28 दिसंबर 2021

Tapestry

It hangs from heaven to earth.
There are trees in it, cities, rivers,
small pigs and moons. In one corner
the snow falling over a charging cavalry,
in another women are planting rice.

You can also see:
a chicken carried off by a fox,
a naked couple on their wedding night,
a column of smoke,
an evil-eyed woman spitting into a pail of milk.

What is behind it?
—Space, plenty of empty space.

And who is talking now?
—A man asleep under his hat.

What happens when he wakes up?
—He’ll go into a barbershop.

They’ll shave his beard, nose, ears, and hair,
To make him look like everyone else.

--- Charles Simic

25 दिसंबर 2021

15 बेहतरीन शेर - 4 !!!

1. 'रोने वालों से कहो उनका भी रोना रो लें, जिनको मजबूरी-ए-हालात ने रोने न दिया' - सुदर्शन फ़ाकिर

2. मिटा दे अपनी हस्ती को, अगर कुछ मर्तबा चाहे | कि दाना खाक में मिलकर गुले गुलज़ार होता है - अल्लामा इक़बाल

3. एक आस्तीं चढ़ाने की आदत को छोड़कर, हाफ़ी तुम आदमी तो बहुत शानदार हो -तहज़ीब हाफ़ी

4. ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं, मसरूफ़ हम बहुत हैं मगर बे-ख़बर नहीं - आलोक श्रीवास्तव

5. न जाने कौन सा आसेब दिल में बसता है, कि जो भी ठहरा वो आख़िर मकान छोड़ गया -परवीन शाकिर

6. जीने का कुछ उसूल न मरने का ढंग है हर छोटी-छोटी बात पे आपस में जंग है - रऊफ़ रहीम

7. बे-मक़्सद महफ़िल से बेहतर तन्हाई, बे-मतलब बातों से अच्छी ख़ामोशी - ऐन इरफ़ान

8. कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा, मुझे मालूम है क़िस्मत का लिखा भी बदलता है - बशीर बद्र

9. मैं पर्बतों से लड़ता रहा और चंद लोग, गीली ज़मीन खोद के फ़रहाद हो गए - राहत इंदौरी

10. सुना ये है, बना करते हैं जोड़े आसमानों में, तो ये समझें कि हर बीवी बला-ए-आसमानी है - अहमद अल्वी

11. जिन्हें ये फ़िक्र नहीं सर रहे रहे न रहे, वो सच ही कहते हैं जब बोलने पे आते हैं - आबिद अदीब

12. इशरत ए क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना, दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना - मिर्ज़ा ग़ालिब

13. बुरा बुरे के अलावा भला भी होता है, हर आदमी में कोई दूसरा भी होता है - अनवर शऊर

14. ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है, वही होता है जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है - मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

15. गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं, हम चराग़ों की तरह शाम से जल जाते हैं - क़तील शिफ़ाई

21 दिसंबर 2021

उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले


क्यूँ जान-ए-हज़ीं ख़तरा-ए-मौहूम से निकले
क्यूँ नाला-ए-हसरत दिल-ए-मग़्मूम से निकले
आँसू न किसी दीदा-ए-मज़लूम से निकले
कह दो कि न शिकवा लब-ए-मग़्मूम से निकले

उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
उर्दू का ग़म-ए-मर्ग सुबुक भी है गराँ भी
है शामिल-ए-अर्बाब-ए-अ'ज़ा शाह-ए-जहाँ भी
मिटने को है अस्लाफ़ की अज़्मत का निशाँ भी

ये मय्यत-ए-ग़म देहली-ए-मरहूम से निकले
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
ऐ ताज-महल नक़्श-ब-दीवार हो ग़म से
ऐ क़िला-ए-शाही ये अलम पूछ न हम से

ऐ ख़ाक-ए-अवध फ़ाएदा क्या शरह-ए-सितम से
तहरीक ये मिस्र-ओ-अ'रब-ओ-रोम से निकले
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
साया हो जब उर्दू के जनाज़े पे 'वली' का

हों 'मीर-तक़ी' साथ तो हमराह हूँ 'सौदा'
दफ़नाएँ उसे 'मुसहफ़ी'-ओ-'नासिख़'-ओ-'इंशा'
ये फ़ाल हर इक दफ़्तर-ए-मंज़ूम से निकले
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले

