When I was a boy
Nostalgia was a tiny stamp
I was at this end
My mother at that
When I grew up
Nostalgia was a slim steamer ticket
I was at this end
My bride at that
Years later
Nostalgia was a squatty tomb
I was out
My mother was in
But now
Nostalgia is a shallow strait
I am at this shore
The mainland is at that
--- Yu Guangzhong
14 दिसंबर 2019
13 दिसंबर 2019
गामा और लामा
गामा आए गाम पर !
जन-गण जय-जयकार मचाते
भारत-भाग्य-विधाता गाते
पत्रकारगण धाते आते
फोकस देते चाम पर !
लामा उतरे लाम पर !
हन-हन-हन हथियार चलाते
विरोधियों के किले ढहाते
ह्त्या करते, खून बहाते
धरम-करम के नाम पर !
लहू दामनेदाम पर !
लहू दामनेबाम पर !
कवि-कोकिल-कुल चाय चुसकते
कविता करते शाम पर !
--- राकेश रंजन
जन-गण जय-जयकार मचाते
भारत-भाग्य-विधाता गाते
पत्रकारगण धाते आते
फोकस देते चाम पर !
लामा उतरे लाम पर !
हन-हन-हन हथियार चलाते
विरोधियों के किले ढहाते
ह्त्या करते, खून बहाते
धरम-करम के नाम पर !
लहू दामनेदाम पर !
लहू दामनेबाम पर !
कवि-कोकिल-कुल चाय चुसकते
कविता करते शाम पर !
--- राकेश रंजन
8 दिसंबर 2019
जब मैं ज़िंदा हूँ
मरने को चे ग्वेरा भी मर गए,
और चंद्रशेखर भी,
लेकिन वास्तव में कोई नहीं मरा है।
सब ज़िंदा हैं,
जब मैं ज़िंदा हूँ,
इस अकाल में।
मुझे क्या कम मारा गया है
इस कलिकाल में।
अनेकों बार मुझे मारा गया है,
अनेकों बार घोषित किया गया है
राष्ट्रीय अख़बारों में, पत्रिकाओं में,
कथाओं में, कहानियों में
कि विद्रोही मर गया।
तो क्या मैं सचमुच मर गया!
नहीं, मैं ज़िंदा हूँ,
और गा रहा हूं!
--- रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’
और चंद्रशेखर भी,
लेकिन वास्तव में कोई नहीं मरा है।
सब ज़िंदा हैं,
जब मैं ज़िंदा हूँ,
इस अकाल में।
मुझे क्या कम मारा गया है
इस कलिकाल में।
अनेकों बार मुझे मारा गया है,
अनेकों बार घोषित किया गया है
राष्ट्रीय अख़बारों में, पत्रिकाओं में,
कथाओं में, कहानियों में
कि विद्रोही मर गया।
तो क्या मैं सचमुच मर गया!
नहीं, मैं ज़िंदा हूँ,
और गा रहा हूं!
--- रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’
4 दिसंबर 2019
नयी-नयी आँखें हों
नयी-नयी आँखें हों तो हर मंज़र अच्छा लगता है
कुछ दिन शहर में घूमे लेकिन, अब घर अच्छा लगता है ।
मिलने-जुलनेवालों में तो सारे अपने जैसे हैं
जिससे अब तक मिले नहीं वो अक्सर अच्छा लगता है ।
मेरे आँगन में आये या तेरे सर पर चोट लगे
सन्नाटों में बोलनेवाला पत्थर अच्छा लगता है ।
चाहत हो या पूजा सबके अपने-अपने साँचे हैं
जो मूरत में ढल जाये वो पैकर अच्छा लगता है ।
हमने भी सोकर देखा है नये-पुराने शहरों में
जैसा भी है अपने घर का बिस्तर अच्छा लगता है ।
--- निदा फ़ाज़ली
कुछ दिन शहर में घूमे लेकिन, अब घर अच्छा लगता है ।
मिलने-जुलनेवालों में तो सारे अपने जैसे हैं
जिससे अब तक मिले नहीं वो अक्सर अच्छा लगता है ।
मेरे आँगन में आये या तेरे सर पर चोट लगे
सन्नाटों में बोलनेवाला पत्थर अच्छा लगता है ।
चाहत हो या पूजा सबके अपने-अपने साँचे हैं
जो मूरत में ढल जाये वो पैकर अच्छा लगता है ।
हमने भी सोकर देखा है नये-पुराने शहरों में
जैसा भी है अपने घर का बिस्तर अच्छा लगता है ।
--- निदा फ़ाज़ली
2 दिसंबर 2019
नयी हँसी
महासंघ का मोटा अध्यक्ष
धरा हुआ गद्दी पर खुजलाता है उपस्थ
सर नहीं,
हर सवाल का उत्तर देने से पेश्तर
बीस बड़े अख़बारों के प्रतिनिधि पूछें पचीस बार
क्या हुआ समाजवाद
कहे महासंघपति पचीस बार हम करेंगे विचार
आँख मारकर पचीस बार वह, हँसे वह पचीस बार
हँसे बीस अख़बार
एक नयी ही तरह की हँसी यह है
पहले भारत में सामूहिक हास परिहास तो नहीं ही था
लोग आँख से आँख मिला हँस लेते थे
इसमें सब लोग दायें-बायें झाँकते हैं
और यह मुँह फाड़कर हँसी जाती है।
राष्ट्र को महासंघ का यह सन्देश है
जब मिलो तिवारी से-हँसो-क्योंकि तुम भी तिवारी हो
जब मिलो शर्मा से-हँसो-क्योंकि वह भी तिवारी हो
जब मिलो शर्मा से- हँसो- क्योंकि वह भी तिवारी है
जब मिलो मुसद्दी से
खिसियाओ
जातपाँत से परे
रिश्ता अटूट है
राष्ट्रीय झेंप का।
---रघुवीर सहाय
धरा हुआ गद्दी पर खुजलाता है उपस्थ
सर नहीं,
हर सवाल का उत्तर देने से पेश्तर
बीस बड़े अख़बारों के प्रतिनिधि पूछें पचीस बार
क्या हुआ समाजवाद
कहे महासंघपति पचीस बार हम करेंगे विचार
आँख मारकर पचीस बार वह, हँसे वह पचीस बार
हँसे बीस अख़बार
एक नयी ही तरह की हँसी यह है
पहले भारत में सामूहिक हास परिहास तो नहीं ही था
लोग आँख से आँख मिला हँस लेते थे
इसमें सब लोग दायें-बायें झाँकते हैं
और यह मुँह फाड़कर हँसी जाती है।
राष्ट्र को महासंघ का यह सन्देश है
जब मिलो तिवारी से-हँसो-क्योंकि तुम भी तिवारी हो
जब मिलो शर्मा से-हँसो-क्योंकि वह भी तिवारी हो
जब मिलो शर्मा से- हँसो- क्योंकि वह भी तिवारी है
जब मिलो मुसद्दी से
खिसियाओ
जातपाँत से परे
रिश्ता अटूट है
राष्ट्रीय झेंप का।
---रघुवीर सहाय
1 दिसंबर 2019
The Interrogation
for Witek Piatkowski
They beat him all day, and the next. Nothing doing.
