तैयार रहे…...
हिंसक भीड़ के हाथों,
पीटे जाने के लिए.
बार-बार,
बहानों से घेरे जाने के लिए,
असहमतियों के चलते,
मारे जाने के लिए,
तैयार रहें.
तैयार रहें
क्योंकि
धर्म,संस्कृति,सभ्यता पर,
चढांई जाती है,
धार.
तैयार रहे कि
आबादी के बिना भी,
बनाए जा सकतेे है देश.
शिक्षा-अध्यापकों के बिना,
महज टैंक खड़े करके भी,
बनाए जा सकते है विश्वविद्यालय.
उसी तरह जैसे,
अफवाहों, मिथकीय परिकल्पनाओं,
श्रद्धा और भावनाओं पर,
बिजूके की तरह ,
खड़ा किया जा सकता है,
कलफ लगा इतिहास.
तैयार रहो,
कि लोक को मिटा कर भी,
खड़ा किया जा सकता है तन्त्र.
तैयार रहो कि ,
एक दशक पहले तक,
जिनसे बचते चलते थे तुम.
आज उन्होंने तुम्हें भी समेट लिया है.
इसलिए,
पंखनुचे फड़फडा़ते परिन्दों की तरह,
अर्थ विहीन शब्दों से कामचलाने के लिए,
तैयार रहें.
अब इंसान ही नही,
संस्थाओं, संकल्पनाओं और
संस्कृतियों की हत्याएं भी मुमकिन हैं.
इसलिए अलग-अलग मौकों पर,
अलग-अलग बहानों से,
मारे जाने के लिए,
तैयार रहें.
तैयार रहें
कि अगली माबलिंचिंग,
किसी सड़क,गली या कस्बे में नही,
किसी सदन में भी मुमकिन है,
जहां पूरे के पूरे देश को ,
पीट-पीट कर बेदम किया जा सकता है.
आप बस अच्छे नागरिक बने,
सवाल ना करें और,
तैयार रहें...
---Ashrut Parmanand
Sep 4, 2019
Sep 2, 2019
अंत्येष्टि से पूर्व
अंत्येष्टि से पूर्व
हे देव,
मुझे बिजलियाँ, अँधेरे और साँप
डरा देते हैं
मुझे घने जंगल की नागरिकता दो
मेरे भय को मित्रता करनी होगी जंगल से
रहना होगा साहसी!
हे देव,
मैंने एक जगह रुक वर्षों आराम किया
मुझे वायु बना दो
मैं कृषकपुत्रों की गीली बनियानों
और रोमछिद्रों में
समर्पित करूँ स्वयं को!
हे देव,
मैं अपने माता-पिता की सेवा न कर सकी
मुझे सुशीतल ओस बना दो
मैं गिरूँ वृद्धाश्रम के आँगन की घास पर
वे रखें मुझ पर पाँव और
मैं उन्हें स्वस्थ रखूँ
हे देव,
मैं कभी सावन में झूली नहीं
मुझे झूले की मज़बूत गाँठ बना दो
मैं उन सभी स्त्रियों और बच्चों को सुरक्षित रखूँ
जो पटके पर खिलखिलाते हुए बैठें
और तृप्त हो उतरें!
हे देव,
कुछ लोगों ने छला है मुझे
मुझे वटवृक्ष बना दो
सैकड़ों पक्षी मेरे भरोसे भरें भोर में उड़ान और
रात भर करें मुझमें विश्राम
मैं उन्हें विश्वसनीय और सुरक्षित नींद दूँ!
हे देव,
मेरा सब्र है एक संपन्न नवजात शिशु
वह प्रतिपल देखभाल माँगता है
मुझे एक हज़ार आठ मनकों वाली
रुद्राक्ष की माला बना दो
मेरे सब्र को होना होगा अनगढ़!
हे देव,
मुझे पत्रों की प्रतीक्षा रहती है
मुझे घाटी के प्रहरियों की
प्रेमिकाओं का दूत बना दो
उन्हें भी होता होगा संदेशों का मोह
मैं दिलासा दे उन्हें व्योम कर सकूँ!
