4 जुलाई 2022

Why Are Your Poems so Dark?

Isn't the moon dark too,
most of the time?

And doesn't the white page
seem unfinished

without the dark stain
of alphabets?

When God demanded light,
he didn't banish darkness.

Instead he invented
ebony and crows

and that small mole
on your left cheekbone.

Or did you mean to ask
"Why are you sad so often?"

Ask the moon.
Ask what it has witnessed.

30 जून 2022

Interrogation of a Muslim: A Poem By Keki N. Daruwalla

I think of palaces in Junagadh
gargoyles affixed
to drainpipes in monsoons.

He is in khaki
Brits coined the word from ‘ash’
a tilak long as a walking stick
bleeds on his forehead.
Prisoner squatting on the floor, thinks
his mouth is a gargoyle.

I am not interested
in your crimes against the state—
all that is recorded in discs, phone taps
and our extractions from mobile phones.

I want your confession
on the crimes you thought
of committing.

--- Keki N. Daruwalla

25 जून 2022

तुमने देखी है काशी?

“तुमने देखी है काशी?
जहाँ, जिस रास्ते
जाता है शव -
उसी रास्ते
आता है शव!
शवों का क्या
शव आएँगे,
शव जाएँगे -
और अगर हो भी तो
क्या फर्क पड़ेगा?
तुमने सिर्फ यही तो किया
शव को रास्ता दिया
और पूछा -
किसका है यह शव?
जिस किसी का था,
और किसका नहीं था,
कोई फर्क पड़ा?”

--- श्रीकान्त वर्मा

20 जून 2022

15 बेहतरीन शेर - 5 !!!

1. आपके तग़ाफ़ुल का सिलसिला पुराना है उस तरफ़ निगाहें हैं इस तरफ़ निशाना है - हिना तैमूरी

2. तुम्हारे हिज्र में मरना था कौन सा मुश्किल, तुम्हारे हिज्र में ज़िंदा हैं ये कमाल किया - आरिफ़ इमाम

3. मौत के डर से नाहक़ परेशान हैं आप ज़िंदा कहाँ हैं जो मर जायेंगे ! - अंसार कम्बरी

4. इनकार की सी लज़्ज़त इक़रार में कहां, होता है इश्क़ ग़ालिब, उनकी नहीं-नहीं से - मीर तक़ी मीर

5. रोज़ वो ख़्वाब में आते हैं गले मिलने को, मैं जो सोता हूं तो जाग उठती है क़िस्मत मेरी - जलील मानिकपुरी

6. दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया, तुझसे भी दिलफरेब हैं ग़म रोज़गार के - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

7. 'रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज, मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं - मिर्ज़ा ग़ालिब

8. दुनिया ने किस का राह-ए-फ़ना में दिया है साथ तुम भी चले चलो यूँही जब तक चली चले - शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

9. अब और इस के सिवा चाहते हो क्या 'मुल्ला', ये कम है उस ने तुम्हें मुस्कुरा के देख लिया - आनंद नारायण मुल्ला

10. मैं बोलता हूँ तो इल्ज़ाम है बग़ावत का, मैं चुप रहूँ तो बड़ी बेबसी सी होती है - बशीर बद्र

11. घूम रहा था एक शख़्स रात के ख़ारज़ार में, उस का लहू भी मर गया सुब्ह के इंतिज़ार में. - आदिल मंसूरी

12. 'हम परवरिश-ए-लौह-ओ-क़लम करते रहेंगे, जो दिल पे गुज़रती है रक़म करते रहेंगे' - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

13. जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यों, यहां तो कोई मेरा हम-ज़बां नहीं मिलता ! - कैफ़ी आज़मी

14. अब हवाएँ ही करेंगी रौशनी का फ़ैसला, जिस दिए में जान होगी, वो दिया रह जाएगा - महशर बदायुनी

15. बाग़ में जाने के आदाब हुआ करते हैं, किसी तितली को न फूलों से उड़ाया जाए - निदा फ़ाज़ली

15 जून 2022

दर्द हल्का है साँस भारी है

दर्द हल्का है साँस भारी है
जिए जाने की रस्म जारी है

आप के ब'अद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है

रात को चाँदनी तो ओढ़ा दो
दिन की चादर अभी उतारी है

शाख़ पर कोई क़हक़हा तो खिले
कैसी चुप सी चमन पे तारी है

कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था
आज की दास्ताँ हमारी है

--- गुलज़ार

10 जून 2022

हिन्दू जाग गया है !

