6 जून 2010

एक बूँद सहसा उछली

मैने देखा :

एक बूँद सहसा

उछली सागर के झाग से -

रंगी गयी छण भर

ढलते सूरज की आग से !

- मुझको दीख गया :

हर आलोक-छुआ अपनापन

है उन्मोचन

नश्वरता के दाग से !

--- अज्ञेय

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें