20 मार्च 2024

A Country Called Song

I lived in a country called Song:
Countless singing women made me
a citizen,
and musicians from the four corners
composed cities for me with mornings and nights,
and I roamed through my country
like a man roams through the world.

My country is a song,
and as soon as it ends, I go back
to being a refugee

--- Najwan Darwish, 
Tr. by Kareem J. Abu-Zeid

12 मार्च 2024

On Killing A Tree

It takes much time to kill a tree,
Not a simple jab of the knife

Will do it. It has grown
Slowly consuming the earth,
Rising out of it, feeding
Upon its crust, absorbing
Years of sunlight, air, water,
And out of its leperous hide
Sprouting leaves.

So hack and chop
But this alone wont do it.
Not so much pain will do it.
The bleeding bark will heal
And from close to the ground
Will rise curled green twigs,
Miniature boughs
Which if unchecked will expand again
To former size.

No,
The root is to be pulled out -
Out of the anchoring earth;
It is to be roped, tied,
And pulled out - snapped out
Or pulled out entirely,
Out from the earth-cave,
And the strength of the tree exposed,
The source, white and wet,
The most sensitive, hidden
For years inside the earth.

Then the matter
Of scorching and choking
In sun and air,
Browning, hardening,
Twisting, withering,
And then it is done.

-- Gieve Patel
(From POEMS, published by Nissim Ezekiel, Bombay 1966)

6 मार्च 2024

धीरे-धीरे

भरी हुई बोतलों के पास
ख़ाली गिलास-सा
मैं रख दिया गया हूँ।
धीरे-धीरे अँधेरा आएगा
और लड़खड़ाता हुआ
मेरे पास बैठ जाएगा।
वह कुछ कहेगा नहीं
मुझे बार-बार भरेगा
ख़ाली करेगा,
भरेगा—ख़ाली करेगा,
और अंत में
ख़ाली बोतलों के पास
ख़ाली गिलास-सा
छोड़ जाएगा।

--- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

29 फ़रवरी 2024

जब माँएँ नहीं होतीं

जिन बच्चों की माँएँ नहीं होतीं
उनकी रेलगाड़ियाँ कहाँ जाती हैं
धड़धड़ाती हुईं
सीटी बजाती हुईं
धुआँ उड़ाती हुईं
उनके इंतज़ार में शिद्दत से बिछी आँखों को
फिर वे कहाँ खोजने जाते हैं
आँचल का वह सिरा
उन हाथों का स्पर्श
उस अनंत नि:स्वार्थ प्रेम के बिना
वे कैसे जीते हैं
यह जानते हुए भी कि इस दुनिया में
उनसे सबसे ज़्यादा प्यार करने वाली आँखें नहीं रहीं
और दुनिया का सबसे कोमल हृदय
उनके लिए अब और नहीं धड़केगा।

---दीपक जायसवाल

20 फ़रवरी 2024

एक ही फ़ोटो है देश में

एक ही फ़ोटो है देश में
कोई भी विजेता हो
उसके माथे पर
चिपका दी जाती है
हार हो तो
छिपा ली जाती है
एक ही फ़ोटो है देश में।

--- पंकज चतुर्वेदी

14 फ़रवरी 2024

15 बेहतरीन शेर - 9 !!!

1. कुछ खटकता तो है पहलू में मिरे रह रह कर, अब ख़ुदा जाने तिरी याद है या दिल मेरा - जिगर मुरादाबादी

2. जो अक़्ल के मारे थे, अपने भी काम ना आये , दीवानों ने दुनिया की तक़दीर बदल डाली.