बद-ज़ौक़ है अहबाब से गो ज़ौक़ हैं रंजूर
उर्दू-ए-मुअ'ल्ला के न मातम से रहें दूर
तल्क़ीन सर-ए-क़ब्र पढ़ें मोमिन-ए-मग़्फ़ूर
फ़रियाद दिल-ए-'ग़ालिब'-ए-मरहूम से निकले

उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
है मर्सियाँ-ख़्वाँ क़ौम हैं उर्दू के बहुत कम
कह दो कि 'अनीस' इस का लिखें मर्सिया-ए-ग़म
जन्नत से 'दबीर' आ के पढ़ें नौहा-ए-मातम

ये चीख़ उठे दिल से न हुल्क़ूम से निकले
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
इस लाश को चुपके से कोई दफ़न न कर दे
पहले कोई 'सरसय्यद'-ए-आज़म को ख़बर दे

वो मर्द-ए-ख़ुदा हम में नई रूह तो भर दे
वो रूह कि मौजूद न मा'दूम से निकले
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
उर्दू के जनाज़े की ये सज-धज हो निराली

सफ़-बस्ता हों मरहूमा के सब वारिस-ओ-वाली
'आज़ाद'-ओ-'नज़ीर'-ओ-'शरर'-ओ-'शिबली'-ओ-'हाली'
फ़रियाद ये सब के दिल-ए-मग़्मूम से निकले
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले

16 दिसंबर 2021

If We Must Die

If we must die, let it not be like hogs
Hunted and penned in an inglorious spot,
While round us bark the mad and hungry dogs,
Making their mock at our accursèd lot.
If we must die, O let us nobly die,
So that our precious blood may not be shed
In vain; then even the monsters we defy
Shall be constrained to honor us though dead!
O kinsmen! we must meet the common foe!
Though far outnumbered let us show us brave,
And for their thousand blows deal one death-blow!
What though before us lies the open grave?
Like men we’ll face the murderous, cowardly pack,
Pressed to the wall, dying, but fighting back!

10 दिसंबर 2021

काली मिट्टी काले घर

काली मिट्टी काले घर
दिनभर बैठे-ठाले घर

काली नदिया काला धन
सूख रहे हैं सारे बन

काला सूरज काले हाथ
झुके हुए हैं सारे माथ

काली बहसें काला न्याय
खाली मेज पी रही चाय

काले अक्षर काली रात
कौन करे अब किससे बात

काली जनता काला क्रोध
काला-काला है युगबोध

--- केदारनाथ सिंह

5 दिसंबर 2021

मैं फिर कहता हूँ

मैं फिर कहता हूँ
धर्म नहीं रहेगा, तो कुछ नहीं रहेगा -
मगर मेरी
कोई नहीं सुनता!
हस्तिनापुर में सुनने का रिवाज नहीं -

जो सुनते हैं
बहरे हैं या
अनसुनी करने के लिए
नियुक्त किए गए हैं

मैं फिर कहता हूँ
धर्म नहीं रहेगा, तो कुछ नहीं रहेगा -
मगर मेरी
कोई नहीं सुनता
तब सुनो या मत सुनो
हस्तिनापुर के निवासियो! होशियार!

हस्तिनापुर में
तुम्हारा एक शत्रु पल रहा है, विचार -
और याद रखो
आजकल महामारी की तरह फैल जाता है
विचार।

--- श्रीकांत वर्मा

29 नवंबर 2021

Without Mercy

There is a sweet music,
but its sweetness fails to console you.
This is what the days have taught you:
in every long war
there is a soldier, with a distracted face and ordinary teeth,
who sits outside his tent
holding his bright-sounding harmonica
which he has carefully protected from the dust and blood,
and like a bird
uninvolved in the conflict,
he sings to himself
a love song
that does not lie.

For a moment,
he feels embarrassed at what the moonlight might think:
what’s the use of a harmonica in hell?

A shadow approaches,
then more shadows.
His fellow soldiers, one after the other,
join him in his song.
The singer takes the whole regiment with him
to Romeo’s balcony,
and from there,
without thinking,
without mercy,
without doubt,
they will resume the killing!

