11 जून 2024

कविवर

मैं पहली पंक्ति लि‍खता हूँ
और डर जाता हूँ राजा के सिपाहियों से
पंक्ति को काट देता हूँ

मैं दूसरी पंक्ति लिखता हूँ
और डर जाता हूँ गुरिल्‍ला बाग़ियों से
पंक्ति को काट देता हूँ

मैंने अपनी जान की ख़ातिर
अपनी हज़ारों पंक्तियों की
इस तरह हत्‍या की है

उन पंक्तियों की रूहें
अक्‍सर मेरे चारों ओर मँडराती रहती हैं
और मुझसे कहती हैं : कविवर!
कवि हो या कविता के हत्‍यारे?

सुना था इंसाफ़ करने वाले हुए कई इंसाफ़ के हत्‍यारे
धर्म के रखवाले भी सुना था कई हुए
ख़ुद धर्म की पावन आत्‍मा की
हत्‍या करने वाले

सिर्फ़ यही सुनना बाक़ी था
और यह भी सुन लिया
कि हमारे वक़्त में ख़ौफ़ के मारे
कवि भी हो गए
कविता के हत्‍यारे

~ सुरजीत पातर (अनुवाद : अनूप सेठी) 

5 जून 2024

15 बेहतरीन शेर - 10 !!!

1.  एक बार तो यूँ होगा, थोड़ा सा सुकूं होगा, न दिल में कसक होगी, न सर में जुनूँ होगा. - गुलज़ार  

2. मेहरबानी को मोहब्बत नहीं कहते ऐ दोस्त, आह! अब मुझसे तेरी रंजिश-ए-बेजा भी नहीं - फ़िराक़ गोरखपुरी

3. शिकवा समुनदरों का कोई किस तरह करे, साहिल भी ख़ुद नहीं थे सफ़ीनों के ख़ैर-ख़्वाह

4. निगाह पड़ने न पाए यतीम बच्चों की, ज़रा छुपा के खिलौने दुकान में रखना - महबूब ज़फ़र

5. दिल दे तो इस मिज़ाज का परवरदिगार दे, जो रंज की घड़ी भी ख़ुशी से गुज़ार दे - दाग़ देहलवी

6. कभी चराग़, कभी तीरगी से हार गये, जो बे-शऊर थे वे हर किसी से हार गये...!!! - अनवर जलालपुरी

7- फ़ितूर होता है हर उम्र में जुदा-जुदा, खिलौना, माशूक़ा, रूतबा, ख़ुदा...!!!

8- तिरी मौजूदगी में तेरी दुनिया कौन देखेगा, तुझे मेले में सब देखेंगे मेला कौन देखेगा -नज़ीर बनारसी
 
9- एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है, तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना. - मुनव्वर राणा

10 - तमाम उम्र हम इक दूसरे से लड़ते रहे, मगर मरे तो बराबर में जा के लेट गए ~ मुनव्वर राना

11- चाह लेते या मुकम्मल ही किनारा करते, अपने हिस्से का कोई काम तो सारा करते - उमैना यूसफ़

12- वाइज़ को जो आदत है पेचीदा-बयानी की, हैरां है कि रिंदों की हर बात खरी क्यों है ! - असद मुल्तानी

13-  मेरे इश्क से मिली तेरे हुस्न को ये शोहरत, तेरा ज़िक्र ही कहाँ था मेरी दास्तान से पहले ! - जाकिर खान

14-  अज़ीम लोग थे टूटे तो इक वक़ार के साथ, किसी से कुछ न कहा बस उदास रहने लगे - इक़बाल अशहर

15- एक बार हम भी रहनुमा बन के देख लें,  फिर उसके बाद क़ौम का जो कुछ भी हाल हो...!!! - दिलावर फ़िग़ार

30 मई 2024

Like a Cloud, We Travel

Wiped out by every wind over Gaza,
we are scattered on this earth,
footsteps in the desert.

We do not, or cannot, know
when and how to return
to the homes
our ancestors loved
for centuries.

Like clouds,
we try to give shade and rain:
the best we can.

But deep down, we do not know
whether we even belong
to where we happen to exist.

Like clouds,
we might visit our homes
without knowing that they still are
ours.

Invaders have changed much
of our landscape,
much or our lives.

--- Mosab Abu Toha

23 मई 2024

"Our Country is a Graveyard"

"Gentlemen, you have transformed
our country into a graveyard
You have planted bullets in our heads,
and organized massacres
Gentlemen, nothing passes like that
without account
All that you have done
to our people is
registered in notebooks".

16 मई 2024

I have a country

I have a country
it's invisible
it has no flags
or moonlight
or river
or mountain
or clouds
to understand heaven
or flames
to take desire apart
but in the sadness of its map
there's the answer we need.

--- Nathalie Handal, "Everyday"

10 मई 2024

एक आदमी इस मुल्क में

एक आदमी इस मुल्क में
अपने हर सम्भव प्रतिपक्ष का
उपहास और
अपमान करता हुआ
घूम रहा है

उसे किसी सवाल का
जवाब नहीं देना
बल्कि उसकी हँसी में
यह हिक़ारत है
कि प्रश्न करने की
ज़रूरत और हिम्मत
अभी बाक़ी है

लोग ताली बजा रहे हैं
क्योंकि जो वे स्वयं
करते हैं ज़िन्दगी में
उसका वह
सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि है

समाज में बहस की
ताब नहीं रह गई

विद्वेष और हिंसा ने उसे
विस्थापित कर दिया है

― पंकज चतुर्वेदी ("काजू की रोटी" कविता संग्रह)

8 मई 2024

The dawns you are in will rise again

The dawns you are in will rise again
The dawns you are in will rise again
The dawns you are in will rise again,
Filling my arms with you,
Putting dew on the lashes
Of the crescent that has gone not giving up.

Will stretch the roads wide,
To the bottom of your doorsteps.
Will bring your longing,
The dove cooing at your window.
Perfume of the branches,
Will drizzle to my imagination.

Yearning to you as clear as moonlight,
Passed my door a thousand times.
Spreading out their leaves,
Lies the dreams like red flowers.

Like your lip kissing my burning lip,
The dawns you are in will rise again.

--- Gulnisa Emin
Translated by RFA’s Uyghur Service. Written in English by Roseanne Gerin.