4 अगस्त 2019

धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो

धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो

वो सितारा है चमकने दो यूँ ही आँखों में
क्या ज़रूरी है उसे जिस्म बनाकर देखो

पत्थरों में भी ज़ुबाँ होती है दिल होते हैं
अपने घर की दर-ओ-दीवार सजा कर देखो

फ़ासला नज़रों का धोखा भी तो हो सकता है
वो मिले या न मिले हाथ बढा़ कर देखो

--- निदा फ़ाज़ली

2 अगस्त 2019

एक ट्रक आयेगा

कभी वे चाँद पर
जाने की बात करते हैं
कभी बाघों के
दर्शन के लिए
अभयारण्य की सैर

सिर्फ़ हत्या
और बलात्कार पर
कुछ नहीं कहते

वह तो आये दिन का
कारोबार है
उस पर क्या कहना ?

एक ट्रक आयेगा
इंसाफ़ की उम्मीदों को
कुचलता चला जायेगा

आप इस ट्रक पर बैठ सकें
तो चाँद की
सैर कर सकते हैं
अभयारण्य की भी

---पंकज चतुर्वेदी

30 जुलाई 2019

बहिष्कार

आइए, इस नये वर्ष में
बहिष्कार करें
ब्राह्मणवाद, सामन्तवाद और
पूँजीवाद का,
इससे जन्मे जातिवाद और
फ़ासीवाद का।
बहिष्कार करें उस राजनीति का
जो निभा रही है पुष्यमित्र की भूमिका।
बहिष्कार करें उस चिन्तन का
जिसके मूल में हिन्दुत्व का पुनरोत्थान
शिवाजी और पेशवा शासन की
स्थापना का लक्ष्य है,
जिनमें अछूतों को कमर में बाँधकर झाड़ू
गले में लटकाकर हांड़ी
चलने की राज्याज्ञा थी।
बहिष्कार करें उस साहित्य का
जो जन्मा है पुराणों के मिथकों से
जो विरोधी है लोकतन्त्र का
समर्थक है रामलला के राज्य का
जो स्वर्ग था द्विजों का
जिसमें शूद्र-अछूतों के विकास
के रास्ते सख़्ती से बन्द थे
बहिष्कार करें उन आलोचकों का
जो समाजवाद के कैप्सूल में
भर रहे हैं ब्राह्मणवाद
जो नववाद की आड़ में
स्थापित कर रहे हैं सामन्ती मूल्य
जो सिद्ध कर रहे हैं
पथ-भ्रष्टक तुलसीदास को पथ-प्रदर्शक
रूढ़िवादी निराला को प्रगतिवाद का जनक
जिन्हें इस देश का पूँजीवाद
बाँट रहा है पुरस्कार
ताकि वे इसी तरह करते रहें / सत्य का संहार
बहिष्कार करें उस पत्रकारिता का
जो बहुत सूक्ष्म साज़िश के तहत
साम्प्रदायिकता और धर्म-सापेक्षता
की बनी हुई है संवाहिका
उगल रही है कुछ वर्गों के ख़िलाफ़ ज़हर
ढा रही है भारत की एकता पर क़हर
आइए, इसे नये वर्ष में स्वीकार करें
स्वतन्त्रता, समानता और बन्धुता को
न केवल चिन्तन में / न केवल लेखन में
बल्कि व्यवहार में, आचरण में, संस्कार में
मनुष्य और देश के विकास के लिए
विघटन के समूल नाश के लिए।

---कंवल भारती

25 जुलाई 2019

Oranges

The first time I walked
With a girl, I was twelve,
Cold, and weighted down
With two oranges in my jacket.

December. Frost cracking
Beneath my steps, my breath
Before me, then gone,
As I walked toward
Her house, the one whose
Porch light burned yellow
Night and day, in any weather.

A dog barked at me, until
She came out pulling
At her gloves, face bright
With rouge. I smiled,
Touched her shoulder, and led
Her down the street, across
A used car lot and a line
Of newly planted trees,
Until we were breathing
Before a drugstore. We
Entered, the tiny bell
Bringing a saleslady
Down a narrow aisle of goods.

I turned to the candies
Tiered like bleachers,
And asked what she wanted -
Light in her eyes, a smile
Starting at the corners
Of her mouth. I fingered
A nickle in my pocket,
And when she lifted a chocolate
That cost a dime,
I didn’t say anything.

I took the nickle from
My pocket, then an orange,
And set them quietly on
The counter. When I looked up,
The lady’s eyes met mine,
And held them, knowing
Very well what it was all
About.

