कौन आज़ाद हुआ ?
किसके माथे से सियाही छुटी ?
मेरे सीने मे दर्द है महकुमी का
मादरे हिंद के चेहरे पे उदासी है वही
कौन आज़ाद हुआ ?
खंजर आज़ाद है सीने मे उतरने के लिए
वर्दी आज़ाद है वेगुनाहो पर जुल्मो सितम के लिए
मौत आज़ाद है लाशो पर गुजरने के लिए
कौन आज़ाद हुआ ?
काले बाज़ार मे बदशक्ल चुदैलों की तरह
कीमते काली दुकानों पर खड़ी रहती है
हर खरीदार की जेबो को कतरने के लिए
कौन आज़ाद हुआ ?
कारखानों मे लगा रहता है
साँस लेती हुयी लाशो का हुजूम
बीच मे उनके फिरा करती है बेकारी भी
अपने खूंखार दहन खोले हुए
कौन आज़ाद हुआ ?
रोटियाँ चकलो की कहवाये है
जिनको सरमाये के द्ल्लालो ने
नफाखोरी के झरोखों मे सजा रखा है
बालियाँ धान की गेंहूँ के सुनहरे गोशे
मिस्रो यूनान के मजबूर गुलामो की तरह
अजबनी देश के बाजारों मे बिक जाते है
और बदबख्त किसानो की तडपती हुयी रूह
अपने अल्फाज मे मुंह ढांप के सो जाती है
कौन आजाद हुआ ?
---अली सरदार जाफ़री
2 अप्रैल 2016
21 मार्च 2016
ईरानी कविता
शहतूत
क्या आपने कभी शहतूत देखा है,
जहां गिरता है, उतनी ज़मीन पर
उसके लाल रस का धब्बा पड़ जाता है.
गिरने से ज़्यादा पीड़ादायी कुछ नहीं.
मैंने कितने मज़दूरों को देखा है
इमारतों से गिरते हुए,
गिरकर शहतूत बन जाते हुए.
(ईश्वर)
(ईश्वर) भी एक मज़दूर है
ज़रूर वह वेल्डरों का भी वेल्डर होगा.
शाम की रोशनी में
उसकी आंखें अंगारों जैसी लाल होती हैं,
रात उसकी क़मीज़ पर
छेद ही छेद होते हैं.
बंदूक़
अगर उन्होंने बंदूक़ का आविष्कार न किया होता
तो कितने लोग, दूर से ही,
मारे जाने से बच जाते.
कई सारी चीज़ें आसान हो जातीं.
उन्हें मज़दूरों की ताक़त का अहसास दिलाना भी
कहीं ज़्यादा आसान होता.
मृत्यु का ख़ौफ़
ताउम्र मैंने इस बात पर भरोसा किया
कि झूठ बोलना ग़लत होता है
ग़लत होता है किसी को परेशान करना
ताउम्र मैं इस बात को स्वीकार किया
कि मौत भी जि़ंदगी का एक हिस्सा है
इसके बाद भी मुझे मृत्यु से डर लगता है
डर लगता है दूसरी दुनिया में भी मजदूर बने रहने से.
कॅरियर का चुनाव
मैं कभी साधारण बैंक कर्मचारी नहीं बन सकता था
खाने-पीने के सामानों का सेल्समैन भी नहीं
किसी पार्टी का मुखिया भी नहीं
न तो टैक्सी ड्राइवर
प्रचार में लगा मार्केटिंग वाला भी नहीं
मैं बस इतना चाहता था
कि शहर की सबसे ऊंची जगह पर खड़ा होकर
नीचे ठसाठस इमारतों के बीच उस औरत का घर देखूं
जिससे मैं प्यार करता हूं
इसलिए मैं बांधकाम मज़दूर बन गया.
मेरे पिता
अगर अपने पिता के बारे में कुछ कहने की हिम्मत करूं
तो मेरी बात का भरोसा करना,
उनके जीवन ने उन्हें बहुत कम आनंद दिया
वह शख़्स अपने परिवार के लिए समर्पित था
परिवार की कमियों को छिपाने के लिए
उसने अपना जीवन कठोर और ख़ुरदुरा बना लिया
और अब
अपनी कविताएं छपवाते हुए
मुझे सिर्फ़ एक बात का संकोच होता है
कि मेरे पिता पढ़ नहीं सकते.
आस्था
मेरे पिता मज़दूर थे
आस्था से भरे हुए इंसान
जब भी वह नमाज़ पढ़ते थे
(अल्लाह) उनके हाथों को देख शर्मिंदा हो जाता था.
मृत्यु
मेरी मां ने कहा
उसने मृत्यु को देख रखा है
उसके बड़ी-बड़ी घनी मूंछें हैं
और उसकी क़द-काठी, जैसे कोई बौराया हुआ इंसान.
उस रात से
मां की मासूमियत को
मैं शक से देखने लगा हूं.
राजनीति
बड़े-बड़े बदलाव भी
कितनी आसानी से कर दिए जाते हैं.
हाथ-काम करने वाले मज़दूरों को
राजनीतिक कार्यकर्ताओं में बदल देना भी
कितना आसान रहा, है न!
क्रेनें इस बदलाव को उठाती हैं
और सूली तक पहुंचाती हैं.
दोस्ती
मैं (ईश्वर) का दोस्त नहीं हूं
इसका सिर्फ़ एक ही कारण है
जिसकी जड़ें बहुत पुराने अतीत में हैं :
जब छह लोगों का हमारा परिवार
एक तंग कमरे में रहता था
और (ईश्वर) के पास बहुत बड़ा मकान था
जिसमें वह अकेले ही रहता था
सरहदें
जैसे कफ़न ढंक देता है लाश को
बर्फ़ भी बहुत सारी चीज़ों को ढंक लेती है.
ढंक लेती है इमारतों के कंकाल को
पेड़ों को, क़ब्रों को सफ़ेद बना देती है
और सिर्फ़ बर्फ़ ही है जो
सरहदों को भी सफ़ेद कर सकती है.
घर
मैं पूरी दुनिया के लिए कह सकता हूं यह शब्द
दुनिया के हर देश के लिए कह सकता हूं
मैं आसमान को भी कह सकता हूं
इस ब्रह्मांड की हरेक चीज़ को भी.
लेकिन तेहरान के इस बिना खिड़की वाले किराए के कमरे को
नहीं कह सकता,
मैं इसे घर नहीं कह सकता.
सरकार
कुछ अरसा हुआ
पुलिस मुझे तलाश रही है
मैंने किसी की हत्या नहीं की
मैंने सरकार के खि़लाफ़ कोई लेख भी नहीं लिखा
सिर्फ़ तुम जानती हो, मेरी प्रियतमा
कि जनता के लिए कितना त्रासद होगा
अगर सरकार महज़ इस कारण मुझसे डरने लगे
कि मैं एक मज़दूर हूं
अगर मैं क्रांतिकारी या बाग़ी होता
तब क्या करते वे?
फिर भी उस लड़के के लिए यह दुनिया
कोई बहुत ज़्यादा बदली नहीं है
जो स्कूल की सारी किताबों के पहले पन्ने पर
अपनी तस्वीर छपी देखना चाहता था.
इकलौता डर
जब मैं मरूंगा
अपने साथ अपनी सारी प्रिय किताबों को ले जाऊंगा
अपनी क़ब्र को भर दूंगा
उन लोगों की तस्वीरों से जिनसे मैंने प्यार किया.
मेर नये घर में कोई जगह नहीं होगी
भविष्य के प्रति डर के लिए.
मैं लेटा रहूंगा. मैं सिगरेट सुलगाऊंगा
और रोऊंगा उन तमाम औरतों को याद कर
जिन्हें मैं गले लगाना चाहता था.
इन सारी प्रसन्नताओं के बीच भी
एक डर बचा रहता है :
कि एक रोज़, भोरे-भोर,
कोई कंधा झिंझोड़कर जगाएगा मुझे और बोलेगा -
'अबे उठ जा सबीर, काम पे चलना है|
---सबीर हका,
अनुवाद : गीत चतुर्वेदी
क्या आपने कभी शहतूत देखा है,
जहां गिरता है, उतनी ज़मीन पर
उसके लाल रस का धब्बा पड़ जाता है.
गिरने से ज़्यादा पीड़ादायी कुछ नहीं.
मैंने कितने मज़दूरों को देखा है
इमारतों से गिरते हुए,
गिरकर शहतूत बन जाते हुए.
(ईश्वर)
(ईश्वर) भी एक मज़दूर है
ज़रूर वह वेल्डरों का भी वेल्डर होगा.
शाम की रोशनी में
उसकी आंखें अंगारों जैसी लाल होती हैं,
रात उसकी क़मीज़ पर
छेद ही छेद होते हैं.
बंदूक़
अगर उन्होंने बंदूक़ का आविष्कार न किया होता
तो कितने लोग, दूर से ही,
मारे जाने से बच जाते.
कई सारी चीज़ें आसान हो जातीं.
उन्हें मज़दूरों की ताक़त का अहसास दिलाना भी
कहीं ज़्यादा आसान होता.
मृत्यु का ख़ौफ़
ताउम्र मैंने इस बात पर भरोसा किया
कि झूठ बोलना ग़लत होता है
ग़लत होता है किसी को परेशान करना
ताउम्र मैं इस बात को स्वीकार किया
कि मौत भी जि़ंदगी का एक हिस्सा है
इसके बाद भी मुझे मृत्यु से डर लगता है
डर लगता है दूसरी दुनिया में भी मजदूर बने रहने से.
कॅरियर का चुनाव
मैं कभी साधारण बैंक कर्मचारी नहीं बन सकता था
खाने-पीने के सामानों का सेल्समैन भी नहीं
किसी पार्टी का मुखिया भी नहीं
न तो टैक्सी ड्राइवर
प्रचार में लगा मार्केटिंग वाला भी नहीं
मैं बस इतना चाहता था
कि शहर की सबसे ऊंची जगह पर खड़ा होकर
नीचे ठसाठस इमारतों के बीच उस औरत का घर देखूं
जिससे मैं प्यार करता हूं
इसलिए मैं बांधकाम मज़दूर बन गया.
मेरे पिता
अगर अपने पिता के बारे में कुछ कहने की हिम्मत करूं
तो मेरी बात का भरोसा करना,
उनके जीवन ने उन्हें बहुत कम आनंद दिया
वह शख़्स अपने परिवार के लिए समर्पित था
परिवार की कमियों को छिपाने के लिए
उसने अपना जीवन कठोर और ख़ुरदुरा बना लिया
और अब
अपनी कविताएं छपवाते हुए
मुझे सिर्फ़ एक बात का संकोच होता है
कि मेरे पिता पढ़ नहीं सकते.
आस्था
मेरे पिता मज़दूर थे
आस्था से भरे हुए इंसान
जब भी वह नमाज़ पढ़ते थे
(अल्लाह) उनके हाथों को देख शर्मिंदा हो जाता था.
मृत्यु
मेरी मां ने कहा
उसने मृत्यु को देख रखा है
उसके बड़ी-बड़ी घनी मूंछें हैं
और उसकी क़द-काठी, जैसे कोई बौराया हुआ इंसान.