--- Mourid Barghouti (translation: Radwa Ashour)

24 नवंबर 2021

'करियर का चुनाव'

मैं कभी साधारण बैंक कर्मचारी नहीं बन सकता था खाने-पीने के सामानों का सेल्समैन भी नहीं
किसी पार्टी का मुखिया भी नहीं
न ही टैक्सी ड्राइवर
प्रचार में लगा मार्केटिंग वाला भी नहीं

मैं बस इतना चाहता था
कि शहर की सबसे ऊँची जगह पर खड़ा होकर
नीचे ठसाठस इमारतों के बीच उस औरत का घर देखूँ
जिससे मैं प्यार करता हूँ
इसलिए मैं बाँधकाम मज़दूर बन गया।

अनुवाद - गीत चतुर्वेदी
साभार- कविताकोश

18 नवंबर 2021

I am happy living simply

I am happy living simply:
like a clock, or a calendar.
Worldly pilgrim, thin,
wise—as any creature. To know

the spirit is my beloved. To come to things—swift
as a ray of light, or a look.
To live as I write: spare—the way
God asks me—and friends do not.

--- Marina Tsvetaeva

14 नवंबर 2021

Sidewalk Ends

There is a place where the sidewalk ends
and before the street begins,
and there the grass grows soft and white,
and there the sun burns crimson bright,
and there the moon-bird rests from his flight
to cool in the peppermint wind.

Let us leave this place where the smoke blows black
and the dark street winds and bends.
Past the pits where the asphalt flowers grow
we shall walk with a walk that is measured and slow
and watch where the chalk-white arrows go
to the place where the sidewalk ends.

Yes we'll walk with a walk that is measured and slow,
and we'll go where the chalk-white arrows go,
for the children, they mark, and the children, they know,
the place where the sidewalk ends.

--- Shel Silverstein

10 नवंबर 2021

सूरज हूँ ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा

सूरज हूँ ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा
मैं डूब भी गया तो शफ़क़ छोड़ जाऊँगा

तारीख़-ए-कर्बला-ए-सुख़न! देखना कि मैं
ख़ून-ए-जिगर से लिख के वरक़ छोड़ जाऊँगा

इक रौशनी की मौत मरूँगा ज़मीन पर
जीने का इस जहान में हक़ छोड़ जाऊँगा

रोएँगे मेरी याद में महर ओ मह ओ नुजूम
इन आइनों में अक्स-ए-क़लक़ छोड़ जाऊँगा

वो ओस के दरख़्त लगाऊँगा जा-ब-जा
हर बूँद में लहू की रमक़ छोड़ जाऊँगा

गुज़रूँगा शहर-ए-संग से जब आइना लिए
चेहरे खुले दरीचों में फ़क़ छोड़ जाऊँगा

पहुँचूँगा सेहन-ए-बाग़ में शबनम-रुतों के साथ
सूखे हुए गुलों में अरक़ छोड़ जाऊँगा

हर-सू लगेंगे मुझ से सदाक़त के इश्तिहार
हर-सू मोहब्बतों के सबक़ छोड़ जाऊँगा

'साजिद' गुलाब-चाल चलूँगा रविश रविश
धरती पे गुल्सितान-ए-शफ़क़ छोड़ जाऊँगा

---इक़बाल साजिद

3 नवंबर 2021

शोषक भैया

डरो मत शोषक भैया: पी लो
मेरा रक्त ताज़ा है, मीठा है हृद्य है 
पी लो  शोषक भैया: डरो मत। 

 शायद तुम्हें पचे नहीं-- अपना मेदा तुम देखो, मेरा क्या दोष है। 
 मेरा रक्त मीठा तो है, पर पतला या हल्का भी हो 
 इसका ज़िम्मा तो मैं नहीं ले सकता, शोषक भैया? 
 जैसे कि सागर की लहर सुन्दर हो, यह तो ठीक, 
 पर यह आश्वासन तो नहीं दे सकती कि किनारे को लील नहीं लेगी 

 डरो मत शोषक भैय: मेरा रक्त ताज़ा है, 
 मेरी लहर भी ताज़ा और शक्तिशाली है।
 ताज़ा, जैसी भट्ठी में ढलते गए इस्पात की धार, 
 शक्तिशाली, जैसे तिसूल: और पानीदार। 
 पी लो, शोषक भैया: डरो मत। 

 मुझ से क्या डरना? 
 वह मैं नहीं, वह तो तुम्हारा-मेरा सम्बन्ध है जो तुम्हारा काल है
 शोषक भैया! 

