8 मार्च 2021

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

क़ल्ब-ए-माहौल में लर्ज़ां शरर-ए-जंग हैं आज
हौसले वक़्त के और ज़ीस्त के यक-रंग हैं आज
आबगीनों में तपाँ वलवला-ए-संग हैं आज
हुस्न और इश्क़ हम-आवाज़ ओ हम-आहंग हैं आज

जिस में जलता हूँ उसी आग में जलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

तेरे क़दमों में है फ़िरदौस-ए-तमद्दुन की बहार
तेरी नज़रों पे है तहज़ीब ओ तरक़्क़ी का मदार
तेरी आग़ोश है गहवारा-ए-नफ़्स-ओ-किरदार
ता-ब-कै गिर्द तिरे वहम ओ तअ'य्युन का हिसार

कौंद कर मज्लिस-ए-ख़ल्वत से निकलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

तू कि बे-जान खिलौनों से बहल जाती है
तपती साँसों की हरारत से पिघल जाती है
पाँव जिस राह में रखती है फिसल जाती है
बन के सीमाब हर इक ज़र्फ़ में ढल जाती है

ज़ीस्त के आहनी साँचे में भी ढलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

ज़िंदगी जेहद में है सब्र के क़ाबू में नहीं
नब्ज़-ए-हस्ती का लहू काँपते आँसू में नहीं
उड़ने खुलने में है निकहत ख़म-ए-गेसू में नहीं
जन्नत इक और है जो मर्द के पहलू में नहीं

उस की आज़ाद रविश पर भी मचलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

गोशे गोशे में सुलगती है चिता तेरे लिए
फ़र्ज़ का भेस बदलती है क़ज़ा तेरे लिए
क़हर है तेरी हर इक नर्म अदा तेरे लिए
ज़हर ही ज़हर है दुनिया की हवा तेरे लिए

रुत बदल डाल अगर फूलना फलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

क़द्र अब तक तिरी तारीख़ ने जानी ही नहीं
तुझ में शो'ले भी हैं बस अश्क-फ़िशानी ही नहीं
तू हक़ीक़त भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं
तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं

अपनी तारीख़ का उन्वान बदलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

तोड़ कर रस्म का बुत बंद-ए-क़दामत से निकल
ज़ोफ़-ए-इशरत से निकल वहम-ए-नज़ाकत से निकल
नफ़्स के खींचे हुए हल्क़ा-ए-अज़्मत से निकल
क़ैद बन जाए मोहब्बत तो मोहब्बत से निकल

राह का ख़ार ही क्या गुल भी कुचलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

तोड़ ये अज़्म-शिकन दग़दग़ा-ए-पंद भी तोड़
तेरी ख़ातिर है जो ज़ंजीर वो सौगंद भी तोड़
तौक़ ये भी है ज़मुर्रद का गुलू-बंद भी तोड़
तोड़ पैमाना-ए-मर्दान-ए-ख़िरद-मंद भी तोड़

बन के तूफ़ान छलकना है उबलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

तू फ़लातून ओ अरस्तू है तू ज़हरा परवीं
तेरे क़ब्ज़े में है गर्दूं तिरी ठोकर में ज़मीं
हाँ उठा जल्द उठा पा-ए-मुक़द्दर से जबीं
मैं भी रुकने का नहीं वक़्त भी रुकने का नहीं

लड़खड़ाएगी कहाँ तक कि सँभलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

---कैफ़ी आज़मी

1 मार्च 2021

मन न रँगाये रँगाये जोगी कपड़ा


मन न रँगाये रँगाये जोगी कपड़ा।। टेक।।

आसन मारि मंदिर में बैठे, नाम छाड़ि पूजन लागे पथरा।। 1।। 

कनवां फड़ाय जोगी जटवा बढ़ौले, दाढ़ी बढ़ाय जोगी होइ गैले बकरा।। 2।।

जंगल जाय जोगी धुनिया रमौले, काम जराय जोगी होइ गैलै हिजरा।। 3।। 

मथवा मुड़ाय जोगी कपड़ा रंगौले, गीता बाँचि के होइ गैले लबरा।। 4।। 

कहहि कबीर सुनो भाई साधो, जम दरबजवाँ बाँधल जैवे पकरा।। 5।। 

23 फ़रवरी 2021

पुल बन गया था

 मैं जिन लोगों के लिए

पुल बन गया था 

वे जब मुझ पर से 

गुज़र कर जा रहे थे

मैंने सुना—मेरे बारे में कह रहे थे :

वह कहाँ छूट गया 

चुप-सा आदमी?