हे देव,
मैंने प्रश्नों के बीज बोए
वे कभी फूल बन न खिल सकें
मुझे भूरी संदली मिट्टी बना दो
मैं तप कर और भीग कर रचूँ
अनेकों खलिहान!
हे देव,
मैं धरती और सितारों के बीच
बेहद बौनी लगती हूँ
मुझे पहाड़ बना दो
मैं बादल के फाहों पर आकृतियाँ बना
उन्हें मनचाहा आकार दूँ!
हे देव,
मैं अपनी पकड़ से फिसल कर
नहीं रच पाती कोई दंतकथा
मुझे काँटेदार रास्ता बना दो
मेरे तलवों को दरकार है अनुभव
टीस और मवाद और ठहराव के!
हे देव,
चिकने फ़र्श पर मेरे पैर फिसलते हैं
मुझे छिले हुए पंजे दो
मेरे पंजों की छाप
सबको चौराहों का संकेत दे
और बताए रास्ता!
हे देव,
मेरे आँसू घुटने पर बहने को तत्पर रहते हैं
मुझे मरुस्थल बना दो
सूखी धरा और उसकी वीरानियों को
यह हक़ है कि
मेरे आँसुओं को वे दास बना लें!
हे देव,
प्रेम मेरी नब्ज़ पकड़
मेरी तरंगें नापता है
मुझे बोधिसत्व का ज़ख़ीरा बना दो
त्याग मेरा कर्म हो
मुझे अस्वीकार का अधिकार चाहिए!
हे देव,
मेरे कुछ सपने अधूरे रह गए हैं
मुझे संभव और असंभव के बीच की दूरी बना दो
मैं पथिकों का बल बनूँ
उनकी राह की
बनूँ जीवन-कथा!
हे देव,
मैंने अब तक
पुलों पर सफ़र किया है
शहर के पुल बेहद कमज़ोर हैं
मुझे तैराक बना दो कि
मैं हर शहरी बच्चे को तैरना सिखा सकूँ!
हे देव,
मेरे बहुत से दिवस बाँझ रहे हैं
मुझे गर्भवती बना दो
मेरी कोख से जन्मे कोई इस्पात
जो ढले और गले केवल संरक्षण करने को
सभ्यताओं को जोड़े रखे!
हे देव,
मैं अपनी
कविताओं की किताब न छपवा सकी
मुझे स्याही बना दो
मैं समस्त कवियों की लेखनी में जा घुलूँ
और रचूँ इतिहास!
--- जोशना बैनर्जी आडवानी
हे देव,
मुझे बिजलियाँ, अँधेरे और साँप
डरा देते हैं
मुझे घने जंगल की नागरिकता दो
मेरे भय को मित्रता करनी होगी जंगल से
रहना होगा साहसी!
हे देव,
मैंने एक जगह रुक वर्षों आराम किया
मुझे वायु बना दो
मैं कृषकपुत्रों की गीली बनियानों
और रोमछिद्रों में
समर्पित करूँ स्वयं को!
हे देव,
मैं अपने माता-पिता की सेवा न कर सकी
मुझे सुशीतल ओस बना दो
मैं गिरूँ वृद्धाश्रम के आँगन की घास पर
वे रखें मुझ पर पाँव और
मैं उन्हें स्वस्थ रखूँ
हे देव,
मैं कभी सावन में झूली नहीं
मुझे झूले की मज़बूत गाँठ बना दो
मैं उन सभी स्त्रियों और बच्चों को सुरक्षित रखूँ
जो पटके पर खिलखिलाते हुए बैठें
और तृप्त हो उतरें!
हे देव,
कुछ लोगों ने छला है मुझे
मुझे वटवृक्ष बना दो
सैकड़ों पक्षी मेरे भरोसे भरें भोर में उड़ान और
रात भर करें मुझमें विश्राम
मैं उन्हें विश्वसनीय और सुरक्षित नींद दूँ!