They beat him 'round the clock, all week.
'Talk, talk,' they shouted, 'we know everything!
We know your alias! And your name!'
They showed his ID, banged his head on the table.
'Say just one sentence! just one word!'
They showed him his passport, foreign visas,
books and secret documents from the lining of his suitcase,
but then when they showed him his English tommy gun
he said, 'take away the tablecloth, I'm going to throw up.'
That's all he said. He was black and blue.
They took him to Majdanek, locked him behind the wire.
At night he cut the wire, escaped right under the sentries' eyes.
What use is glory if this memory dies?
---Tadeusz Borowski
They beat him all day, and the next. Nothing doing.
They beat him 'round the clock, all week.
'Talk, talk,' they shouted, 'we know everything!
We know your alias! And your name!'
They showed his ID, banged his head on the table.
'Say just one sentence! just one word!'
They showed him his passport, foreign visas,
books and secret documents from the lining of his suitcase,
but then when they showed him his English tommy gun
he said, 'take away the tablecloth, I'm going to throw up.'
That's all he said. He was black and blue.
They took him to Majdanek, locked him behind the wire.
At night he cut the wire, escaped right under the sentries' eyes.
What use is glory if this memory dies?
---Tadeusz Borowski
23 नवंबर 2019
विचार आते हैं
विचार आते हैं
लिखते समय नहीं
बोझ ढोते वक़्त पीठ पर
सिर पर उठाते समय भार
परिश्रम करते समय
चांद उगता है व
पानी में झलमलाने लगता है
हृदय के पानी में
विचार आते हैं
लिखते समय नहीं
...पत्थर ढोते वक़्त
पीठ पर उठाते वक़्त बोझ
साँप मारते समय पिछवाड़े
बच्चों की नेकर फचीटते वक़्त
पत्थर पहाड़ बन जाते हैं
नक्शे बनते हैं भौगोलिक
पीठ कच्छप बन जाती है
समय पृथ्वी बन जाता है...
---गजानन माधव मुक्तिबोध
लिखते समय नहीं
बोझ ढोते वक़्त पीठ पर
सिर पर उठाते समय भार
परिश्रम करते समय
चांद उगता है व
पानी में झलमलाने लगता है
हृदय के पानी में
विचार आते हैं
लिखते समय नहीं
...पत्थर ढोते वक़्त
पीठ पर उठाते वक़्त बोझ
साँप मारते समय पिछवाड़े
बच्चों की नेकर फचीटते वक़्त
पत्थर पहाड़ बन जाते हैं
नक्शे बनते हैं भौगोलिक
पीठ कच्छप बन जाती है
समय पृथ्वी बन जाता है...
---गजानन माधव मुक्तिबोध
22 नवंबर 2019
'शायरी मैंने ईजाद की'
काग़ज़ मराकेशों ने ईजाद किया
हुरूफ़ फ़ोनेशनों ने
शायरी मैंने ईजाद की
क़ब्र खोदने वाले ने तंदूर ईजाद किया
तंदूर पर क़ब्ज़ा करने वालों ने रोटी की पर्ची बनाई
रोटी लेने वाले ने क़तार ईजाद की
और मिलकर गाना सीखा
रोटी की क़तार में जब चींटियाँ आ कर खड़ी हो गईं
तो फ़ाक़ा ईजाद हो गया
शहतूत बेचने वाले ने रेशम का कीड़ा ईजाद किया
शायरी ने रेशम से लड़कियों के लिए लिबास बनाया
रेशम में मलबूस लड़कियों के लिए कुटनियों ने महलसरा ईजाद की
जहाँ जाकर उन्होंने रेशम के कीड़े का पता बता दिया
फ़ासले ने घोड़े के चार पाँव ईजाद किए
तेज़ रफ़तारी ने रथ बनाया
और जब शिकस्त ईजाद हुई
तो मुझे तेज़ रफ़्तार रथ के आगे लिटा दिया गया
मगर उस वक़्त तक शायरी मुहब्बत को ईजाद कर चुकी थी
मुहब्बत ने दिल ईजाद किया
दिल ने ख़ेमा और कश्तियाँ बनाईं
और दूर-दराज़ के मक़ामात तय किए
ख़्वाजासरा ने मछली पकड़ने का कांटा ईजाद किया
और सोये हुए दिल में चुभोकर भाग गया
दिल में चुभे हुए कांटे की डोर थामने के लिए
नीलामी ईजाद हुई
और
जब्र ने आख़री बोली ईजाद की
मैंने सारी शायरी बेच कर आग ख़रीदी
और जब्र का हाथ ज़ला दिया
--- अफ़ज़ाल अहमद सय्यद
हुरूफ़ फ़ोनेशनों ने
शायरी मैंने ईजाद की
क़ब्र खोदने वाले ने तंदूर ईजाद किया
तंदूर पर क़ब्ज़ा करने वालों ने रोटी की पर्ची बनाई
रोटी लेने वाले ने क़तार ईजाद की
और मिलकर गाना सीखा
रोटी की क़तार में जब चींटियाँ आ कर खड़ी हो गईं
तो फ़ाक़ा ईजाद हो गया
शहतूत बेचने वाले ने रेशम का कीड़ा ईजाद किया
शायरी ने रेशम से लड़कियों के लिए लिबास बनाया
रेशम में मलबूस लड़कियों के लिए कुटनियों ने महलसरा ईजाद की
जहाँ जाकर उन्होंने रेशम के कीड़े का पता बता दिया
फ़ासले ने घोड़े के चार पाँव ईजाद किए
तेज़ रफ़तारी ने रथ बनाया
और जब शिकस्त ईजाद हुई
तो मुझे तेज़ रफ़्तार रथ के आगे लिटा दिया गया
मगर उस वक़्त तक शायरी मुहब्बत को ईजाद कर चुकी थी
मुहब्बत ने दिल ईजाद किया
दिल ने ख़ेमा और कश्तियाँ बनाईं
और दूर-दराज़ के मक़ामात तय किए
ख़्वाजासरा ने मछली पकड़ने का कांटा ईजाद किया
और सोये हुए दिल में चुभोकर भाग गया
दिल में चुभे हुए कांटे की डोर थामने के लिए
नीलामी ईजाद हुई
और
जब्र ने आख़री बोली ईजाद की
मैंने सारी शायरी बेच कर आग ख़रीदी
और जब्र का हाथ ज़ला दिया
--- अफ़ज़ाल अहमद सय्यद
15 नवंबर 2019
Mimesis
My daughter
wouldn't hurt a spider
That had nested
Between her bicycle handles
For two weeks
She waited
Until it left of its own accord
If you tear down the web I said
It will simply know
This isn’t a place to call home
And you’d get to go biking
She said that’s how others
Become refugees isn’t it?