30 अक्तूबर 2021

“Al Midan”

Dark Egyptian hands that know how to characterize

Reach out through the roar to destroy the frames

The creative youth came out and turned autumn into spring

They have performed the miracle and raised the murdered from murder

Kill me, killing me will not bring back your country

In my blood I shall write a new life for my home

My blood is it or the spring? Both in green color

Am I smiling because of my happiness or my sorrows?

--- Abdel Rahman al-Abnoudi

26 अक्तूबर 2021

For My Young Friends Who Are Afraid

There is a country to cross you will
find in the corner of your eye, in
the quick slip of your foot--air far
down, a snap that might have caught.
And maybe for you, for me, a high, passing
voice that finds its way by being
afraid. That country is there, for us,
carried as it is crossed. What you fear
will not go away: it will take you into
yourself and bless you and keep you.
That's the world, and we all live there.

---William Stafford

21 अक्तूबर 2021

आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा

आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा
कश्ती के मुसाफ़िर ने समुंदर नहीं देखा

बे-वक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा

जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा

ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं
तुम ने मिरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा

यारों की मोहब्बत का यक़ीं कर लिया मैं ने
फूलों में छुपाया हुआ ख़ंजर नहीं देखा

महबूब का घर हो कि बुज़ुर्गों की ज़मीनें
जो छोड़ दिया फिर उसे मुड़ कर नहीं देखा

ख़त ऐसा लिखा है कि नगीने से जड़े हैं
वो हाथ कि जिस ने कोई ज़ेवर नहीं देखा

पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला
मैं मोम हूँ उस ने मुझे छू कर नहीं देखा

18 अक्तूबर 2021

It is Night, in My Study

It is night, in my study.
The deepest solitude; I hear the steady
shudder in my breast
—for it feels all alone,
and blanched by my mind—
and I hear my blood
with even murmur
fill up the silence.

You might say the thin stream
falls in the waterclock and fills the bottom.
Here, in the night, all alone, this is my study;
the books don't speak;
my oil lamp
bathes these pages in a light of peace,
light of a chapel.

The books don't speak;
of the poets, the meditators, the learned,
the spirits drowse;
and it is as if around me circled
cautious death.

I turn at times to see if it waits,
I search the dark,
I try to discern among the shadows
its thin shadow,
I think of heart failure,
think about my strong age; since my fortieth year
two more have passed.

Toward a looming temptation
here, in the solitude, the silence turns me—
the silence and the shadows.

And I tell myself: "Perhaps when soon
they come to tell me
that supper awaits,
they will discover a body here
pallid and cold
—the thing that I was, this one who waits—
just like those books quiet and rigid,
the blood already stopped,
jelling in the veins,
the chest silent
under the gentle light of the soothing oil,
a funeral lamp.

I tremble to end these lines
that they do not seem
an unusual testament,
but rather a mysterious message
from the shade beyond,
lines dictated by the anxiety
of eternal life.
I finished them and yet I live on.

translated by William Stafford and Lillian Jean Stafford.

11 अक्तूबर 2021

The Nobodies / Los nadies

Fleas dream of buying themselves a dog,
and nobodies dream of escaping from poverty,
that one magical day
good luck will soon rain,
that good luck will pour down,
but good luck doesn't rain, neither yesterday
nor today,nor tomorrow, nor ever,
nor does good fall from the sky in little mild showers,
however much the nobodies call for it,
even if their left hands itch
or they get up using their right feet,
or they change their brooms at new year.

The nobodies: the children of nobody, that masters of nothing,
The nobodies: the nothings, those made nothing,
running after the hare, dying life, fucked, totally fucked:

who are not, although they were.
Who speak no languages, only dialects.
Who have no religions, only superstitions.
Who have have no arts, only crafts.
Who have no culture, only folklore.
Who are not human beings, but human resources.
Who have faces, only arms.
Who don't have names, only numbers.
Who don't count in world history,
just in the local press's stories of violence, crime, misfortune and disaster,.

