अभी कल तक
गालियॉं देती तुम्हें
हताश खेतिहर,
अभी कल तक
धूल में नहाते थे
गोरैयों के झुंड,
अभी कल तक
पथराई हुई थी
धनहर खेतों की माटी,
अभी कल तक
धरती की कोख में
दुबके पेड़ थे मेंढक,
अभी कल तक
उदास और बदरंग था आसमान!
और आज
ऊपर-ही-ऊपर तन गए हैं
तम्हारे तंबू,
और आज
छमका रही है पावस रानी
बूँदा-बूँदियों की अपनी पायल,
और आज
चालू हो गई है
झींगुरो की शहनाई अविराम,
और आज
ज़ोरों से कूक पड़े
नाचते थिरकते मोर,
और आज
आ गई वापस जान
दूब की झुलसी शिराओं के अंदर,
और आज विदा हुआ चुपचाप ग्रीष्म
समेटकर अपने लाव-लश्कर।
--- नागार्जुन
5 सितंबर 2011
27 अगस्त 2011
नीड का निर्माण
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्णान फिर-फिर!
वह उठी आँधी कि नभ में
छा गया सहसा अँधेरा,
धूलि धूसर बादलों ने
भूमि को इस भाँति घेरा,
रात-सा दिन हो गया, फिर
रात आई और काली,
लग रहा था अब न होगा
इस निशा का फिर सवेरा,
रात के उत्पात-भय से
भीत जन-जन, भीत कण-कण
किंतु प्राची से उषा की
मोहिनी मुस्कान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्णान फिर-फिर!
वह चले झोंके कि काँपे
भीम कायावान भूधर,
जड़ समेत उखड़-पुखड़कर
गिर पड़े, टूटे विटप वर,
हाय, तिनकों से विनिर्मित
घोंसलो पर क्या न बीती,
डगमगाए जबकि कंकड़,
ईंट, पत्थर के महल-घर;
बोल आशा के विहंगम,
किस जगह पर तू छिपा था,
जो गगन पर चढ़ उठाता
गर्व से निज तान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्णान फिर-फिर!
क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों
में उषा है मुसकराती,
घोर गर्जनमय गगन के
कंठ में खग पंक्ति गाती;
एक चिड़िया चोंच में तिनका
लिए जो जा रही है,
वह सहज में ही पवन
उंचास को नीचा दिखाती!
नाश के दुख से कभी
दबता नहीं निर्माण का सुख
प्रलय की निस्तब्धता से
सृष्टि का नव गान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्णान फिर-फिर!
--- हरिवंशराय बच्चन
नेह का आह्णान फिर-फिर!
वह उठी आँधी कि नभ में
छा गया सहसा अँधेरा,
धूलि धूसर बादलों ने
भूमि को इस भाँति घेरा,
रात-सा दिन हो गया, फिर
रात आई और काली,
लग रहा था अब न होगा
इस निशा का फिर सवेरा,
रात के उत्पात-भय से
भीत जन-जन, भीत कण-कण
किंतु प्राची से उषा की
मोहिनी मुस्कान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्णान फिर-फिर!
वह चले झोंके कि काँपे
भीम कायावान भूधर,
जड़ समेत उखड़-पुखड़कर
गिर पड़े, टूटे विटप वर,
हाय, तिनकों से विनिर्मित
घोंसलो पर क्या न बीती,
डगमगाए जबकि कंकड़,
ईंट, पत्थर के महल-घर;
बोल आशा के विहंगम,
किस जगह पर तू छिपा था,
जो गगन पर चढ़ उठाता
गर्व से निज तान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्णान फिर-फिर!
क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों
में उषा है मुसकराती,
घोर गर्जनमय गगन के
कंठ में खग पंक्ति गाती;
एक चिड़िया चोंच में तिनका
लिए जो जा रही है,
वह सहज में ही पवन
उंचास को नीचा दिखाती!
नाश के दुख से कभी
दबता नहीं निर्माण का सुख
प्रलय की निस्तब्धता से
सृष्टि का नव गान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्णान फिर-फिर!