--- Fady Joudah
wouldn't hurt a spider
That had nested
Between her bicycle handles
For two weeks
She waited
Until it left of its own accord
If you tear down the web I said
It will simply know
This isn’t a place to call home
And you’d get to go biking
She said that’s how others
Become refugees isn’t it?
--- Fady Joudah
14 नवंबर 2019
The Average Child
I don’t cause teachers trouble;
My grades have been okay.
I listen in my classes.
I’m in school every day.
My teachers think I’m average;
My parents think so too.
I wish I didn’t know that, though;
There’s lots I’d like to do.
I’d like to build a rocket;
I read a book on how.
Or start a stamp collection…
But no use trying now.
’Cause, since I found I’m average,
I’m smart enough you see
To know there’s nothing special
I should expect of me.
I’m part of that majority,
That hump part of the bell,
Who spends his life unnoticed
In an average kind of hell.
~ Mike Buscemi
My grades have been okay.
I listen in my classes.
I’m in school every day.
My teachers think I’m average;
My parents think so too.
I wish I didn’t know that, though;
There’s lots I’d like to do.
I’d like to build a rocket;
I read a book on how.
Or start a stamp collection…
But no use trying now.
’Cause, since I found I’m average,
I’m smart enough you see
To know there’s nothing special
I should expect of me.
I’m part of that majority,
That hump part of the bell,
Who spends his life unnoticed
In an average kind of hell.
~ Mike Buscemi
9 नवंबर 2019
मैं यह कविता तुम्हें सौंपता हूं
मैं यह कविता तुम्हें सौंपता हूं
चूंकि मेरे पास देने को और कुछ नहीं
इसे एक गर्म कोट की तरह रखना
जब ठंड तुम्हें जकड़ने आए
या एक जोड़ी मोटे जुराबों की तरह
जिनके पार नहीं जा सकती है ठंड,
मैं तुम्हें प्यार करता हूं,
मेरे पास तुम्हें देने को और कुछ नहीं
इसलिए यह मक्के से भरा हुआ बर्तन लो
ठंड में तुम्हारे पेट को उष्ण रखने के लिए
तुम्हारे सिर के लिए स्कार्फ है यह,
जिसे तुम बांध सकती हो अपने केशों पर
अपने चेहरे के चारों तरफ लपेट सकती हो,
मैं तुमसे प्यार करता हूं,
रखो इसे, संभालो इसे जब तुम खो जाओगी
हो जाओगी दिशाहीन जीवन के वन में,
जब जीवन होगा गंभीर
अपने दराज के कोने में रखो इसे
जैसे हो यह कोई शरणस्थली या
घने जंगल के बीच एक झोंपड़ी
आना द्वार पर तुम और मैं दूंगा तुम्हें उत्तर, दूंगा दिशाज्ञान,
और तुम्हें सेंकने दूंगा जलती हुई आग,
आराम करो और स्वयं को समझो सुरक्षित,
मैं तुमसे प्यार करता हूं,
मेरे पास देने को इतना ही है
और इतना ही जीने के लिए चाहता है कोई
और अंतर तुम्हारा जीवित रहे
भले ही बाहर की दुनिया
न करे परवाह कि तुम जिंदा हो कि मर गई
रखना याद,
मैं तुम्हें प्यार करता हूं.
--- Jimmy Santiago Baca, अनुवादक: उपासना झा
चूंकि मेरे पास देने को और कुछ नहीं
इसे एक गर्म कोट की तरह रखना
जब ठंड तुम्हें जकड़ने आए
या एक जोड़ी मोटे जुराबों की तरह
जिनके पार नहीं जा सकती है ठंड,
मैं तुम्हें प्यार करता हूं,
मेरे पास तुम्हें देने को और कुछ नहीं
इसलिए यह मक्के से भरा हुआ बर्तन लो
ठंड में तुम्हारे पेट को उष्ण रखने के लिए
तुम्हारे सिर के लिए स्कार्फ है यह,
जिसे तुम बांध सकती हो अपने केशों पर
अपने चेहरे के चारों तरफ लपेट सकती हो,
मैं तुमसे प्यार करता हूं,
रखो इसे, संभालो इसे जब तुम खो जाओगी
हो जाओगी दिशाहीन जीवन के वन में,
जब जीवन होगा गंभीर
अपने दराज के कोने में रखो इसे
जैसे हो यह कोई शरणस्थली या
घने जंगल के बीच एक झोंपड़ी
आना द्वार पर तुम और मैं दूंगा तुम्हें उत्तर, दूंगा दिशाज्ञान,
और तुम्हें सेंकने दूंगा जलती हुई आग,
आराम करो और स्वयं को समझो सुरक्षित,
मैं तुमसे प्यार करता हूं,
मेरे पास देने को इतना ही है
और इतना ही जीने के लिए चाहता है कोई
और अंतर तुम्हारा जीवित रहे
भले ही बाहर की दुनिया
न करे परवाह कि तुम जिंदा हो कि मर गई
रखना याद,
मैं तुम्हें प्यार करता हूं.
--- Jimmy Santiago Baca, अनुवादक: उपासना झा
12 अक्टूबर 2019
जो हुआ सो हुआ
उठ के कपड़े बदल
उठ के कपड़े बदल
घर से बाहर निकल
जो हुआ सो हुआ॥
जब तलक साँस है
भूख है प्यास है
ये ही इतिहास है
रख के कांधे पे हल
खेत की ओर चल
जो हुआ सो हुआ॥
खून से तर-ब-तर
कर के हर राहगुज़र
थक चुके जानवर
लड़कियों की तरह
फिर से चूल्हे में जल
जो हुआ सो हुआ॥
जो मरा क्यों मरा
जो जला क्यों जला
जो लुटा क्यों लुटा
मुद्दतों से हैं गुम
इन सवालों के हल
जो हुआ सो हुआ॥
मंदिरों में भजन
मस्ज़िदों में अज़ाँ
आदमी है कहाँ
आदमी के लिए
एक ताज़ा ग़ज़ल
जो हुआ सो हुआ।।
--- निदा फ़ाज़ली
उठ के कपड़े बदल
घर से बाहर निकल
जो हुआ सो हुआ॥
जब तलक साँस है
भूख है प्यास है
ये ही इतिहास है
रख के कांधे पे हल
खेत की ओर चल
जो हुआ सो हुआ॥
खून से तर-ब-तर
कर के हर राहगुज़र
थक चुके जानवर
