I know flowers shine strongerthan the sun
their eclipse means the end of times
but I love flowers for their treachery
their fragile bodies
grace my imagination’s avenues
without their presence
my mind would be an unmarked
grave.
1 अप्रैल 2024
26 मार्च 2024
फरसा
हमारा जातक भी
जातक कथाओं में
अपनी माता को
जाँता से आटा
बनाते हुए देखता है
उनका मिथकीय पात्र
फरसा लिए
कभी खेत में नहीं जाता
माँ की हत्या के लिए जाता है
इस तरह
गेंहू पैदा हुआ ही नहीं
श्रम कभी देखा ही नहीं
बेशर्म सदा मांग कर खाया
फरसा भी सदा क़त्ल के लिए उठाया
एक किसान यही सोचकर
पसीने से फरसा पोछकर
अपनी टूटी हड्डियाँ जोड़कर
सो गया खेत की मेड़ पर।
- बच्चा लाल 'उन्मेष'
जातक कथाओं में
अपनी माता को
जाँता से आटा
बनाते हुए देखता है
उनका मिथकीय पात्र
फरसा लिए
कभी खेत में नहीं जाता
माँ की हत्या के लिए जाता है
इस तरह
गेंहू पैदा हुआ ही नहीं
श्रम कभी देखा ही नहीं
बेशर्म सदा मांग कर खाया
फरसा भी सदा क़त्ल के लिए उठाया
एक किसान यही सोचकर
पसीने से फरसा पोछकर
अपनी टूटी हड्डियाँ जोड़कर
सो गया खेत की मेड़ पर।
- बच्चा लाल 'उन्मेष'
20 मार्च 2024
A Country Called Song
I lived in a country called Song:
Countless singing women made me
a citizen,
and musicians from the four corners
composed cities for me with mornings and nights,
and I roamed through my country
like a man roams through the world.
My country is a song,
and as soon as it ends, I go back
to being a refugee
--- Najwan Darwish,
Countless singing women made me
a citizen,
and musicians from the four corners
composed cities for me with mornings and nights,
and I roamed through my country
like a man roams through the world.
My country is a song,
and as soon as it ends, I go back
to being a refugee
--- Najwan Darwish,
Tr. by Kareem J. Abu-Zeid
12 मार्च 2024
On Killing A Tree
It takes much time to kill a tree,
Not a simple jab of the knife
Will do it. It has grown
Slowly consuming the earth,
Rising out of it, feeding
Upon its crust, absorbing
Years of sunlight, air, water,
And out of its leperous hide
Sprouting leaves.
So hack and chop
But this alone wont do it.
Not so much pain will do it.
The bleeding bark will heal
And from close to the ground
Will rise curled green twigs,
Miniature boughs
Which if unchecked will expand again
To former size.
No,
The root is to be pulled out -
Out of the anchoring earth;
It is to be roped, tied,
And pulled out - snapped out
Or pulled out entirely,
Out from the earth-cave,
And the strength of the tree exposed,
The source, white and wet,
The most sensitive, hidden
For years inside the earth.
Then the matter
Of scorching and choking
In sun and air,
Browning, hardening,
Twisting, withering,
And then it is done.
-- Gieve Patel
(From POEMS, published by Nissim Ezekiel, Bombay 1966)
Not a simple jab of the knife
Will do it. It has grown
Slowly consuming the earth,
Rising out of it, feeding
Upon its crust, absorbing
Years of sunlight, air, water,
And out of its leperous hide
Sprouting leaves.
So hack and chop
But this alone wont do it.
Not so much pain will do it.
The bleeding bark will heal
And from close to the ground
Will rise curled green twigs,
Miniature boughs
Which if unchecked will expand again
To former size.
No,
The root is to be pulled out -
Out of the anchoring earth;
It is to be roped, tied,
And pulled out - snapped out
Or pulled out entirely,
Out from the earth-cave,
And the strength of the tree exposed,
The source, white and wet,
The most sensitive, hidden
For years inside the earth.
Then the matter
Of scorching and choking
In sun and air,
Browning, hardening,
Twisting, withering,
And then it is done.
-- Gieve Patel
(From POEMS, published by Nissim Ezekiel, Bombay 1966)
6 मार्च 2024
धीरे-धीरे
भरी हुई बोतलों के पास
ख़ाली गिलास-सा
मैं रख दिया गया हूँ।
धीरे-धीरे अँधेरा आएगा
और लड़खड़ाता हुआ
मेरे पास बैठ जाएगा।
वह कुछ कहेगा नहीं
मुझे बार-बार भरेगा
ख़ाली करेगा,
भरेगा—ख़ाली करेगा,
और अंत में
ख़ाली बोतलों के पास
ख़ाली गिलास-सा
छोड़ जाएगा।
--- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
ख़ाली गिलास-सा
मैं रख दिया गया हूँ।
धीरे-धीरे अँधेरा आएगा
और लड़खड़ाता हुआ
मेरे पास बैठ जाएगा।
वह कुछ कहेगा नहीं
मुझे बार-बार भरेगा
ख़ाली करेगा,
भरेगा—ख़ाली करेगा,
और अंत में
ख़ाली बोतलों के पास
ख़ाली गिलास-सा
छोड़ जाएगा।
--- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
29 फ़रवरी 2024
जब माँएँ नहीं होतीं
जिन बच्चों की माँएँ नहीं होतीं
उनकी रेलगाड़ियाँ कहाँ जाती हैं
धड़धड़ाती हुईं
सीटी बजाती हुईं
धुआँ उड़ाती हुईं
उनके इंतज़ार में शिद्दत से बिछी आँखों को
फिर वे कहाँ खोजने जाते हैं
आँचल का वह सिरा
उन हाथों का स्पर्श
उस अनंत नि:स्वार्थ प्रेम के बिना
वे कैसे जीते हैं
यह जानते हुए भी कि इस दुनिया में
उनसे सबसे ज़्यादा प्यार करने वाली आँखें नहीं रहीं
और दुनिया का सबसे कोमल हृदय
उनके लिए अब और नहीं धड़केगा।
---दीपक जायसवाल
उनकी रेलगाड़ियाँ कहाँ जाती हैं
धड़धड़ाती हुईं
सीटी बजाती हुईं
धुआँ उड़ाती हुईं
उनके इंतज़ार में शिद्दत से बिछी आँखों को
फिर वे कहाँ खोजने जाते हैं
आँचल का वह सिरा
उन हाथों का स्पर्श
उस अनंत नि:स्वार्थ प्रेम के बिना
वे कैसे जीते हैं
यह जानते हुए भी कि इस दुनिया में
उनसे सबसे ज़्यादा प्यार करने वाली आँखें नहीं रहीं
और दुनिया का सबसे कोमल हृदय
उनके लिए अब और नहीं धड़केगा।
---दीपक जायसवाल
20 फ़रवरी 2024
एक ही फ़ोटो है देश में
एक ही फ़ोटो है देश में
कोई भी विजेता हो
उसके माथे पर
चिपका दी जाती है
हार हो तो
छिपा ली जाती है
एक ही फ़ोटो है देश में।
--- पंकज चतुर्वेदी
कोई भी विजेता हो
उसके माथे पर
चिपका दी जाती है
हार हो तो
छिपा ली जाती है
एक ही फ़ोटो है देश में।
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