1 जनवरी 2023

तुम सवालो से भरे हो...

तुम सवालो से भरे हो
क्या तुम्हें मालूम है

भीड़ से कुछ पूछने भी
जानलेवा जुर्म है

तफशीष करने आये हो
खुल कर लो शौक से

फर्क पड़ता है कहा है
एक दो की मौत से

चार दिन चर्चा उठेगी
डेमोक्रेसी लाएंगे

पांचवे दिन सब काम पे
लग जाएंगे

काम से ही काम रखना
हा मगर ये याद रखना

कोई पूछे कौन थे
बस तुम्हे इतना ही कहना

भीड़ थी कुछ लोग थे

फिर भी कोई ज़िद पकड़ले
क्या हुआ किसने किया

सोच के उंगली उठाना
कट रही है उंगलियां

बात को कुछ यूं घूमना

नफरतो के रोग थे
धर्म न जात उनके

भीड़ थी
कुछ लोग थे

--- नवीन चौरे

25 दिसंबर 2022

Potli Baba Ki (पोटली बाबा की)

आया... रे बाबा आया...

घुँघर वाली झेनू वाली झुन्नू का बाबा,
किस्सों का कहानियों का गीतों का चाबा,
घुँघर वाली झेनू वाली झुन्नू का बाबा,
किस्सों का कहानियों का गीतों का चाबा,
हे.. आया आया झेनू वाली झुन्नू का बाबा...
आया आया झेनू वाली झुन्नू का बाबा...

आया... रे बाबा आया...

पोटली में हरी-भरी परियों के पर
मंदिरों की घंटियों, कलीसाओं का बाघ,
पोटली में हरी-भरी परियों के पर
मंदिरों की घंटियों, कलीसाओं का बाघ,
हे..आया आया झेनू वाली झुन्नू का बाबा...
आया आया झेनू वाली झुन्नू का बाबा...

आया... रे बाबा आया...

20 दिसंबर 2022

हाथी

पकड़े जाने से पहले हर रोज़ हाथी
नदी पर आता है अपने दोस्त हाथियों के साथ
कसरत करता है
भरपूर पानी में अपने बदन को प्यार करता है
अपने दाँतों को बालू में धँसा-धँसा कर माँजता है।

पकड़े जाने के बाद
हाथी के बदन, ताक़त और
उन दाँतों का इस्तेमाल मालिक करते है
जिन्हें हाथी ने बनाया था
बहुत मेहनत और प्यार के साथ
पकड़े जाने से पहले।

16 दिसंबर 2022

मेरा धन है स्वाधीन क़लम

राजा बैठे सिंहासन पर,
यह ताजों पर आसीन क़लम

मेरा धन है स्वाधीन क़लम
जिसने तलवार शिवा को दी
रोशनी उधार दिवा को दी
पतवार थमा दी लहरों को
खंजर की धार हवा को दी
अग-जग के उसी विधाता ने, 
कर दी मेरे आधीन क़लम
मेरा धन है स्वाधीन क़लम

रस-गंगा लहरा देती है
मस्ती-ध्वज फहरा देती है
चालीस करोड़ों की भोली
किस्मत पर पहरा देती है
संग्राम-क्रांति का बिगुल यही है, 
यही प्यार की बीन क़लम
मेरा धन है स्वाधीन क़लम

कोई जनता को क्या लूटे
कोई दुखियों पर क्या टूटे
कोई भी लाख प्रचार करे
सच्चा बनकर झूठे-झूठे
अनमोल सत्य का रत्‍नहार, 
लाती चोरों से छीन क़लम
मेरा धन है स्वाधीन क़लम

बस मेरे पास हृदय-भर है
यह भी जग को न्योछावर है
लिखता हूँ तो मेरे आगे
सारा ब्रह्मांड विषय-भर है
रँगती चलती संसार-पटी, 
यह सपनों की रंगीन क़लम
मेरा धन है स्वाधीन कलम

लिखता हूँ अपनी मर्ज़ी से
बचता हूँ कैंची-दर्ज़ी से
आदत न रही कुछ लिखने की
निंदा-वंदन खुदगर्ज़ी से
कोई छेड़े तो तन जाती, बन जाती है संगीन क़लम
मेरा धन है स्वाधीन क़लम

तुझ-सा लहरों में बह लेता
तो मैं भी सत्ता गह लेता
ईमान बेचता चलता तो
मैं भी महलों में रह लेता
हर दिल पर झुकती चली मगर, 
आँसू वाली नमकीन क़लम
मेरा धन है स्वाधीन क़लम 

11 दिसंबर 2022

Reading books

Reading books
you're there inside me

Hearing songs
you're inside me

Eating my bread
you're sitting before me

Or at my work
you're before me.

You're my "silent partner"
everywhere.

Although we cannot speak
Although we cannot hear
each other's voices.
You're my widow of eight years.

--- Nâzım Hikmet

6 दिसंबर 2022

Fascism: I sometimes fear...

I sometimes fear that
people think that fascism arrives in fancy dress
worn by grotesques and monsters
as played out in endless re-runs of the Nazis.

Fascism arrives as your friend.
It will restore your honour,
make you feel proud,
protect your house,
give you a job,
clean up the neighbourhood,
remind you of how great you once were,
clear out the venal and the corrupt,
remove anything you feel is unlike you...


It doesn't walk in saying,
"Our programme means militias, mass imprisonments, transportations, war and persecution.”

- Michael Rosen,

30 नवंबर 2022

जाति के लिए

ईश्वर सिंह के उपन्यास पर
राजधानी में गोष्ठी हुई
कहते हैं कि बोलने वालों में
उपन्यास के समर्थक सब सिंह थे
और विरोधी ब्राह्मण

सुबह उठा तो
अख़बार के मुखपृष्ठ पर
विज्ञापन था :
अमर सिंह को बचाएँ’
और यह अपील करने वाले
सांसद और विधायक क्षत्रिय थे
मैं समझ नहीं पाया
अमर सिंह एक मनुष्य हैं
तो उन्हें क्षत्रिय ही क्यों बचाएँगे?

दुपहर में
एक पत्रिका ख़रीद लाया
उसमें कायस्थ महासभा के
भव्य सम्मेलन की ख़बर थी
देश के विकास में
कायस्थों के योगदान का ब्योरा
और आरक्षण की माँग
मुझे लगा
योगदान करने वालों की
जाति मालूम करो
और फिर लड़ो
उनके लिए नहीं
जाति के लिए

शाम को मैं मशहूर कथाकार
गिरिराज किशोर के घर गया
मैंने पूछा : देश का क्या होगा?
उन्होंने कहा : देश का अब
कुछ नहीं हो सकता
फिर वह बोले : अभी
वैश्य महासभा वाले आए थे
कह रहे थे—आप हमारे
सम्मेलन में चलिए

--- पंकज चतुर्वेदी