1 मार्च 2022

HOHENLINDEN

On Linden when the sun was low,
All bloodless lay the untrodden snow,
And dark as winter was the flow
Of Iser, rolling rapidly.

But Linden saw another sight
When the drum beat, at dead of night,
Commanding fires of death to light
The darkness of her scenery.

By torch and trumpet fast arrayed
Each horseman drew his battle blade,
And furious every charger neighed,
To join the dreadful revelry.

Then shook the hills with thunder riven,
Then rushed the steed to battle driven,
And louder than the bolts of heaven

Far flashed the red artillery.
And redder yet those fires shall glow
On Linden's hills of blood-stained snow,
And darker yet shall be the flow
Of Iser, rolling rapidly.

'Tis morn, but scarce yon lurid sun
Can pierce the war-clouds, rolling dun,
Where furious Frank and fiery Hun
Shout in their sulphurous canopy.

The combat deepens. On, ye brave,
Who rush to glory, or the grave!
Wave, Munich, all thy banners wave!
And charge with all thy chivalry!

Ah! few shall part where many meet!
The snow shall be their winding-sheet,
And every turf beneath their feet
Shall be a soldier's sepulchre.

--- Thomas Campbell (1777-1844)

24 फ़रवरी 2022

पानी

बहते हुए पानी ने
पत्थरों पर निशान छोड़े हैं
अजीब बात है
पत्थरों ने पानी पर
कोई निशान नहीं छोड़ा।

--- नरेश सक्सेना
स्रोत : पुस्तक : समुद्र पर हो रही है बारिश, राजकमल प्रकाशन संस्करण : 2001

18 फ़रवरी 2022

विपक्ष को कमज़ोर कहना

राजा ने कहा :
अच्छे लोकतंत्र के लिए
मज़बूत विपक्ष चाहिए
राजा के अनुयायी भी
यही कहते घूमते हैं :
विपक्ष कमज़ोर है
और वे भी जो
तटस्थ दिखना चाहते हैं
पूछते हैं :
विपक्ष कहाँ है ?
कभी-कभी तो
अफ़सोस भी जताते हैं :
विपक्ष कुछ कर नहीं पा रहा है
ये जो तटस्थ हैं
राजा के सबसे गहरे अनुयायी हैं
वे बात को
इस तरह कहने की कला जानते हैं
कि वह सत्य मालूम हो
समर्थन नहीं
रही बात विपक्ष की
तो उसे कमज़ोर कहना
उससे सहानुभूति नहीं
बल्कि राजा की
प्रशंसा है
यानी शासन इतना अच्छा है
कि विपक्ष
कमज़ोर ही हो सकता है

--- पंकज चतुर्वेदी

11 फ़रवरी 2022

जीने के बारे में

*एक*

जीना कोई हंसी खेल नहीं
आपको जीना चाहिये बड़ी संजीदगी के साथ
मसलन किसी गिलहरी की तरह -
मेरा मतलब है जीवन से सुदूर और ऊपर की किसी
चीज़ की तलाश किये बग़ैर,
मेरा मतलब है ज़िन्दा रहना आपका मुकम्मिल काम होना चाहिये.

जीना कोई हंसी खेल नहीं
आपको इसे गंभीरता से लेना चाहिये,
ऐसी और इस हद तक
कि, मिसाल के तौर पर, आपके हाथ बंधे आपकी पीठ पर,
आपकी पीठ दीवाल पर,
या फिर किसी प्रयोगशाला में
अपने सफ़ेद कोट और हिफ़ाज़ती चश्मों में
आप मर सकें लोगों के लिये -
उन लोगों तक के लिये जिनके चेहरे भी आपने कभी नहीं देखे,
गो कि जानते हैं आप
कि जीवन सबसे ज़्यादा वास्तविक, सबसे सुन्दर चीज़ है.

मेरा मतलब है, आपको इतनी संजीदगी से लेना चाहिये जीवन को
कि, उदाहरण के लिये, सत्तर की उम्र में भी आप रोपें जैतून का पौधा -
और यह नहीं कि अपने बच्चों के लिये, बल्कि इसलिये कि
हालांकि आप मृत्यु से डरते हैं
पर उस पर विश्वास नहीं करते
क्योंकि जीवन, मेरा मतलब है, ज़्यादा वज़नदार चीज़ है.

*दो*

मान लीजिये हम बहुत बीमार हैं - ऑपरेशन की ज़रूरत है -
जिसका मतलब है कि हो सकता है हम उठ भी न सकें
उस सफ़ेद मेज़ से
गो कि यह असंभव है अफ़सोस महसूस न करना
थोड़ा जल्दी चले जाने के बारे में
हम फिर भी हंसेंगे चुटकुले सुनते हुए,
हम देखेंगे खिड़की के बाहर कि बारिश तो नहीं हो रही,
या चिन्ताकुल प्रतीक्षा करेंगे
ताज़ा समाचार प्रसारण की ...
मान लीजिये हम मोर्चे पर हैं -
लड़ने लायक किसी चीज़ के लिये.
वहां पहले ही हमले में, उसी दिन
हम औंधे गिर सकते हैं मुंह के बल, मुर्दा.

हम जानते होंगे इसे एक अजीब गुस्से के साथ,
फिर भी हम सोचते - सोचते हलकान कर लेंगे ख़ुद को
उस युद्ध के नतीज़े की बाबत जो बरसों चल सकता है.
मान लीजिये हम जेल में हैं
और पचास की उम्र की लपेट में,
और लगाइये कि अभी अठ्ठारह बरस बाक़ी हैं
लौह फ़ाटकों के खुलने में.

