4 जुलाई 2018

What Father Knows

My father knows the proper way
The nation should be run;
He tells us children every day
Just what should now be done.
He knows the way to fix the trusts,
He has a simple plan;
But if the furnace needs repairs
We have to hire a man.

My father, in a day or two,
Could land big thieves in jail;
There's nothing that he cannot do,
He knows no word like "fail."
"Our confidence" he would restore,
Of that there is no doubt;
But if there is a chair to mend
We have to send it out.

All public questions that arise
He settles on the spot;
He waits not till the tumult dies,
But grabs it while its hot.
In matters of finance he can
Tell Congress what to do;
But, O, he finds it hard to meet
His bills as they fall due.

It almost makes him sick to read
The things law-makers say;
Why, father's just the man they need;
He never goes astray.
All wars he'd very quickly end,
As fast as I can write it;
But when a neighbor starts a fuss
'Tis mother has to fight it.

In conversation father can
Do many wondrous things;
He's built upon a wiser plan
Than presidents or kings.
He knows the ins and outs of each
And every deep transaction;
We look to him for theories,
But look to ma for action.

---Edgar Guest

3 जुलाई 2018

बात बोलेगी

बात बोलेगी
हम नहीं
भेद खोलेगी
बात ही l

सत्य का मुख
झूठ की आँखें
क्या - देखें !
सत्य का रुख
समय का रुख है :
अभय जनता को
सत्य ही सुख है,
सत्य ही सुख l

दैन्य दानव ; काल
भीषण ; क्रूर
स्थिति ; कंगाल
बुद्धि ; घर मज़दूर l

सत्य का
क्या रंग ?
पूछो
एक संग l
एक - जनता का
दुःख एक l
हवा में उड़ती पताकाएँ
अनेक l

दैन्य दानव l क्रूर स्थिति l
कंगाल बुद्धि l मजूर घर भर l
एक जनता का अमर वर l
एकता का स्वर l
- अन्यथा स्वातन्त्र्य इति l


--- शमशेरबहादुर सिंह

17 जून 2018

प्रेम पिता का दिखाई नहीं देता

तुम्हारी निश्चल आँखें
तारों-सी चमकती हैं मेरे अकेलेपन की रात के आकाश में
प्रेम पिता का दिखाई नहीं देता
ईथर की तरह होता है
ज़रूर दिखाई देती होंगी नसीहतें
नुकीले पत्थरों-सी
दुनिया-भर के पिताओं की लम्बी कतार में
पता नहीं कौन-सा कितना करोड़वाँ नम्बर है मेरा
पर बच्चों के फूलोंवाले बग़ीचे की दुनिया में
तुम अव्वल हो पहली कतार में मेरे लिए
मुझे माफ़ करना मैं अपनी मूर्खता और प्रेम में समझा था
मेरी छाया के तले ही सुरक्षित रंग-बिरंगी दुनिया होगी तुम्हारी
अब जब तुम सचमुच की दुनिया में निकल गई हो
मैं ख़ुश हूँ सोचकर
कि मेरी भाषा के अहाते से परे है तुम्हारी परछाई

--- चंद्रकांत देवताले

11 मई 2018

Make the Ordinary Come Alive

Make the Ordinary Come Alive
Do not ask your children
to strive for extraordinary lives.
Such striving may seem admirable,
but it is a way of foolishness.
Help them instead to find the wonder
and the marvel of an ordinary life.
Show them the joy of tasting
tomatoes, apples, and pears.
Show them how to cry
when pets and people die.
Show them the infinite pleasure
in the touch of a hand.
And make the ordinary come alive for them.
The extraordinary will take care of itself.

--- William Martin, The Parent’s Tao Te Ching: Ancient Advice for Modern Parents.