उस रात से
मां की मासूमियत को
मैं शक से देखने लगा हूं.
राजनीति
बड़े-बड़े बदलाव भी
कितनी आसानी से कर दिए जाते हैं.
हाथ-काम करने वाले मज़दूरों को
राजनीतिक कार्यकर्ताओं में बदल देना भी
कितना आसान रहा, है न!
क्रेनें इस बदलाव को उठाती हैं
और सूली तक पहुंचाती हैं.
दोस्ती
मैं (ईश्वर) का दोस्त नहीं हूं
इसका सिर्फ़ एक ही कारण है
जिसकी जड़ें बहुत पुराने अतीत में हैं :
जब छह लोगों का हमारा परिवार
एक तंग कमरे में रहता था
और (ईश्वर) के पास बहुत बड़ा मकान था
जिसमें वह अकेले ही रहता था
सरहदें
जैसे कफ़न ढंक देता है लाश को
बर्फ़ भी बहुत सारी चीज़ों को ढंक लेती है.
ढंक लेती है इमारतों के कंकाल को
पेड़ों को, क़ब्रों को सफ़ेद बना देती है
और सिर्फ़ बर्फ़ ही है जो
सरहदों को भी सफ़ेद कर सकती है.
घर
मैं पूरी दुनिया के लिए कह सकता हूं यह शब्द
दुनिया के हर देश के लिए कह सकता हूं
मैं आसमान को भी कह सकता हूं
इस ब्रह्मांड की हरेक चीज़ को भी.
लेकिन तेहरान के इस बिना खिड़की वाले किराए के कमरे को
नहीं कह सकता,
मैं इसे घर नहीं कह सकता.
सरकार
कुछ अरसा हुआ
पुलिस मुझे तलाश रही है
मैंने किसी की हत्या नहीं की
मैंने सरकार के खि़लाफ़ कोई लेख भी नहीं लिखा
सिर्फ़ तुम जानती हो, मेरी प्रियतमा
कि जनता के लिए कितना त्रासद होगा
अगर सरकार महज़ इस कारण मुझसे डरने लगे
कि मैं एक मज़दूर हूं
अगर मैं क्रांतिकारी या बाग़ी होता
तब क्या करते वे?
फिर भी उस लड़के के लिए यह दुनिया
कोई बहुत ज़्यादा बदली नहीं है
जो स्कूल की सारी किताबों के पहले पन्ने पर
अपनी तस्वीर छपी देखना चाहता था.
इकलौता डर
जब मैं मरूंगा
अपने साथ अपनी सारी प्रिय किताबों को ले जाऊंगा
अपनी क़ब्र को भर दूंगा
उन लोगों की तस्वीरों से जिनसे मैंने प्यार किया.
मेर नये घर में कोई जगह नहीं होगी
भविष्य के प्रति डर के लिए.
मैं लेटा रहूंगा. मैं सिगरेट सुलगाऊंगा
और रोऊंगा उन तमाम औरतों को याद कर
जिन्हें मैं गले लगाना चाहता था.
इन सारी प्रसन्नताओं के बीच भी
एक डर बचा रहता है :
कि एक रोज़, भोरे-भोर,
कोई कंधा झिंझोड़कर जगाएगा मुझे और बोलेगा -
'अबे उठ जा सबीर, काम पे चलना है|
---सबीर हका,
अनुवाद : गीत चतुर्वेदी
1 मार्च 2016
कानून
लोहे के पैरों में भारी बूट
कन्धे से लटकती बन्दूक
कानून अपना रास्ता पकड़ेगा
हथकड़ियाँ डालकर हाथों में
तमाम ताकत से उन्हें
जेलों की ओर खींचता हुआ
गुजरेगा विचार और श्रम के बीच से
श्रम से फल को अलग करता
रखता हुआ चीजों को
पहले से तय की हुई
जगहों पर
मसलन अपराधी को
न्यायाधीश की, ग़लत को सही की
और पूँजी के दलाल को
शासक की जगह पर
रखता हुआ
चलेगा
मजदूरों पर गोली की रफ्तार से
भुखमरी की रफ्तार से किसानों पर
विरोध की जुबान पर
चाकू की तरह चलेगा
व्याख्या नहीं देगा
बहते हुए ख़ून की
कानून व्याख्या से परे कहा जायेगा
देखते-देखते
वह हमारी निगाहों और सपनों में
खौफ बनकर समा जायेगा
देश के नाम पर
जनता को गिरफ्तार करेगा
जनता के नाम पर
बेच देगा देश
सुरक्षा के नाम पर
असुरक्षित करेगा
अगर कभी वह आधी रात को
आपका दरवाजा खटखटायेगा
तो फिर समझिये कि आपका
पता नहीं चल पायेगा
खबरों में इसे मुठभेड़ कहा जायेगा
पैदा होकर मिल्कियत की कोख से
बहसा जायेगा
संसद में और कचहरियों में
झूठ की सुनहली पालिश से
चमकाकर
तब तक लोहे के पैरों
चलाया जायेगा कानून
जब तक तमाम ताकत से
तोड़ा नहीं जायेगा।
(1980)
--- गोरख पाण्डेय
कन्धे से लटकती बन्दूक
कानून अपना रास्ता पकड़ेगा
हथकड़ियाँ डालकर हाथों में
तमाम ताकत से उन्हें
जेलों की ओर खींचता हुआ
गुजरेगा विचार और श्रम के बीच से
श्रम से फल को अलग करता
रखता हुआ चीजों को
पहले से तय की हुई
जगहों पर
मसलन अपराधी को
न्यायाधीश की, ग़लत को सही की
और पूँजी के दलाल को
शासक की जगह पर
रखता हुआ
चलेगा
मजदूरों पर गोली की रफ्तार से
भुखमरी की रफ्तार से किसानों पर
विरोध की जुबान पर
चाकू की तरह चलेगा
व्याख्या नहीं देगा
बहते हुए ख़ून की
कानून व्याख्या से परे कहा जायेगा
देखते-देखते
वह हमारी निगाहों और सपनों में
खौफ बनकर समा जायेगा
देश के नाम पर
जनता को गिरफ्तार करेगा
जनता के नाम पर
बेच देगा देश
सुरक्षा के नाम पर
असुरक्षित करेगा
अगर कभी वह आधी रात को
आपका दरवाजा खटखटायेगा
तो फिर समझिये कि आपका
पता नहीं चल पायेगा
खबरों में इसे मुठभेड़ कहा जायेगा
पैदा होकर मिल्कियत की कोख से
बहसा जायेगा
संसद में और कचहरियों में
झूठ की सुनहली पालिश से
चमकाकर
तब तक लोहे के पैरों
चलाया जायेगा कानून
जब तक तमाम ताकत से
तोड़ा नहीं जायेगा।
(1980)
--- गोरख पाण्डेय
14 फ़रवरी 2016
कुछ कर गुज़रने के लिये मौसम नहीं, मन चाहिए !
कुछ कर गुज़रने के लिये मौसम नहीं, मन चाहिए !
थककर बैठो नहीं प्रतीक्षा कर रहा कोई कहीं
हारे नहीं जब हौसले
तब कम हुये सब फासले
दूरी कहीं कोई नहीं केवल समर्पण चाहिए !
कुछ कर गुज़रने के लिये मौसम नहीं, मन चाहिए !
हर दर्द झूठा लग रहा सहकर मजा आता नहीं
आँसू वही आँखें वही
कुछ है ग़लत कुछ है सही
जिसमें नया कुछ दिख सके वह एक दर्पण चाहिए !
कुछ कर गुज़रने के लिये मौसम नहीं, मन चाहिए !
राहें पुरानी पड़ गईं आख़िर मुसाफ़िर क्या करे !
सम्भोग से सन्यास तक
आवास से आकाश तक
भटके हुये इन्सान को कुछ और जीवन चाहिए !
कुछ कर गुज़रने के लिये मौसम नहीं, मन चाहिए !
कोई न हो जब साथ तो एकान्त को आवाज़ दें !
इस पार क्या उस पार क्या !
पतवार क्या मँझधार क्या !!
हर प्यास को जो दे डुबा वह एक सावन चाहिए !
कुछ कर गुज़रने के लिये मौसम नहीं, मन चाहिए !
कैसे जियें कैसे मरें यह तो पुरानी बात है !
जो कर सकें आओ करें
बदनामियों से क्यों डरें
जिसमें नियम-संयम न हो वह प्यार का क्षण चाहिए!
कुछ कर गुज़रने के लिये मौसम नहीं, मन चाहिए !
---रमानाथ अवस्थी
थककर बैठो नहीं प्रतीक्षा कर रहा कोई कहीं
हारे नहीं जब हौसले
तब कम हुये सब फासले
दूरी कहीं कोई नहीं केवल समर्पण चाहिए !
कुछ कर गुज़रने के लिये मौसम नहीं, मन चाहिए !
हर दर्द झूठा लग रहा सहकर मजा आता नहीं
आँसू वही आँखें वही
कुछ है ग़लत कुछ है सही
जिसमें नया कुछ दिख सके वह एक दर्पण चाहिए !
कुछ कर गुज़रने के लिये मौसम नहीं, मन चाहिए !
राहें पुरानी पड़ गईं आख़िर मुसाफ़िर क्या करे !
सम्भोग से सन्यास तक
आवास से आकाश तक
भटके हुये इन्सान को कुछ और जीवन चाहिए !
कुछ कर गुज़रने के लिये मौसम नहीं, मन चाहिए !
कोई न हो जब साथ तो एकान्त को आवाज़ दें !
इस पार क्या उस पार क्या !
पतवार क्या मँझधार क्या !!
हर प्यास को जो दे डुबा वह एक सावन चाहिए !
कुछ कर गुज़रने के लिये मौसम नहीं, मन चाहिए !
कैसे जियें कैसे मरें यह तो पुरानी बात है !
जो कर सकें आओ करें
बदनामियों से क्यों डरें
जिसमें नियम-संयम न हो वह प्यार का क्षण चाहिए!
कुछ कर गुज़रने के लिये मौसम नहीं, मन चाहिए !
---रमानाथ अवस्थी
25 दिसंबर 2015
Gods
The ivory gods,
And the ebony gods,
And the gods of diamond and jade,
Sit silently on their temple shelves
While the people
Are afraid.
Yet the ivory gods,
And the ebony gods,
And the gods of diamond-jade,
Are only silly puppet gods
That the people themselves
Have made.
--- Langston Hughes
And the ebony gods,
And the gods of diamond and jade,
Sit silently on their temple shelves
While the people
Are afraid.
Yet the ivory gods,
And the ebony gods,
And the gods of diamond-jade,
Are only silly puppet gods
That the people themselves
Have made.