लड़कियों की तरह
फिर से चूल्हे में जल
जो हुआ सो हुआ॥
जो मरा क्यों मरा
जो जला क्यों जला
जो लुटा क्यों लुटा
मुद्दतों से हैं गुम
इन सवालों के हल
जो हुआ सो हुआ॥
मंदिरों में भजन
मस्ज़िदों में अज़ाँ
आदमी है कहाँ
आदमी के लिए
एक ताज़ा ग़ज़ल
जो हुआ सो हुआ।।
--- निदा फ़ाज़ली
8 अक्टूबर 2019
सावधानी
जो बहुत बोलता हो,
उसके साथ कम बोलो l
जो हमेशा चुप रहे,
उसके सामने हृदय मत खोलो l
--- रामधारी सिंह दिनकर
उसके साथ कम बोलो l
जो हमेशा चुप रहे,
उसके सामने हृदय मत खोलो l
--- रामधारी सिंह दिनकर
2 अक्टूबर 2019
ऐ शरीफ़ इंसानो
खून अपना हो या पराया हो
नस्ले आदम का खून है आखिर
जंग मशरिक में हो कि मगरिब में
अमने आलम का खून है आखिर
बम घरों पर गिरें के सरहद पर
रूहे तामीर जख्म खाती है
खेत अपने जलें कि औरों के
जीस्त फाकोंसे तिलमिलाती है
टैंक आगे बढ़ें के पीछे हटें
कोख धरती की बांझ होती है
फतह का जश्नहो कि हार का सोग
जिंदगी मीयतों पे रोती है
जंग तो खुद एक मसअला है
जंग क्या मसअलों का हल देगी
आग और खून आज बख्शेगी
भूख और ऐतजाज़ कल देगी
इस लिऐ ऐ शरीफ इन्सानो
जंग टलती रहे तो बेहतर है
आप और हम सभी के आंगन में
शमा जलती रहे तो बेहतर है
---साहिर लुधियानवी
नस्ले आदम का खून है आखिर
जंग मशरिक में हो कि मगरिब में
अमने आलम का खून है आखिर
बम घरों पर गिरें के सरहद पर
रूहे तामीर जख्म खाती है
खेत अपने जलें कि औरों के
जीस्त फाकोंसे तिलमिलाती है
टैंक आगे बढ़ें के पीछे हटें
कोख धरती की बांझ होती है
फतह का जश्नहो कि हार का सोग
जिंदगी मीयतों पे रोती है
जंग तो खुद एक मसअला है
जंग क्या मसअलों का हल देगी
आग और खून आज बख्शेगी
भूख और ऐतजाज़ कल देगी
इस लिऐ ऐ शरीफ इन्सानो
जंग टलती रहे तो बेहतर है
आप और हम सभी के आंगन में
शमा जलती रहे तो बेहतर है
---साहिर लुधियानवी
30 सितंबर 2019
एक पूरी उम्र
यक़ीन मानिए
इस आदमख़ोर गाँव में
मुझे डर लगता है
बहुत डर लगता है
लगता है कि अभी बस अभी
ठकुराइसी मेड़ चीख़ेगी
मैं अधशौच ही
खेत से उठ आऊँगा
कि अभी बस अभी
हवेली घुड़केगी,
मैं बेगार में पकड़ा जाऊँगा
कि अभी बस अभी
महाजन आएगा
मेरी गाड़ी से भैंस
उधारी में खोल ले जाएगा
कि अभी बस अभी
बुलावा आएगा
खुलकर खाँसने के
अपराध में प्रधान
मुश्क बाँध मारेगा
लदवाएगा डकैती में
सीखचों के भीतर
उम्र भर सड़ाएगा
---मलखान सिंह
इस आदमख़ोर गाँव में
मुझे डर लगता है
बहुत डर लगता है
लगता है कि अभी बस अभी
ठकुराइसी मेड़ चीख़ेगी
मैं अधशौच ही
खेत से उठ आऊँगा
कि अभी बस अभी
हवेली घुड़केगी,
मैं बेगार में पकड़ा जाऊँगा
कि अभी बस अभी
महाजन आएगा
मेरी गाड़ी से भैंस
उधारी में खोल ले जाएगा
कि अभी बस अभी
बुलावा आएगा
खुलकर खाँसने के
अपराध में प्रधान
मुश्क बाँध मारेगा
लदवाएगा डकैती में
सीखचों के भीतर
उम्र भर सड़ाएगा
---मलखान सिंह
18 सितंबर 2019
कोसल में विचारों की कमी है!
महाराज बधाई हो!
महाराज की जय हो।
युद्ध नहीं हुआ
लौट गए शत्रु।
वैसे हमारी तैयारी पूरी थी!
चार अक्षौहिणी थीं सेनाएँ,
दस सहस्र अश्व,
लगभग इतने ही हाथी।
कोई कसर न थी!
युद्ध होता भी तो
नतीजा यही होता।
न उनके पास अस्त्र थे,
न अश्व,
न हाथी,
युद्ध हो भी कैसे सकता था?
निहत्थे थे वे।
उनमें से हरेक अकेला था
और हरेक यह कहता था
प्रत्येक अकेला होता है!
जो भी हो,
जय यह आपकी है!
बधाई हो!
राजसूय पूरा हुआ,
आप चक्रवर्ती हुए
वे सिर्फ़ कुछ प्रश्न छोड़ गए हैं
जैसे कि यह :
कोसल अधिक दिन नहीं टिक सकता,
कोसल में विचारों की कमी है!
--- श्रीकांत वर्मा
महाराज की जय हो।
युद्ध नहीं हुआ
लौट गए शत्रु।
वैसे हमारी तैयारी पूरी थी!
चार अक्षौहिणी थीं सेनाएँ,
दस सहस्र अश्व,
लगभग इतने ही हाथी।
कोई कसर न थी!
युद्ध होता भी तो
नतीजा यही होता।
न उनके पास अस्त्र थे,
न अश्व,
न हाथी,
युद्ध हो भी कैसे सकता था?
निहत्थे थे वे।
उनमें से हरेक अकेला था
और हरेक यह कहता था
प्रत्येक अकेला होता है!
जो भी हो,
जय यह आपकी है!
बधाई हो!
राजसूय पूरा हुआ,
आप चक्रवर्ती हुए
वे सिर्फ़ कुछ प्रश्न छोड़ गए हैं
जैसे कि यह :
कोसल अधिक दिन नहीं टिक सकता,
कोसल में विचारों की कमी है!
--- श्रीकांत वर्मा
15 सितंबर 2019
कितना चौड़ा पाट नदी का
कितना चौड़ा पाट नदी का,
कितनी भारी शाम,
कितने खोए–खोए से हम,
कितना तट निष्काम,
कितनी बहकी–बहकी सी
दूरागत–वंशी–टेर,
कितनी टूटी–टूटी सी
नभ पर विहगों की फेर,
कितनी सहमी–सहमी–सी
जल पर तट–तरु–अभिलाषा,
कितनी चुप–चुप गयी रोशनी,
छिप छिप आई रात,
कितनी सिहर–सिहर कर
अधरों से फूटी दो बात,
चार नयन मुस्काए, खोए,
भीगे, फिर पथराए,
कितनी बड़ी विवशता,
जीवन की, कितनी कह पाए!
~ सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
कितनी भारी शाम,
कितने खोए–खोए से हम,
कितना तट निष्काम,
कितनी बहकी–बहकी सी
दूरागत–वंशी–टेर,
कितनी टूटी–टूटी सी
नभ पर विहगों की फेर,
कितनी सहमी–सहमी–सी
जल पर तट–तरु–अभिलाषा,
कितनी चुप–चुप गयी रोशनी,
छिप छिप आई रात,
कितनी सिहर–सिहर कर
अधरों से फूटी दो बात,
चार नयन मुस्काए, खोए,
भीगे, फिर पथराए,
कितनी बड़ी विवशता,
जीवन की, कितनी कह पाए!
~ सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
14 सितंबर 2019
सरकारी हिन्दी
डिल्लू बापू पंडित थे
बिना वैसी पढ़ाई के
जीवन में एक ही श्लोक
उन्होंने जाना
वह भी आधा
उसका भी वे
अशुद्ध उच्चारण करते थे
यानी ‘त्वमेव माता चपिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश चसखा त्वमेव’
इसके बाद वे कहते
कि आगे तो आप जानते ही हैं
गोया जो सब जानते हों
उसे जानने और जनाने में
कौन-सी अक़्लमंदी है ?
इसलिए इसी अल्प-पाठ के सहारे
उन्होंने सारे अनुष्ठान कराये
एक दिन किसी ने उनसे कहा:
बापू, संस्कृत में भूख को
क्षुधा कहते हैं
डिल्लू बापू पंडित थे
तो वैद्य भी उन्हें होना ही था
नाड़ी देखने के लिए वे
रोगी की पूरी कलाई को
अपने हाथ में कसकर थामते
आँखें बन्द कर
मुँह ऊपर को उठाये रहते
फिर थोड़ा रुककर
रोग के लक्षण जानने के सिलसिले में
जो पहला प्रश्न वे करते
वह भाषा में
संस्कृत के प्रयोग का
एक विरल उदाहरण है
यानी ‘पुत्तू ! क्षुधा की भूख
लगती है क्या ?’
बाद में यही
सरकारी हिन्दी हो गयी
---पंकज चतुर्वेदी
बिना वैसी पढ़ाई के
जीवन में एक ही श्लोक
उन्होंने जाना
वह भी आधा
उसका भी वे
अशुद्ध उच्चारण करते थे
यानी ‘त्वमेव माता चपिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश चसखा त्वमेव’
इसके बाद वे कहते
कि आगे तो आप जानते ही हैं
गोया जो सब जानते हों
उसे जानने और जनाने में
कौन-सी अक़्लमंदी है ?
इसलिए इसी अल्प-पाठ के सहारे
उन्होंने सारे अनुष्ठान कराये
एक दिन किसी ने उनसे कहा:
बापू, संस्कृत में भूख को
क्षुधा कहते हैं
डिल्लू बापू पंडित थे
तो वैद्य भी उन्हें होना ही था
नाड़ी देखने के लिए वे
रोगी की पूरी कलाई को
अपने हाथ में कसकर थामते
आँखें बन्द कर
मुँह ऊपर को उठाये रहते
फिर थोड़ा रुककर
रोग के लक्षण जानने के सिलसिले में
जो पहला प्रश्न वे करते
वह भाषा में
संस्कृत के प्रयोग का
एक विरल उदाहरण है
यानी ‘पुत्तू ! क्षुधा की भूख
लगती है क्या ?’
बाद में यही
सरकारी हिन्दी हो गयी
---पंकज चतुर्वेदी
8 सितंबर 2019
Preface
"चुटकुलों, भँड़ैती, विद्रूप से मज़ेदार बनी
कविता अब भी ख़ुश करना जानती है।
तब उसकी श्रेष्ठता को बहुत सराहा जाता है।
किन्तु जहाँ ज़िंदगी दाँव पर लगी हो ऐसी संगीन लड़ाइयाँ
गद्य में लड़ी जाती हैं। ऐसा हमेशा नहीं था।
और हमारा पछतावा अनक़ुबूला रह गया है।
उपन्यास और निबन्ध काम आते हैं, लेकिन टिकेंगे नहीं।
एक साफ़ छन्द ज़्यादा वज़न सँभाल सकता है
जटिल गद्य के एक समूचे मालगाड़ी के डिब्बे की बनिस्बत।"
--चेस्वाव मिवोश ('प्राक्कथन' शीर्षक कविता से)
{अनुवाद : विष्णु खरे}
"First, plain speech in the mother tongue.
Hearing it, you should be able to see
Apple trees, a river, the bend of a road,
As if in a flash of summer lightning.
And it should contain more than images.
It has been lured by singsong,
A daydream, melody. Defenseless,
It was bypassed by the sharp, dry world.
You often ask yourself why you feel shame
Whenever you look through a book of poetry.
As if the author, for reasons unclear to you,
Addressed the worse side of your nature,
Pushing aside thought, cheating thought.
Poetry, seasoned with satire, clowning,
Jokes, still knows how to please.
Then its excellence is much admired.
But serious combat, where life is at stake,
Is fought in prose. It was not always so.
And our regret has remained unconfessed.
Novels and essays serve but will not last.
One clear stanza can take more weight
Than a whole wagon of elaborate prose."
--Czeslaw Milosz {from 'Preface'}
कविता अब भी ख़ुश करना जानती है।
तब उसकी श्रेष्ठता को बहुत सराहा जाता है।
किन्तु जहाँ ज़िंदगी दाँव पर लगी हो ऐसी संगीन लड़ाइयाँ
गद्य में लड़ी जाती हैं। ऐसा हमेशा नहीं था।
और हमारा पछतावा अनक़ुबूला रह गया है।
उपन्यास और निबन्ध काम आते हैं, लेकिन टिकेंगे नहीं।
एक साफ़ छन्द ज़्यादा वज़न सँभाल सकता है
जटिल गद्य के एक समूचे मालगाड़ी के डिब्बे की बनिस्बत।"
--चेस्वाव मिवोश ('प्राक्कथन' शीर्षक कविता से)
{अनुवाद : विष्णु खरे}
"First, plain speech in the mother tongue.
Hearing it, you should be able to see
Apple trees, a river, the bend of a road,
As if in a flash of summer lightning.
And it should contain more than images.
It has been lured by singsong,
A daydream, melody. Defenseless,
It was bypassed by the sharp, dry world.
You often ask yourself why you feel shame
Whenever you look through a book of poetry.
As if the author, for reasons unclear to you,
Addressed the worse side of your nature,
Pushing aside thought, cheating thought.
Poetry, seasoned with satire, clowning,
Jokes, still knows how to please.
Then its excellence is much admired.
But serious combat, where life is at stake,
Is fought in prose. It was not always so.
And our regret has remained unconfessed.
Novels and essays serve but will not last.
One clear stanza can take more weight
Than a whole wagon of elaborate prose."