--- हरिवंशराय बच्चन
24 अगस्त 2011
Chand Sher - 1
1)
न मौजें, न तूफां, न माझी, न साहिल
मगर मन की नैया बही जा रही है
चला जा रहा है वफ़ा का मुसाफ़िर
जिधर भी तमन्ना लिये जा रही है |
-दिल शाहजहांपुरी
2)
रख कदम फूंक-फूंक कर नादान
ज़र्रे-ज़र्रे में जान है प्यारे
मीर आमदन भी कोई मरता है
जान है तो जहान है प्यारे
(आमदन = ज़िद करके, जान-बूझ कर)
- मीर तक़ी मीर
3)
लाए उस बुत को इल्तिज़ा करके, कुफ़्र टूटा ख़ुदा ख़ुदा करके|
- पंडित दयाशंकर नसीम
4)
हमारे बाद अब महफ़िल में अफ़साने बयां होंगे
बहारें हमको ढूँढेंगी ना जाने हम कहाँ होंगे
ना हम होंगे ना तुम होगे और ना ये दिल होगा फिर भी
हज़ारों मंज़िले होंगी हज़ारों कारँवा होंगे|
- मजरूह सुल्तानपुरी
5)
अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएंगे
मर के भी अगर चैन ना पाया तो किधर जाएंगे
हम नहीं वो जो करें ख़ून का दावा तुझ पर
बल्कि पूछेगा ख़ुदा भी तो मुकर जाएंगे
“ज़ौक” जो मदरसे के बिगडे हुए हैं मुल्लाह
उनको मयख़ाने में ले आओ संवर जाएंगे|
- इब्राहिम “ज़ौक़”
6)
इस से पहले कि बेवफ़ा हो जाएँ
क्यूँ न ए दोस्त हम जुदा हो जाएँ
तू भी हीरे से बन गया पत्थर
हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ
बंदगी हमने छोड़ दी है फ़राज़
क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ|
- अहमद फ़राज़
न मौजें, न तूफां, न माझी, न साहिल
मगर मन की नैया बही जा रही है
चला जा रहा है वफ़ा का मुसाफ़िर
जिधर भी तमन्ना लिये जा रही है |
-दिल शाहजहांपुरी
2)
रख कदम फूंक-फूंक कर नादान
ज़र्रे-ज़र्रे में जान है प्यारे
मीर आमदन भी कोई मरता है
जान है तो जहान है प्यारे
(आमदन = ज़िद करके, जान-बूझ कर)
- मीर तक़ी मीर
3)
लाए उस बुत को इल्तिज़ा करके, कुफ़्र टूटा ख़ुदा ख़ुदा करके|
- पंडित दयाशंकर नसीम
4)
हमारे बाद अब महफ़िल में अफ़साने बयां होंगे
बहारें हमको ढूँढेंगी ना जाने हम कहाँ होंगे
ना हम होंगे ना तुम होगे और ना ये दिल होगा फिर भी
हज़ारों मंज़िले होंगी हज़ारों कारँवा होंगे|
- मजरूह सुल्तानपुरी
5)
अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएंगे
मर के भी अगर चैन ना पाया तो किधर जाएंगे
हम नहीं वो जो करें ख़ून का दावा तुझ पर
बल्कि पूछेगा ख़ुदा भी तो मुकर जाएंगे
“ज़ौक” जो मदरसे के बिगडे हुए हैं मुल्लाह
उनको मयख़ाने में ले आओ संवर जाएंगे|
- इब्राहिम “ज़ौक़”
6)
इस से पहले कि बेवफ़ा हो जाएँ
क्यूँ न ए दोस्त हम जुदा हो जाएँ
तू भी हीरे से बन गया पत्थर
हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ
बंदगी हमने छोड़ दी है फ़राज़
क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ|
- अहमद फ़राज़
15 अगस्त 2011
जोश मलीहाबादी की एक नज़्म – आज के नाम
लोग हमसे रोज कहते हैं ये आदत छोडिये
ये तिजारत है खिलाफे-आदमियत छोडिये
इससे बदतर लत नहीं है कोई, ये लत छोडिये
रोज अखबारों में छपता है की रिश्वत छोडिये
भूल कर भी जो कोई लेता है रिश्वत, चोर है
आज कौमी पागलों में रात-दिन ये शोर है.
किसको समझाएं इसे खो दें तो फिर पाएंगे क्या?
हम अगर रिश्वत नहीं लेंगे तो फिर खायेंगे क्या?
क़ैद भी कर दें तो हमें रह पर लायेंगे क्या?
ये जूनूने -इश्क के अंदाज़ छूट जायेंगे क्या?
मुल्क भर को क़ैद कर दे किसके बस की बात है
खैर से सब हैं, कोई दो-चार-दस की बात है?
ये हवस, ये चोरबाजारी, ये महंगे, ये भाव
राइ की कीमत हो जब परबत तो क्यों न आये ताव
अपनी तनख्वाहों के नाले में पानी है आध पाव
और लाखों टन की भरी अपने जीवन की है नाव
जब तलक रिश्वत न लें हम, दाल गल सकती नहीं
नाव तनख्वाहों के पानी में तो चल सकती नहीं
ये है मिलवाला, वो बनिया, औ ये साहूकार है
ये है दूकानदार, वो हैं वैद, ये अत्तार है
वोह अगर है ठग, तो ये डाकू है, वो बटमार है
आज हर गर्दन में काली जीत का इक हार है
हैफ़! मुल्क-ओ-कॉम की खिदमतगुजारी के लिए
रह गए हैं इ हमीं ईमानदारी के लिए?