--- Langston Hughes
16 दिसंबर 2015
नया शिवाला
सच कह दूँ ऐ बिरहमन[1] गर तू बुरा न माने
तेरे सनमकदों के बुत हो गये पुराने
अपनों से बैर रखना तू ने बुतों से सीखा
जंग-ओ-जदल[2] सिखाया वाइज़[3] को भी ख़ुदा ने
तंग आके मैंने आख़िर दैर-ओ-हरम[4] को छोड़ा
वाइज़ का वाज़[5] छोड़ा, छोड़े तेरे फ़साने
पत्थर की मूरतों में समझा है तू ख़ुदा है
ख़ाक-ए-वतन का मुझ को हर ज़र्रा देवता है
आ ग़ैरियत[6] के पर्दे इक बार फिर उठा दें
बिछड़ों को फिर मिला दें नक़्श-ए-दुई मिटा दें
सूनी पड़ी हुई है मुद्दत से दिल की बस्ती
आ इक नया शिवाला इस देस में बना दें
दुनिया के तीरथों से ऊँचा हो अपना तीरथ
दामान-ए-आस्माँ से इस का कलस मिला दें
हर सुबह मिल के गायें मन्तर वो मीठे- मीठे
सारे पुजारियों को मय प्रीत की पिला दें
शक्ती[7] भी शान्ती[8] भी भक्तों के गीत में है
धरती के वासियों की मुक्ती[9] पिरीत[10] में है
--- अल्लामा इक़बाल
1 ↑ ब्राह्मण
2 ↑ दंगा-फ़साद
3 ↑ उपदेशक
4 ↑ मंदिर-मस्जिद
5 ↑ उपदेश
6 ↑ अपरिचय
7 ↑ शक्ति
8 ↑ शांति
9 ↑ मुक्ति
10 ↑ प्रीत
तेरे सनमकदों के बुत हो गये पुराने
अपनों से बैर रखना तू ने बुतों से सीखा
जंग-ओ-जदल[2] सिखाया वाइज़[3] को भी ख़ुदा ने
तंग आके मैंने आख़िर दैर-ओ-हरम[4] को छोड़ा
वाइज़ का वाज़[5] छोड़ा, छोड़े तेरे फ़साने
पत्थर की मूरतों में समझा है तू ख़ुदा है
ख़ाक-ए-वतन का मुझ को हर ज़र्रा देवता है
आ ग़ैरियत[6] के पर्दे इक बार फिर उठा दें
बिछड़ों को फिर मिला दें नक़्श-ए-दुई मिटा दें
सूनी पड़ी हुई है मुद्दत से दिल की बस्ती
आ इक नया शिवाला इस देस में बना दें
दुनिया के तीरथों से ऊँचा हो अपना तीरथ
दामान-ए-आस्माँ से इस का कलस मिला दें
हर सुबह मिल के गायें मन्तर वो मीठे- मीठे
सारे पुजारियों को मय प्रीत की पिला दें
शक्ती[7] भी शान्ती[8] भी भक्तों के गीत में है
धरती के वासियों की मुक्ती[9] पिरीत[10] में है
--- अल्लामा इक़बाल
1 ↑ ब्राह्मण
2 ↑ दंगा-फ़साद
3 ↑ उपदेशक
4 ↑ मंदिर-मस्जिद
5 ↑ उपदेश
6 ↑ अपरिचय
7 ↑ शक्ति
8 ↑ शांति
9 ↑ मुक्ति
10 ↑ प्रीत
6 दिसंबर 2015
भीड़ मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूँ
मौका-ए-वारदात पर तमाम चश्मदीद गवाहों के बावजूद भी
मुझे तुम्हारे बेगुनाह होने पर यकीन है
मैने देखा है तुम्हारा बिल्कुल निष्क्रिय रहने का हुनर
जो बहुत लगन से सीखा है तुमने
तुम तमाम बुरी ख़बरें अपने घर परिवार के साथ
टी वी के सामने बैठ कर देख सकती हो
मैने देखा है, कैसे किसानों की आत्महत्या जैसे विषय
तुम्हारे लिए बेहद उबाऊ हैं
और अगर पास की बहुमंज़िली इमारत में आग लग जाये
तो तुम इत्मिनान से अपने खिड़की दरवाज़े बंद कर देती हो
नहीं मैने नहीं देखा तुम्हें विचलित होते हुए भूकंप से
या ख़राब मौसम की भविष्यवाणी से
तमाम एक भीड़ के कुचले जाने पर भी तुम उफ़ नहीं करती
फिर वह कुम्भ में हो या हज में
मैने नहीं देखी तुम्हारी दिलचस्पी कहीं भी
तुमने तो अफ़वाह फैलाना तक बंद कर दिया है
फिर मैं कैसे मान लूँ कि किसी ने तुम्हें इतना उकसा दिया
कि तुम हत्यारे हो गए?
तुम बेगुनाह तो हो, पर नशे में हो
जातिवाचक से व्यक्तिवाचक बनने के ख्वाब में
तुम्हें तो पता भी नहीं कि जिस हथियार से ख़ून हुआ
उसपर तुम्हारे उँगलियों के निशान थे
क्या अपनी पैरवी नहीं करोगी, नहीं ढूँढोगी कोई अच्छा वक़ील?
जो तुम्हें कोई नाम दिए जाने से बचा ले, और कड़ी से कड़ी सज़ा तुम्हें ना सुनाई जाये?
तुम गुनहगारों को ना पहचानो ना सही
तुम क्या खुद के निर्दोष होने की गुहार भी नहीं लगाओगी?
अपनी निष्क्रियता में क्या तुमसे इतना भी नहीं होगा,
कि असली मुजरिम को पहचानने की कोशिश तो शुरु होगी?
--- Beji Jaison
मुझे तुम्हारे बेगुनाह होने पर यकीन है
मैने देखा है तुम्हारा बिल्कुल निष्क्रिय रहने का हुनर
जो बहुत लगन से सीखा है तुमने
तुम तमाम बुरी ख़बरें अपने घर परिवार के साथ
टी वी के सामने बैठ कर देख सकती हो
मैने देखा है, कैसे किसानों की आत्महत्या जैसे विषय
तुम्हारे लिए बेहद उबाऊ हैं
और अगर पास की बहुमंज़िली इमारत में आग लग जाये
तो तुम इत्मिनान से अपने खिड़की दरवाज़े बंद कर देती हो
नहीं मैने नहीं देखा तुम्हें विचलित होते हुए भूकंप से
या ख़राब मौसम की भविष्यवाणी से
तमाम एक भीड़ के कुचले जाने पर भी तुम उफ़ नहीं करती
फिर वह कुम्भ में हो या हज में
मैने नहीं देखी तुम्हारी दिलचस्पी कहीं भी
तुमने तो अफ़वाह फैलाना तक बंद कर दिया है
फिर मैं कैसे मान लूँ कि किसी ने तुम्हें इतना उकसा दिया
कि तुम हत्यारे हो गए?
तुम बेगुनाह तो हो, पर नशे में हो
जातिवाचक से व्यक्तिवाचक बनने के ख्वाब में
तुम्हें तो पता भी नहीं कि जिस हथियार से ख़ून हुआ
उसपर तुम्हारे उँगलियों के निशान थे
क्या अपनी पैरवी नहीं करोगी, नहीं ढूँढोगी कोई अच्छा वक़ील?
जो तुम्हें कोई नाम दिए जाने से बचा ले, और कड़ी से कड़ी सज़ा तुम्हें ना सुनाई जाये?
तुम गुनहगारों को ना पहचानो ना सही
तुम क्या खुद के निर्दोष होने की गुहार भी नहीं लगाओगी?
अपनी निष्क्रियता में क्या तुमसे इतना भी नहीं होगा,
कि असली मुजरिम को पहचानने की कोशिश तो शुरु होगी?
--- Beji Jaison
27 नवंबर 2015
सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या
सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या
कहती है तुझ को ख़ल्क़-ए-ख़ुदा गा़एबाना क्या
क्या क्या उलझता है तिरी ज़ुल्फों के तार से
बख़िया-तलब है सीना-ए-सद-चाक-शाना क्या
ज़ेर-ए-जमीं से आता है जो गुल सो ज़र-ब-कफ़
क़ारूँ ने रास्ते में लुटाया ख़जाना क्या
उड़ता है शौक़-ए-राहत-ए-मंज़िल से अस्प-ए-उम्र
महमेज़ कहते हैंगे किसे ताज़ियाना क्या
ज़ीना सबा ढूँढती है अपनी मुश्त-ए-ख़ाक
बाम-ए-बुलंद यार का है आस्ताना क्या
चारों तरफ से सूरत-ए-जानाँ हो जलवा गर
दिल साफ़ हो तिरा तो है आईना-ख़ाना क्या
सय्याद असीर-ए-दाम-ए-रग-ए-गुल है अंदलीब
दिखला रहा है छु के उसे दाम ओ दाना क्या
तब्ल-ओ-अलम ही पास है अपने न मुल्क ओ माल
हम से खिलाफ हो के करेगा ज़माना क्या
आती है किस तरह से मिरे क़ब्ज़-ए-रूह को
देखूँ तो मौत ढूँढ रही है बहाना क्या
होता है जर्द सुन के जो ना-मर्द मुद्दई
रूस्तम की दास्ताँ है हमारा फ़साना क्या
तिरछी निगह से ताइर-ए-दिल हो चुका शिकार
जब तीर कज पड़े तो अड़ेगा निशाना क्या
सय्याद-ए-गुल अज़ार दिखाता है सैर-ए-ब़ाग
बुलबुल क़फ़स में याद करे आशियाना क्या
बे-ताब है कमाल हमारा दिल-ए-हज़ीं
मेहमाँ सरा-ए-जिस्म का होगा रवाना क्या
यूँ मुद्दई हसद से न दे दाद तो न दे
‘आतिश’ ग़जल ये तू ने कही आशिक़ाना क्या
--- हैदर अली 'आतिश'
कहती है तुझ को ख़ल्क़-ए-ख़ुदा गा़एबाना क्या
क्या क्या उलझता है तिरी ज़ुल्फों के तार से
बख़िया-तलब है सीना-ए-सद-चाक-शाना क्या
ज़ेर-ए-जमीं से आता है जो गुल सो ज़र-ब-कफ़
क़ारूँ ने रास्ते में लुटाया ख़जाना क्या
उड़ता है शौक़-ए-राहत-ए-मंज़िल से अस्प-ए-उम्र
महमेज़ कहते हैंगे किसे ताज़ियाना क्या
ज़ीना सबा ढूँढती है अपनी मुश्त-ए-ख़ाक
बाम-ए-बुलंद यार का है आस्ताना क्या
चारों तरफ से सूरत-ए-जानाँ हो जलवा गर
दिल साफ़ हो तिरा तो है आईना-ख़ाना क्या
सय्याद असीर-ए-दाम-ए-रग-ए-गुल है अंदलीब
दिखला रहा है छु के उसे दाम ओ दाना क्या
तब्ल-ओ-अलम ही पास है अपने न मुल्क ओ माल
हम से खिलाफ हो के करेगा ज़माना क्या
आती है किस तरह से मिरे क़ब्ज़-ए-रूह को
देखूँ तो मौत ढूँढ रही है बहाना क्या
होता है जर्द सुन के जो ना-मर्द मुद्दई
रूस्तम की दास्ताँ है हमारा फ़साना क्या
तिरछी निगह से ताइर-ए-दिल हो चुका शिकार
जब तीर कज पड़े तो अड़ेगा निशाना क्या
सय्याद-ए-गुल अज़ार दिखाता है सैर-ए-ब़ाग
बुलबुल क़फ़स में याद करे आशियाना क्या
बे-ताब है कमाल हमारा दिल-ए-हज़ीं
मेहमाँ सरा-ए-जिस्म का होगा रवाना क्या
यूँ मुद्दई हसद से न दे दाद तो न दे
‘आतिश’ ग़जल ये तू ने कही आशिक़ाना क्या
--- हैदर अली 'आतिश'
14 नवंबर 2015
A child
A child with its ear to the rails
is listening for the train.