The nobodies who are worth less than the bullets that kill them.


7 अक्तूबर 2021

Dust

It’s my turn at the water point:
The trickle is slower today
Each day, slower,
One day, it may stop;
And my field has withered,
Rusted-dry in the staring sun,
The crevices filling with dust.
Tin buckets clash behind me
And a loud voice roughly bawls
“Don’t fill that bucket full!
Fool – don’t you know you’ll slop?”
I withdraw, abashed. It’s true:
I mustn’t spill a precious drop
Not even as a libation
To the gloating sun.

I saw a young man gunned down
As I shopped in the market place.
Two thick thuds, and then he fell,
And thrashed a bit, on his face.
That’s all. He sprawled in the staring sun.
(They whirled away in a cloud of dust
In a smart white van.)
His blood laid the dust
In a scarlet little shower,
Scarlet little flowers.
In the staring sun, the little flowers
Will burn and turn to rust.

I stumble home through arid fields
My furtive footsteps hushed by dust.
I scan the sky – hard, limpid, deep –
O pure and high is heaven’s sky!
Is there no shade for me? I weep
To hide from the glaring eye of heaven.
(Cain, my brother Cain!
I know your fear, your guilt, your pain –
I too have now a brother slain,
I too am sealed with the scarlet stain!)
My ink has crusted in my pen
And in my heart – the dust.

---Nini Lungalang

2 अक्तूबर 2021

सड़क पर किसान

 "जिनकी जेबें भरने के लिए 

किसानों का पेट तुम काट रहे 

सब जानते हैं छुप-छुप कर 

किस-किसके तलवे चाट रहे 

क्यों तुमसे न वह आज लड़ेगा 

मूर्तियाँ गिराते-गिराते 

गिर गए हैं जो अपने भीतर 

हुजूम किसानों का फिर से उन्हें 

सवालों के चौराहे पर खड़ा करेगा।"

जसिंता केरकेट्टा

28 सितंबर 2021

Poem of Love (Poema de Amor)

They who widened the Panama Canal
(and were classified “silver roll” and “gold roll”),
they who repaired the Pacific fleet at California bases,
they who rotted in the jails of Guatemala,
Mexico, Honduras, Nicaragua *
for being thieves, smugglers, swindlers, for being hungry,
they always suspicious of everything
(“permit me to haul you in as a suspect
for hanging out on corners suspiciously, and furthermore
with the pretentious air of being Salvadorian”),
they who packed the bars and brothels of all the ports
and capitals of the region
(“The Blue Cave,” “Hot Pants,” “Happyland”),
the planters of corn deep in foreign jungles,
the kings of cheap porn,
they who no one knows where they come from,
the best artisans of the world,
they who were stitched by bullets crossing the border,
they who died of malaria
or by the sting of scorpions or yellow fever
in the hell of banana plantations,
the drunkards who cried for the national anthem
under a cyclone of the Pacific or northern snows,
the moochers, the beggars, the dope pushers,
guanaco sons of bitches,
they who hardly made it back,
they who had a little more luck,
the eternally undocumented,
the jack-of-all trades, the hustlers, the gluts,
the first the flash a knife,
the sad, the saddest of all,
my people, my brothers.


*Somoza’s era in Nicaragua.
Translated from the Spanish by Zoë Anglesey and Daniel Flores Ascencio.

25 सितंबर 2021

उनको प्रणाम

जो नहीं हो सके पूर्ण–काम
मैं उनको करता हूँ प्रणाम ।

कुछ कंठित औ' कुछ लक्ष्य–भ्रष्ट
जिनके अभिमंत्रित तीर हुए;
रण की समाप्ति के पहले ही
जो वीर रिक्त तूणीर हुए !
उनको प्रणाम !

जो छोटी–सी नैया लेकर
उतरे करने को उदधि–पार;
मन की मन में ही रही¸ स्वयं
हो गए उसी में निराकार !
उनको प्रणाम !

जो उच्च शिखर की ओर बढ़े
रह–रह नव–नव उत्साह भरे;
पर कुछ ने ले ली हिम–समाधि
कुछ असफल ही नीचे उतरे !
उनको प्रणाम !