3. मरीज़े इश्क़ पर रहमत ख़ुदा की, दर्द बढ़ता गया यूँ यूँ दवा की - मीर तक़ी मीर

4. कोई नयी ज़मीं हो, नया आसमाँ भी हो, ए दिल अब उसके पास चले, वो जहाँ भी हो! - फ़िराक़ गोरखपुरी

5. मदहोश ही रहा मैं जहाने ख़राब में, गूँथी गई थी क्या मेरी मिट्टी शराब में - मुज़तर ख़ैराबादी

6. गिरज़ा में, मन्दिरों में, अज़ानों में बँट गया, एक ही मूल का इन्सान, कई नामों में बँट गया । - निदा फ़ाज़ली

7. उग रहा है दर-ओ-दीवार से सब्ज़ा 'ग़ालिब', हम बयाबाँ में हैं और घर में बहार आई है - मिर्ज़ा ग़ालिब

8. तिरी मौजूदगी में तेरी दुनिया कौन देखेगा, तुझे मेले में सब देखेंगे मेला कौन देखेगा -नज़ीर बनारसी

9. गुल खिलेंगे नए फूलों की नुमाइश होगी, उस सितमगर की मुहब्बत में भी साज़िश होगी -ज़हीर रहमती

10. बच्चों के छोटे हाथों को चांद सितारे छूने दोचार किताबें पढ़ कर यह भी हम जैसे हो जाएंगे ~ निदा फ़ाज़ली

11- उनका जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें, मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहाँ तक पहुँचे - जिगर मुरादाबादी

12- मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा, इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा - अमीर क़ज़लबाश

13- इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना, दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना - ग़ालिब

14- जब भी मिलती है मुझे अजनबी लगती क्यूँ है, ज़िंदगी रोज़ नए रंग बदलती क्यूँ है - शहरयार

15- दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है, मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है -निदा फ़ाज़ली

9 फ़रवरी 2024

The End and the Beginning

After every war
someone has to clean up.
Things won’t
straighten themselves up, after all.

Someone has to push the rubble
to the side of the road,
so the corpse-filled wagons
can pass.

Someone has to get mired
in scum and ashes,
sofa springs,
splintered glass,
and bloody rags.

Someone has to drag in a girder
to prop up a wall.
Someone has to glaze a window,
rehang a door.

Photogenic it’s not,
and takes years.
All the cameras have left
for another war.

We’ll need the bridges back,
and new railway stations.
Sleeves will go ragged
from rolling them up.

Someone, broom in hand,
still recalls the way it was.
Someone else listens
and nods with unsevered head.

But already there are
those nearby
starting to mill about
who will find it dull.

From out of the bushes
sometimes someone still unearths
rusted-out arguments
and carries them to the garbage pile.

Those who knew
what was going on here
must make way for
those who know little.
And less than little.
And finally as little as nothing.

In the grass that has overgrown
causes and effects,
someone must be stretched out
blade of grass in his mouth
gazing at the clouds.

--- Wislawa Szymborska,
 "The End and the Beginning " from Miracle Fair, translated by Joanna Trzeciak.

2 फ़रवरी 2024

We Have Not Long to Love

We have not long to love.
Light does not stay.

The tender things are those
we fold away.

Coarse fabrics are the ones
for common wear.

In silence I have watched you
comb your hair.

Intimate the silence,
dim and warm.

I could but did not, reach
to touch your arm.

I could, but do not, break
that which is still.

(Almost the faintest whisper
would be shrill.)

So moments pass as though
they wished to stay.

We have not long to love.
A night. A day....

26 जनवरी 2024

यक्ष प्रश्न

वे आज नहीं हैं।
जो आज हैं,
वे कल नहीं होंगे।
होने, न होने का क्रम,
इसी तरह चलता रहेगा,
हम हैं, हम रहेंगे,
यह भ्रम भी सदा पलता रहेगा।

सत्य क्या है?
होना या न होना?
या दोनों ही सत्य हैं?
जो है, उसका होना सत्य है,
जो नहीं है, उसका न होना सत्य है।
मुझे लगता है कि
होना-न-होना एक ही सत्य के
दो आयाम हैं,
शेष सब समझ का फेर,
बुद्धि के व्यायाम हैं।
किन्तु न होने के बाद क्या होता है,
यह प्रश्न अनुत्तरित है।

प्रत्येक नया नचिकेता,
इस प्रश्न की खोज में लगा है।
सभी साधकों को इस प्रश्न ने ठगा है।
शायद यह प्रश्न, प्रश्न ही रहेगा।
यदि कुछ प्रश्न अनुत्तरित रहें
तो इसमें बुराई क्या है?
हाँ, खोज का सिलसिला न रुके,
धर्म की अनुभूति,
विज्ञान का अनुसंधान,
एक दिन, अवश्य ही
रुद्ध द्वार खोलेगा।
प्रश्न पूछने के बजाय
यक्ष स्वयं उत्तर बोलेगा।

---अटल बिहारी वाजपेयी

19 जनवरी 2024

गीत नया गाता हूं

पहली अनुभूति

बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं
गीत नहीं गाता हूं

पीठ मे छुरी सा चांद, राहू गया रेखा फांद
मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं
गीत नहीं गाता हूं

दूसरी अनुभूति

गीत नया गाता हूं
टूटे हुए तारों से फूटे वासंती स्वर
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पता हूं
गीत नया गाता हूं

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं

--- अटल बिहारी वाजपेयी

14 जनवरी 2024

अल्लाह तेरो नाम

अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम
सब को सन्मति दे भगवान
अल्लाह तेरो नाम

माँगौं का सिन्दूर न छूटे
मां बहनों की आश न टूटे
देह बिना दाता
भटके न प्राण
सब को सन्मति दे भगवान
अल्लाह तेरो नाम

ओ सारे जग के रखवाले
निर्बल को बल देने वाले
बलवानों को दे दे ज्ञान
सब को सन्मति दे भगवान
अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम

अल्लाह तेरो नाम

--- साहिर लुधियानवी

6 जनवरी 2024

जख़्म

इन गलियों से
बेदाग़ गुज़र जाता तो अच्छा था
और अगर
दाग़ ही लगना था तो फिर
कपड़ों पर मासूम रक्त के छींटे नहीं
आत्मा पर
किसी बहुत बड़े प्यार का ज़ख़्म होता
जो कभी न भरता |

~ कुँवर नारायण 

1 जनवरी 2024

अँधेरे के बारे में कुछ वाक्य

अन्धेरे में सबसे बड़ी दिक़्क़त यह थी कि वह क़िताब पढ़ना
नामुमकिन बना देता था ।
पता नहीं शरारतन ऐसा करता था या क़िताब से डरता था
उसके मन में शायद यह संशय होगा कि क़िताब के भीतर
कोई रोशनी कहीं न कहीं छिपी हो सकती है ।
हालाँकि सारी क़िताबों के बारे में ऐसा सोचना
एक क़िस्म का बेहूदा सरलीकरण था ।
ऐसी क़िताबों की संख्या भी दुनिया में कम नहीं ,
जो अन्धेरा पैदा करती थीं
और उसे रोशनी कहती थीं ।
रोशनी के पास कई विकल्प थे
ज़रूरत पड़ने पर जिनका कोई भी इस्तेमाल कर सकता था
ज़रूरत के हिसाब से कभी भी उसको
कम या ज़्यादा किया जा सकता था
ज़रूरत के मुताबिक परदों को खींच कर
या एक छोटा-सा बटन दबा कर
उसे अन्धेरे में भी बदला जा सकता था
एक रोशनी कभी कभी बहुत दूर से चली आती थी हमारे पास
एक रोशनी कहीं भीतर से, कहीं बहुत भीतर से
आती थी और दिमाग को एकाएक रोशन कर जाती थी ।
एक शायर दोस्त रोशनी पर भी शक करता था
कहता था, उसे रेशा-रेशा उधेड़ कर देखो
रोशनी किस जगह से काली है ।
अधिक रोशनी का भी चकाचैंध करता अन्धेरा था ।
अन्धेरे से सिर्फ़ अन्धेरा पैदा होता है यह सोचना ग़लत था
लेकिन अन्धेरे के अनेक चेहरे थे
पाँवर-हाउस की किसी ग्रिड के अचानक बिगड़ जाने पर
कई दिनों तक अंधकार में डूबा रहा
देश का एक बड़ा हिस्सा ।
लेकिन इससे भी बड़ा अन्धेरा था
जो सत्ता की राजनीतिक ज़िद से पैदा होता था
या किसी विश्वशक्ति के आगे घुटने टेक देने वाले
ग़ुलाम दिमाग़ों से !
एक बौद्धिक अँधकार मौका लगते ही सारे देश को
हिंसक उन्माद में झोंक देता था ।
अन्धेरे से जब बहुत सारे लोग डर जाते थे
और उसे अपनी नियति मान लेते थे
कुछ ज़िद्दी लोग हमेशा बच रहते थे समाज में
जो कहते थे कि अन्धेरे समय में अन्धेरे के बारे में गाना ही
रोशनी के बारे में गाना है ।
वो अन्धेरे समय में अन्धेरे के गीत गाते थे ।
अन्धेरे के लिए यही सबसे बड़ा ख़तरा था ।