हे देव,
मेरा सब्र है एक संपन्न नवजात शिशु
वह प्रतिपल देखभाल माँगता है
मुझे एक हज़ार आठ मनकों वाली
रुद्राक्ष की माला बना दो
मेरे सब्र को होना होगा अनगढ़!
हे देव,
मुझे पत्रों की प्रतीक्षा रहती है
मुझे घाटी के प्रहरियों की
प्रेमिकाओं का दूत बना दो
उन्हें भी होता होगा संदेशों का मोह
मैं दिलासा दे उन्हें व्योम कर सकूँ!
हे देव,
मैंने प्रश्नों के बीज बोए
वे कभी फूल बन न खिल सकें
मुझे भूरी संदली मिट्टी बना दो
मैं तप कर और भीग कर रचूँ
अनेकों खलिहान!
हे देव,
मैं धरती और सितारों के बीच
बेहद बौनी लगती हूँ
मुझे पहाड़ बना दो
मैं बादल के फाहों पर आकृतियाँ बना
उन्हें मनचाहा आकार दूँ!
हे देव,
मैं अपनी पकड़ से फिसल कर
नहीं रच पाती कोई दंतकथा
मुझे काँटेदार रास्ता बना दो
मेरे तलवों को दरकार है अनुभव
टीस और मवाद और ठहराव के!
हे देव,
चिकने फ़र्श पर मेरे पैर फिसलते हैं
मुझे छिले हुए पंजे दो
मेरे पंजों की छाप
सबको चौराहों का संकेत दे
और बताए रास्ता!
हे देव,
मेरे आँसू घुटने पर बहने को तत्पर रहते हैं
मुझे मरुस्थल बना दो
सूखी धरा और उसकी वीरानियों को
यह हक़ है कि
मेरे आँसुओं को वे दास बना लें!
हे देव,
प्रेम मेरी नब्ज़ पकड़
मेरी तरंगें नापता है
मुझे बोधिसत्व का ज़ख़ीरा बना दो
त्याग मेरा कर्म हो
मुझे अस्वीकार का अधिकार चाहिए!
हे देव,
मेरे कुछ सपने अधूरे रह गए हैं
मुझे संभव और असंभव के बीच की दूरी बना दो
मैं पथिकों का बल बनूँ
उनकी राह की
बनूँ जीवन-कथा!
हे देव,
मैंने अब तक
पुलों पर सफ़र किया है
शहर के पुल बेहद कमज़ोर हैं
मुझे तैराक बना दो कि
मैं हर शहरी बच्चे को तैरना सिखा सकूँ!
हे देव,
मेरे बहुत से दिवस बाँझ रहे हैं
मुझे गर्भवती बना दो
मेरी कोख से जन्मे कोई इस्पात
जो ढले और गले केवल संरक्षण करने को
सभ्यताओं को जोड़े रखे!
हे देव,
मैं अपनी
कविताओं की किताब न छपवा सकी
मुझे स्याही बना दो
मैं समस्त कवियों की लेखनी में जा घुलूँ
और रचूँ इतिहास!
--- जोशना बैनर्जी आडवानी
Aug 23, 2019
उपचार
बेवफ़ा प्रेमिका से तुम्हारे टूटे हुए दिल का उपचार
तुम करो तीन प्रक्रियाओं से आबद्ध
पहला कि उसे जाने दो
दूसरा कि करो स्वीकार कि तुम्हारी जगह किसी और को लाएगी
अपने बिस्तर पर सजाएगी
और तीसरा कि करो कल्पना वास्तविक
कि वह रही नहीं
वह मर गई पिछले वर्ष सितंबर में
हो एक सड़क हादसे का शिकार
--- Shayak Alok
तुम करो तीन प्रक्रियाओं से आबद्ध
पहला कि उसे जाने दो
दूसरा कि करो स्वीकार कि तुम्हारी जगह किसी और को लाएगी
अपने बिस्तर पर सजाएगी
और तीसरा कि करो कल्पना वास्तविक
कि वह रही नहीं
वह मर गई पिछले वर्ष सितंबर में
हो एक सड़क हादसे का शिकार
--- Shayak Alok
Aug 21, 2019
Poetry and prose
Sometimes I am caught
between poetry and prose, like two lovers
I can't decide between.