---जोश मलीहाबादी.
जोश मलीहाबादी की नज़्म ‘रिश्वत’ के कुछ टुकड़े, इस स्वाधीनता दिवस के नाम.
Taken from Kafila posted by Aditya Nigam;
ये तिजारत है खिलाफे-आदमियत छोडिये
इससे बदतर लत नहीं है कोई, ये लत छोडिये
रोज अखबारों में छपता है की रिश्वत छोडिये
भूल कर भी जो कोई लेता है रिश्वत, चोर है
आज कौमी पागलों में रात-दिन ये शोर है.
किसको समझाएं इसे खो दें तो फिर पाएंगे क्या?
हम अगर रिश्वत नहीं लेंगे तो फिर खायेंगे क्या?
क़ैद भी कर दें तो हमें रह पर लायेंगे क्या?
ये जूनूने -इश्क के अंदाज़ छूट जायेंगे क्या?
मुल्क भर को क़ैद कर दे किसके बस की बात है
खैर से सब हैं, कोई दो-चार-दस की बात है?
ये हवस, ये चोरबाजारी, ये महंगे, ये भाव
राइ की कीमत हो जब परबत तो क्यों न आये ताव
अपनी तनख्वाहों के नाले में पानी है आध पाव
और लाखों टन की भरी अपने जीवन की है नाव
जब तलक रिश्वत न लें हम, दाल गल सकती नहीं
नाव तनख्वाहों के पानी में तो चल सकती नहीं
ये है मिलवाला, वो बनिया, औ ये साहूकार है
ये है दूकानदार, वो हैं वैद, ये अत्तार है
वोह अगर है ठग, तो ये डाकू है, वो बटमार है
आज हर गर्दन में काली जीत का इक हार है
हैफ़! मुल्क-ओ-कॉम की खिदमतगुजारी के लिए
रह गए हैं इ हमीं ईमानदारी के लिए?
भूक के कानून में ईमानदारी जुर्म है
और बे-ईमानियों पर शर्मसारी जुर्म है
डाकुओं के दौर में परहेजगारी जुर्म है
जब हुकूमत खाम हो तो पुख्ताकारी जुर्म है
लोग अटकाते हैं क्यों रोड़े हमारे काम में
जिसको देखो, खैर से नंगा है वो हमाम में
………..
तोंद वालों की तो आईनादारी, वाहवाह
और हम भूकों के सर पर चांदमारी, वाहवाह
उनकी खातिर सुबह होते ही नहरी, वाहवाह
और हम चाटा करें ईमानदारी, वाहवाह
सेठजी तो खूब मोटर में हवा खाते फिरें
और हम सब जूतियाँ गलियों में चटकाते फिरें
………
आप हैं फज़ल-ए-खुदा-ए-पाक से कुर्सिनाशीं
इंतज़ाम-ए-सल्तनत है आपके ज़ेरे-नगीं
आसमां है आपका खादिम तो लौंडी है ज़मीं
आप खुद रिश्वर के ज़िम्मेदार हैं, फिदवी नहीं
और बे-ईमानियों पर शर्मसारी जुर्म है
डाकुओं के दौर में परहेजगारी जुर्म है
जब हुकूमत खाम हो तो पुख्ताकारी जुर्म है
लोग अटकाते हैं क्यों रोड़े हमारे काम में
जिसको देखो, खैर से नंगा है वो हमाम में
………..
तोंद वालों की तो आईनादारी, वाहवाह
और हम भूकों के सर पर चांदमारी, वाहवाह
उनकी खातिर सुबह होते ही नहरी, वाहवाह
और हम चाटा करें ईमानदारी, वाहवाह
सेठजी तो खूब मोटर में हवा खाते फिरें
और हम सब जूतियाँ गलियों में चटकाते फिरें
………
आप हैं फज़ल-ए-खुदा-ए-पाक से कुर्सिनाशीं
इंतज़ाम-ए-सल्तनत है आपके ज़ेरे-नगीं
आसमां है आपका खादिम तो लौंडी है ज़मीं
आप खुद रिश्वर के ज़िम्मेदार हैं, फिदवी नहीं
बख्शते हैं आप दरिया, कश्तियाँ खेते हैं हम
आप देते हैं मवाके, रिश्वत लेते हैं हम
ठीक तो करते नहीं बुनियाद-ए-नाहमवार को
दे रहे हैं गालियाँ गिरती हुई दीवार को
…….
