आज बाज़ार में पा-ब-जौला चलो
चश्म-ए-नम जान-ए-शोरीदा काफी नहीं
तोहमत-ए-इश्क़ पोशीदा काफी नहीं
आज बाज़ार में पा-ब-जौला चलो
दस्त-अफ्शां चलो, मस्त-ओ-रक़्सां चलो
खाक-बर-सर चलो, खूं-ब-दामां चलो
राह तकता है सब शहर-ए-जानां चलो
हाकिम-ए-शहर भी, मजम-ए-आम भी
तीर-ए-इल्ज़ाम भी, संग-ए-दुश्नाम भी
सुबह-ए-नाशाद भी, रोज़-ए-नाकाम भी
इनका दमसाज़ अपने सिवा कौन है
शहर-ए-जानां मे अब बा-सफा कौन है
दस्त-ए-क़ातिल के शायां रहा कौन है
रख्त-ए-दिल बांध लो दिलफिगारों चलो
फिर हमीं क़त्ल हो आयें यारों चलो
आज बाज़ार में पा-ब-जौला चलो
--- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
Check Jahane Rumi's webpage for translation and explanation;
Video Weblink of the Poetry Reading by Faiz himself.
दमसाज़ an intimate friend, a cosinger; पा-ब-जौला with fetters in feet, prisoner, helpless; पोशीदा hidden, concealed रक़्सां dancing; रख्त baggage, property; शायां suitable, fit, worthy; शोरीदा mad, desperately in love, disturbed, dejected
काफी अच्छी लगी फ़ैज साहब कि शायरी .... कुछ दिनो पहले फैज साहब की रचनाओं की एक पुस्तक खरीदी है....उम्मीद है कि अपने ब्लाग मे उनकी कुछ बेहतरीन रचनाओं को पोस्ट कर पाउँगा .....
जवाब देंहटाएंFaiz saihab ka mein to mureed ho gaya hoon. Behtareen tareke se zazbaat nazmoon mein utarte hain. Aur फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ki kavita yahan se pad lo : http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A5%88%E0%A4%9C%E0%A4%BC_%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A4%AE%E0%A4%A6_%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A5%88%E0%A4%9C%E0%A4%BC
जवाब देंहटाएंFaiz Sahab was an extraordinary poet beyond measure. Understanding his Urdu poetry or nazm is too difficult to grasp. Today he is no more but his invaluable work is all with us . However these days the trend has changed . Literature is counting days and science in the form of its luxurious product has captured the minds of masses
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