--- राजेश जोशी

25 दिसंबर 2023

Pater noster

Our Father who art in heaven
Stay there
And we'll stay here on earth
Which is sometimes so pretty
With its mysteries of New York
And its mysteries of Paris
At least as good as that of the Trinity
With its little canal at Ourcq
Its great wall of China
Its river at Morlaix
Its candy canes
With its Pacific Ocean
And its two basins in the Tuileries
With its good children and bad people
With all the wonders of the world
Which are here
Simply on the earth
Offered to everyone
Strewn about
Wondering at the wonder of themselves
And daring not avow it
As a naked pretty girl dares not show herself
With the world's outrageous misfortunes
Which are legion
With legionaries
With torturers
With the masters of this world
The masters with their priests their traitors and their troops
With the seasons
With the years
With the pretty girls and with the old bastards
With the straw of misery rotting in the steel of cannons.”

20 दिसंबर 2023

बहुत कठिन है डगर पनघट की

इधर पत्थर का पूजन है तो इधर है मतलबी सजदा है
यह है मंदिर का शैदाई और यह है मस्जिद का दिलदारा
इसे है स्वर्ग का लालच तो यह जन्नत का मतवाला
इधर भी राह में चक्कर, इधर भी राह में चक्कर
इधर काशी में है पत्थर,उधर काबे में है पत्थर
इधर पत्थर का पूजन है , उधर पत्थर को बोसा है
समझ में कुछ नहीं आता के माजरा क्या है
इधर पंडित अकड़ते हैं के वो काशी में रहता है
उधर हैं शेख जी नादान के वो काबे में रहता है
यानी जैसे मस्ज़िद भीतर अल्लाह बंद
और इश्वर कैद शिवालय में
स्वर्ग में कब्ज़ा पंडित जी का
जन्नत अल्लाह वालन में
राम की पढ़ गयी खींचा तानी
राम पढ़े जंजालन में
अरे बहुत कठिन है डगर पनघट की

--- अमीर खुसरो

14 दिसंबर 2023

WHO'S SINGIN' OVER THERE? ( Ko to tamo peva)

The sun is rising
On a Saturday
The day is breaking
From the distance
Poor folk from all around
Await for the sun's ray
Off to Belgrade,
off to Belgrade
By a Krstich bus,
by a Krstich bus
The people are ready to leave
Eager to set on a journey
But luck they have not
I'm unfortunate
I was born that way
I sing to sing
my pain away
Dear mother, how I wish
That all this was
only a dream.
If these little roses
Could hear the pain of my heart
They would shed a tear or two
To soothe my sorrow.
They would shed a tear or two
To soothe my sorrow.

