10 नवंबर 2021

सूरज हूँ ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा

सूरज हूँ ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा
मैं डूब भी गया तो शफ़क़ छोड़ जाऊँगा

तारीख़-ए-कर्बला-ए-सुख़न! देखना कि मैं
ख़ून-ए-जिगर से लिख के वरक़ छोड़ जाऊँगा

इक रौशनी की मौत मरूँगा ज़मीन पर
जीने का इस जहान में हक़ छोड़ जाऊँगा

रोएँगे मेरी याद में महर ओ मह ओ नुजूम
इन आइनों में अक्स-ए-क़लक़ छोड़ जाऊँगा

वो ओस के दरख़्त लगाऊँगा जा-ब-जा
हर बूँद में लहू की रमक़ छोड़ जाऊँगा

गुज़रूँगा शहर-ए-संग से जब आइना लिए
चेहरे खुले दरीचों में फ़क़ छोड़ जाऊँगा

पहुँचूँगा सेहन-ए-बाग़ में शबनम-रुतों के साथ
सूखे हुए गुलों में अरक़ छोड़ जाऊँगा

हर-सू लगेंगे मुझ से सदाक़त के इश्तिहार
हर-सू मोहब्बतों के सबक़ छोड़ जाऊँगा

'साजिद' गुलाब-चाल चलूँगा रविश रविश
धरती पे गुल्सितान-ए-शफ़क़ छोड़ जाऊँगा

---इक़बाल साजिद

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