Lost in the omnipresent music
it cares little
whether the train is coming or going away ...
But you were always expecting someone,
always parting from someone,
until you found yourself and are no longer anywhere
---Vladimír Holan
is listening for the train.
Lost in the omnipresent music
it cares little
whether the train is coming or going away ...
But you were always expecting someone,
always parting from someone,
until you found yourself and are no longer anywhere
---Vladimír Holan
2 अक्तूबर 2015
You start dying slowly
You start dying slowly
if you do not travel,
if you do not read,
If you do not listen to the sounds of life,
If you do not appreciate yourself.
You start dying slowly
When you kill your self-esteem;
When you do not let others help you.
You start dying slowly
If you become a slave of your habits,
Walking everyday on the same paths…
If you do not change your routine,
If you do not wear different colours
Or you do not speak to those you don’t know.
You start dying slowly
If you avoid to feel passion
And their turbulent emotions;
Those which make your eyes glisten
And your heart beat fast.
You start dying slowly
If you do not change your life when you are not satisfied with your job, or with your love,
If you do not risk what is safe for the uncertain,
If you do not go after a dream,
If you do not allow yourself,
At least once in your lifetime,
To run away from sensible advice…
~ Pablo Neruda
if you do not travel,
if you do not read,
If you do not listen to the sounds of life,
If you do not appreciate yourself.
You start dying slowly
When you kill your self-esteem;
When you do not let others help you.
You start dying slowly
If you become a slave of your habits,
Walking everyday on the same paths…
If you do not change your routine,
If you do not wear different colours
Or you do not speak to those you don’t know.
You start dying slowly
If you avoid to feel passion
And their turbulent emotions;
Those which make your eyes glisten
And your heart beat fast.
You start dying slowly
If you do not change your life when you are not satisfied with your job, or with your love,
If you do not risk what is safe for the uncertain,
If you do not go after a dream,
If you do not allow yourself,
At least once in your lifetime,
To run away from sensible advice…
~ Pablo Neruda
2 सितंबर 2015
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
सितारों के आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़[1] के इम्तिहाँ[2] और भी हैं
तही ज़िन्दगी से नहीं ये फ़ज़ायें
यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं
क़ना'अत[3]न कर आलम-ए-रंग-ओ-बू[4]पर
चमन और भी, आशियाँ[5]और भी हैं
अगर खो गया एक नशेमन तो क्या ग़म
मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ[6]और भी हैं
तू शाहीं[7]है परवाज़[8]है काम तेरा
तेरे सामने आसमाँ और भी हैं
इसी रोज़-ओ-शब [9]में उलझ कर न रह जा
के तेरे ज़मीन-ओ-मकाँ [10]और भी हैं
गए दिन के तन्हा था मैं अंजुमन [11]में
यहाँ अब मेरे राज़दाँ [12]और भी हैं
--- अल्लामा इक़बाल
शब्दार्थ:
1 ↑ प्रेम
2 ↑ परीक्षाएँ
3 ↑ संतोष
4 ↑ इन्द्रीय संसार
5 ↑ घरौंदे
6 ↑ रोने-धोने की जगहें
7 ↑ गरुड़ , उक़ाब
8 ↑ उड़ान भरना
9 ↑ सुबह -शाम के चक्कर
10 ↑ धरती और मकान
11 ↑ महफ़िल
12 ↑ रहस्य जानने वाले
अभी इश्क़[1] के इम्तिहाँ[2] और भी हैं
तही ज़िन्दगी से नहीं ये फ़ज़ायें
यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं
क़ना'अत[3]न कर आलम-ए-रंग-ओ-बू[4]पर
चमन और भी, आशियाँ[5]और भी हैं
अगर खो गया एक नशेमन तो क्या ग़म
मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ[6]और भी हैं
तू शाहीं[7]है परवाज़[8]है काम तेरा
तेरे सामने आसमाँ और भी हैं
इसी रोज़-ओ-शब [9]में उलझ कर न रह जा
के तेरे ज़मीन-ओ-मकाँ [10]और भी हैं
गए दिन के तन्हा था मैं अंजुमन [11]में
यहाँ अब मेरे राज़दाँ [12]और भी हैं
--- अल्लामा इक़बाल
शब्दार्थ:
1 ↑ प्रेम
2 ↑ परीक्षाएँ
3 ↑ संतोष
4 ↑ इन्द्रीय संसार
5 ↑ घरौंदे
6 ↑ रोने-धोने की जगहें
7 ↑ गरुड़ , उक़ाब
8 ↑ उड़ान भरना
9 ↑ सुबह -शाम के चक्कर
10 ↑ धरती और मकान
11 ↑ महफ़िल
12 ↑ रहस्य जानने वाले
14 अगस्त 2015
मैं सोच रहा,
मैं सोच रहा, सिर पर अपार
दिन, मास, वर्ष का धरे भार
पल, प्रतिपल का अंबार लगा
आखिर पाया तो क्या पाया?
जब तान छिड़ी, मैं बोल उठा
जब थाप पड़ी, पग डोल उठा
औरों के स्वर में स्वर भर कर
अब तक गाया तो क्या गाया?
दिन, मास, वर्ष का धरे भार
पल, प्रतिपल का अंबार लगा
आखिर पाया तो क्या पाया?
जब तान छिड़ी, मैं बोल उठा
जब थाप पड़ी, पग डोल उठा
औरों के स्वर में स्वर भर कर
अब तक गाया तो क्या गाया?
सब लुटा विश्व को रंक हुआ
रीता तब मेरा अंक हुआ
दाता से फिर याचक बनकर
कण-कण पाया तो क्या पाया?
जिस ओर उठी अंगुली जग की
उस ओर मुड़ी गति भी पग की
जग के अंचल से बंधा हुआ
खिंचता आया तो क्या आया?
जो वर्तमान ने उगल दिया
उसको भविष्य ने निगल लिया
है ज्ञान, सत्य ही श्रेष्ठ किंतु
जूठन खाया तो क्या खाया?
4 अगस्त 2015
The Swallow
Oh, Swallow
As you depart our spring
slow down.
In the wood burner's exhaust pipe
as the firewood came inside,
you forgot your echo.
Oh, Swallow,
slow down.
With the feather in the
window, Swallow,
we adorned
the martyr's picture
and death flew out of the picture.
Slow down, Swallow.
The nest belongs
to whoever builds it.
---Hala Mohammad
As you depart our spring
slow down.
In the wood burner's exhaust pipe
as the firewood came inside,
you forgot your echo.
Oh, Swallow,
slow down.
With the feather in the
window, Swallow,
we adorned
the martyr's picture
and death flew out of the picture.
Slow down, Swallow.
The nest belongs
to whoever builds it.
---Hala Mohammad
25 जुलाई 2015
सेलफ़ोन
आप अपने सेलफ़ोन पर बात करते हैं
करते रहते हैं,
करते जाते हैं
और हँसते हैं अपने सेलफ़ोन पर
यह न जानते हुए कि वह कैसे बना था
और यह तो और भी नहीं कि वह कैसे काम करता है
लेकिन इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है
परेशानी की बात यह कि
आप नहीं जानते
जैसे मैं भी नहीं जानता था
कि कांगो में मौत के शिकार होते हैं बहुत से लोग
हज़ारों हज़ार
इस सेलफ़ोन की वजह से
वे मौत के मुँह में जाते हैं कांगो में
उसके पहाड़ों में कोल्टन होता है
(सोने और हीरे के अलावा)
जो काम आता है सेलफ़ोन के
कण्डेंसरों में
खनिजों पर क़ब्ज़ा करने के लिए
बहुराष्ट्रीय निगम
छेड़े रहते हैं एक अन्तहीन जंग
15 साल में 50 लाख मृतक
और वे नहीं चाहते कि यह बात
लोगों को पता चले
विशाल सम्पदा वाला देश
जिसकी आबादी त्रस्त है ग़रीबी से
दुनिया के 80 प्रतिशत कोल्टन के
भण्डार हैं कांगो में
कोल्टन वहाँ छिपा हुआ है
तीस हज़ार लाख वर्षों से
नोकिया, मोटरोला, कम्पाक, सोनी
ख़रीदते हैं कोल्टन
और पेंटागन भी, न्यूयॉर्क टाइम्स
कारपोरेशन भी,
और वे इसका पता नहीं चलने देना चाहते
वे नहीं चाहते कि युद्ध ख़त्म हो
ताकि कोल्टन को हथियाया जाना जारी रह सके
7 से 10 साल तक के बच्चे निकालते हैं कोल्टन
क्योंकि छोटे छेदों में आसानी से
समा जाते हैं
उनके छोटे शरीर
25 सेण्ट रोज़ाना की मजूरी पर
और झुण्ड के झुण्ड बच्चे मर जाते हैं
कोल्टन पाउडर के कारण
या चट्टानों पर चोट करने की वजह से
जो गिर पड़ती है उनके ऊपर
न्यूयॉर्क टाइम्स भी
नहीं चाहता कि यह बात पता चले
और इस तरह अज्ञात ही रहता है
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का
यह संगठित अपराध
बाइबिल में पहचाना गया है
सत्य और न्याय
और प्रेम और सत्य
तब उस सत्य की अहमियत में
जो हमें मुक्त करेगा
शामिल है कोल्टन का सत्य भी
कोल्टन जो आपके सेलफ़ोन के भीतर है
जिस पर आप बात करते हैं करते जाते हैं
और हँसते हैं सेलफ़ोन पर बात करते हुए
---एर्नेस्तो कार्देनाल
अनुवाद: मंगलेश डबराल
करते रहते हैं,
करते जाते हैं
और हँसते हैं अपने सेलफ़ोन पर
यह न जानते हुए कि वह कैसे बना था
और यह तो और भी नहीं कि वह कैसे काम करता है
लेकिन इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है
परेशानी की बात यह कि
आप नहीं जानते
जैसे मैं भी नहीं जानता था
कि कांगो में मौत के शिकार होते हैं बहुत से लोग
हज़ारों हज़ार
इस सेलफ़ोन की वजह से
वे मौत के मुँह में जाते हैं कांगो में
उसके पहाड़ों में कोल्टन होता है
(सोने और हीरे के अलावा)
जो काम आता है सेलफ़ोन के
कण्डेंसरों में
खनिजों पर क़ब्ज़ा करने के लिए
बहुराष्ट्रीय निगम
छेड़े रहते हैं एक अन्तहीन जंग
15 साल में 50 लाख मृतक
और वे नहीं चाहते कि यह बात
लोगों को पता चले
विशाल सम्पदा वाला देश
जिसकी आबादी त्रस्त है ग़रीबी से
दुनिया के 80 प्रतिशत कोल्टन के
भण्डार हैं कांगो में
कोल्टन वहाँ छिपा हुआ है
तीस हज़ार लाख वर्षों से
नोकिया, मोटरोला, कम्पाक, सोनी
ख़रीदते हैं कोल्टन
और पेंटागन भी, न्यूयॉर्क टाइम्स
कारपोरेशन भी,
और वे इसका पता नहीं चलने देना चाहते
वे नहीं चाहते कि युद्ध ख़त्म हो
ताकि कोल्टन को हथियाया जाना जारी रह सके
7 से 10 साल तक के बच्चे निकालते हैं कोल्टन
क्योंकि छोटे छेदों में आसानी से
समा जाते हैं
उनके छोटे शरीर
25 सेण्ट रोज़ाना की मजूरी पर
और झुण्ड के झुण्ड बच्चे मर जाते हैं
कोल्टन पाउडर के कारण
या चट्टानों पर चोट करने की वजह से
जो गिर पड़ती है उनके ऊपर
न्यूयॉर्क टाइम्स भी
नहीं चाहता कि यह बात पता चले
और इस तरह अज्ञात ही रहता है
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का
यह संगठित अपराध
बाइबिल में पहचाना गया है
सत्य और न्याय
और प्रेम और सत्य
तब उस सत्य की अहमियत में
जो हमें मुक्त करेगा
शामिल है कोल्टन का सत्य भी
कोल्टन जो आपके सेलफ़ोन के भीतर है
जिस पर आप बात करते हैं करते जाते हैं
और हँसते हैं सेलफ़ोन पर बात करते हुए
---एर्नेस्तो कार्देनाल
अनुवाद: मंगलेश डबराल
4 जुलाई 2015
I Am Your Waiter Tonight And My Name Is Dmitri
I Am Your Waiter Tonight And My Name Is Dmitri
Is, more or less, the title of a poem by John Ashbery and has
No investment in the fact that you can get an adolescent
Of the human species to do almost anything (and when adolescence
In the human species ends is what The Fat Man in The Maltese Falcon
Calls, “a nice question, sir, a very nice question indeed”)
Which is why they are tromping down a road in Fallujah
In combat gear and a hundred and fifteen degrees of heat
This morning and why a young woman is strapping
Twenty pounds of explosives to her mortal body in Jerusalem.