Outside,
A few cars hissing past,
Fog hanging like old
Coats between the trees.
I took my girl’s hand
In mine for two blocks,
Then released it to let
Her unwrap the chocolate.
I peeled my orange
That was so bright against
The gray of December
That, from some distance,
Someone might have thought
I was making a fire in my hands.

--- Gary Soto

20 जुलाई 2019

आत्मा परमात्मा की व्यंजना है

आत्मा परमात्मा की व्यंजना है
क्या पता ये सत्य है या कल्पना है

देश को क्या देखते हो पोस्टर में
आदमी देखो मुकम्मल आइना है

क्या गिरेगा पेड़ वो इन आन्धियो से
जिसकी जड़ में गाँव भार की प्रार्थना है

उसके सपनों को शरण मत दीजिएगा
इनको आखिर बाढ़ में ही डूबना है

इन अन्धेरो को अभी रखना नज़र में
क्योंकि इनमें सूर्य की सम्भावना है

--- अश्वघोष

17 जुलाई 2019

कचहरी न जाना

भले डांट घर में तू बीबी की खाना

भले जैसे -तैसे गिरस्ती चलाना
भले जा के जंगल में धूनी रमाना
मगर मेरे बेटे कचहरी न जाना
कचहरी न जाना
कचहरी न जाना

कचहरी हमारी तुम्हारी नहीं है
कहीं से कोई रिश्तेदारी नहीं है
अहलमद से भी कोरी यारी नहीं है
तिवारी था पहले तिवारी नहीं है

कचहरी की महिमा निराली है बेटे
कचहरी वकीलों की थाली है बेटे
पुलिस के लिए छोटी साली है बेटे
यहाँ पैरवी अब दलाली है बेटे

कचहरी ही गुंडों की खेती है बेटे
यही जिन्दगी उनको देती है बेटे
खुले आम कातिल यहाँ घूमते हैं
सिपाही दरोगा चरण चुमतें है

कचहरी में सच की बड़ी दुर्दशा है
भला आदमी किस तरह से फंसा है
यहाँ झूठ की ही कमाई है बेटे
यहाँ झूठ का रेट हाई है बेटे

कचहरी का मारा कचहरी में भागे
कचहरी में सोये कचहरी में जागे
मर जी रहा है गवाही में ऐसे
है तांबे का हंडा सुराही में जैसे

लगाते-बुझाते सिखाते मिलेंगे
हथेली पे सरसों उगाते मिलेंगे
कचहरी तो बेवा का तन देखती है
कहाँ से खुलेगा बटन देखती है

कचहरी शरीफों की खातिर नहीं है
उसी की कसम लो जो हाज़िर नहीं है
है बासी मुहं घर से बुलाती कचहरी
बुलाकर के दिन भर रुलाती कचहरी

मुकदमें की फाइल दबाती कचहरी
हमेशा नया गुल खिलाती कचहरी
कचहरी का पानी जहर से भरा है
कचहरी के नल पर मुवक्किल मरा है

मुकदमा बहुत पैसा खाता है बेटे
मेरे जैसा कैसे निभाता है बेटे
दलालों नें घेरा सुझाया -बुझाया
वकीलों नें हाकिम से सटकर दिखाया

धनुष हो गया हूँ मैं टूटा नहीं हूँ
मैं मुट्ठी हूँ केवल अंगूंठा नहीं हूँ
नहीं कर सका मैं मुकदमें का सौदा
जहाँ था करौदा वहीं है करौदा

कचहरी का पानी कचहरी का दाना
तुम्हे लग न जाये तू बचना बचाना
भले और कोई मुसीबत बुलाना
कचहरी की नौबत कभी घर न लाना

कभी भूल कर भी न आँखें उठाना
न आँखें उठाना न गर्दन फसाना
जहाँ पांडवों को नरक है कचहरी
वहीं कौरवों को सरग है कचहरी ||

--- कैलाश गौतम

10 जुलाई 2019

पांच पूत भारत माता के

पांच पूत भारत माता के, दुश्मन था खूंखार

गोली खाकर एक मर गया, बाकी रह गए चार |

चार पूत भारत माता के, चारों चतुर प्रवीन,

देश निकाला मिला एक को, बाकी रह गए तीन |

तीन पुत्र भारत माता के, लड़ने लग गए वो,

अलग हो गया इधर एक, अब बाकी रह गए दो |

दो बेटे भारत माता के, छोड़ पुरानी टेक,

चिपक गया है इक गद्दी से, बाकी रह गया एक |

एक पुत्र भारत माता का, कंधे पर है झंडा,

पुलिस पकड़ के जेल ले गई, बाकी रह गया अंडा |

--- बाबा नागार्जुन