जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे
मैं उनसे मिलने
उनके पास चला जाऊँगा।
एक उफनती नदी कभी नहीं आएगी मेरे घर
नदी जैसे लोगों से मिलने
नदी किनारे जाऊँगा
कुछ तैरूँगा और डूब जाऊँगा
पहाड़, टीले, चट्टानें, तालाब
असंख्य पेड़ खेत
कभी नहीं आएँगे मेरे घर
खेत-खलिहानों जैसे लोगों से मिलने
गाँव-गाँव, जंगल-गलियाँ जाऊँगा।
जो लगातार काम में लगे हैं
मैं फ़ुरसत से नहीं
उनसे एक ज़रूरी काम की तरह
मिलता रहूँगा—
इसे मैं अकेली आख़िरी इच्छा की तरह
सबसे पहली इच्छा रखना चाहूँगा।
--- विनोद कुमार शुक्ल
31 अक्टूबर 2022
25 अक्टूबर 2022
Stationery
The moon did not become the sun.
It just fell on the desert
in great sheets, reams
of silver handmade by you.
The night is your cottage industry now,
the day is your brisk emporium.
The world is full of paper.
Write to me.
--- Agha Shahid Ali
(The Half-Inch Himalayas, 1987)
It just fell on the desert
in great sheets, reams
of silver handmade by you.
The night is your cottage industry now,
the day is your brisk emporium.
The world is full of paper.
Write to me.
--- Agha Shahid Ali
(The Half-Inch Himalayas, 1987)
19 अक्टूबर 2022
लाल ज़री - Varieties of Ghazal: Poems of the Middle East
लाल ज़री
अरबी लोगों में कहावत थी कि
जब कोई अजनबी दस्तक दे तुम्हारे दरवाज़े पर,
तो उसे तीन दिनों तक खिलाओ-पिलाओ…
यह पूछने से पहले कि वह कौन है,
कहाँ से आया है,
कहाँ को जाएगा।
इस तरह, उसके पास होगी पर्याप्त ताक़त
जवाब देने के लिए।
या फिर, तब तक तुम बन जाओगे
इतने अच्छे मित्र
कि तुम परवाह नहीं करोगे।
चलो फिर लौट जाएँ वहीं।
चावल? चिलगोज़े?
यहाँ, लो यह लाल ज़री वाला तकिया।
मेरा बच्चा पानी पिला देगा
तुम्हारे घोड़े को।
नहीं, मैं व्यस्त नहीं था जब तुम आए!
मैं व्यस्त होने की तैयारी में भी नहीं था।
यही आडंबर ओढ़ लेते हैं सब
यह दिखाने के लिए उनका कोई उद्देश्य है
इस दुनिया में।
मैं ठुकराता हूँ सभी दावे।
तुम्हारी थाली प्रतीक्षारत है।
चलो हम ताज़ा पुदीना घोलते हैं
तुम्हारी चाय में।
अरबी लोगों में कहावत थी कि
जब कोई अजनबी दस्तक दे तुम्हारे दरवाज़े पर,
तो उसे तीन दिनों तक खिलाओ-पिलाओ…
यह पूछने से पहले कि वह कौन है,
कहाँ से आया है,
कहाँ को जाएगा।
इस तरह, उसके पास होगी पर्याप्त ताक़त
जवाब देने के लिए।
या फिर, तब तक तुम बन जाओगे
इतने अच्छे मित्र
कि तुम परवाह नहीं करोगे।
चलो फिर लौट जाएँ वहीं।
चावल? चिलगोज़े?
यहाँ, लो यह लाल ज़री वाला तकिया।
मेरा बच्चा पानी पिला देगा
तुम्हारे घोड़े को।
नहीं, मैं व्यस्त नहीं था जब तुम आए!
