21 अगस्त 2022

इब्नबतूता पहन के जूता

इब्नबतूता पहन के जूता
निकल पड़े तूफान में
थोड़ी हवा नाक में घुस गई 
घुस गई थोड़ी कान में

कभी नाक को, 
कभी कान को मलते इब्नबतूता 
इसी बीच में निकल पड़ा 
उनके पैरों का जूता 

उड़ते उड़ते जूता उनका 
जा पहुँचा जापान में 
इब्नबतूता खड़े रह गये 
मोची की दुकान में 

15 अगस्त 2022

मैं देशहित में क्या सोचता हूं

मैं एक साधारण सा आदमी हूं
व्यवसाय करता हूं
रोज अपने फ्लैट से निकलता हूं
और देर रात फ्लैट में घुसता हूं
बाहर पहरा बिठाए रखता हूं

टीवी देखता हुआ सोचता हूं
कश्मीर में सभी भारतीय क्यों नहीं घुस सकते ?
अच्छा हुआ सरकार ने 370 हटा दिया
और ये आदिवासी इलाके?
ये क्या बाहरी-भीतरी लगाए रखते हैं?
वहां भी सभी भारतीय क्यों बस नहीं सकते?

मैं तो दलितों को जाहिल
और आदिवासियों को जानवर समझता हूं
मुस्लिम और ईसाई को देशद्रोही
और इस देश से इन सबकी सफ़ाई चाहता हूं

मैंने कभी जीवन में
गांव नहीं देखे, बस्ती नहीं देखी
झुग्गी नहीं देखे, जंगल नहीं देखे
मैं किसी को भी ठीक से जानता नहीं
मुठ्ठी भर लोगों को जानता-पहचानता हूं
जिन्हें मैं भारतीय मानता हूं
और चाहता हूं
ये भारतीय हर जगह घुसें
और सारे संसाधनों पर कब्ज़ा करें

देशहित में यही सोचता हुआ
अपनी फ्लैट में घुसता हूं
बाहर पहरा बिठाए रखता हूं
मेरे सुकून और स्वतंत्रता में दख़ल देने
यहां कोई घुस न पाए
इस बात का पूरा ध्यान रखता हूं ।।

--- जसिंता केरकेट्टा

4 अगस्त 2022

बीस घराने

बीस घराने हैं आबाद
बीस घराने हैं आबाद
और करोड़ों हैं नाशाद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद

आज भी हम पर जारी है
काली सदियों की बेदाद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद

बीस रूपय्या मन आटा
इस पर भी है सन्नाटा
गौहर, सहगल, आदमजी
बने हैं बिरला और टाटा
मुल्क के दुश्मन कहलाते हैं
जब हम करते हैं फ़रियाद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद

लाइसेंसों का मौसम है
कंवेंशन को क्या ग़म है
आज हुकूमत के दर पर
हर शाही का सर ख़म है
दर्से ख़ुदी देने वालों को
भूल गई इक़बाल की याद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद

आज हुई गुंडागर्दी
चुप हैं सिपाही बावर्दी
शम्मे नवाये अहले सुख़न
काले बाग़ ने गुल कर दी
अहले क़फ़स की कैद बढ़ाकर
कम कर ली अपनी मीयाद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद

ये मुश्ताके इसतम्बूल
क्या खोलूं मैं इनका पोल
बजता रहेगा महलों में
कब तक ये बेहंगम ढोल
सारे अरब नाराज़ हुए हैं
सीटो और सेंटों हैं शाद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद

गली गली में जंग हुई
ख़िल्क़त देख के दंग हुई
अहले नज़र की हर बस्ती
जेहल के हाथों तंग हुई
वो दस्तूर हमें बख़्शा है
नफ़रत है जिसकी बुनियाद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद

- हबीब जालिब

1 अगस्त 2022

सुनो कहानी (Suno Kahani - DD- Serial Title Song)

न कोई राजा न कोई रानी ..

दिल कहता है दिल की जुबानी...

सुनो कहानी ...सुनो...

सुनो कहानी ....सुनो...

सुनो कहानी ....

थोडा सा आकाश नीला है ..

थोड़ी सी माटी गीली है ...

जीते जागते इंसानों की ...

सोते हुयी टोली है ..

बहका बहका आँख का पानी..

सुनो कहानी ...सुनो..

28 जुलाई 2022

Tap tap topi topi tap..

टप टप टोपी टोपी टप ..

टप टप टोपी टोपी टप ..
टप टप टोपी टोपी टोपे में जो डूबे
फर फर फरमाइशी देखे हैं अजूबे
उलट पलट गलत सलत ठाईं
झुबलि किधर जाईं

टप टप टोपी टोपी टप ..
टप टप टोपी टोपी टप ..

कुत्ते बिल्ली बिल्लियों की मूछों की फलासी
ताज़ा ताज़ा दो दो प्याज़ा रिंग शिंग बाशी
टुपुर टुपुर नाचे नूपुर पायी
झुबलि किधर जाईं

टप टप टोपी टोपी टप ..
टप टप टोपी टोपी टप ..

--- गुलज़ार

18 जुलाई 2022

Canadians

Here are
our signatures:
geese, fish, eskimo
faces, girl-guide
cookies, ink-drawings
tree-plantings, summer
storms and winter
emanations.

We look
like a geography but
just scratch us
and we bleed
history, are full
of modest misery
are sensitive
to double-talk double-take
(and double-cross)
in a country
too wide
to be single in.

Are we real or
did someone invent
us, was it Henry
Hudson Etienne Brûlé
or a carnival
of village girls?
Was it
a flock of nuns
a pity of indians
a gravyboat of
fur-traders, professional
explorers or those
amateurs map-makers
our Fathers
of Confederation?

Wherever you are
Charles Tupper Alexander
Galt D'arcy McGee George
Cartier Ambrose Shea
Henry Crout Father
Ragueneau Lork Selkirk
and John A: however
far into northness you have walked--
when we call you
turn around and
don't look so surprised.

--- Miriam Waddington, (Winnipeg, Canada)