--Czeslaw Milosz {from 'Preface'}
5 सितंबर 2019
दस्तूर
दीप जिस का महल्लात ही में जले
चंद लोगों की ख़ुशियों को ले कर चले
वो जो साए में हर मस्लहत के पले
ऐसे दस्तूर को सुब्ह-ए-बे-नूर को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
मैं भी ख़ाइफ़ नहीं तख़्ता-ए-दार से
मैं भी मंसूर हूँ कह दो अग़्यार से
क्यूँ डराते हो ज़िंदाँ की दीवार से
ज़ुल्म की बात को जहल की रात को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
फूल शाख़ों पे खिलने लगे तुम कहो
जाम रिंदों को मिलने लगे तुम कहो
चाक सीनों के सिलने लगे तुम कहो
इस खुले झूट को ज़ेहन की लूट को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
तुम ने लूटा है सदियों हमारा सुकूँ
अब न हम पर चलेगा तुम्हारा फ़ुसूँ
चारागर दर्दमंदों के बनते हो क्यूँ
तुम नहीं चारागर कोई माने मगर
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
---हबीब जालिब
चंद लोगों की ख़ुशियों को ले कर चले
वो जो साए में हर मस्लहत के पले
ऐसे दस्तूर को सुब्ह-ए-बे-नूर को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
मैं भी ख़ाइफ़ नहीं तख़्ता-ए-दार से
मैं भी मंसूर हूँ कह दो अग़्यार से
क्यूँ डराते हो ज़िंदाँ की दीवार से
ज़ुल्म की बात को जहल की रात को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
फूल शाख़ों पे खिलने लगे तुम कहो
जाम रिंदों को मिलने लगे तुम कहो
चाक सीनों के सिलने लगे तुम कहो
इस खुले झूट को ज़ेहन की लूट को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
तुम ने लूटा है सदियों हमारा सुकूँ
अब न हम पर चलेगा तुम्हारा फ़ुसूँ
चारागर दर्दमंदों के बनते हो क्यूँ
तुम नहीं चारागर कोई माने मगर
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
---हबीब जालिब
4 सितंबर 2019
तैयार रहे…...
तैयार रहे…...
हिंसक भीड़ के हाथों,
पीटे जाने के लिए.
बार-बार,
बहानों से घेरे जाने के लिए,
असहमतियों के चलते,
मारे जाने के लिए,
तैयार रहें.
तैयार रहें
क्योंकि
धर्म,संस्कृति,सभ्यता पर,
चढांई जाती है,
धार.
तैयार रहे कि
आबादी के बिना भी,
बनाए जा सकतेे है देश.
शिक्षा-अध्यापकों के बिना,
महज टैंक खड़े करके भी,
बनाए जा सकते है विश्वविद्यालय.
उसी तरह जैसे,
अफवाहों, मिथकीय परिकल्पनाओं,
श्रद्धा और भावनाओं पर,
बिजूके की तरह ,
खड़ा किया जा सकता है,
कलफ लगा इतिहास.
तैयार रहो,
कि लोक को मिटा कर भी,
खड़ा किया जा सकता है तन्त्र.
तैयार रहो कि ,
एक दशक पहले तक,
जिनसे बचते चलते थे तुम.
आज उन्होंने तुम्हें भी समेट लिया है.
इसलिए,
पंखनुचे फड़फडा़ते परिन्दों की तरह,
अर्थ विहीन शब्दों से कामचलाने के लिए,
तैयार रहें.
अब इंसान ही नही,
संस्थाओं, संकल्पनाओं और
संस्कृतियों की हत्याएं भी मुमकिन हैं.
इसलिए अलग-अलग मौकों पर,
अलग-अलग बहानों से,
मारे जाने के लिए,
तैयार रहें.
तैयार रहें
कि अगली माबलिंचिंग,
किसी सड़क,गली या कस्बे में नही,
किसी सदन में भी मुमकिन है,
जहां पूरे के पूरे देश को ,
पीट-पीट कर बेदम किया जा सकता है.
आप बस अच्छे नागरिक बने,
सवाल ना करें और,
तैयार रहें...
---Ashrut Parmanand
हिंसक भीड़ के हाथों,
पीटे जाने के लिए.
बार-बार,
बहानों से घेरे जाने के लिए,
असहमतियों के चलते,
मारे जाने के लिए,
तैयार रहें.
तैयार रहें
क्योंकि
धर्म,संस्कृति,सभ्यता पर,
चढांई जाती है,
धार.
तैयार रहे कि
आबादी के बिना भी,
बनाए जा सकतेे है देश.
शिक्षा-अध्यापकों के बिना,
महज टैंक खड़े करके भी,
बनाए जा सकते है विश्वविद्यालय.
उसी तरह जैसे,
अफवाहों, मिथकीय परिकल्पनाओं,
श्रद्धा और भावनाओं पर,
बिजूके की तरह ,
खड़ा किया जा सकता है,
कलफ लगा इतिहास.
तैयार रहो,
कि लोक को मिटा कर भी,
खड़ा किया जा सकता है तन्त्र.
तैयार रहो कि ,
एक दशक पहले तक,
जिनसे बचते चलते थे तुम.
आज उन्होंने तुम्हें भी समेट लिया है.
इसलिए,
पंखनुचे फड़फडा़ते परिन्दों की तरह,
अर्थ विहीन शब्दों से कामचलाने के लिए,
तैयार रहें.
अब इंसान ही नही,
संस्थाओं, संकल्पनाओं और
संस्कृतियों की हत्याएं भी मुमकिन हैं.
इसलिए अलग-अलग मौकों पर,
अलग-अलग बहानों से,
मारे जाने के लिए,
तैयार रहें.
तैयार रहें
कि अगली माबलिंचिंग,
किसी सड़क,गली या कस्बे में नही,
किसी सदन में भी मुमकिन है,
जहां पूरे के पूरे देश को ,
पीट-पीट कर बेदम किया जा सकता है.
आप बस अच्छे नागरिक बने,
सवाल ना करें और,
तैयार रहें...
---Ashrut Parmanand
2 सितंबर 2019
अंत्येष्टि से पूर्व
अंत्येष्टि से पूर्व
हे देव,
मुझे बिजलियाँ, अँधेरे और साँप
डरा देते हैं
मुझे घने जंगल की नागरिकता दो
मेरे भय को मित्रता करनी होगी जंगल से
रहना होगा साहसी!
हे देव,
मैंने एक जगह रुक वर्षों आराम किया
मुझे वायु बना दो
मैं कृषकपुत्रों की गीली बनियानों
और रोमछिद्रों में
समर्पित करूँ स्वयं को!
हे देव,
मैं अपने माता-पिता की सेवा न कर सकी
मुझे सुशीतल ओस बना दो
मैं गिरूँ वृद्धाश्रम के आँगन की घास पर
वे रखें मुझ पर पाँव और
मैं उन्हें स्वस्थ रखूँ
हे देव,
मैं कभी सावन में झूली नहीं
मुझे झूले की मज़बूत गाँठ बना दो
मैं उन सभी स्त्रियों और बच्चों को सुरक्षित रखूँ
जो पटके पर खिलखिलाते हुए बैठें
और तृप्त हो उतरें!
हे देव,
कुछ लोगों ने छला है मुझे
मुझे वटवृक्ष बना दो
सैकड़ों पक्षी मेरे भरोसे भरें भोर में उड़ान और
रात भर करें मुझमें विश्राम
मैं उन्हें विश्वसनीय और सुरक्षित नींद दूँ!
हे देव,
मेरा सब्र है एक संपन्न नवजात शिशु
वह प्रतिपल देखभाल माँगता है
मुझे एक हज़ार आठ मनकों वाली
रुद्राक्ष की माला बना दो
मेरे सब्र को होना होगा अनगढ़!
