4 नवंबर 2022

परसाई जी की बात

आज से ठीक चौवन बरस पहले
जबलपुर में,
परसाई जी के पीछे लगभग भागते हुए
मैंने उन्हें सुनाई अपनी कविता
और पूछा “क्या इस पर इनाम मिल सकता है”
“अच्छा कविता पर सज़ा भी मिल सकती है”
सुनकर मैं सन्न रह गया
क्योंकि उसी शाम, विद्यार्थियों की कविता प्रतियोगिता में
मैं हिस्सा लेना चाहता था
और परसाई जी उसकी अध्यक्षता करने वाले थे।
आज, जब सुन रहा हूँ, वाह, वाह
मित्र लोग ले रहे हैं हाथों-हाथ
सज़ा कैसी कोई सख़्त बात तक नहीं कहता
तो शक होने लगता है,
परसाईजी की बात पर, नहीं—
अपनी कविताओं पर।


स्रोत : पुस्तक : सुनो चारुशीला (पृष्ठ 82) 

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