7 दिसंबर 2023

आजकल नेपथ्य में संभावना है ।

मत कहो, आकाश में कुहरा घना है,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है ।

सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह से,
क्या करोगे, सूर्य का क्या देखना है ।

इस सड़क पर इस क़दर कीचड़ बिछी है,
हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है ।

पक्ष औ' प्रतिपक्ष संसद में मुखर हैं,
बात इतनी है कि कोई पुल बना है

रक्त वर्षों से नसों में खौलता है,
आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना है ।

हो गई हर घाट पर पूरी व्यवस्था,
शौक से डूबे जिसे भी डूबना है ।

दोस्तों ! अब मंच पर सुविधा नहीं है,
आजकल नेपथ्य में संभावना है ।

--- दुष्यंत कुमार

1 दिसंबर 2023

गुलाम

वो तो देवयानी का ही मर्तबा था,
कि सह लिया सांच की आंच,
वरना बहुत लंबी नाक थी ययाति की।

नाक में नासूर है और नाक की फुफकार है,
नाक विद्रोही की भी शमशीर है, तलवार है।

जज़्बात कुछ ऐसा, कि बस सातों समंदर पार है,
ये सर नहीं गुंबद है कोई, पीसा की मीनार है।

और ये गिरे तो आदमीयत का मकीदा गिर पड़ेगा,
ये गिरा तो बलंदियों का पेंदा गिर पड़ेगा,
ये गिरा तो मोहब्बत का घरौंदा गिर पड़ेगा,
इश्क और हुश्न का दोनों की दीदा गिर पड़ेगा।

इसलिए रहता हूं जिंदा
वरना कबका मर चुका हूं,
मैं सिर्फ काशी में ही नहीं 
रूमान में भी बिक चुका हूं।

हर जगह ऐसी ही जिल्लत,
हर जगह ऐसी ही जहालत,
हर जगह पर है पुलिस,
और हर जगह है अदालत।

हर जगह पर है पुरोहित,
हर जगह नरमेध है,
हर जगह कमजोर मारा जा रहा है, खेद है।

सूलियां ही हर जगह हैं, निज़ामों की निशान,
हर जगह पर फांसियां लटकाये जाते हैं गुलाम।

हर जगह औरतों को मारा-पीटा जा रहा है,
जिंदा जलाया जा रहा है,
खोदा-गाड़ा जा रहा है।

हर जगह पर खून है और हर जगह आंसू बिछे हैं,
ये कलम है, सरहदों के पार भी नगमे लिखे हैं।

आपको बतलाऊं मैं इतिहास की शुरुआत को,
और किसलिए बारात दरवाजे पर आई रात को,
और ले गई दुल्हन उठाकर
और मंडप को गिराकर,
एक दुल्हन के लिए आये कई दूल्हे मिलाकर।

और जंग कुछ ऐसा मचाया कि तंग दुनिया हो गई,
और मरने वाले की चिता पर जिंदा औरत सो गई।

और तब बजे घडि़याल,
पड़े शंख-घंटे घनघनाये,
फौजों ने भोंपू बजाये, पुलिस भी तुरही बजाये।
मंत्रोच्चारण यूं हुआ कि मंगल में औरत रचती हो,
जीते जी जलती रहे जिस भी औरत के पति हो।

तब बने बाज़ार और बाज़ार में सामान आये,
और बाद में सामान की गिनती में खुल्ला बिकते थे गुलाम,
सीरिया और काहिरा में पट्टा होते थे गुलाम,
वेतलहम-येरूशलम में गिरवी होते थे गुलाम,
रोम में और कापुआ में रेहन होते थे गुलाम,
मंचूरिया-शंघाई में नीलाम होते थे गुलाम,
मगध-कोशल-काशी में बेनामी होते थे गुलाम,
और सारी दुनिया में किराए पर उठते गुलाम,
पर वाह रे मेरा जमाना और वाह रे भगवा हुकूमत!
अब सरे बाजार में ख़ैरात बंटते हैं गुलाम।

27 नवंबर 2023

Night

I wish the night was short, like my hair,
And that it was bright, like my heart,
And I could tie the distance between us with my life.
These tears are nothing but drops from my eyes,
And now I'm being rusted by them.