एकाकी और अकिंचन हो
जो भू–परिक्रमा को निकले;
हो गए पंगु, प्रति–पद जिनके
इतने अदृष्ट के दाव चले !
उनको प्रणाम !

कृत–कृत नहीं जो हो पाए;
प्रत्युत फाँसी पर गए झूल
कुछ ही दिन बीते हैं¸ फिर भी
यह दुनिया जिनको गई भूल !
उनको प्रणाम !

थी उम्र साधना, पर जिनका
जीवन नाटक दु:खांत हुआ;
या जन्म–काल में सिंह लग्न
पर कुसमय ही देहांत हुआ !
उनको प्रणाम !

दृढ़ व्रत औ' दुर्दम साहस के
जो उदाहरण थे मूर्ति–मंत ?
पर निरवधि बंदी जीवन ने
जिनकी धुन का कर दिया अंत !
उनको प्रणाम !

जिनकी सेवाएँ अतुलनीय
पर विज्ञापन से रहे दूर
प्रतिकूल परिस्थिति ने जिनके
कर दिए मनोरथ चूर–चूर !
उनको प्रणाम !

---नागार्जुन

22 सितंबर 2021

जूता

तारकोल और बजरी से सना
सड़क पर पड़ा है
एक ऐंठा, दुमड़ा, बेडौल
जूता।

मैं उन पैरों के बारे में
सोचता हूँ
जिनकी इसने रक्षा की है
और
श्रद्धा से नत हो जाता हूँ।

~सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

20 सितंबर 2021

The Warrior's Resting Place

The dead are getting more restless each day.

They used to be easy
we’d put on stiff collars flowers
praised their names on long lists
shrines of the homeland
remarkable shadows
monstrous marble.

The corpses signed away for posterity
returned to formation
and marched to the beat of our old music.

But not anymore
the dead
have changed.

They get all ironic
they ask questions.

It seems to me they’ve started to realise
they’re becoming the majority!

16 सितंबर 2021

15 बेहतरीन शेर - 3 !!!

1. मुझ को थकने नहीं देता ये ज़रूरत का पहाड़, मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते - मेराज फ़ैज़ाबादी

2. लड़कियों के दुःख अजब होते हैं सुख उससे अजीब, हँस रहीं हैं और काजल भीगता है साथ साथ - परवीन शाकिर

3. बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है, बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है -मुनव्वर राणा

4. उसी का शहर, वही मुद्दई वही मुंसिफ़ हमें यहीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा -अमीर कजलबाश

5. कश्ती-ए-मय को हुक्म-ए-रवानी भी भेज दे, जब आग भेजी है तो पानी भी भेज दे - जोश मलीहाबादी

6. सबकी पगड़ी को हवाओं उछाला जाए, सोचता हूँ कोई अख़बार निकाला जाए - राहत इंदौरी

7. तुझको मस्जिद मुझको मैखाना वायज़! अपनी अपनी क़िस्मत है - मीर तक़ी मीर

8. तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे, मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे - क़ैसर-उल जाफ़री

9. देवताओं का ख़ुदा से होगा काम, आदमी को आदमी दरकार है - फ़िराक़ गोरखपुरी

10. आग थे इब्तिदा-ए-इश्क़ में हम, अब जो हैं ख़ाक इंतिहा है ये ~मीर तक़ी मीर

11. जिन पत्थरों को हमनें अता की थी धड़कनें, वो बोलने लगे तो हमीं पर बरस पड़े - अज्ञात

12. वहाँ से है मेरी हिम्मत की इब्तिदा वल्लाह जो इंतिहा है तेरे सब्र आज़माने की ~ जोश मलीहाबादी

13. पड़ जाएं फफोले अभी 'अकबर' के बदन पर पढ़ कर जो कोई फूँक दे अप्रैल, मई, जून - अकबर इलाहाबादी

14. 'बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे, पर क्या करें जो काम न बे-दिल्लगी चले' - शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

15. 'चाहता था बहुत-सी बातों को, मगर अफ़्सोस अब वो जी ही नहीं' - अकबर इलाहाबादी

13 सितंबर 2021

चेतक की वीरता

रण बीच चौकड़ी भर-भर कर
 चेतक बन गया निराला था
 राणाप्रताप के घोड़े से
 पड़ गया हवा का पाला था