हम फिर भी जियेंगे बाहर की दुनिया के साथ,
इसके लोगों, पशुओं, संघर्षों और हवा के -
मेरा मतलब कि दीवारों के पार की दुनिया के साथ
मेरा मतलब, कैसे भी कहीं भी हों हम
हमें यों जीना चाहिये जैसे हम कभी मरेंगे ही नहीं.

*तीन*

यह धरती ठण्डी हो जायेगी एक दिन
सितारों में एक सितारा
ऊपर से सबसे नन्हा
नीले मख़मल पर एक सुनहली ज़र्रा -
मेरा मतलब है - यही -हमारी महान पृथ्वी
यह पृथ्वी ठण्डी हो जायेगी एक दिन,
बर्फ़ की सिल्ली की तरह नहीं
मुर्दा बादल की तरह भी नहीं
बल्कि एक खोखले अखरोट की तरह यह लुढ़कती होगी,
घनघोर काले शून्य में ...
अभी इसी वक़्त आपको इसका दुःख मनाना चाहिये
अभी, इसी वक़्त ज़रूरी है आपके लिये
यह अफ़सोस महसूस करना -
क्योंकि दुनिया को इतना ही प्यार करना ज़रूरी है
अगर आपको कहना है "मैं जिया".

--- Nazim Hikmet,  सारे अनुवाद: वीरेन डंगवाल (१९९४), 'पहल' पुस्तिका से साभार.

2 फ़रवरी 2022

नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया

नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया
क्या है तेरा क्या है मेरा अपना पराया भूल गया
क्या भूला कैसे भूला क्यूँ पूछते हो बस यूँ समझो
कारन दोश नहीं है कोई भूला भाला भूल गया

कैसे दिन थे कैसी रातें कैसी बातें घातें थीं
मन बालक है पहले प्यार का सुंदर सपना भूल गया
अँधियारे से एक किरन ने झाँक के देखा शरमाई
धुँदली छब तो याद रही कैसा था चेहरा भूल गया

याद के फेर में आ कर दिल पर ऐसी कारी चोट लगी
दुख में सुख है सुख में दुख है भेद ये न्यारा भूल गया
एक नज़र की एक ही पल की बात है डोरी साँसों की
एक नज़र का नूर मिटा जब इक पल बीता भूल गया

सूझ-बूझ की बात नहीं है मन-मौजी है मस्ताना
लहर लहर से जा सर पटका सागर गहरा भूल गया

31 जनवरी 2022

Nothing Gold Can Stay

Nature’s first green is gold,
Her hardest hue to hold.
Her early leaf’s a flower;
But only so an hour.
Then leaf subsides to leaf.
So Eden sank to grief,
So dawn goes down to day.
Nothing gold can stay.

--- Robert Frost

23 जनवरी 2022

The Butterfly

The last, the very last,
So richly, brightly, dazzlingly yellow.
Perhaps if the sun's tears would sing
against a white stone…

Such, such a yellow
Is carried lightly ‘way up high.
It went away I'm sure because it wished to
kiss the world goodbye.

For seven weeks I've lived in here,
Penned up inside this ghetto
But I have found my people here.
The dandelions call to me
And the white chestnut candles in the court.
Only I never saw another butterfly.

That butterfly was the last one.
Butterflies don't live in here,
In the ghetto.

--- Pavel Friedmann 4.6.1942

17 जनवरी 2022

संतोषम् परम् सुखम्

पहली-पहली बारदुनिया बड़ी होगी एक क़दम आगे
जिसके क़दमों पर
अंसतोषी रहा होगा वह पहला ।

किसी असंतुष्ट ने ही देखा होगा
पहली बार सुंदर दुनिया का सपना

पहिए का विचार आया होगा
पहली-पहली बार
किसी असंतोषी के ही मन में
आग को भी देखा होगा पहली बार गौर से
किसी असंतोषी ने ही ।

असंतुष्टों ने ही लाँघे पर्वत, पार किए समुद्र
खोज डाली नई दुनिया

असंतोष से ही फूटी पहली कविता
असंतोष से एक नया धर्म

इतिहास के पेट में
मरोड़ उठी होगी असंतोष के चलते ही
इतिहास की धारा को मोड़ा
बार-बार असंतुष्टों ने ही

उन्हीं से गति है
उन्हीं से उष्मा
उन्हीं से यात्रा पृथ्वी से चाँद
और
पहिए से जहाज तक की

असंतुष्टों के चलते ही
सुंदर हो पाई है यह दुनिया इतनी
असंतोष के गर्भ से ही
पैदा हुई संतोष करने की कुछ स्थितियाँ ।

फिर क्यों
सत्ता घबराती है असंतुष्टों से
सबसे अधिक

क्या इसीलिए कहा गया है
संतोषम् परम् सुखम् ।

---महेश चंद्र पुनेठा

10 जनवरी 2022

जेरूसलम

तुम एक नहीं
दो नहीं
तीन-तीन धर्मों की
पवित्र भूमि हो
फिर भी
इतनी नफ़रत!
इतनी अशांति!
इतना ख़ून!

हे दुनिया के प्राचीन शहर
क्या कभी तुम्हें लगता है
कि पवित्र भूमि की जगह तुम
काश! एक निर्जन भूमि होते।

~ महेश चंद्र पुनेठा