ज़िल्लेइलाही
शहंशाह-ए-हिन्दुस्तान
आफ़ताब-ए-वक़्त
हुज़ूर-ए-आला !
परवरदिगार
जहाँपनाह !
क्षमा करें मेरे पाप |
मगर ये सच है
मेरी क़िस्मत के आक़ा,
मेरे ख़ून और पसीने के क़तरे-क़तरे
के हक़दार,
ये बिल्कुल सच है
कि अभी-अभी
आपको
बिल्कुल इनसानों जैसी
छींक आयी |
--- उदय प्रकाश
Sep 17, 2018
Sep 7, 2018
अव्यवस्था
देखो -
मेरे मन के ड्राअर में
तुम्हारी स्मृति के पृष्ठ,
कुछ बिखर से गये हैं !
समय के हाथों से
कुछ छितर से गये हैं !
आओ -
तनिक इन्हें सँवार दो,
तनिक सा दुलार दो,
और फिर जतन से सहेज कर -
अपने विश्वास के आलपिन में बद्ध कर,
प्यार के पेपरवेट से
तनिक सा दबा दो !
---ममता कालिया
मेरे मन के ड्राअर में
तुम्हारी स्मृति के पृष्ठ,
कुछ बिखर से गये हैं !
समय के हाथों से
कुछ छितर से गये हैं !
आओ -
तनिक इन्हें सँवार दो,
तनिक सा दुलार दो,
और फिर जतन से सहेज कर -
अपने विश्वास के आलपिन में बद्ध कर,
प्यार के पेपरवेट से
तनिक सा दबा दो !
---ममता कालिया
Sep 5, 2018
कवि
निकलता है
पानी की चिन्ता में
लौटता है लेकर समुन्दर अछोर
ठौर की तलाश में
निकलता है
लौटता है हाथों पर धारे वसुन्धरा
सब्जियाँ खरीदने
निकलता है
लौटता है लेकर भरा-पूरा चांद
अंडे लाने को
निकलता है
लौटता है कंधों पर लादे ब्रह्मांड
हत्यारी नगरी में
निकलेगा इसी तरह किसी रोज़
तो लौट नहीं पाएगा!
--राकेश रंजन
पानी की चिन्ता में
लौटता है लेकर समुन्दर अछोर
ठौर की तलाश में
निकलता है
लौटता है हाथों पर धारे वसुन्धरा
सब्जियाँ खरीदने
निकलता है
लौटता है लेकर भरा-पूरा चांद
अंडे लाने को
निकलता है
लौटता है कंधों पर लादे ब्रह्मांड
हत्यारी नगरी में
निकलेगा इसी तरह किसी रोज़
तो लौट नहीं पाएगा!
--राकेश रंजन
Aug 16, 2018
व्याख्या
एक दिन कहा गया था
दुनिया की व्याख्या बहुत हो चुकी
ज़रूरत उसे बदलने की है
तब से लगातार
बदला जा रहा है
दुनिया को
बदली है अपने-आप भी
पर क्या अब यह नहीं लगता
कि और बदलने से पहले
कुछ
व्याख्या की ज़रूरत है ?
--- नेमिचंद्र जैन
दुनिया की व्याख्या बहुत हो चुकी
ज़रूरत उसे बदलने की है
तब से लगातार
बदला जा रहा है
दुनिया को
बदली है अपने-आप भी
पर क्या अब यह नहीं लगता
कि और बदलने से पहले
कुछ
व्याख्या की ज़रूरत है ?
--- नेमिचंद्र जैन
Aug 15, 2018
अधिनायक
राष्ट्रगीत में भला कौन वह
भारत-भाग्य-विधाता है
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरिचरना गाता है l
मखमल टमटम बल्लम तुरही
पगड़ी छत्र चँवर के साथ
तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर
जय-जय कौन कराता है l
पूरब-पच्छिम से आते हैं
नंगे-बूचे नरकंकाल
सिंहासन पर बैठा, उनके
तमग़े कौन लगाता है l
कौन-कौन है वह जन-गण-मन-
अधिनायक वह महाबली
डरा हुआ मन बेमन जिसका
बाजा रोज़ बजाता है l
---रघुवीर सहाय
भारत-भाग्य-विधाता है
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरिचरना गाता है l
मखमल टमटम बल्लम तुरही
पगड़ी छत्र चँवर के साथ
तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर
जय-जय कौन कराता है l
पूरब-पच्छिम से आते हैं
नंगे-बूचे नरकंकाल
सिंहासन पर बैठा, उनके
तमग़े कौन लगाता है l
कौन-कौन है वह जन-गण-मन-
अधिनायक वह महाबली
डरा हुआ मन बेमन जिसका
बाजा रोज़ बजाता है l
---रघुवीर सहाय
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