औरतें हैं हम
खाना नहीं हैं
मेज़ पर धरा हुआ
छिलो, हड्डियाँ निकालो
भर लो अपना पेट
कूड़ा नहीं है कूड़ेदान में समा जाने के लिए
औरतें हैं हम
गुड़ियाँ नहीं
जिनसे खेलो, उतार दो कपड़े
तैयार करो, क़ैद करो
एक पालने में और सजा दो
एक शेल्फ पर
औरतें हैं हम
ज़मीन नहीं हैं जिसे खोदोगे ताम्बे
रत्न और स्वर्ण के लिए
उगाओ और परती छोड़ दो
फसल के बाद
गीली मिट्टी सा उसे
रौंदो या बना दो
एक गोद कंकालों के लिए
औरतें हैं हम
मनुष्य भी
रोबोट या चिथड़े नहीं
न ही बर्तन न शौचालय
सपना नहीं हैं जिसका मन नहीं कोई
तसवीर नहीं हैं भागो तुम जिसके पीछे
उड़ते बादल पर बैठकर
औरतें हैं हम
धात्रियाँ संतानों की
दुनिया के वारिसों की
हम जानती हैं करना अंतर
आकारों में दिन और रात में
अलग कर सकती हैं हम
इंद्रधनुष के रंग
हम जानती हैं सम्भालना
एक ढहती हुई आत्मा को
जानती हैं प्यार करना
एक सोचने वाले दिल को
हम जानती हैं भिड़ जाना
और सीधा करना टेढों को
बागबानी करते हुए
सँवारना दुनिया को ।
--- Marra Lanot (हिंदी अनुवाद : Su Jata)
Aug 19, 2019
Aug 15, 2019
जन गण मन अधिनायक जय हे !
जन गण मन अधिनायक जय हे !
जय हे हरित क्रांति निर्माता
जय गेहूँ हथियार प्रदाता
जय हे भारत भाग्य विधाता
अंग्रेजी के गायक जय हे !
जन गण मन अधिनायक जय हे !
जय समाजवादी रंगवाली
जय हे शांतिसंधि विकराली
जय हे टैंक महाबलशाली
प्रभुता के परिचायक जय हे !
जन गण मन अधिनायक जय हे !
जय हे जमींदार पूँजीपति
जय दलाल शोषण में सन्मति
जय हे लोकतंत्र की दुर्गति
भ्रष्टाचार विधायक जय हे !
जन गण मन अधिनायक जय हे
जय पाखंड और बर्बरता
जय तानाशाही सुंदरता
जय हे दमन भूख निर्भरता
सकल अमंगलदायक जय हे !
जन गण मन अधिनायक जय हे
--- गोरख पाण्डेय
जय हे हरित क्रांति निर्माता
जय गेहूँ हथियार प्रदाता
जय हे भारत भाग्य विधाता
अंग्रेजी के गायक जय हे !
जन गण मन अधिनायक जय हे !
जय समाजवादी रंगवाली
जय हे शांतिसंधि विकराली
जय हे टैंक महाबलशाली
प्रभुता के परिचायक जय हे !
जन गण मन अधिनायक जय हे !
जय हे जमींदार पूँजीपति
जय दलाल शोषण में सन्मति
जय हे लोकतंत्र की दुर्गति
भ्रष्टाचार विधायक जय हे !
जन गण मन अधिनायक जय हे
जय पाखंड और बर्बरता
जय तानाशाही सुंदरता
जय हे दमन भूख निर्भरता
सकल अमंगलदायक जय हे !
जन गण मन अधिनायक जय हे
--- गोरख पाण्डेय
Aug 10, 2019
जिहाल-ए-मिस्कीं
जिहाल-ए-मिस्कीं मुकों बा-रंजिश, बहार-ए-हिजरा बेचारा दिल है,
सुनाई देती हैं जिसकी धड़कन, तुम्हारा दिल या हमारा दिल है।
वो आके पेहलू में ऐसे बैठे, के शाम रंगीन हो गयी हैं,
ज़रा ज़रा सी खिली तबियत, ज़रा सी ग़मगीन हो गयी हैं।
कभी कभी शाम ऐसे ढलती है जैसे घूंघट उतर रहा है,
तुम्हारे सीने से उठता धुवा हमारे दिल से गुज़र रहा है।
ये शर्म है या हया है, क्या है, नज़र उठाते ही झुक गयी है,
तुम्हारी पलकों से गिरती शबनम हमारी आंखों में रुक् गयी है।
--- गुलज़ार
सुनाई देती हैं जिसकी धड़कन, तुम्हारा दिल या हमारा दिल है।
वो आके पेहलू में ऐसे बैठे, के शाम रंगीन हो गयी हैं,
ज़रा ज़रा सी खिली तबियत, ज़रा सी ग़मगीन हो गयी हैं।
कभी कभी शाम ऐसे ढलती है जैसे घूंघट उतर रहा है,
तुम्हारे सीने से उठता धुवा हमारे दिल से गुज़र रहा है।
ये शर्म है या हया है, क्या है, नज़र उठाते ही झुक गयी है,
तुम्हारी पलकों से गिरती शबनम हमारी आंखों में रुक् गयी है।
--- गुलज़ार
Aug 9, 2019
सुनो ब्राह्मण
हमारे पसीने से बू आती है, तुम्हें।
तुम, हमारे साथ आओ
चमड़ा पकाएंगे दोनों मिल-बैठकर।
शाम को थककर पसर जाओ धरती पर
सूँघो खुद को
बेटों को, बेटियों को
तभी जान पाओगे तुम
जीवन की गंध को
बलवती होती है जो
देह की गंध से।
---मलखान सिंह
तुम, हमारे साथ आओ
चमड़ा पकाएंगे दोनों मिल-बैठकर।
शाम को थककर पसर जाओ धरती पर
सूँघो खुद को
बेटों को, बेटियों को
तभी जान पाओगे तुम
जीवन की गंध को
बलवती होती है जो
देह की गंध से।
---मलखान सिंह
Aug 5, 2019
राजे-महाराजे
राजे-महाराजे,
अब मुकुट पहन कर नहीं आते,
होती है उन्होंने जम्हूरियत की पोशाक पहनी,
बताने तुम्हे क्या गलत है और क्या सही,
तुम उनसे सवाल नहीं पूछते,
क्यूंकि राजाओं से सवाल नहीं पूछे जाते.