 जो तनिक हवा से बाग हिली
 लेकर सवार उड़ जाता था
 राणा की पुतली फिरी नहीं
 तब तक चेतक मुड़ जाता था

 गिरता न कभी चेतक तन पर 
 राणाप्रताप का कोड़ा था 
 वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर 
 वह आसमान का घोड़ा था 

था यहीं रहा अब यहाँ नहीं 
 वह वहीं रहा था यहाँ नहीं 
 थी जगह न कोई जहाँ नहीं 
 किस अरिमस्तक पर कहाँ नहीं 

 निर्भीक गया वह ढालों में 
 सरपट दौडा करबालों में 
 फँस गया शत्रु की चालों में 

 बढ़ते नद-सा वह लहर गया 
 फिर गया गया फिर ठहर गया 
 विकराल वज्रमय बादल-सा 
 अरि की सेना पर घहर गया 

 भाला गिर गया गिरा निसंग 
 हय टापों से खन गया अंग 
 बैरी समाज रह गया दंग 
 घोड़े का ऐसा देख रंग 

10 सितंबर 2021

To the Young Who Want to Die

Sit down. Inhale. Exhale.
The gun will wait. The lake will wait.
The tall gall in the small seductive vial
will wait will wait:
will wait a week: will wait through April.
You do not have to die this certain day.
Death will abide, will pamper your postponement.
I assure you death will wait. Death has
a lot of time. Death can
attend to you tomorrow. Or next week. Death is
just down the street; is most obliging neighbor;
can meet you any moment.

You need not die today.
Stay here--through pout or pain or peskyness.
Stay here. See what the news is going to be tomorrow.

Graves grow no green that you can use.
Remember, green's your color. You are Spring.

7 सितंबर 2021

The Snowfall Is So Silent

The snowfall is so silent,
so slow,
bit by bit, with delicacy
it settles down on the earth
and covers over the fields.
The silent snow comes down
white and weightless;
snowfall makes no noise,
falls as forgetting falls,
flake after flake.
It covers the fields gently
while frost attacks them
with its sudden flashes of white;
covers everything with its pure
and silent covering;
not one thing on the ground
anywhere escapes it.
And wherever it falls it stays,
content and gay,
for snow does not slip off
as rain does,
but it stays and sinks in.
The flakes are skyflowers,
pale lilies from the clouds,
that wither on earth.
They come down blossoming
but then so quickly
they are gone;
they bloom only on the peak,
above the mountains,
and make the earth feel heavier
when they die inside.
Snow, delicate snow,
that falls with such lightness
on the head,
on the feelings,
come and cover over the sadness
that lies always in my reason.

---Miguel de Unamuno
translated by Robert Bly

1 सितंबर 2021

सतपुड़ा के घने जंगल

सतपुड़ा के घने जंगल
नींद मे डूबे हुए-से,
ऊँघते अनमने जंगल।

झाड़ ऊँचे और नीचे,
चुप खड़े हैं आँख मीचे,
घास चुप है, कास चुप है
मूक शाल, पलाश चुप है।
बन सके तो धँसो इनमें,
धँस न पाती हवा जिनमें,
सतपुड़ा के घने जंगल
ऊँघते अनमने जंगल।

सड़े पत्ते, गले पत्ते,
हरे पत्ते, जले पत्ते,
वन्य पथ को ढँक रहे-से
पंक-दल मे पले पत्ते।
चलो इन पर चल सको तो,
दलो इनको दल सको तो,
ये घिनोने, घने जंगल
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल।


अटपटी-उलझी लताएँ,
डालियों को खींच खाएँ,
पैर को पकड़ें अचानक,
प्राण को कस लें कपाऐं।
सांप सी काली लताऐं
बला की पाली लताऐं
लताओं के बने जंगल
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल।

मकड़ियों के जाल मुँह पर,
और सर के बाल मुँह पर
मच्छरों के दंश वाले,
दाग काले-लाल मुँह पर,
वात- झन्झा वहन करते,
चलो इतना सहन करते,
कष्ट से ये सने जंगल,
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल|

अजगरों से भरे जंगल।
अगम, गति से परे जंगल
सात-सात पहाड़ वाले,
बड़े छोटे झाड़ वाले,
शेर वाले बाघ वाले,
गरज और दहाड़ वाले,
कम्प से कनकने जंगल,
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल।

