20 जून 2022

15 बेहतरीन शेर - 5 !!!

1. आपके तग़ाफ़ुल का सिलसिला पुराना है उस तरफ़ निगाहें हैं इस तरफ़ निशाना है - हिना तैमूरी

2. तुम्हारे हिज्र में मरना था कौन सा मुश्किल, तुम्हारे हिज्र में ज़िंदा हैं ये कमाल किया - आरिफ़ इमाम

3. मौत के डर से नाहक़ परेशान हैं आप ज़िंदा कहाँ हैं जो मर जायेंगे ! - अंसार कम्बरी

4. इनकार की सी लज़्ज़त इक़रार में कहां, होता है इश्क़ ग़ालिब, उनकी नहीं-नहीं से - मीर तक़ी मीर

5. रोज़ वो ख़्वाब में आते हैं गले मिलने को, मैं जो सोता हूं तो जाग उठती है क़िस्मत मेरी - जलील मानिकपुरी

6. दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया, तुझसे भी दिलफरेब हैं ग़म रोज़गार के - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

7. 'रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज, मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं - मिर्ज़ा ग़ालिब

8. दुनिया ने किस का राह-ए-फ़ना में दिया है साथ तुम भी चले चलो यूँही जब तक चली चले - शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

9. अब और इस के सिवा चाहते हो क्या 'मुल्ला', ये कम है उस ने तुम्हें मुस्कुरा के देख लिया - आनंद नारायण मुल्ला

10. मैं बोलता हूँ तो इल्ज़ाम है बग़ावत का, मैं चुप रहूँ तो बड़ी बेबसी सी होती है - बशीर बद्र

11. घूम रहा था एक शख़्स रात के ख़ारज़ार में, उस का लहू भी मर गया सुब्ह के इंतिज़ार में. - आदिल मंसूरी

12. 'हम परवरिश-ए-लौह-ओ-क़लम करते रहेंगे, जो दिल पे गुज़रती है रक़म करते रहेंगे' - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

13. जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यों, यहां तो कोई मेरा हम-ज़बां नहीं मिलता ! - कैफ़ी आज़मी

14. अब हवाएँ ही करेंगी रौशनी का फ़ैसला, जिस दिए में जान होगी, वो दिया रह जाएगा - महशर बदायुनी

15. बाग़ में जाने के आदाब हुआ करते हैं, किसी तितली को न फूलों से उड़ाया जाए - निदा फ़ाज़ली

15 जून 2022

दर्द हल्का है साँस भारी है

दर्द हल्का है साँस भारी है
जिए जाने की रस्म जारी है

आप के ब'अद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है

रात को चाँदनी तो ओढ़ा दो
दिन की चादर अभी उतारी है

शाख़ पर कोई क़हक़हा तो खिले
कैसी चुप सी चमन पे तारी है

कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था
आज की दास्ताँ हमारी है

--- गुलज़ार

10 जून 2022

हिन्दू जाग गया है !