हे देव,
मुझे पत्रों की प्रतीक्षा रहती है
मुझे घाटी के प्रहरियों की
प्रेमिकाओं का दूत बना दो
उन्हें भी होता होगा संदेशों का मोह
मैं दिलासा दे उन्हें व्योम कर सकूँ!
हे देव,
मैंने प्रश्नों के बीज बोए
वे कभी फूल बन न खिल सकें
मुझे भूरी संदली मिट्टी बना दो
मैं तप कर और भीग कर रचूँ
अनेकों खलिहान!
हे देव,
मैं धरती और सितारों के बीच
बेहद बौनी लगती हूँ
मुझे पहाड़ बना दो
मैं बादल के फाहों पर आकृतियाँ बना
उन्हें मनचाहा आकार दूँ!
हे देव,
मैं अपनी पकड़ से फिसल कर
नहीं रच पाती कोई दंतकथा
मुझे काँटेदार रास्ता बना दो
मेरे तलवों को दरकार है अनुभव
टीस और मवाद और ठहराव के!
हे देव,
चिकने फ़र्श पर मेरे पैर फिसलते हैं
मुझे छिले हुए पंजे दो
मेरे पंजों की छाप
सबको चौराहों का संकेत दे
और बताए रास्ता!
हे देव,
मेरे आँसू घुटने पर बहने को तत्पर रहते हैं
मुझे मरुस्थल बना दो
सूखी धरा और उसकी वीरानियों को
यह हक़ है कि
मेरे आँसुओं को वे दास बना लें!
हे देव,
प्रेम मेरी नब्ज़ पकड़
मेरी तरंगें नापता है
मुझे बोधिसत्व का ज़ख़ीरा बना दो
त्याग मेरा कर्म हो
मुझे अस्वीकार का अधिकार चाहिए!
हे देव,
मेरे कुछ सपने अधूरे रह गए हैं
मुझे संभव और असंभव के बीच की दूरी बना दो
मैं पथिकों का बल बनूँ
उनकी राह की
बनूँ जीवन-कथा!
हे देव,
मैंने अब तक
पुलों पर सफ़र किया है
शहर के पुल बेहद कमज़ोर हैं
मुझे तैराक बना दो कि
मैं हर शहरी बच्चे को तैरना सिखा सकूँ!
हे देव,
मेरे बहुत से दिवस बाँझ रहे हैं
मुझे गर्भवती बना दो
मेरी कोख से जन्मे कोई इस्पात
जो ढले और गले केवल संरक्षण करने को
सभ्यताओं को जोड़े रखे!
हे देव,
मैं अपनी
कविताओं की किताब न छपवा सकी
मुझे स्याही बना दो
मैं समस्त कवियों की लेखनी में जा घुलूँ
और रचूँ इतिहास!
--- जोशना बैनर्जी आडवानी
हे देव,
मुझे बिजलियाँ, अँधेरे और साँप
डरा देते हैं
मुझे घने जंगल की नागरिकता दो
मेरे भय को मित्रता करनी होगी जंगल से
रहना होगा साहसी!
हे देव,
मैंने एक जगह रुक वर्षों आराम किया
मुझे वायु बना दो
मैं कृषकपुत्रों की गीली बनियानों
और रोमछिद्रों में
समर्पित करूँ स्वयं को!
हे देव,
मैं अपने माता-पिता की सेवा न कर सकी
मुझे सुशीतल ओस बना दो
मैं गिरूँ वृद्धाश्रम के आँगन की घास पर
वे रखें मुझ पर पाँव और
मैं उन्हें स्वस्थ रखूँ
हे देव,
मैं कभी सावन में झूली नहीं
मुझे झूले की मज़बूत गाँठ बना दो
मैं उन सभी स्त्रियों और बच्चों को सुरक्षित रखूँ
जो पटके पर खिलखिलाते हुए बैठें
और तृप्त हो उतरें!
हे देव,
कुछ लोगों ने छला है मुझे
मुझे वटवृक्ष बना दो
सैकड़ों पक्षी मेरे भरोसे भरें भोर में उड़ान और
रात भर करें मुझमें विश्राम
मैं उन्हें विश्वसनीय और सुरक्षित नींद दूँ!
हे देव,
मेरा सब्र है एक संपन्न नवजात शिशु
वह प्रतिपल देखभाल माँगता है
मुझे एक हज़ार आठ मनकों वाली
रुद्राक्ष की माला बना दो
मेरे सब्र को होना होगा अनगढ़!
हे देव,
मुझे पत्रों की प्रतीक्षा रहती है
मुझे घाटी के प्रहरियों की
प्रेमिकाओं का दूत बना दो
उन्हें भी होता होगा संदेशों का मोह
मैं दिलासा दे उन्हें व्योम कर सकूँ!
हे देव,
मैंने प्रश्नों के बीज बोए
वे कभी फूल बन न खिल सकें
मुझे भूरी संदली मिट्टी बना दो
मैं तप कर और भीग कर रचूँ
अनेकों खलिहान!
हे देव,
मैं धरती और सितारों के बीच
बेहद बौनी लगती हूँ
मुझे पहाड़ बना दो
मैं बादल के फाहों पर आकृतियाँ बना
उन्हें मनचाहा आकार दूँ!
हे देव,
मैं अपनी पकड़ से फिसल कर
नहीं रच पाती कोई दंतकथा
मुझे काँटेदार रास्ता बना दो
मेरे तलवों को दरकार है अनुभव
टीस और मवाद और ठहराव के!
हे देव,
चिकने फ़र्श पर मेरे पैर फिसलते हैं
मुझे छिले हुए पंजे दो
मेरे पंजों की छाप
सबको चौराहों का संकेत दे
और बताए रास्ता!
हे देव,
मेरे आँसू घुटने पर बहने को तत्पर रहते हैं
मुझे मरुस्थल बना दो
सूखी धरा और उसकी वीरानियों को
यह हक़ है कि
मेरे आँसुओं को वे दास बना लें!
हे देव,
प्रेम मेरी नब्ज़ पकड़
मेरी तरंगें नापता है
मुझे बोधिसत्व का ज़ख़ीरा बना दो
त्याग मेरा कर्म हो
मुझे अस्वीकार का अधिकार चाहिए!
हे देव,
मेरे कुछ सपने अधूरे रह गए हैं
मुझे संभव और असंभव के बीच की दूरी बना दो
मैं पथिकों का बल बनूँ
उनकी राह की
बनूँ जीवन-कथा!
हे देव,
मैंने अब तक
पुलों पर सफ़र किया है
शहर के पुल बेहद कमज़ोर हैं
मुझे तैराक बना दो कि
मैं हर शहरी बच्चे को तैरना सिखा सकूँ!
हे देव,
मेरे बहुत से दिवस बाँझ रहे हैं
मुझे गर्भवती बना दो
मेरी कोख से जन्मे कोई इस्पात
जो ढले और गले केवल संरक्षण करने को
सभ्यताओं को जोड़े रखे!