राजे,
अब तलवार लेकर नहीं आते,
वो आते हैं हाथों में संविधान ले कर,
जो पहले करता है उनके चुने जाने का मार्ग तय,
फिर उसे ही काट कर छाँट कर,
खुद के लिए उसे और मज़बूत हैं बनाते,
हम उनके बगलों में रखी छुरियां नहीं देख पाते,
राजे,
अब सेना नहीं इकट्ठा करते,
वो जुटाते हैं एक बिना वर्दी की गुमनाम भीड़,
सर्वव्यापी सर्वशक्तिशाली फिर भी धुंए सी अर्थहीन,
जिसके अट्टहासों या कीबोर्ड की खुट खुट से
कुछ उठती आवाजें हो जाती हैं शांत में विलीन,
तो कभी चलतीं हैं सड़कों पर करती न्याय
उन स्रोतों को हमेशा के लिए मिटाते.
राजे,
अब पैगाम या सन्देश ढोल से नहीं भिजवाते,
बुलेट प्रूफ खेमे से वो देते हैं राष्ट्र के नाम सन्देश,
रख रखे हैं उन्होंने कुछ सन्देश वाहक,
जो उनकी ज़ेबों से झाँक कर गला फाड़ कर,
या जनता को नाग नागिन के डांस में रख उलझा,
कर देते हैं समस्या का दहन उसके ज़िन्दा रहते,
राजे ,
न कभी गए थे वो और न कहीं हैं वो जाते,
भारत एक प्रजातान्त्रिक देश है,
और जहाँ प्रजा है वहां तो होंगे ही राजे,
तुम्हे आज़ादी का एहसास कराते.
इसलिए प्रजा की सरकार में,
प्रजा के लिए प्रजा द्वारा,
अब चुने जाते हैं राजे.
---अभय मिश्र
अब मुकुट पहन कर नहीं आते,
होती है उन्होंने जम्हूरियत की पोशाक पहनी,
बताने तुम्हे क्या गलत है और क्या सही,
तुम उनसे सवाल नहीं पूछते,
क्यूंकि राजाओं से सवाल नहीं पूछे जाते.
राजे,
अब तलवार लेकर नहीं आते,
वो आते हैं हाथों में संविधान ले कर,
जो पहले करता है उनके चुने जाने का मार्ग तय,
फिर उसे ही काट कर छाँट कर,
खुद के लिए उसे और मज़बूत हैं बनाते,
हम उनके बगलों में रखी छुरियां नहीं देख पाते,
राजे,
अब सेना नहीं इकट्ठा करते,
वो जुटाते हैं एक बिना वर्दी की गुमनाम भीड़,
सर्वव्यापी सर्वशक्तिशाली फिर भी धुंए सी अर्थहीन,
जिसके अट्टहासों या कीबोर्ड की खुट खुट से
कुछ उठती आवाजें हो जाती हैं शांत में विलीन,
तो कभी चलतीं हैं सड़कों पर करती न्याय
उन स्रोतों को हमेशा के लिए मिटाते.
राजे,
अब पैगाम या सन्देश ढोल से नहीं भिजवाते,
बुलेट प्रूफ खेमे से वो देते हैं राष्ट्र के नाम सन्देश,
रख रखे हैं उन्होंने कुछ सन्देश वाहक,
जो उनकी ज़ेबों से झाँक कर गला फाड़ कर,
या जनता को नाग नागिन के डांस में रख उलझा,
कर देते हैं समस्या का दहन उसके ज़िन्दा रहते,
राजे ,
न कभी गए थे वो और न कहीं हैं वो जाते,
भारत एक प्रजातान्त्रिक देश है,
और जहाँ प्रजा है वहां तो होंगे ही राजे,
तुम्हे आज़ादी का एहसास कराते.
इसलिए प्रजा की सरकार में,
प्रजा के लिए प्रजा द्वारा,
अब चुने जाते हैं राजे.
---अभय मिश्र
Subscribe to:
Comments (Atom)