बड़ा शोर है
हिन्दू जाग गया है
हिन्दू जाग गया है
हिन्दू जाग गया है
पर कोई बता नहीं रहा
कौन सा हिन्दू जाग गया?
मोहम्मद गौरी को बुलाने वाला
जयचंद जाग गया
या
गाँधी का हत्यारा गोडसे जाग गया?
औरत को पूजने वाला
हिन्दू जाग गया
या
जुए में द्रौपदी को दांव पर लगाने वाला
हिन्दू जाग गया?
वर्णवाद का शिकार हिन्दू जाग गया
ब्राह्मणों का दरबान बना
राजपूत वाला हिन्दू जाग गया
ब्राह्मणों का कारोबार सम्भालने वाला
वैश्य हिन्दू जाग गया
या
शुद्र बना हिन्दू जाग गया?
स्वाभिमान,स्वावलंबन,रोजगार छोड़
एक एक दाने की भीख लेने वाला
हिन्दू जाग गया?
एक एक सांस को तरसता
घर घर मरघट में मरने वाला
हिन्दू जाग गया?
संविधान से बराबरी का अधिकार
लेने वाला हिन्दू जाग गया
या
संविधान सम्मत वोट से
मनुवादी सत्ता चुनकर
वर्णवाद में पिसने वाला
हिन्दू जाग गया?
बेचारे हिन्दू हिन्दू बोलकर
मरे जा रहे हैं
ये नाम इन्हें इस्लाम वालों ने दिया
मुसलमानों की दी
हिन्दू की पहचान पर गर्व कर रहे हैं
और हिन्दू नाम देने वाले
मुसलमान से नफ़रत कर रहे हैं
ये कौन से हिन्दू जाग गए है?
दरअसल हिन्दू नहीं जागे
भीड़ जाग गई है
अंधी भीड़
वर्णवाद की गुलामी से जिसे
संविधान ने आज़ादी दिलाई थी
वो भीड़ फिर से वर्णवाद को
सत्ता पर बिठाने के लिए जाग गई है
वो भीड़ जाग गई है
जो ब्राह्मणों के राज में
वर्णवाद में राजपूत
वैश्य और शुद्र बनकर
शोषित होना चाहती है
जो शोषण को भारत की संस्कृति मानती है
वो जो ब्राह्मणवाद की पालकी ढ़ोने को
मोक्ष मानती है
वो भीड़ जाग गई है
आर्य प्रसन्न हैं
मोदी संविधान को नेस्तनाबूद कर
ब्राह्मणों की सत्ता के दूत बने हैं
छोटी जाति के एक व्यक्ति के लिए
इससे बड़ी बात क्या हो सकती है
जिसे सदियों तक अछूत माना गया
वो गांधी,आंबेडकर और नेहरु के संविधान से
देश का प्रधानमन्त्री बन सकता है
वो हिन्दू जाग गया है
जो बराबरी नहीं
ब्राह्मणों की श्रेष्ठता को
भारत की संस्कृति मानता है
और
संविधान सम्मत राज को गुलामी !

~ मंजुल भारद्वाज

4 जून 2022

“Everything is the colonizer's Fault”

We already have poets
who speak truth to power,
in various reputed literary magazines.
We already have our political heirs
who know how to stay relevant in the media.
We already have journalists
who are friends with people in high places,
in case they write something against them in the future.
We already have newspaper editors
who know how to beat politicians at golf.
We already have people in uniform
who know how to change their nationality
as they return home.
We already have government employees
who are oblivious to politics
in the first week of every month.

What we need, God
—if you are still up there?—is
some typical, rich,
handsome, high caste Kashmiri dictator
who empathizes with our material zest!
Someone who understands
our helpless need to be religious and
speaks Arabic like poetry.

--- Mubashir Karim

26 मई 2022

महारथी

झूठ आज से नहीं
अनन्त काल से
रथ पर सवार है
और सच चल रहा है
पाँव-पाँव
नदी पहाड़ काँटे और फूल
और धूल
और ऊबड़-खाबड़ रास्ते
सब सच ने जाने हैं
झूठ तो
समान एक आसमान में उड़ता है
और उतर जाता है
जहाँ चाहता है
क्रमश: बदली है
झूठ ने सवारियाँ
आज तो वह सुपरसॉनिक पर है
और सच आज भी
पाँव-पाँव चल रहा है
इतना ही हो सकता है किसी-दिन
कि देखें हम
सच सुस्ता रहा है
थोड़ी देर छाँव में
और
सुपरसॉनिक किसी झँझट में पड़कर
जल रहा है

--- भवानीप्रसाद मिश्र

21 मई 2022

बेरोजगार

यह सवाल उसे शर्मिंदा कर देता है
कि क्या कर रहा है वह आजकल
वह डकैती नहींडालता
वह तस्करी नहीं करता
वह हत्याएँ नहीं करता
वह फ़रेबी वादे नहीं करता
वह देश नहीं चलाता
फिर भी यह सवाल उसे शर्मिंदा कर देता है
कि क्या कर रहा है वह आजकल

--- देवी प्रसाद मिश्र

14 मई 2022

“Yet to die. Unalone still.”

Yet to die. Unalone still.
For now your pauper-friend is with you.
Together you delight in the grandeur of the plains,
And the dark, the cold, the storms of snow.

Live quiet and consoled
In gaudy poverty, in powerful destitution.
Blessed are those days and nights.
The work of this sweet voice is without sin.

Misery is he whom, like a shadow,
A dog’s barking frightens, the wind cuts down.
Poor is he who, half-alive himself
Begs his shade for pittance.

--- Osip Mandelstam (Translated by John High and Matvei Yankelevich)