हे देव,
मैं अपनी
कविताओं की किताब न छपवा सकी
मुझे स्याही बना दो
मैं समस्त कवियों की लेखनी में जा घुलूँ
और रचूँ इतिहास!
--- जोशना बैनर्जी आडवानी
23 अगस्त 2019
उपचार
बेवफ़ा प्रेमिका से तुम्हारे टूटे हुए दिल का उपचार
तुम करो तीन प्रक्रियाओं से आबद्ध
पहला कि उसे जाने दो
दूसरा कि करो स्वीकार कि तुम्हारी जगह किसी और को लाएगी
अपने बिस्तर पर सजाएगी
और तीसरा कि करो कल्पना वास्तविक
कि वह रही नहीं
वह मर गई पिछले वर्ष सितंबर में
हो एक सड़क हादसे का शिकार
--- Shayak Alok
तुम करो तीन प्रक्रियाओं से आबद्ध
पहला कि उसे जाने दो
दूसरा कि करो स्वीकार कि तुम्हारी जगह किसी और को लाएगी
अपने बिस्तर पर सजाएगी
और तीसरा कि करो कल्पना वास्तविक
कि वह रही नहीं
वह मर गई पिछले वर्ष सितंबर में
हो एक सड़क हादसे का शिकार
--- Shayak Alok
21 अगस्त 2019
Poetry and prose
Sometimes I am caught
between poetry and prose, like two lovers
I can't decide between.
Prose says to me, let's build
something long and lasting.
Poetry takes me by the hand,
and whispers, come with me,
let's get lost for awhile.
--- Lang Leav
between poetry and prose, like two lovers
I can't decide between.
Prose says to me, let's build
something long and lasting.
Poetry takes me by the hand,
and whispers, come with me,
let's get lost for awhile.
--- Lang Leav
19 अगस्त 2019
औरतें हैं हम
औरतें हैं हम
खाना नहीं हैं
मेज़ पर धरा हुआ
छिलो, हड्डियाँ निकालो
भर लो अपना पेट
कूड़ा नहीं है कूड़ेदान में समा जाने के लिए
औरतें हैं हम
गुड़ियाँ नहीं
जिनसे खेलो, उतार दो कपड़े
तैयार करो, क़ैद करो
एक पालने में और सजा दो
एक शेल्फ पर
औरतें हैं हम
ज़मीन नहीं हैं जिसे खोदोगे ताम्बे
रत्न और स्वर्ण के लिए
उगाओ और परती छोड़ दो
फसल के बाद
गीली मिट्टी सा उसे
रौंदो या बना दो
एक गोद कंकालों के लिए
औरतें हैं हम
मनुष्य भी
रोबोट या चिथड़े नहीं
न ही बर्तन न शौचालय
सपना नहीं हैं जिसका मन नहीं कोई
तसवीर नहीं हैं भागो तुम जिसके पीछे
उड़ते बादल पर बैठकर
औरतें हैं हम
धात्रियाँ संतानों की
दुनिया के वारिसों की
हम जानती हैं करना अंतर
आकारों में दिन और रात में
अलग कर सकती हैं हम
इंद्रधनुष के रंग
हम जानती हैं सम्भालना
एक ढहती हुई आत्मा को
जानती हैं प्यार करना
एक सोचने वाले दिल को
हम जानती हैं भिड़ जाना
और सीधा करना टेढों को
बागबानी करते हुए
सँवारना दुनिया को ।
--- Marra Lanot (हिंदी अनुवाद : Su Jata)
खाना नहीं हैं
मेज़ पर धरा हुआ
छिलो, हड्डियाँ निकालो
भर लो अपना पेट
कूड़ा नहीं है कूड़ेदान में समा जाने के लिए
औरतें हैं हम
गुड़ियाँ नहीं
जिनसे खेलो, उतार दो कपड़े
तैयार करो, क़ैद करो
एक पालने में और सजा दो
एक शेल्फ पर
औरतें हैं हम
ज़मीन नहीं हैं जिसे खोदोगे ताम्बे
रत्न और स्वर्ण के लिए
उगाओ और परती छोड़ दो
फसल के बाद
गीली मिट्टी सा उसे
रौंदो या बना दो
एक गोद कंकालों के लिए
औरतें हैं हम
मनुष्य भी
रोबोट या चिथड़े नहीं
न ही बर्तन न शौचालय
सपना नहीं हैं जिसका मन नहीं कोई
तसवीर नहीं हैं भागो तुम जिसके पीछे
उड़ते बादल पर बैठकर
औरतें हैं हम
धात्रियाँ संतानों की
दुनिया के वारिसों की
हम जानती हैं करना अंतर
आकारों में दिन और रात में
अलग कर सकती हैं हम
इंद्रधनुष के रंग
हम जानती हैं सम्भालना
एक ढहती हुई आत्मा को
जानती हैं प्यार करना
एक सोचने वाले दिल को
हम जानती हैं भिड़ जाना
और सीधा करना टेढों को
बागबानी करते हुए
सँवारना दुनिया को ।
--- Marra Lanot (हिंदी अनुवाद : Su Jata)
15 अगस्त 2019
जन गण मन अधिनायक जय हे !
जन गण मन अधिनायक जय हे !
जय हे हरित क्रांति निर्माता
जय गेहूँ हथियार प्रदाता
जय हे भारत भाग्य विधाता
अंग्रेजी के गायक जय हे !
जन गण मन अधिनायक जय हे !
जय समाजवादी रंगवाली
जय हे शांतिसंधि विकराली
जय हे टैंक महाबलशाली
प्रभुता के परिचायक जय हे !
जन गण मन अधिनायक जय हे !
जय हे जमींदार पूँजीपति
जय दलाल शोषण में सन्मति
जय हे लोकतंत्र की दुर्गति
भ्रष्टाचार विधायक जय हे !
जन गण मन अधिनायक जय हे
जय पाखंड और बर्बरता
जय तानाशाही सुंदरता
जय हे दमन भूख निर्भरता
सकल अमंगलदायक जय हे !
जन गण मन अधिनायक जय हे
--- गोरख पाण्डेय
जय हे हरित क्रांति निर्माता
जय गेहूँ हथियार प्रदाता
जय हे भारत भाग्य विधाता
अंग्रेजी के गायक जय हे !
जन गण मन अधिनायक जय हे !
जय समाजवादी रंगवाली
जय हे शांतिसंधि विकराली
जय हे टैंक महाबलशाली
प्रभुता के परिचायक जय हे !
जन गण मन अधिनायक जय हे !
जय हे जमींदार पूँजीपति
जय दलाल शोषण में सन्मति
जय हे लोकतंत्र की दुर्गति
भ्रष्टाचार विधायक जय हे !
जन गण मन अधिनायक जय हे
जय पाखंड और बर्बरता
जय तानाशाही सुंदरता
जय हे दमन भूख निर्भरता
सकल अमंगलदायक जय हे !
जन गण मन अधिनायक जय हे
--- गोरख पाण्डेय
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