Yet the night is long, like my thoughts,
And horrifying, like my dreams,
And the distance as endless as my longing.
The sun is drunk, on the other side of the long pass where I came from,
Embraced by the night.

My hair has grayed,
But the night has remained dark.
Half of my hair is gone,
But the night is as thick as before.

⁠— Abdushukur Muhammet ( Uyghur poet)

21 नवंबर 2023

बेख़बर कुर्सियाँ आँख मलती रहीं

बेख़बर कुर्सियां आँख मलती रहीं
बस्तियाँ बेगुनाहों की जलती रहीं
आदमियत मोहब्बत शराफ़त वफ़ा
नागिनें आस्तीनों में पलती रहीं

दो बदन जितने नज़दीक होते गए
कुर्बतें फ़ासलों में बदलती रहीं
जब मिरी ज़िंदगी में अँधेरा हुआ
मेरे चारों तरफ़ शम्मे जलती रहीं

ज़हर पानी बना मछलियों के लिए
पंछियों को हवाएँ मसलती रहीं
ज़िंदगी तेरी नाज़ुक बदन लड़कियाँ
आग की शाहराहों पे चलती रहीं

--- बशीर बद्र

17 नवंबर 2023

पक गई हैं आदतें, बातों से सर होंगी नहीं

पक गई हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं
कोई हंगामा करो ऐसे गुज़र होगी नहीं

इन ठिठुरती उँगलियों को इस लपट पर सेंक लो
धूप अब घर की किसी दीवार पर होगी नहीं

बूँद टपकी थी मगर वो बूँदो—बारिश और है
ऐसी बारिश की कभी उनको ख़बर होगी नहीं

आज मेरा साथ दो वैसे मुझे मालूम है
पत्थरों में चीख़ हर्गिज़ कारगर होगी नहीं

आपके टुकड़ों के टुकड़े कर दिये जायेंगे पर
आपकी ताज़ीम में कोई कसर होगी नहीं

सिर्फ़ शायर देखता है क़हक़हों की अस्लियत
हर किसी के पास तो ऐसी नज़र होगी नहीं

--- दुष्यंत कुमार

13 नवंबर 2023

I grant you refuge

1.
I grant you refuge
in invocation and prayer.
I bless the neighborhood and the minaret
to guard them
from the rocket

from the moment
it is a general’s command
until it becomes
a raid.

I grant you and the little ones refuge,
the little ones who
change the rocket’s course
before it lands
with their smiles.

2.
I grant you and the little ones refuge,
the little ones now asleep like chicks in a nest.

They don’t walk in their sleep toward dreams.
They know death lurks outside the house.

Their mothers’ tears are now doves
following them, trailing behind
every coffin.

3.
I grant the father refuge,
the little ones’ father who holds the house upright
when it tilts after the bombs.
He implores the moment of death:
“Have mercy. Spare me a little while.
For their sake, I’ve learned to love my life.
Grant them a death
as beautiful as they are.”

4.
I grant you refuge
from hurt and death,
refuge in the glory of our siege,
here in the belly of the whale.

Our streets exalt God with every bomb.
They pray for the mosques and the houses.
And every time the bombing begins in the North,
our supplications rise in the South.

5.
I grant you refuge
from hurt and suffering.

With words of sacred scripture
I shield the oranges from the sting of phosphorous
and the shades of cloud from the smog.

I grant you refuge in knowing
that the dust will clear,
and they who fell in love and died together
will one day laugh.

(trans. Huda Fakhreddine)