1 मई 2018

मैं घास हूँ

मैं घास हूँ
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा
बम फेंक दो चाहे विश्‍वविद्यालय पर
बना दो होस्‍टल को मलबे का ढेर
सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर
मुझे क्‍या करोगे
मैं तो घास हूँ हर चीज़ पर उग आऊंगा
बंगे को ढेर कर दो
संगरूर मिटा डालो
धूल में मिला दो लुधियाना ज़िला
मेरी हरियाली अपना काम करेगी...
दो साल... दस साल बाद
सवारियाँ फिर किसी कंडक्‍टर से पूछेंगी
यह कौन-सी जगह है
मुझे बरनाला उतार देना
जहाँ हरे घास का जंगल है
मैं घास हूँ, मैं अपना काम करूंगा
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा।

---पाश

14 अप्रैल 2018

हम अपवित्र हैं,

हम अपवित्र हैं,
हम तुम्हें अपवित्र कर देंगे,
छू लेंगे तुम्हारे कुओं को तुम्हारे नलों को तुम्हारी बाल्टियों को हम छू देंगे,
तुम्हारे महलों को तुम्हारी दौलत को तुम्हारी हर चीज को हम अपवित्र कर देंगे,
तुम तब अपवित्र नहीं होते हो जब पीते हो उस कुएं का पानी जिसे हम खोदते हैं,
तुम तब अपवित्र नहीं होते हो
जब रहते हो उन महलों में जिन्हें हम खड़ा करते हैं,
जब खाते हो उस अन्न को जिसे हम उगाते हैं,
तुम तब भी अपवित्र नहीं होते हो जब जीते हो आराम तलब जिंदगी हमारी मेहनत की कीमत पर,
तुम तब अपवित्र हो जाते हो जब हम मांगते हैं अपना हक,
जब हम छू लेते हैं अपनी ही मेहनत की उपज को,
तुम्हारा अपवित्र हो जाना जरूरी है,
क्योंकि अपवित्रता में नहीं होते ऊंचे-नीचे छोटे बड़े,
अपवित्रता में कोई ग़ैर बराबर नहीं होता,
हम अपवित्र कर देंगे तुम्हें,
हम अपवित्र कर देंगे तुम्हारी खून से भीगी पवित्रता को,
जिस का इतिहास अन्याय दमन शोषण और गैर बराबरी का है,
हम अपवित्र कर देंगे पूरी दुनिया को,
क्योंकि अपवित्रता लाएगी बराबरी,
तब कोई गैर बराबर नहीं होगा
-अंकित साहिर
दस्तक पत्रिका से साभार संपादक सीमा आजाद

31 मार्च 2018

आटे-दाल का भाव

आटे के वास्ते हैं हविस मुल्क-ओ-माल की
आटा जो पालकी है तो है दाल नाल की
आटे ही दाल से है दुरुस्ती ये हाल की
इसे ही सबकी ख़ूबी जो है हाल क़ाल की
सब छोड़ो बात तूति-ओ-पिदड़ी व लाल की
यारो कुछ अपनी फ़िक्र करो आटे-दाल की

इस आटे-दाल ही का जो आलम में है ज़हूर
इससे ही मुँहप नूर है और पेट में सरूर
इससे ही आके चढ़ता है चेहरे पे सबके नूर
शाह-ओ-गदा अमीर इसी के हैं सब मजूर
सब छोड़ो बात तूति-ओ-पिदड़ी व लाल की
यारो कुछ अपनी फ़िक्र करो आटे-दाल की

क़ुमरी ने क्या हुआ जो कहा "हक़्क़े-सर्रहू"
और फ़ाख़्ता भी बैठके कहती है "क़हक़हू"
वो खेल खेलो जिससे हो तुम जग में सुर्ख़रू
सुनते हो ए अज़ीज़ो इसी से है आबरू
सब छोड़ो बात तूति-ओ-पिदड़ी व लाल की
यारो कुछ अपनी फ़िक्र करो आटे-दाल की …

---नज़ीर अकबराबादी