बड़ा शोर है
हिन्दू जाग गया है
हिन्दू जाग गया है
हिन्दू जाग गया है
पर कोई बता नहीं रहा
कौन सा हिन्दू जाग गया?
मोहम्मद गौरी को बुलाने वाला
जयचंद जाग गया
या
गाँधी का हत्यारा गोडसे जाग गया?
औरत को पूजने वाला
हिन्दू जाग गया
या
जुए में द्रौपदी को दांव पर लगाने वाला
हिन्दू जाग गया?
वर्णवाद का शिकार हिन्दू जाग गया
ब्राह्मणों का दरबान बना
राजपूत वाला हिन्दू जाग गया
ब्राह्मणों का कारोबार सम्भालने वाला
वैश्य हिन्दू जाग गया
या
शुद्र बना हिन्दू जाग गया?
स्वाभिमान,स्वावलंबन,रोजगार छोड़
एक एक दाने की भीख लेने वाला
हिन्दू जाग गया?
एक एक सांस को तरसता
घर घर मरघट में मरने वाला
हिन्दू जाग गया?
संविधान से बराबरी का अधिकार
लेने वाला हिन्दू जाग गया
या
संविधान सम्मत वोट से
मनुवादी सत्ता चुनकर
वर्णवाद में पिसने वाला
हिन्दू जाग गया?
बेचारे हिन्दू हिन्दू बोलकर
मरे जा रहे हैं
ये नाम इन्हें इस्लाम वालों ने दिया
मुसलमानों की दी
हिन्दू की पहचान पर गर्व कर रहे हैं
और हिन्दू नाम देने वाले
मुसलमान से नफ़रत कर रहे हैं
ये कौन से हिन्दू जाग गए है?
दरअसल हिन्दू नहीं जागे
भीड़ जाग गई है
अंधी भीड़
वर्णवाद की गुलामी से जिसे
संविधान ने आज़ादी दिलाई थी
वो भीड़ फिर से वर्णवाद को
सत्ता पर बिठाने के लिए जाग गई है
वो भीड़ जाग गई है
जो ब्राह्मणों के राज में
वर्णवाद में राजपूत
वैश्य और शुद्र बनकर
शोषित होना चाहती है
जो शोषण को भारत की संस्कृति मानती है
वो जो ब्राह्मणवाद की पालकी ढ़ोने को
मोक्ष मानती है
वो भीड़ जाग गई है
आर्य प्रसन्न हैं
मोदी संविधान को नेस्तनाबूद कर
ब्राह्मणों की सत्ता के दूत बने हैं
छोटी जाति के एक व्यक्ति के लिए
इससे बड़ी बात क्या हो सकती है
जिसे सदियों तक अछूत माना गया
वो गांधी,आंबेडकर और नेहरु के संविधान से
देश का प्रधानमन्त्री बन सकता है
वो हिन्दू जाग गया है
जो बराबरी नहीं
ब्राह्मणों की श्रेष्ठता को
भारत की संस्कृति मानता है
और
संविधान सम्मत राज को गुलामी !

~ मंजुल भारद्वाज

4 जून 2022

“Everything is the colonizer's Fault”

We already have poets
who speak truth to power,
in various reputed literary magazines.
We already have our political heirs
who know how to stay relevant in the media.
We already have journalists
who are friends with people in high places,
in case they write something against them in the future.
We already have newspaper editors
who know how to beat politicians at golf.
We already have people in uniform
who know how to change their nationality
as they return home.
We already have government employees
who are oblivious to politics
in the first week of every month.

What we need, God
—if you are still up there?—is
some typical, rich,
handsome, high caste Kashmiri dictator
who empathizes with our material zest!
Someone who understands
our helpless need to be religious and
speaks Arabic like poetry.

--- Mubashir Karim