मैं व्यस्त होने की तैयारी में भी नहीं था।
यही आडंबर ओढ़ लेते हैं सब
यह दिखाने के लिए उनका कोई उद्देश्य है
इस दुनिया में।
मैं ठुकराता हूँ सभी दावे।
तुम्हारी थाली प्रतीक्षारत है।
चलो हम ताज़ा पुदीना घोलते हैं
तुम्हारी चाय में।
14 अक्टूबर 2022
अजीब वक्त है
अजीब वक्त है -
बिना लड़े ही एक देश- का देश
स्वीकार करता चला जाता
अपनी ही तुच्छताओं की अधीनता !
कुछ तो फर्क बचता
धर्मयुद्ध और कीट युद्ध में -
कोई तो हार जीत के नियमों में
स्वाभिमान के अर्थ को फिर से ईजाद करता
बिना लड़े ही एक देश- का देश
स्वीकार करता चला जाता
अपनी ही तुच्छताओं की अधीनता !
कुछ तो फर्क बचता
धर्मयुद्ध और कीट युद्ध में -
कोई तो हार जीत के नियमों में
स्वाभिमान के अर्थ को फिर से ईजाद करता
--- कुंवर नारायण
7 अक्टूबर 2022
All Your Horses
Say when rain
cannot make
you more wet
or a certain
thought can’t
deepen and yet
you think it again:
you have lost
count. A larger
amount is
no longer a
larger amount.
There has been
a collapse; perhaps
in the night.
Like a rupture
in water (which
can’t rupture
of course). All
your horses
broken out with
all your horses.
--- Kay Ryan
cannot make
you more wet
or a certain
thought can’t
deepen and yet
you think it again:
you have lost
count. A larger
amount is
no longer a
larger amount.
There has been
a collapse; perhaps
in the night.
Like a rupture
in water (which
can’t rupture
of course). All
your horses
broken out with
all your horses.
--- Kay Ryan
2 अक्टूबर 2022
दुख-सुख
'दुख-सुख तो
आते-जाते रहेंगे
सब कुछ पार्थिव है यहाँ
लेकिन मुलाक़ातें नहीं हैं
पार्थिव
इनकी ताज़गी
रहेगी यहाँ
हवा में!
इनसे बनती हैं नई जगहें
एक बार और मिलने के बाद भी
एक बार और मिलने की इच्छा
पृथ्वी पर कभी ख़त्म नहीं होगी'
आते-जाते रहेंगे
सब कुछ पार्थिव है यहाँ
लेकिन मुलाक़ातें नहीं हैं
पार्थिव
इनकी ताज़गी
रहेगी यहाँ
हवा में!
इनसे बनती हैं नई जगहें
एक बार और मिलने के बाद भी
एक बार और मिलने की इच्छा
पृथ्वी पर कभी ख़त्म नहीं होगी'
25 सितंबर 2022
Traveling through the Dark
Traveling through the dark I found a deer
dead on the edge of the Wilson River road.
It is usually best to roll them into the canyon:
that road is narrow; to swerve might make more dead.
By glow of the tail-light I stumbled back of the car
and stood by the heap, a doe, a recent killing;
she had stiffened already, almost cold.
I dragged her off; she was large in the belly.
My fingers touching her side brought me the reason—
her side was warm; her fawn lay there waiting,
alive, still, never to be born.
Beside that mountain road I hesitated.
The car aimed ahead its lowered parking lights;
under the hood purred the steady engine.
I stood in the glare of the warm exhaust turning red;
around our group I could hear the wilderness listen.
I thought hard for us all—my only swerving—,
then pushed her over the edge into the river.
--- William Stafford
dead on the edge of the Wilson River road.
It is usually best to roll them into the canyon:
that road is narrow; to swerve might make more dead.
By glow of the tail-light I stumbled back of the car
and stood by the heap, a doe, a recent killing;
she had stiffened already, almost cold.
I dragged her off; she was large in the belly.
My fingers touching her side brought me the reason—
her side was warm; her fawn lay there waiting,
alive, still, never to be born.
Beside that mountain road I hesitated.
The car aimed ahead its lowered parking lights;
under the hood purred the steady engine.
I stood in the glare of the warm exhaust turning red;
around our group I could hear the wilderness listen.
I thought hard for us all—my only swerving—,
then pushed her over the edge into the river.
--- William Stafford
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