Dulce et decorum est pro patria mori. Have I mentioned
That the other law of human nature is that human beings
Will do anything they see someone else do and someone
Will do almost anything? There is probably a waiter
In this country so clueless he wears a T-shirt in the gym
That says Da Meat Tree. Not our protagonist. American amnesia
Is such that he may very well be the great-grandson
Of the elder Karamazov brother who fled to the Middle West
With his girl friend Grushenka—he never killed his father,
It isn’t true that he killed his father—but his religion
Was that woman’s honey-colored head, an ideal tangible
Enough to die for, and he lived for it: in Buffalo,
New York, or Sandusky, Ohio. He never learned much English,
But he slept beside her in the night until she was an old woman
Who still knew her way to the Russian pharmacist
In a Chicago suburb where she could buy sachets of the herbs
Of the Russian summer that her coarse white nightgown
Smelled of as he fell asleep, though he smoked Turkish cigarettes
And could hardly smell. Grushenka got two boys out of her body,
One was born in 1894, the other in 1896,
The elder having died in the mud at the Battle of the Somme
From a piece of shrapnel manufactured by Alfred Nobel.
Metal traveling at that speed works amazing transformations
On the tissues of the human intestine; the other son worked
construction
The year his mother died. If they could have, they would have,
If not filled, half-filled her coffin with the petals
Of buckwheat flowers from which Crimean bees made the honey
Bought in the honey market in St. Petersburg (not far
From the place where Raskolnikov, himself an adolescent male,
Couldn’t kill the old moneylender without killing her saintly sister,
But killed her nevertheless in a fit of guilt and reasoning
Which went something like this: since the world
Evidently consists in the ravenous pursuit of wealth
And power and in the exploitation and prostitution
Of women, except the wholly self-sacrificing ones
Who make you crazy with guilt, and since I am going
To be the world, I might as well take an axe to the head
Of this woman who symbolizes both usury and the guilt
The virtue and suffering of women induces in men,
And be done with it). I frankly admit the syntax
Of that sentence, like the intestines slithering from the hands
Of the startled boys clutching their belly wounds
At the Somme, has escaped my grip. I step over it
Gingerly. Where were we? Not far from the honey market,
Which is not far from the hay market. It is important
To remember that the teeming cities of the nineteenth century
Were site central for horsewhipping. Humans had domesticated
The race of horses five thousand years before, harnessed them,
Trained them, whipped them mercilessly for recalcitrance
In Vienna, Prague, Naples, London, and Chicago, according
To the novels of the period which may have been noticing this
For the first time or registering an actual statistical increase
In either human brutality or the insurrectionary impulse
In horses, which were fed hay, so there ways, of course
In every European city a hay market like the one in which
Raskolnikov kissed the earth from a longing for salvation.
Grushenka, though Dostoevsky made her, probably did not
Have much use for novels of ideas. Her younger son,
A master carpenter, eventually took a degree in engineering
From Bucknell University. He married an Irish girl
From Vermont who was descended from the gardener
Of Emily Dickinson, but that’s another story. Their son
In Iwo Jima died. Gangrene. But he left behind, curled
In the body of the daughter of a Russian-Jewish cigar maker
From Minsk, the fetal curl of a being who became the lead dancer
In the Cleveland Ballet, radiant Tanya, who turned in
A bad knee sometime early 1971, just after her brother ate it
In Cao Dai Dien, for marriage and motherhood, which brings us
To our waiter, Dmitri, who, you will have noticed, is not in Bagdad.
He doesn’t even want to be an actor. He has been offered
Roles in several major motion pictures and refused them
Because he is, in fact, under contract to John Ashbery
Who is a sane and humane man and has no intention
Of releasing him from the poem. You can get killed out there.
He is allowed to go home for his mother’s birthday and she
Has described to him on the phone—a cell phone, he’s
Walking down Christopher Street with such an easy bearing
He could be St. Christopher bearing innocence across a river—
Having come across a lock, the delicate curl of a honey-
Colored lock of his great-grandmother’s Crimean-
Honey-bee-pollen. Russian-spring-wildflower-sachet-
Scented hair in the attic, where it released for her
In the July heat and rafter midsummer dark the memory
Of an odor like life itself carried to her on the wind.
Here is your sea bass with a light lemon and caper sauce.
Here is your dish of raspberries and chocolate; notice
Their subtle transfiguration of the colors of excrement and blood;
And here are the flecks of crystallized lavender that stipple it.
--- Robert Hass
Is, more or less, the title of a poem by John Ashbery and has
No investment in the fact that you can get an adolescent
Of the human species to do almost anything (and when adolescence
In the human species ends is what The Fat Man in The Maltese Falcon
Calls, “a nice question, sir, a very nice question indeed”)
Which is why they are tromping down a road in Fallujah
In combat gear and a hundred and fifteen degrees of heat
This morning and why a young woman is strapping
Twenty pounds of explosives to her mortal body in Jerusalem.
Dulce et decorum est pro patria mori. Have I mentioned
That the other law of human nature is that human beings
Will do anything they see someone else do and someone
Will do almost anything? There is probably a waiter
In this country so clueless he wears a T-shirt in the gym
That says Da Meat Tree. Not our protagonist. American amnesia
Is such that he may very well be the great-grandson
Of the elder Karamazov brother who fled to the Middle West
With his girl friend Grushenka—he never killed his father,
It isn’t true that he killed his father—but his religion
Was that woman’s honey-colored head, an ideal tangible
Enough to die for, and he lived for it: in Buffalo,
New York, or Sandusky, Ohio. He never learned much English,
But he slept beside her in the night until she was an old woman
Who still knew her way to the Russian pharmacist
In a Chicago suburb where she could buy sachets of the herbs
Of the Russian summer that her coarse white nightgown
Smelled of as he fell asleep, though he smoked Turkish cigarettes
And could hardly smell. Grushenka got two boys out of her body,
One was born in 1894, the other in 1896,
The elder having died in the mud at the Battle of the Somme
From a piece of shrapnel manufactured by Alfred Nobel.
Metal traveling at that speed works amazing transformations
On the tissues of the human intestine; the other son worked
construction
The year his mother died. If they could have, they would have,
If not filled, half-filled her coffin with the petals
Of buckwheat flowers from which Crimean bees made the honey
Bought in the honey market in St. Petersburg (not far
From the place where Raskolnikov, himself an adolescent male,
Couldn’t kill the old moneylender without killing her saintly sister,
But killed her nevertheless in a fit of guilt and reasoning
Which went something like this: since the world
Evidently consists in the ravenous pursuit of wealth
And power and in the exploitation and prostitution
Of women, except the wholly self-sacrificing ones
Who make you crazy with guilt, and since I am going
To be the world, I might as well take an axe to the head
Of this woman who symbolizes both usury and the guilt
The virtue and suffering of women induces in men,
And be done with it). I frankly admit the syntax
Of that sentence, like the intestines slithering from the hands
Of the startled boys clutching their belly wounds
At the Somme, has escaped my grip. I step over it
Gingerly. Where were we? Not far from the honey market,
Which is not far from the hay market. It is important
To remember that the teeming cities of the nineteenth century
Were site central for horsewhipping. Humans had domesticated
The race of horses five thousand years before, harnessed them,
Trained them, whipped them mercilessly for recalcitrance
In Vienna, Prague, Naples, London, and Chicago, according
To the novels of the period which may have been noticing this
For the first time or registering an actual statistical increase
In either human brutality or the insurrectionary impulse
In horses, which were fed hay, so there ways, of course
In every European city a hay market like the one in which
Raskolnikov kissed the earth from a longing for salvation.
Grushenka, though Dostoevsky made her, probably did not
Have much use for novels of ideas. Her younger son,
A master carpenter, eventually took a degree in engineering
From Bucknell University. He married an Irish girl
From Vermont who was descended from the gardener
Of Emily Dickinson, but that’s another story. Their son
In Iwo Jima died. Gangrene. But he left behind, curled
In the body of the daughter of a Russian-Jewish cigar maker
From Minsk, the fetal curl of a being who became the lead dancer
In the Cleveland Ballet, radiant Tanya, who turned in
A bad knee sometime early 1971, just after her brother ate it
In Cao Dai Dien, for marriage and motherhood, which brings us
To our waiter, Dmitri, who, you will have noticed, is not in Bagdad.
He doesn’t even want to be an actor. He has been offered
Roles in several major motion pictures and refused them
Because he is, in fact, under contract to John Ashbery
Who is a sane and humane man and has no intention
Of releasing him from the poem. You can get killed out there.
He is allowed to go home for his mother’s birthday and she
Has described to him on the phone—a cell phone, he’s
Walking down Christopher Street with such an easy bearing
He could be St. Christopher bearing innocence across a river—
Having come across a lock, the delicate curl of a honey-
Colored lock of his great-grandmother’s Crimean-
Honey-bee-pollen. Russian-spring-wildflower-sachet-
Scented hair in the attic, where it released for her
In the July heat and rafter midsummer dark the memory
Of an odor like life itself carried to her on the wind.
