ऐक तुम हो यहाँ
सिर्फ मैं हूँ मेरी साँसे हैं और मेरी धड़कनें
ऐसी गहराइयाँ
ऐसी तनहाइयां
और मैं सिर्फ मैं
अपने होने पे मुझको यकीन आ गया...
दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो
तो ज़िन्दा हो तुम
नज़र में ख्वाबों की बिजलियाँ लेके चल रहे हो
तो ज़िन्दा हो तुम
हवा के झोंकों के जैसे
आज़ाद रहना सीखो
तुम एक दरिया के जैसे
लहरों में बहना सीखो
हर एक लमहे से मिलो
खोले अपनी बाँहें
हर एक पल एक नया समा
देखे ये निगांहे
जो अपनी आँखों मे हैरानियाँ लेके चल रहे हो
तो ज़िन्दा हो तुम
दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो
तो ज़िन्दा हो तुम....
- जावेद अख़्तर
28 सितंबर 2011
जुस्तजू खोये हुओं की
जुस्तजू खोये हुओं की उम्र भर करते रहे
चाँद के हमराह हम हर शब सफ़र करते रहे
रास्तों का इल्म था हम को न सिम्तों की ख़बर
शहर-ए-नामालूम की चाहत मगर करते रहे
हम ने ख़ुद से भी छुपाया और सारे शहर से
तेरे जाने की ख़बर दर-ओ-दिवार करते रहे
वो न आयेगा हमें मालूम था उस शाम भी
इंतज़ार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे
आज आया है हमें भी उन उड़ानों का ख़याल
जिन को तेरे ज़ौम में बे-बाल-ओ-पर करते रहे|
- परवीन शाकिर
चाँद के हमराह हम हर शब सफ़र करते रहे
रास्तों का इल्म था हम को न सिम्तों की ख़बर
शहर-ए-नामालूम की चाहत मगर करते रहे
हम ने ख़ुद से भी छुपाया और सारे शहर से
तेरे जाने की ख़बर दर-ओ-दिवार करते रहे
वो न आयेगा हमें मालूम था उस शाम भी
इंतज़ार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे
आज आया है हमें भी उन उड़ानों का ख़याल
जिन को तेरे ज़ौम में बे-बाल-ओ-पर करते रहे|
- परवीन शाकिर
20 सितंबर 2011
दोस्त बनकर भी नहीं साथ निभाने वाला
दोस्त बनकर भी नहीं साथ निभाने वाला
वो ही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला।
क्या कहें कितने मरासिम थे हमारे उससे
वो जो इक शख़्स है मुँह फेर के जाने वाला।
क्या ख़बर थी जो मेरी जाँ में घुला रहता है
है वही मुझको सर-ए-दार भी लाने वाला।
मैंने देखा है बहारों में चमन को जलते
है कोई ख़्वाब की ताबीर बताने वाला।
तुम तक़ल्लुफ़ को भी इख़लास समझते हो ‘फ़राज़’
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला।
–
मरासिम = Relations, Agreements
सर-ए-दार = At the Tomb
ताबीर = Interpretation
तक़ल्लुफ़ = Formality
इख़लास = Sincerity, Love, Selfless Worship
---अहमद फ़राज़
वो ही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला।
क्या कहें कितने मरासिम थे हमारे उससे
वो जो इक शख़्स है मुँह फेर के जाने वाला।
क्या ख़बर थी जो मेरी जाँ में घुला रहता है
है वही मुझको सर-ए-दार भी लाने वाला।
मैंने देखा है बहारों में चमन को जलते
है कोई ख़्वाब की ताबीर बताने वाला।
तुम तक़ल्लुफ़ को भी इख़लास समझते हो ‘फ़राज़’
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला।
–
मरासिम = Relations, Agreements
सर-ए-दार = At the Tomb
ताबीर = Interpretation
तक़ल्लुफ़ = Formality
इख़लास = Sincerity, Love, Selfless Worship
---अहमद फ़राज़
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