इन वनों के खूब भीतर,
चार मुर्गे, चार तीतर
पाल कर निश्चिन्त बैठे,
विजनवन के बीच बैठे,
झोंपडी पर फ़ूंस डाले
गोंड तगड़े और काले।
जब कि होली पास आती,
सरसराती घास गाती,
और महुए से लपकती,
मत्त करती बास आती,
गूंज उठते ढोल इनके,
गीत इनके, गोल इनके

सतपुड़ा के घने जंगल
नींद मे डूबे हुए से
उँघते अनमने जंगल।

जागते अँगड़ाइयों में,
खोह-खड्डों खाइयों में,
घास पागल, कास पागल,
शाल और पलाश पागल,
लता पागल, वात पागल,
डाल पागल, पात पागल
मत्त मुर्ग़े और तीतर,
इन वनों के खूब भीतर!

क्षितिज तक फ़ैला हुआ-सा,
मृत्यु तक मैला हुआ-सा,
क्षुब्ध, काली लहर वाला
मथित, उत्थित जहर वाला,
मेरु वाला, शेष वाला
शम्भु और सुरेश वाला
एक सागर जानते हो,
उसे कैसा मानते हो?
ठीक वैसे घने जंगल,
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल|

धँसो इनमें डर नहीं है,
मौत का यह घर नहीं है,
उतर कर बहते अनेकों,
कल-कथा कहते अनेकों,
नदी, निर्झर और नाले,
इन वनों ने गोद पाले।
लाख पंछी सौ हिरन-दल,
चाँद के कितने किरन दल,
झूमते बन-फ़ूल, फ़लियाँ,
खिल रहीं अज्ञात कलियाँ,
हरित दूर्वा, रक्त किसलय,
पूत, पावन, पूर्ण रसमय
सतपुड़ा के घने जंगल,
लताओं के बने जंगल।

भवानी प्रसाद मिश्र (अगस्त, 1939)

26 अगस्त 2021

I Am Syrian

I am a Syrian. Exiled,
in and out of my homeland,
and
on knife blades with swollen feet I walk.
I am a Syrian: Shiite, Druze, Kurd,
Christian, and I am Alawite, Sunni, and Circassian.

Syria is my land.
Syria is my identity. My sect is the scent of my homeland,
the soil after the rain,
and my Syria is my only religion.
I am a son of this land, like the olives
apples pomegranates chicory cacti mint grapes figs ...
So what use are your thrones,
your Arabism,
your poems,
and your elegies?
Will your words bring back my home
and those who were killed accidentally?
Will they erase tears shed on this soil?
 
I am a son of that green paradise,
my hometown,
but today,
I am dying from hunger and thirst.
Barren tents in Lebanon and Amman are now my refuge,
but no land except my homeland
will nourish me with its grains,
nor will all the cloudsin this universe quench my thirst.

---Youssef Abu Yihea, Translated by Ghada Alatrash

20 अगस्त 2021

हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं

हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं
हम से ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं

बे-फ़ाएदा अलम नहीं बे-कार ग़म नहीं
तौफ़ीक़ दे ख़ुदा तो ये नेमत भी कम नहीं

मेरी ज़बाँ पे शिकवा-ए-अहल-ए-सितम नहीं
मुझ को जगा दिया यही एहसान कम नहीं

या रब हुजूम-ए-दर्द को दे और वुसअ'तें
दामन तो क्या अभी मिरी आँखें भी नम नहीं

शिकवा तो एक छेड़ है लेकिन हक़ीक़तन
तेरा सितम भी तेरी इनायत से कम नहीं

अब इश्क़ उस मक़ाम पे है जुस्तुजू-नवर्द
साया नहीं जहाँ कोई नक़्श-ए-क़दम नहीं

मिलता है क्यूँ मज़ा सितम-ए-रोज़गार में
तेरा करम भी ख़ुद जो शरीक-ए-सितम नहीं

मर्ग-ए-'जिगर' पे क्यूँ तिरी आँखें हैं अश्क-रेज़
इक सानेहा सही मगर इतना अहम नहीं

--- जिगर मुरादाबादी