Here is your sea bass with a light lemon and caper sauce.
Here is your dish of raspberries and chocolate; notice
Their subtle transfiguration of the colors of excrement and blood;
And here are the flecks of crystallized lavender that stipple it.
--- Robert Hass
10 जून 2015
Night After Night
Only a virgin can enter by a closed door
her own bedroom
in which everything that is called assurance
has long smelt of masturbation's sheets,
of violence, of spittle in a well or wreath of resin
flung voluntarily on the tower of man.
If he is a poet, all will be ruined,
if a murderer, then nakedness will reign here
and there will be an applauder,
an applauder hired from the marble quarries of Aeschylus.
---Vladimír Holan
her own bedroom
in which everything that is called assurance
has long smelt of masturbation's sheets,
of violence, of spittle in a well or wreath of resin
flung voluntarily on the tower of man.
If he is a poet, all will be ruined,
if a murderer, then nakedness will reign here
and there will be an applauder,
an applauder hired from the marble quarries of Aeschylus.
---Vladimír Holan
19 मई 2015
Who are they and who are we?
Who are they and who are we?
They are the princes and the Sultans
They are the ones with wealth and power
And we are the impoverished and deprived
Use your mind, guess…
Guess who is governing whom?
Who are they and who are we?
We are the constructing, we are the workers
We are Al-Sunna, We are Al-Fard
We are the people both height and breadth
From our health, the land raises
And by our sweat, the meadows turn green
Use your mind, guess…
Guess who serves whom?
Who are they and who are we?
They are the princes and the Sultans
They are the mansions and the cars
And the selected women
Consumerist animals
Their job is only to stuff their guts
Use your mind, guess…
Guess who is eating whom?
Who are they and who are we?
We are the war, its stones and fire
We are the army liberating the land
We are the martyrs
Defeated or successful
Use your mind, guess…
Guess who is killing whom?
Who are they and who are we?
They are the princes and the Sultans
They are mere images behind the music
They are the men of politics
Naturally, with blank brains
But with colorful decorative images
Use your mind, guess…
Guess who is betraying whom?
Who are they and who are we?
They are the princes and the Sultans
They wear the latest fashions
But we live seven in a single room
They eat beef and chicken
And we eat nothing but beans
They walk around in private planes
We get crammed in buses
Their lives are nice and flowery
They’re one specie; we are another
Use your mind, guess…
Guess who will defeat whom?
---Ahmed Fouad Negm, trans. Walaa Quisay
They are the princes and the Sultans
They are the ones with wealth and power
And we are the impoverished and deprived
Use your mind, guess…
Guess who is governing whom?
Who are they and who are we?
We are the constructing, we are the workers
We are Al-Sunna, We are Al-Fard
We are the people both height and breadth
From our health, the land raises
And by our sweat, the meadows turn green
Use your mind, guess…
Guess who serves whom?
Who are they and who are we?
They are the princes and the Sultans
They are the mansions and the cars
And the selected women
Consumerist animals
Their job is only to stuff their guts
Use your mind, guess…
Guess who is eating whom?
Who are they and who are we?
We are the war, its stones and fire
We are the army liberating the land
We are the martyrs
Defeated or successful
Use your mind, guess…
Guess who is killing whom?
Who are they and who are we?
They are the princes and the Sultans
They are mere images behind the music
They are the men of politics
Naturally, with blank brains
But with colorful decorative images
Use your mind, guess…
Guess who is betraying whom?
Who are they and who are we?
They are the princes and the Sultans
They wear the latest fashions
But we live seven in a single room
They eat beef and chicken
And we eat nothing but beans
They walk around in private planes
We get crammed in buses
Their lives are nice and flowery
They’re one specie; we are another
Use your mind, guess…
Guess who will defeat whom?
---Ahmed Fouad Negm, trans. Walaa Quisay
14 मई 2015
Love After Love
The time will come
when, with elation
you will greet yourself arriving
at your own door, in your own mirror
and each will smile at the other's welcome,
and say, sit here. Eat.
You will love again the stranger who was your self.
Give wine. Give bread. Give back your heart
to itself, to the stranger who has loved you
all your life, whom you ignored
for another, who knows you by heart.
Take down the love letters from the bookshelf,
the photographs, the desperate notes,
peel your own image from the mirror.
Sit. Feast on your life.
--- Derek Walcott
when, with elation
you will greet yourself arriving
at your own door, in your own mirror
and each will smile at the other's welcome,
and say, sit here. Eat.
You will love again the stranger who was your self.
Give wine. Give bread. Give back your heart
to itself, to the stranger who has loved you
all your life, whom you ignored
for another, who knows you by heart.
Take down the love letters from the bookshelf,
the photographs, the desperate notes,
peel your own image from the mirror.
Sit. Feast on your life.
--- Derek Walcott
1 मई 2015
वह बुड्ढा
खड़ा द्वार पर, लाठी टेके,
वह जीवन का बूढ़ा पंजर,
चिमटी उसकी सिकुड़ी चमड़ी
हिलते हड्डी के ढाँचे पर।
उभरी ढीली नसें जाल सी
सूखी ठठरी से हैं लिपटीं,
पतझर में ठूँठे तरु से ज्यों
सूनी अमरबेल हो चिपटी।
उसका लंबा डील डौल है,
हट्टी कट्टी काठी चौड़ी,
इस खँडहर में बिजली सी
उन्मत्त जवानी होगी दौड़ी!
बैठी छाती की हड्डी अब,
झुकी रीढ़ कमटा सी टेढ़ी,
पिचका पेट, गढ़े कंधों पर,
फटी बिबाई से हैं एड़ी।
बैठे, टेक धरती पर माथा,
वह सलाम करता है झुककर,
उस धरती से पाँव उठा लेने को
जी करता है क्षण भर!
घुटनों से मुड़ उसकी लंबी
टाँगें जाँघें सटी परस्पर,
झुका बीच में शीश, झुर्रियों का
झाँझर मुख निकला बाहर।
हाथ जोड़, चौड़े पंजों की
गुँथी अँगुलियों को कर सन्मुख,
मौन त्रस्त चितवन से,
कातर वाणी से वह कहता निज दुख।
गर्मी के दिन, धरे उपरनी सिर पर,
लुंगी से ढाँपे तन,--
नंगी देह भरी बालों से,--
वन मानुस सा लगता वह जन।
भूखा है: पैसे पा, कुछ गुनमुना,
खड़ा हो, जाता वह घर,
पिछले पैरों के बल उठ
जैसे कोई चल रहा जानवर!
काली नारकीय छाया निज
छोड़ गया वह मेरे भीतर,
पैशाचिक सा कुछ: दुःखों से
मनुज गया शायद उसमें मर!
--- सुमित्रानंदन पंत
वह जीवन का बूढ़ा पंजर,
चिमटी उसकी सिकुड़ी चमड़ी
हिलते हड्डी के ढाँचे पर।
उभरी ढीली नसें जाल सी
सूखी ठठरी से हैं लिपटीं,
पतझर में ठूँठे तरु से ज्यों
सूनी अमरबेल हो चिपटी।
उसका लंबा डील डौल है,
हट्टी कट्टी काठी चौड़ी,
इस खँडहर में बिजली सी
उन्मत्त जवानी होगी दौड़ी!
बैठी छाती की हड्डी अब,
झुकी रीढ़ कमटा सी टेढ़ी,
पिचका पेट, गढ़े कंधों पर,
फटी बिबाई से हैं एड़ी।
बैठे, टेक धरती पर माथा,
वह सलाम करता है झुककर,
उस धरती से पाँव उठा लेने को
जी करता है क्षण भर!
घुटनों से मुड़ उसकी लंबी
टाँगें जाँघें सटी परस्पर,
झुका बीच में शीश, झुर्रियों का
झाँझर मुख निकला बाहर।
हाथ जोड़, चौड़े पंजों की
गुँथी अँगुलियों को कर सन्मुख,
मौन त्रस्त चितवन से,
कातर वाणी से वह कहता निज दुख।
गर्मी के दिन, धरे उपरनी सिर पर,
लुंगी से ढाँपे तन,--
नंगी देह भरी बालों से,--
वन मानुस सा लगता वह जन।
भूखा है: पैसे पा, कुछ गुनमुना,
खड़ा हो, जाता वह घर,
पिछले पैरों के बल उठ
जैसे कोई चल रहा जानवर!
काली नारकीय छाया निज
छोड़ गया वह मेरे भीतर,
पैशाचिक सा कुछ: दुःखों से
मनुज गया शायद उसमें मर!
--- सुमित्रानंदन पंत
24 अप्रैल 2015
Wretched exiles, rare survivors
Wretched exiles, rare survivors
Of a brave and martyr race,
Children of a captive mother,
Heroes with no resting place,
Far from home in squalid hovels,
Sick and pale from lack of sleep,
See them drink to drown their sorrows,
Hear them sing and singing, weep!
Drink… For drunkenness erases
Former troubles, present woes,
Bitter memories effaces,
Gives a broken heart repose.
Heads grow heavier, a mother’s
Look of anguish disappears
And a son’s appeal is smothered,
For the mind no longer hears.
Winter winds intone a descant,
Terrifyingly they swirl,
Whirl and lift the song rebellious,
Carry it across the world.
Fouler still the sky is seething,
Chillier the frowning night,
Ever louder the Armenians
Sing, the storm attains its height…
Thus they drink and sink… Survivors
Of a brave and martyr race,
Children of a captive mother,
Heroes with no resting place.
Far from home, barefoot and ragged,
In slum squalor shorn of sleep,
See them drink to ease the agony,
Hear them sing and, singing, weep!
--- P. Yavorov (1900)
Of a brave and martyr race,
Children of a captive mother,
Heroes with no resting place,
Far from home in squalid hovels,
Sick and pale from lack of sleep,
See them drink to drown their sorrows,
Hear them sing and singing, weep!
Drink… For drunkenness erases
Former troubles, present woes,
Bitter memories effaces,
Gives a broken heart repose.
Heads grow heavier, a mother’s
Look of anguish disappears
And a son’s appeal is smothered,
For the mind no longer hears.
Winter winds intone a descant,
Terrifyingly they swirl,
Whirl and lift the song rebellious,
Carry it across the world.
Fouler still the sky is seething,
Chillier the frowning night,
Ever louder the Armenians
Sing, the storm attains its height…
Thus they drink and sink… Survivors
Of a brave and martyr race,
Children of a captive mother,
Heroes with no resting place.
Far from home, barefoot and ragged,
In slum squalor shorn of sleep,
See them drink to ease the agony,
Hear them sing and, singing, weep!
--- P. Yavorov (1900)
18 अप्रैल 2015
What’s Wrong With Our President?
I never fret, and will always say
A word, for which, I am responsible
That the president is a compassionate man
Constantly, busy working for his people
Busy, gathering their money
Outside, in Switzerland, saving it for us
In secret bank accounts
Poor guy, looking out for our future
Can’t you see his kindly heart?