शायद पीछे लौट गया है!

हमें पहले ही ख़बर थी

उसमें दम नहीं है।

--- सुरजीत पातर  

पंजाबी से अनुवाद : चमनलाल


20 फ़रवरी 2021

10-Year-Old Shot Three Times, but She’s Fine

Dumbfounded in hospital whites, you are picture-book
itty-bit, floundering in bleach and steel. Braids untwirl
and corkscrew, you squirm, the crater in your shoulder
spews a soft voltage. On a TV screwed into the wall
above your head, neon rollicks. A wide-eyed train
engine perfectly smokes, warbles a song about forward.

Who shot you, baby?
I don’t know. I was playing.
You didn’t see anyone?
I was playing with my friend Sharon.
I was on the swing
and she was—
Are you sure you didn’t—
No, I ain’t seen nobody but Sharon. I heard
people yelling though, and—

Each bullet repainted you against the brick, kicked
you a little sideways, made you need air differently.
You leaked something that still goldens the boulevard.
I ain’t seen nobody, I told you.
And at A. Lincoln Elementary on Washington Street,
or Jefferson Elementary on Madison Street, or Adams
Elementary just off the Eisenhower Expressway,
we gather the ingredients, if not the desire, for pathos:

an imploded homeroom, your empty seat pulsating
with drooped celebrity, the sometime counselor
underpaid and elsewhere, a harried teacher struggling
toward your full name. Anyway your grades weren’t
all that good. No need to coo or encircle anything,
no call for anyone to pull their official white fingers
through your raveled hair, no reason to introduce
the wild notion of loving you loud and regardless.

Oh, and they’ve finally located your mama, who
will soon burst in with her cut-rate cure of stammering
Jesus’ name. Beneath the bandages, your chest crawls
shut. Perky ol’ Thomas winks a bold-faced lie from
his clacking track, and your heart monitor hums
a wry tune no one will admit they’ve already heard.

Elsewhere, 23 seconds rumble again and again through
Sharon’s body. Boom, boom, she says to no one.

14 फ़रवरी 2021

Ode to the flute

A man sings
by opening his
mouth a man
sings by opening
his lungs by
turning himself into air
a flute can
be made of a man
nothing is explained
a flute lays
on its side
and prays a wind
might enter it
and make of it
at least
a small final song

3 फ़रवरी 2021

Strange Fruits

Southern trees bear a strange fruit
Blood on the leaves and blood at the root
Black bodies swingin' in the Southern breeze
Strange fruit hangin' from the poplar trees

Pastoral scene of the gallant South
The bulgin' eyes and the twisted mouth
Scent of magnolias sweet and fresh
Then the sudden smell of burnin' flesh

Here is a fruit for the crows to pluck
For the rain to gather, for the wind to suck
For the sun to rot, for the tree to drop
Here is a strange and bitter crop

1 फ़रवरी 2021

My Mother’s Fault

You marched with other seven-year-old girls,
Singing songs of freedom at dawn in rural Gujarat,
Believing that would shame the British and they would leave India. 

Five years later, they did. You smiled, 
When you first saw Maqbool Fida Husain’s nude sketches of Hindu goddesses, 
And laughed, 
When I told you that some people wanted to burn his art. 
‘Have those people seen any of our ancient sculptures? Those are far naughtier,’ You said.

Your voice broke, On December 6, 1992, 
As you called me at my office in Singapore, 
When they destroyed the Babri Masjid. 
‘We have just killed Gandhi again,’ you said. 
We had. Aavu te karaay koi divas (Can anyone do such a thing any time?) 

You asked, aghast, Staring at the television, 
As Hindu mobs went, house-to-house, 
Looking for Muslims to kill, 
After a train compartment in Godhra burned, 
Killing 58 Hindus in February 2002. 
You were right, each time. 

After reading what I’ve been writing over the years, 
Some folks have complained that I just don’t get it. 
I live abroad: what do I know of India? 
But I knew you; that was enough. 
And that’s why I turned out this way.