Prose says to me, let's build
something long and lasting.
Poetry takes me by the hand,
and whispers, come with me,
let's get lost for awhile.
--- Lang Leav
between poetry and prose, like two lovers
I can't decide between.
Prose says to me, let's build
something long and lasting.
Poetry takes me by the hand,
and whispers, come with me,
let's get lost for awhile.
--- Lang Leav
Aug 19, 2019
औरतें हैं हम
औरतें हैं हम
खाना नहीं हैं
मेज़ पर धरा हुआ
छिलो, हड्डियाँ निकालो
भर लो अपना पेट
कूड़ा नहीं है कूड़ेदान में समा जाने के लिए
औरतें हैं हम
गुड़ियाँ नहीं
जिनसे खेलो, उतार दो कपड़े
तैयार करो, क़ैद करो
एक पालने में और सजा दो
एक शेल्फ पर
औरतें हैं हम
ज़मीन नहीं हैं जिसे खोदोगे ताम्बे
रत्न और स्वर्ण के लिए
उगाओ और परती छोड़ दो
फसल के बाद
गीली मिट्टी सा उसे
रौंदो या बना दो
एक गोद कंकालों के लिए
औरतें हैं हम
मनुष्य भी
रोबोट या चिथड़े नहीं
न ही बर्तन न शौचालय
सपना नहीं हैं जिसका मन नहीं कोई
तसवीर नहीं हैं भागो तुम जिसके पीछे
उड़ते बादल पर बैठकर
औरतें हैं हम
धात्रियाँ संतानों की
दुनिया के वारिसों की
हम जानती हैं करना अंतर
आकारों में दिन और रात में
अलग कर सकती हैं हम
इंद्रधनुष के रंग
हम जानती हैं सम्भालना
एक ढहती हुई आत्मा को
जानती हैं प्यार करना
एक सोचने वाले दिल को
हम जानती हैं भिड़ जाना
और सीधा करना टेढों को
बागबानी करते हुए
सँवारना दुनिया को ।
--- Marra Lanot (हिंदी अनुवाद : Su Jata)
खाना नहीं हैं
मेज़ पर धरा हुआ
छिलो, हड्डियाँ निकालो
भर लो अपना पेट
कूड़ा नहीं है कूड़ेदान में समा जाने के लिए
औरतें हैं हम
गुड़ियाँ नहीं
जिनसे खेलो, उतार दो कपड़े
तैयार करो, क़ैद करो
एक पालने में और सजा दो
एक शेल्फ पर
औरतें हैं हम
ज़मीन नहीं हैं जिसे खोदोगे ताम्बे
रत्न और स्वर्ण के लिए
उगाओ और परती छोड़ दो
फसल के बाद
गीली मिट्टी सा उसे
रौंदो या बना दो
एक गोद कंकालों के लिए
औरतें हैं हम
मनुष्य भी
रोबोट या चिथड़े नहीं
न ही बर्तन न शौचालय
सपना नहीं हैं जिसका मन नहीं कोई
तसवीर नहीं हैं भागो तुम जिसके पीछे
उड़ते बादल पर बैठकर
औरतें हैं हम
धात्रियाँ संतानों की
दुनिया के वारिसों की
हम जानती हैं करना अंतर
आकारों में दिन और रात में
अलग कर सकती हैं हम
इंद्रधनुष के रंग
हम जानती हैं सम्भालना
एक ढहती हुई आत्मा को
जानती हैं प्यार करना
एक सोचने वाले दिल को
हम जानती हैं भिड़ जाना
और सीधा करना टेढों को
बागबानी करते हुए
सँवारना दुनिया को ।
--- Marra Lanot (हिंदी अनुवाद : Su Jata)
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