In faith and good conscience
He only starves you; so you’d lose the weight
O what a people! In need of a diet
O the ignorance! You talk of “unemployment”
And how conditions have become dysfunctional
The man just wants to see you rested
Since when was rest such a burden???
And this talk of the resorts
Why do they call them political prisons??
Why do you have to be so suspicious?
He just wants you to have some fun
With regards to “The Chair”
It is without a doubt
All our fault!!
Couldn’t we buy him a Teflon Chair?
I swear, you mistreated the poor man
He wasted his life away, and for what?
Even your food, he eats it for you!
Devouring all that’s in his way
After all this, what’s wrong with our president?
--- Ahmed Fouad Negm; trans. Walaa Quisay
A word, for which, I am responsible
That the president is a compassionate man
Constantly, busy working for his people
Busy, gathering their money
Outside, in Switzerland, saving it for us
In secret bank accounts
Poor guy, looking out for our future
Can’t you see his kindly heart?
In faith and good conscience
He only starves you; so you’d lose the weight
O what a people! In need of a diet
O the ignorance! You talk of “unemployment”
And how conditions have become dysfunctional
The man just wants to see you rested
Since when was rest such a burden???
And this talk of the resorts
Why do they call them political prisons??
Why do you have to be so suspicious?
He just wants you to have some fun
With regards to “The Chair”
It is without a doubt
All our fault!!
Couldn’t we buy him a Teflon Chair?
I swear, you mistreated the poor man
He wasted his life away, and for what?
Even your food, he eats it for you!
Devouring all that’s in his way
After all this, what’s wrong with our president?
--- Ahmed Fouad Negm; trans. Walaa Quisay
15 अप्रैल 2015
लम्हे-लम्हे की सियासत पे नज़र रखते हैं
लम्हे-लम्हे की सियासत पे नज़र रखते हैं
हमसे दीवाने भी दुनिया की ख़बर रखते हैं
इतने नादां भी नहीं हम कि भटक कर रह जाएँ
कोई मंज़िल न सही, राहगुज़र रखते हैं
रात ही रात है, बाहर कोई झाँके तो सही
यूँ तो आँखों में सभी ख़्वाब-ए-सहर रखते हैं
मार ही डाले जो बेमौत ये दुनिया वो है,
हम जो जिन्दा हैं तो जीने का हुनर रखते हैं!
हम से इस दरजा तग़ाफुल भी न बरतो साहब
हम भी कुछ अपनी दुआओं में असर रखते हैं
---जांनिसार अख्तर
हमसे दीवाने भी दुनिया की ख़बर रखते हैं
इतने नादां भी नहीं हम कि भटक कर रह जाएँ
कोई मंज़िल न सही, राहगुज़र रखते हैं
रात ही रात है, बाहर कोई झाँके तो सही
यूँ तो आँखों में सभी ख़्वाब-ए-सहर रखते हैं
मार ही डाले जो बेमौत ये दुनिया वो है,
हम जो जिन्दा हैं तो जीने का हुनर रखते हैं!
हम से इस दरजा तग़ाफुल भी न बरतो साहब
हम भी कुछ अपनी दुआओं में असर रखते हैं
---जांनिसार अख्तर
3 अप्रैल 2015
Lord’s Prayer
Our Father which art in heaven
Full of all manner of problems
With a wrinkled brow
(As if you were a common everyday man)
Think no more of us.
We understand that you suffer
Because you can’t put everything in order.
We know the Demon will not leave you alone
Tearing down everything you build.
He laughs at you
But we weep with you:
Don’t pay any attention to his devilish laughter.
Our Father who art where thou art
Surrounded by unfaithful Angels
Sincerely don’t suffer any more for us
You must take into account
That the gods are not infallible
And that we have come to forgive everything.
--- Nicanor Parra [translated from the Spanish by Miller Williams]
Full of all manner of problems
With a wrinkled brow
(As if you were a common everyday man)
Think no more of us.
We understand that you suffer
Because you can’t put everything in order.
We know the Demon will not leave you alone
Tearing down everything you build.
He laughs at you
But we weep with you:
Don’t pay any attention to his devilish laughter.
Our Father who art where thou art
Surrounded by unfaithful Angels
Sincerely don’t suffer any more for us
You must take into account
That the gods are not infallible
And that we have come to forgive everything.
--- Nicanor Parra [translated from the Spanish by Miller Williams]
28 मार्च 2015
And death shall have no dominion.
And death shall have no dominion.
Dead man naked they shall be one
With the man in the wind and the west moon;
When their bones are picked clean and the clean bones gone,
They shall have stars at elbow and foot;
Though they go mad they shall be sane,
Though they sink through the sea they shall rise again;
Though lovers be lost love shall not;
And death shall have no dominion.
And death shall have no dominion.
Under the windings of the sea
They lying long shall not die windily;
Twisting on racks when sinews give way,
Strapped to a wheel, yet they shall not break;
Faith in their hands shall snap in two,
And the unicorn evils run them through;
Split all ends up they shan't crack;
And death shall have no dominion.
And death shall have no dominion.
No more may gulls cry at their ears
Or waves break loud on the seashores;
Where blew a flower may a flower no more
Lift its head to the blows of the rain;
Though they be mad and dead as nails,
Heads of the characters hammer through daisies;
Break in the sun till the sun breaks down,
And death shall have no dominion.
---Dylan Thomas
Dead man naked they shall be one
With the man in the wind and the west moon;
When their bones are picked clean and the clean bones gone,
They shall have stars at elbow and foot;
Though they go mad they shall be sane,
Though they sink through the sea they shall rise again;
Though lovers be lost love shall not;
And death shall have no dominion.
And death shall have no dominion.
Under the windings of the sea
They lying long shall not die windily;
Twisting on racks when sinews give way,
Strapped to a wheel, yet they shall not break;
Faith in their hands shall snap in two,
And the unicorn evils run them through;
Split all ends up they shan't crack;
And death shall have no dominion.
And death shall have no dominion.
No more may gulls cry at their ears
Or waves break loud on the seashores;
Where blew a flower may a flower no more
Lift its head to the blows of the rain;
Though they be mad and dead as nails,
Heads of the characters hammer through daisies;
Break in the sun till the sun breaks down,
And death shall have no dominion.
---Dylan Thomas
13 मार्च 2015
There is a relationship between war and words
There is a relationship between war and words.
There is a relationship between love and words.
I choose my battle in words.
I make fire by words.
I save some people in words; make victims in words
This is my playground. I fight by words
The violence inside me will come out in words
So that there is no blood.
---Yehia Jaber
There is a relationship between love and words.
I choose my battle in words.
I make fire by words.
I save some people in words; make victims in words
This is my playground. I fight by words
The violence inside me will come out in words
So that there is no blood.
---Yehia Jaber
28 फ़रवरी 2015
Brown Penny
I whispered, "I am too young,"
And then, "I am old enough";
Wherefore I threw a penny
To find out if I might love.
"Go and love, go and love, young man,
If the lady be young and fair."
Ah, penny, brown penny, brown penny,
I am looped in the loops of her hair.
O love is the crooked thing,
There is nobody wise enough
To find out all that is in it,
For he would be thinking of love
Till the stars had run away
And the shadows eaten the moon.
Ah, penny, brown penny, brown penny,
One cannot begin it too soon.
--- William Butler Yeats
And then, "I am old enough";
Wherefore I threw a penny
To find out if I might love.
"Go and love, go and love, young man,
If the lady be young and fair."
Ah, penny, brown penny, brown penny,
I am looped in the loops of her hair.
O love is the crooked thing,
There is nobody wise enough
To find out all that is in it,
For he would be thinking of love
Till the stars had run away
And the shadows eaten the moon.
Ah, penny, brown penny, brown penny,
One cannot begin it too soon.
--- William Butler Yeats
24 फ़रवरी 2015
The Year
What can be said in New Year rhymes,
That's not been said a thousand times?
The new years come, the old years go,
We know we dream, we dream we know.
We rise up laughing with the light,
We lie down weeping with the night.
We hug the world until it stings,
We curse it then and sigh for wings.
We live, we love, we woo, we wed,
We wreathe our prides, we sheet our dead.
We laugh, we weep, we hope, we fear,
And that's the burden of a year.
--- Ella Wheeler Wilcox
That's not been said a thousand times?
The new years come, the old years go,
We know we dream, we dream we know.
We rise up laughing with the light,
We lie down weeping with the night.
We hug the world until it stings,
We curse it then and sigh for wings.
We live, we love, we woo, we wed,
We wreathe our prides, we sheet our dead.
We laugh, we weep, we hope, we fear,
And that's the burden of a year.
--- Ella Wheeler Wilcox
8 फ़रवरी 2015
खाली पड़ा था दिल
खाली पड़ा था दिल का मकान आप के बग़ैर
बेरंग सा था सारा जहां आपके बग़ैर
फूलों में चांदनी में धनक में घटाओं में
पहले ये दिलकशी थी कहाँ आपके बग़ैर
साहिल को इंतज़ार है मुद्दत से आपका
रुक सी गयी है मौज-ए-रवां आपके बग़ैर
हर सिम्त बेरुख़ी की है चादर तनी हुई
किस पर करें वफ़ा का गुमां आपके बग़ैर
ख़ामोशियों को जैसे ज़ुबां मिल गयी ‘क़तील’
महफ़िल में ज़िन्दगी थी कहाँ आपके बग़ैर
---क़तील शिफ़ाई
बेरंग सा था सारा जहां आपके बग़ैर
फूलों में चांदनी में धनक में घटाओं में
पहले ये दिलकशी थी कहाँ आपके बग़ैर
साहिल को इंतज़ार है मुद्दत से आपका
रुक सी गयी है मौज-ए-रवां आपके बग़ैर
हर सिम्त बेरुख़ी की है चादर तनी हुई
किस पर करें वफ़ा का गुमां आपके बग़ैर
ख़ामोशियों को जैसे ज़ुबां मिल गयी ‘क़तील’
महफ़िल में ज़िन्दगी थी कहाँ आपके बग़ैर
---क़तील शिफ़ाई
13 जनवरी 2015
Rented Room
十平米左右的空间
A space of ten square meters
局促,潮湿,终年不见天日
Cramped and damp, no sunlight all year
我在这里吃饭,睡觉,拉屎,思考
Here I eat, sleep, shit, and think
咳嗽,偏头痛,生老,病不死
Cough, get headaches, grow old, get sick but still fail to die
昏黄的灯光下我一再发呆,傻笑
Under the dull yellow light again I stare blankly, chuckling like an idiot
来回踱步,低声唱歌,阅读,写诗
I pace back and forth, singing softly, reading, writing poems
每当我打开窗户或者柴门
Every time I open the window or the wicker gate
我都像一位死者
I seem like a dead man
把棺材盖,缓缓推开
Slowly pushing open the lid of a coffin.