आप देते हैं मवाके, रिश्वत लेते हैं हम
ठीक तो करते नहीं बुनियाद-ए-नाहमवार को
दे रहे हैं गालियाँ गिरती हुई दीवार को
…….
---जोश मलीहाबादी.
जोश मलीहाबादी की नज़्म ‘रिश्वत’ के कुछ टुकड़े, इस स्वाधीनता दिवस के नाम.
Taken from Kafila posted by Aditya Nigam;
10 अगस्त 2011
Your Love
My dear with the deep eyes, Your love
is extreme,
mystical
sacred.
Like birth and death, your love
is unrepeatable.
---Nizar Qabbani
Translated by A.Z. Foreman
is extreme,
mystical
sacred.
Like birth and death, your love
is unrepeatable.
---Nizar Qabbani
Translated by A.Z. Foreman
8 अगस्त 2011
I'm No Teacher
I am no teacher
To teach you how to love,
For the fish need no teacher
To teach them to swim
And birds need no teacher
To teach them flight.
Swim on your own.
Fly on your own.
Love comes with no textbooks
And the greatest lovers in history were illiterate.
---Nizar Qabbani
Translated by A.Z. Foreman
To teach you how to love,
For the fish need no teacher
To teach them to swim
And birds need no teacher
To teach them flight.
Swim on your own.
Fly on your own.
Love comes with no textbooks
And the greatest lovers in history were illiterate.
---Nizar Qabbani
Translated by A.Z. Foreman
5 अगस्त 2011
Mohabbat bade kaam ki cheez hai
हर तरफ हुस्न है, जवानी है, आज की रात क्या सुहानी है
रेशमी जिस्म तरथराते है, मरमरी ख्वाब गुनगुनाते है
धड़कानों में सुरूर फैला है, रंग नज़दीक-ओ-डोर फैला है
दावता-ये-इश्क दे रही हैं फज़ा
आज हो जा किसी हसीन पे फिदा
के मोहब्बत बड़े काम की चीज़ हैं काम की
मोहब्बत के दम से हैं दुनियाँ की रौनक
मोहब्बत ना होती तो कुच्छ भी ना होता
नज़र और दिल की पनाहों की खातिर
ये जन्नत ना होती तो कुच्छ भी ना होता
यही एक आराम की चीज़ है
किताबों में छपते हैं चाहत के किससे
हक़ीकत की दुनियाँ में चाहत नहीं है
जमाने के बाजार में ये वो शे है
के जिस की किसी को ज़रूरत नहीं है
ये बेकार, बेदाम की चीज़ है
ये कुदरत के आराम की चीज़ है
ये बस नाम ही नाम की चीज़ है
मोहब्बत से इतना खफा होनेवाले
चल आ आज तुझे को मोहब्बत सीखा दे
तेरा दिल जो बरसों से वीरान पड़ा हैं
किसी नाज़नीनान को इस में बसा दे
मेरा मशवरा काम की चीज़ है.
---Lyricist :Saahir Ludhiyanvi
Singer :Lata Mangeshkar - Kishor Kumar - Yeshudaas
Music Director :Khayyam
Movie :Trishul - 1978
रेशमी जिस्म तरथराते है, मरमरी ख्वाब गुनगुनाते है
धड़कानों में सुरूर फैला है, रंग नज़दीक-ओ-डोर फैला है
दावता-ये-इश्क दे रही हैं फज़ा
आज हो जा किसी हसीन पे फिदा
के मोहब्बत बड़े काम की चीज़ हैं काम की
मोहब्बत के दम से हैं दुनियाँ की रौनक
मोहब्बत ना होती तो कुच्छ भी ना होता
नज़र और दिल की पनाहों की खातिर
ये जन्नत ना होती तो कुच्छ भी ना होता
यही एक आराम की चीज़ है
किताबों में छपते हैं चाहत के किससे
हक़ीकत की दुनियाँ में चाहत नहीं है
जमाने के बाजार में ये वो शे है
के जिस की किसी को ज़रूरत नहीं है
ये बेकार, बेदाम की चीज़ है
ये कुदरत के आराम की चीज़ है
ये बस नाम ही नाम की चीज़ है
मोहब्बत से इतना खफा होनेवाले
चल आ आज तुझे को मोहब्बत सीखा दे
तेरा दिल जो बरसों से वीरान पड़ा हैं
किसी नाज़नीनान को इस में बसा दे
मेरा मशवरा काम की चीज़ है.
---Lyricist :Saahir Ludhiyanvi
Singer :Lata Mangeshkar - Kishor Kumar - Yeshudaas
Music Director :Khayyam
Movie :Trishul - 1978
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