---Xu Lizhi (1990-2014)
A space of ten square meters
局促,潮湿,终年不见天日
Cramped and damp, no sunlight all year
我在这里吃饭,睡觉,拉屎,思考
Here I eat, sleep, shit, and think
咳嗽,偏头痛,生老,病不死
Cough, get headaches, grow old, get sick but still fail to die
昏黄的灯光下我一再发呆,傻笑
Under the dull yellow light again I stare blankly, chuckling like an idiot
来回踱步,低声唱歌,阅读,写诗
I pace back and forth, singing softly, reading, writing poems
每当我打开窗户或者柴门
Every time I open the window or the wicker gate
我都像一位死者
I seem like a dead man
把棺材盖,缓缓推开
Slowly pushing open the lid of a coffin.
---Xu Lizhi (1990-2014)
1 जनवरी 2015
यह जो हल्का हल्का सरूर है
साकी की हर निगाह पे बल खा के पी गया
लहरों से खेलता हुआ लहरा के पी गया
एय रहमत-ऐ-तमाम मेरी हर खता मुआफ
मई इंतिहा-ऐ-शौक (में) से घबरा के पी गया
पीता बगैर इज़्म ये कब थी मेरी मजाल
दर-पर्देह चश्म-ऐ-यार की शय पा के पी गया
पास रहता है दूर रहता है
कोई दिल में ज़रूर रहता है
जब से देखा है उन की आंखों को
हल्का हल्का सुरूर रहता है
ऐसे रहते हैं कोई मेरे दिल में
जैसे ज़ुल्मत में नूर रहता है
अब अदम का येः हाल है हर वक्त
मस्त रहता है चूर रहता है
ये जो हल्का हल्का सरूर है
ये तेरी नज़र का कसूर है
के शराब पीना सिखा दिया
तेरे प्यार ने , तेरी चाह ने
तेरी बहकी बहकी निगाह ने
मुझे इक शराबी बना दिया
शराब कैसी (What Drink), खुमार कैसा (what Elevation)
ये सुब तुम्हारी नवाज़िशैं हैं (It is all your gift)
पिलाई है किस नज़र से तू ने (How i have been made into an addict)
के मुझको अपनी ख़बर नही है (I have no awareness of Myself)
तेरी बहकी बहकी निगाह ने (Your lost looks)
मुझे इक शराबी बना दिया....
सारा जहाँ मस्त, जहाँ का निज़ाम (System) मस्त
दिन मस्त, रात मस्त, सहर (Morning) मस्त, शाम मस्त
दिल मस्त, शीशा मस्त, साबू (Cup of Wine) मस्त, जाम मस्त
है तेरी चश्म-ऐ-मस्त से हेर ख़ास-ओ-आम (Everyone) मस्त
यूँ तो साकी हर तरह की तेरे मैखाने में है
वो भी थोडी सी जो इन आंखों के पैमाने में है
सब समझता हूँ तेरी इशवा-करी (Cleverness) ऐ साकी
काम करती है नज़र नाम है पैमाने का.. बस!
तेरी बहकी बहकी निगाह ने
मुझे इक शराबी बना दिया...
तेरा प्यार है मेरी जिंदगी (My life is your love)
तेरा प्यार है मेरी बंदगी (I am enclosed in your love)
तेरा प्यार है बस मेरी जिंदगी, तेरा प्यार है बस मेरी जिंदगी
न नमाज़ आती है मुझको, न वजू आता है
सजदा कर लेता हूँ, जब सामने तू आता है
बस मेरी जिंदगी तेरा प्यार है....
मै अज़ल से बन्दा-ऐ-इश्क हूँ, मुझे ज़ोह्द-ओ-कुफ्र का ग़म नहीं (Deep down I am a lover, I am not sad for hearafter hell)
मेरे सर को डर तेरा मिल गया, मुझे अब तलाश-ऐ-हरम नही
मेरी बंदगी है वो बंदगी, जो मुकीद-ऐ-दैर-ओ-हरम (Bounded to any sacred Place) नही
मेरा इक नज़र तुम्हें देखना, बा खुदा नमाज़ से कम नही (For me to look at you is no less than Namaz)
बस मेरी जिंदगी तेरा प्यार है...
बस मेरी जिंदगी तेरा प्यार है...
तेरा नाम लूँ जुबां से, तेरे आगे सर झुका दूँ
मेरा इश्क कह रहा है, मैं तुझे खुदा बना दूँ
तेरा नाम मेरे लब पर, मेरा तज़करा है दर दर
मुझे भूल जाए दुनिया , मैं अगर तुझे भुला दूँ
मेरे दिल में बस रहे हैं, तेरे बेपनाह जलवे
न हो जिस में नूर तेरा, वो चराग ही बुझा दूँ
जो पूछा के किस तरह होती है बारिश, जबीं (Forehead) से पसीने की बूँदें गिरा दी
जो पूछा के किस तरह गिरती है बिजली, निगाहें मिलाएं मिला कर झुका दें
जो पूछा शब्-ओ-रोज़ मिलते हैं कैसे, तो चेहरे पे अपने वो जुल्फें हटा दीं
जो पूछा क नगमों में जादू है कैसा, तो मीठे तकल्लुम में बातें सुना दीं
जो अपनी तमनाओं का हाल पुछा , तो जलती हुई चंद शामें बुझा दीं
मैं कहता रह गया खता-ऐ-मोहब्बत की अच्छी सज़ा दी
मेरे दिल की दुनिया बना कर मिटा दी, अच!
मेरे बाद किसको सताओगे ,
मुझे किस तरह से मिटाओगे
कहाँ जा के तीर चलाओगे
मेरी दोस्ती की बलाएँ लो
मुझे हाथ उठा कर दुआएं दो, तुम्हें एक कातिल बना दिया
मुझे देखो खुवाहिश-ऐ-जान-ऐ-जां
मैं वोही हूँ अनवर-ऐ-निम् जान
तुम्हें इतना होश था जब कहाँ
न चलाओ इस तरह तुम ज़बान
करो मेरा शुक्रिया मेहेरबान
तुम्हें बात करना सिखा दिया...
यह जो हल्का हल्का सरूर है, यह तेरी नज़र का कसूर है
के शराब पीना सिखा दिया ।
---Abdul Hameed Adam
लहरों से खेलता हुआ लहरा के पी गया
एय रहमत-ऐ-तमाम मेरी हर खता मुआफ
मई इंतिहा-ऐ-शौक (में) से घबरा के पी गया
पीता बगैर इज़्म ये कब थी मेरी मजाल
दर-पर्देह चश्म-ऐ-यार की शय पा के पी गया
पास रहता है दूर रहता है
कोई दिल में ज़रूर रहता है
जब से देखा है उन की आंखों को
हल्का हल्का सुरूर रहता है
ऐसे रहते हैं कोई मेरे दिल में
जैसे ज़ुल्मत में नूर रहता है
अब अदम का येः हाल है हर वक्त
मस्त रहता है चूर रहता है
ये जो हल्का हल्का सरूर है
ये तेरी नज़र का कसूर है
के शराब पीना सिखा दिया
तेरे प्यार ने , तेरी चाह ने
तेरी बहकी बहकी निगाह ने
मुझे इक शराबी बना दिया
शराब कैसी (What Drink), खुमार कैसा (what Elevation)
ये सुब तुम्हारी नवाज़िशैं हैं (It is all your gift)
पिलाई है किस नज़र से तू ने (How i have been made into an addict)
के मुझको अपनी ख़बर नही है (I have no awareness of Myself)
तेरी बहकी बहकी निगाह ने (Your lost looks)
मुझे इक शराबी बना दिया....
सारा जहाँ मस्त, जहाँ का निज़ाम (System) मस्त
दिन मस्त, रात मस्त, सहर (Morning) मस्त, शाम मस्त
दिल मस्त, शीशा मस्त, साबू (Cup of Wine) मस्त, जाम मस्त
है तेरी चश्म-ऐ-मस्त से हेर ख़ास-ओ-आम (Everyone) मस्त
यूँ तो साकी हर तरह की तेरे मैखाने में है
वो भी थोडी सी जो इन आंखों के पैमाने में है
सब समझता हूँ तेरी इशवा-करी (Cleverness) ऐ साकी
काम करती है नज़र नाम है पैमाने का.. बस!
तेरी बहकी बहकी निगाह ने
मुझे इक शराबी बना दिया...
तेरा प्यार है मेरी जिंदगी (My life is your love)
तेरा प्यार है मेरी बंदगी (I am enclosed in your love)
तेरा प्यार है बस मेरी जिंदगी, तेरा प्यार है बस मेरी जिंदगी
न नमाज़ आती है मुझको, न वजू आता है
सजदा कर लेता हूँ, जब सामने तू आता है
बस मेरी जिंदगी तेरा प्यार है....
मै अज़ल से बन्दा-ऐ-इश्क हूँ, मुझे ज़ोह्द-ओ-कुफ्र का ग़म नहीं (Deep down I am a lover, I am not sad for hearafter hell)
मेरे सर को डर तेरा मिल गया, मुझे अब तलाश-ऐ-हरम नही
मेरी बंदगी है वो बंदगी, जो मुकीद-ऐ-दैर-ओ-हरम (Bounded to any sacred Place) नही
मेरा इक नज़र तुम्हें देखना, बा खुदा नमाज़ से कम नही (For me to look at you is no less than Namaz)
बस मेरी जिंदगी तेरा प्यार है...
बस मेरी जिंदगी तेरा प्यार है...
तेरा नाम लूँ जुबां से, तेरे आगे सर झुका दूँ
मेरा इश्क कह रहा है, मैं तुझे खुदा बना दूँ
तेरा नाम मेरे लब पर, मेरा तज़करा है दर दर
मुझे भूल जाए दुनिया , मैं अगर तुझे भुला दूँ
मेरे दिल में बस रहे हैं, तेरे बेपनाह जलवे
न हो जिस में नूर तेरा, वो चराग ही बुझा दूँ
जो पूछा के किस तरह होती है बारिश, जबीं (Forehead) से पसीने की बूँदें गिरा दी
जो पूछा के किस तरह गिरती है बिजली, निगाहें मिलाएं मिला कर झुका दें
जो पूछा शब्-ओ-रोज़ मिलते हैं कैसे, तो चेहरे पे अपने वो जुल्फें हटा दीं
जो पूछा क नगमों में जादू है कैसा, तो मीठे तकल्लुम में बातें सुना दीं
जो अपनी तमनाओं का हाल पुछा , तो जलती हुई चंद शामें बुझा दीं
मैं कहता रह गया खता-ऐ-मोहब्बत की अच्छी सज़ा दी
मेरे दिल की दुनिया बना कर मिटा दी, अच!
मेरे बाद किसको सताओगे ,
मुझे किस तरह से मिटाओगे
कहाँ जा के तीर चलाओगे
मेरी दोस्ती की बलाएँ लो
मुझे हाथ उठा कर दुआएं दो, तुम्हें एक कातिल बना दिया
मुझे देखो खुवाहिश-ऐ-जान-ऐ-जां
मैं वोही हूँ अनवर-ऐ-निम् जान
तुम्हें इतना होश था जब कहाँ
न चलाओ इस तरह तुम ज़बान
करो मेरा शुक्रिया मेहेरबान
तुम्हें बात करना सिखा दिया...
यह जो हल्का हल्का सरूर है, यह तेरी नज़र का कसूर है
के शराब पीना सिखा दिया ।
---Abdul Hameed Adam
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